सुलतान रुकनुद्दीन बैबर्स – भाग 2

सुलतानरुकनुद्दीन बैबर्स - इस्लाम के नायक बैबर्स, जिनसे मंगोल भी कांपते थे

फ्राँसीसी जब उसको हमला करते हुए देखते तो डर के मारे पीछे हट जाते थे। इस तरह उसने अपने कई हमलों की वजह से फ्राँसीसियों की अनगिनत टुकड़ियों को ढेर कर दिया था। इस नवयुवक ने अपने साहसी हमलों से फ्राँसीसी सेना के अंदर एक बड़े पैमाने पर घबराहट पैदा कर दी। यह क्रांति पैदा करने वाला घोड़े पर सवार सुलतान ‘अलमुल्कुस सालेह’ का गुलाम बैबर्स ही था।
मंसूरा के मैदान में लड़े जाने वाले इस युद्ध में उसने अपनी सैन्य योग्यता और बहादुरी का भरपूर इज़हार किया। कि वह सब मुसलमानों की आँखों का केन्द्र बन गया। मंसूरा में लड़े जाने वाले इस युद्ध में मिस्र के हाथों फ्राँसीसियों की बहुत बुरी हार हुई। और फ्राँस के बादशाह लूई मैहम को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी युद्ध के दौरान नये बादशाह तौरान शाह की भी मृत्यु हो गई।
जिसके बाद सेना के सरदारों की राय से ‘सजरतुद्दर’ को ‘अलमल्कतुल मुस्लिमीन’ के नाम से मिस्र की शासिका बना लिया गया। फ्राँस के युद्ध के दौरान पकड़े जाने वाले बादशाह लूई मैहम से मुसलमान बहुत अच्छे से पेश आए। अगर मुसलमान चाहते तो कैदी की हैसियत से उसे मार भी सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। पहले फ्राँस के बादशाह को मिस्र में कैद कर दिया गया उसके बाद मुसलमानों ने बड़ी उदारता से फ्राँस के बादशाह और उसके साथ कैद होने वोले दूसरे फ्राँसीसियों को रिहा कर दिया।
मलिका सजरतुद्दर जो अब मिस्र की शासिका थी उसने मिस्र पर तकरीबन 80 दिन शासन किया होगा। इस दौरान उसने असामान्य मशवरा का विरोध किया। कारोबारी शासन को उसने बहुत अच्छे से चलाया। लेकिन बगदाद के अब्बासी खलीफा ‘अलमौतसिम बिल्लाह’ ने औरत के शासन को पसंद न किया। और मिस्र के सरदारों को  पैंगाम भिजवाया। कि औरत के अलावा मिस्र का शासक किसी आदमी को बनाए। बगदाद के खलीफा की बात मानते हुए। एक शक्स ‘अलमुल्कुल अशरफ’ को मिस्र का बादशाह बनाया गया और मिस्री सेना के सरदार ‘मौज़्ज़द्दीन’ को अलमुल्कुल अशरफ का सलाहकार बनाया। ताकि सल्तनत का कारोबार आसान तरीके से चलाया जा सके। यह भी कहा जाता है कि मलिका सजरतुद्दर ने नए शासक अलमुल्कुल अशरफ से शादी कर ली थी।
सजरतुद्दर खुद एक गुलाम लड़की थी और अपनी खुबसूरती तथा अपनी पहचान से तरक्की करते – करते वह मिस्र के सुलतान  अलमुल्कुस सालेह की पत्नी बन गई थी। उसका एक बेटा खलील नाम का था जो दुर्भाग्य से 6 साल की उम्र में मर गया था। जिस समय अलमुल्कुल अशरफ को बादशाह बनाया गया और मिस्र की सेना के सेनापति को सुलतान  का सलाहकार और मददगार नियुक्त किया गया तब बैबर्स को सेना का सेनापति बना दिया गया था।
जिन दिनों बैबर्स को मिस्र की सेना का सेनापति नियुक्त किया गया उन दिनों इस्लामी दुनिया की हालत बहुत बुरी थी। मंगोल जो अपने आपको खुदा समझते थे मुसलमानों के इलाकों पर आक्रमण करते हुए उन्होंने बुखारा, समरकंद, बर्खनेशापुर, हरात और दूसरे कई शहरों और कस्बों को जलाकर राख कर दिया था। वहाँ के रहने वालों मे अकसर को उन्होंने बेदर्दी से मार दिया। इन मरने वालों में आदमी, बच्चे, बूढ़े, बीमार, मजबूर किसी को न छोड़ा।
