जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 26
बदले की आग: अरब में केवल एक आदमी के क़त्ल पर उम्र भर की जंगें छिड़ जाती थीं। बदला लेना अरब अपना ऐसा फ़र्ज़ समझते थे जिसे मरते हुए भी पूरा करना था। तो फिर…
बदले की आग: अरब में केवल एक आदमी के क़त्ल पर उम्र भर की जंगें छिड़ जाती थीं। बदला लेना अरब अपना ऐसा फ़र्ज़ समझते थे जिसे मरते हुए भी पूरा करना था। तो फिर…
जंग का बिगुल बज गया: क़ुरैश की फ़ौज से ‘अबू आमिर’ एक सौ पचास आदमियों के साथ आगे बढ़ा और मैदान में आया। वो अपनी अच्छाई और सच्चाई के लिए बड़ा मशहूर था।
अज़ान का प्रारम्भ: इस्लाम में हर तरह की पूजा का केंद्र एकेश्वरवाद व मेल-जोल है। इस वक़्त तक कोई ख़ास ऐलान या कार्य नहीं था जिसकी वजह से लोग नमाज़ के लिए…
मदीने में अय्यूब अंसारी रज़िअल्लाह अन्हु के घर पड़ाव: मदीने के हर दिन हुज़ूर अकरम इन्तिज़ार में बड़ी मुश्किल से गुज़ार रहे थे। उनके लिए हुज़ूर से मिलना सबसे…
मदीने में स्वागत: प्यारे नबी करीम के आने की ख़बर पहले ही मदीना पहुँच चुकी थी। शहर के सभी लोग हुज़ूर के स्वागत के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। लोग हर…
सुराक़ा द्वारा पीछा: ‘क़ुरैश’ के लोगों ने आस-पास बात फैलवा दी थी कि जो शख्स ‘मुहम्मद’ मुस्तफ़ा या ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु को गिरफ्तार करके हमें देगा…
हज़रत ‘उम्मे सलमा’ रज़िअल्लाह अन्हा कहती हैं- मेरे शौहर अबू ‘सलमा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने हिजरत का इरादा किया और मुझे ऊँट पर बैठा दिया। मेरी गोद में मेरा…
नबूवत के ग्यारह साल में हज के दिनों की बात है। हुजूर अकरम ने रात के अंधेरे में “मक्का” शहर से कुछ दूर पर एक जगह “उक़्बा” पर लोगों को बातें करते सुना। इस …
मक्का में वापस आकर नबी मुहम्मद मुस्तफ़ा ने अब ऐसा करना शुरू किया कि अलग-अलग क़बीलो़ के आवास में तशरीफ़ ले जाते। या “मक्का” से बाहर चले जाते और जो कोई…
इस्लाम जैसे-जैसे बढ़ रहा था वैसे-वैसे हालात और सख़्त होते जा रहे थे। ऐसे में नबूवत के दसवें साल हुज़ूर अकरम के चाचा “अबू तालिब” जो आपका मजबूत सहारा थे…