जो लोग किसी तरह मरने से बच गए उनको गुलाम बना लिया गया। पहले चंगेज़ खाँन मुसलमानों के इलाकों पर हमला करता रहा। उसके बाद उसका पोता हलाकू खाँन इस्लामी दुनियां पर आक्रमण करने निकला और एक विशाल सेना के साथ इस्लामिक देशों पर खतरनाक हमलों की शुरुआत की। इसने अब्बासी खिलाफत को खत्म कर दिया। हलाकू ने बगदाद पर आक्रमण किया और बगदाद को बर्बाद कर दिया और अब्बासी खलीफा को उसने मार डाला। बगदाद शहर का तबाह होना और खलीफा को मार डालना कोई मामूली बात न थी। इससे इस्लामी दुनियां में कोहराम मच गया।
क्योंकि अब्बासी खलीफा की कमज़ोरी के बावजूद उसे आध्यात्मिक तौर पर सारी इस्लामी दुनियां का खलीफा समझा जाता था। और बड़े-बड़े मुस्लिम शासक उसके आगे सिर झुकाते थे। उससे खिलत (वह वस्त्र जो किसी राजा की ओंर से सम्मानपूर्वक दिया जाता है) और क्षेत्र पर अधिकार हासिल करना अपने लिए बहुत सम्मान की बात समझते थे। खलीफा को मारने और बगदाद को बर्बाद करने के बाद हलाकू की सेना ईराक के दूसरे शहरों की तरफ बड़ी। तबाही और बर्बादी, मार – काट और जहालत हर तरफ फैलाते चले गए।
कुछ दिनों के अंदर उन्होंने अर्रेया, नसिबयेन और हराम के खुबसूरत शहरों पर आक्रमण कर दिया और वहाँ के निवासियों को बहुत बुरी तरह से मार डाला। जिस समय हलाकू खाँन बगदाद, इराक के दूसरे शहरों को बर्बाद कर चुका। तब वह सीरिया देश में दाखिल हुआ। वहाँ भी भयानक तबाही मचाई। अब मंगोल इराक और सीरिया में दनदनाते घूम रहे थे। और उनकी नज़रें अब मिस्र पर जम गई थीं। इसलिए सीरिया को जीतने के बाद फिलस्तीन से होते हुए वह मिस्र की तरफ जाना चाहते थे। मिस्र में उस समय सुलतान  नवयुवक था। इसलिए सारे सरदारों ने आपस में मशवरा किया कि जल्द ही मंगोल मिस्र पर आक्रमण कर देंगे। इसलिए मिस्र का सुलतान  किसी अनुभवी व्यक्ति को बनाना चाहिए।
अतः यह फैसला किया गया कि मौज़्ज़द्दीन जो उससे पहले नवयुवक सुलतान  का सलाहकार और मददगार था उसे मिस्र का सुलतान  बना दिया गया और बैबर्स को मिस्र की सारी सेनाओँ की टुकड़ियों का सेनापति बना दिया गया। मौज़्ज़द्दीन मलिक मुजफ्फर के नाम से मशहूर हुआ। दूसरी तरफ मंगोल इराक और सीरिया को तबाह करते हुए फिलस्तीन में आ गए। फिलस्तीन में अपने कदम जमाने के बाद उनकी नज़रें मिस्र पर जम चुकीं थीं। और वह हर सूरत में मिस्र पर कब्ज़ा करना चाहते थे।
इसलिए की फिलस्तीन और मिस्र के बीच ‘सहरा-ए-सीना’ नाम का एक छोटा सा रेगिस्तान ही था। मंगोलों को पूरा यकीन था कि वह इस सहरा-ए-सीना रेगिस्तान को पार करके मिस्र पर भी कब्ज़ा कर लेंगें। वह यह भी सोच रहे थे कि मुसलमानों के बजाय अब नील नदी में हमारी नाँव चला करेंगी। मंगोलों के इस आक्रमण को रोकने के लिए अब मिस्र का नया सुलतान  मलिक मुजफ्फर और सेनापति बैबर्स दोंनो मिलकर अपनी सेना की संख्या बढ़ाने के साथ – साथ उनको प्रशिक्षण देने का काम भी स्वयं करने लगे। आखिर फिलस्तीन में कदम जमाने के बाद हलाकू ने मिस्र पर कब्ज़ा करने का फैसला कर लिया।
उसने मिस्र के सुलतान  के नाम एक पत्र लिखा। जिसमें लिखा था, यह उसका फरमान है जो सारी दुनियां का मालिक है। हमारी अधीनता स्वीकार कर लो। तो तुम्हें अमन और चैन से ज़िंदा रहने दिया जाएगा। अगर तुमने यह बात न मानी तो फिर जो कुछ तुम्हारे साथ होगा वह बहुत बुरा होगा। मंगोल आत्मा पर विश्वास रखते थे। उनका विश्वास था कि दुनियां में सब कुछ आत्मा करती है नेक और बुरी आत्मा इंसानों की ज़िदगी पर बुरी तरह हावी हो जाती है। बुलंद और बाला आसमान की आत्मा उनके यहाँ सबसे बड़ी और ताकतवर समझी जाती थी इसलिए मंगोल इसकी कसम खाया करते थे।
हलाकू खाँन का यह पत्र लेकर उसके राजदूत मिस्र में दाखिल हुए। क्योंकि अभी तक किसी मुसलमान शासक ने उनकी अकड़ी हुई गर्दन में हाथ न डाला था। इसलिए वह बड़े अकड़ कर चल रहे थे। उनका तरीका इंतेहाई दर्जे का बुरा था और जब उन्हें मिस्र के सुलतान  मौज़्ज़द्दीन के सामने पेश किया गया। तो उन्होंने आदाबे शाही का लिहाज़ करे बगैर हलाकू खाँन का पत्र मौज़्ज़द्दीन के सामने फेंक दिया जो मलिक मुजफ्फर के नाम था। जो मिस्र का सुलतान  था इस मौके पर मिस्र के सुलतान  मलिक मुजफ्फर की आँखें गस्से से आग बरसा रहीं थीं तब भी उसने गस्सा नहीं दिखाया बल्कि सब्र करा। उस समय बैबर्स सेनापति की हैसियत से उसके करीब बैठा हुआ था। वह भी अपने गुस्से का इज़हार करना चाहता था लेकिन सब्र से काम ले गया।
हलाकू का पत्र सुनकर मिस्र के सुलतान मलिक मुजफ्फर ने हलाकू खाँन के राजदूतों से कहा हमनें हलाकू खाँन का कुछ नहीं बिगाड़ा इसलिए बहतर यही है कि वह मिस्र को अपने हाल पर छोड़ दे। हमारे चैन व सुकून में दखल न दे। इस पर हलाकू खाँन के उन राजदूतों में से एक जो उनका प्रमुख था गुस्से में लाल हो गया और चिल्लाकर कहने लगा क्या तुम यह चाहते हो कि तुम्हारा वही हाल हो जो बगदाद के खलीफा का हो चुका है। अच्छी तरह समझ लो हमारे आका की ताकत बहुत ज्यादा है और दुनिया की कोई ताकत उनसे टक्कर नहीं ले सकती। वह अच्छी तरह जानता है कि तुम जैसे नाफरमान शासक और उनकी आवाम से क्या आचरण करना चाहिए।
मिस्र के सुलतान मलिक मुजफ्फर ने उन राजदूतों को बहुत समझाया कि वे अपनी आदत छोड़ दें। लेकिन उनका बात करने का तरीका बहुत बुरा होता चला गया कि जिसे सहन न किया जा सके। इस मौके पर मलिक मुजफ्फर ने अपने बहुत से सरदारों से मशवरा किया कि इस मौके पर क्या करना चाहिए। ज्यादातर सरदारों की राय यह थी कि मंगोलों की अधीनता कुबूल लेनी चाहिए। इसी में बेहतरी और भलाई है।
अपने सरदारों के इन अल्फाज़ पर बैबर्स गुस्से से भड़क उठा। और हलाकू खाँन के राजदूतों के सामने छाती तांने हुए और बुलंद हौसले से कहने लगा मिस्र मुसलमानों की आखिरी उम्मीद है और इसकी हिफाज़त के लिए हम सर से कफन बाँध कर लड़ेंगे। मिस्र के सुलतान मलिक मुजफ्फर ने जब देखा की सेनापति अपने हौसले और बहादुरी से आग की तरह गुस्से से भड़क उठा है और वह हर सूरत में मंगोलों का मुकाबला करना चाहता है। तब सेनापति बैबर्स के उन विचारों से मलिक मुजफ्फर का इरादा भी पक्का हो गया।
इसलिए बैबर्स की वजह से मलिक मुजफ्फर ने हुक्म दिया। इन मंगल कुत्तों की जुबानें खींच ली जाए। इन्हें मार दो और हमारी तरफ से हलाकू खाँन के लिए यही जवाब है। सुलतान  का इशारा पाते ही वहाँ जो जवान खड़े थे वह हलाकू खाँन के राजदूतों पर झपट पड़े। और उन्हें मार दिया। इसके बाद हलाकू खाँन के उन राजदूतों की लाशें शहर के महत्वपूर्ण चौराहो पर लटका दी गई। सुलतान मलिक मुजफ्फर और बैबर्स का ऐसा करने से मुसलमानों में जो मंगोलों का डर था अब वह जाता रहा। और मंगोलों का मुकाबला करने के लिए मुसलमान तैयार हो गए।

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