जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 16

सुराक़ा द्वारा पीछा

‘क़ुरैश’ के लोगों ने आस-पास बात फैलवा दी थी कि जो शख्स ‘मुहम्मद’ मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) या ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु को गिरफ्तार करके हमें देगा उसे सौ ऊँटों का ईनाम दिया जाएगा। यह बात ‘सुराक़ा’ तक भी पहुँची तो वो ईनाम के लालच में हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तलाश में लग गया। ‘सुराका’ ने हुज़ूर को जाते हुए देख लिया और जैसे ही उसने अपने घोड़े को एड़ लगायी, घोड़ा ठोकर खा कर गिर गया। उसने अपने तरकश में से तीर निकाल कर टॉस किया कि हमला करना चाहिए या नहीं। जवाब में आया ‘नहीं’। लेकिन 100 ऊँटों का ईनाम इतना बड़ा था कि तीर की बात नहीं मानी जा सकती थी। ‘सुराक़ा’ दोबारा घोड़े पर सवार हुआ और आगे बढ़ा। 

हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) क़ुरआन पढ़ते हुए और अपने रब की याद में डूबे आगे बढ़े जा रहे थे। ‘सुराक़ा’ का घोड़ा चलते-चलते रेगिस्तान की रेत में घुटनों तक धंस गया। ‘सुराक़ा’ घोड़े से उतरा और फिर टॉस किया। दोबारा जवाब ‘नहीं’ में ही आया। इस बार उसे हार माननी पड़ी और यक़ीन हो गया कि ‘मुहम्मद’ मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पीछे ख़ास ताक़त है। इसके बाद ‘सुराक़ा’ हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास बहुत अदब से गया और जाकर ‘क़ुरैश’ के इश्तिहार का क़िस्सा बता दिया। साथ ही अपना समान हुज़ूर को तोहफे में दिया जिससे सफर में आसानी होगी। हुज़ूर ने उसका उपहार सहर्ष स्वीकरा कर लिया और सुराक़ा से निवेदन किया कि इस का भेद दश्मनों को न दे। ‘सुराका’ ने पलट कर हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से एक संधि पत्र लिख देने का निवेदन किया। ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु के ग़ुलाम ‘आमिर बिन फुहेरा’ ने एक चमड़े के टुकड़े पर अमन का फ़रमान लिखकर दे दिया।

उम्मे मअबद का बयान

इसी सफ़र के शुरू में इन लोगों का गुज़र ‘उम्मे मअबद’ नाम की एक महिला के घर से हुआ। ये औरत ‘खज़ाआ’ क़ौम से थी। आने-जाने वाले मुसाफ़िरों की मेहमानदारी के लिए बहुत मशहूर थी। मुसाफ़िरों को पानी पिलाया करती थी। अक्सर मुसाफ़िर इनके यहाँ करते थे। जब हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का क़ाफ़िला वहाँ पहुँचा तो इस बूढी औरत से पूछा कि खाने को कुछ है ? जवाब आया नहीं! अगर कोई चीज़ होती तो मांगने से पहले मैं हाज़िर कर देती। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की नज़र घर के कोने में खड़ी एक बकरी पर पड़ी। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा यह बकरी यहाँ क्यों खड़ी है? बुढ़िया ने जवाब दिया कि बीमार है। अपने रेवड़ के साथ नहीं चल सकती।

हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने कहा इजाज़त हो तो मैं इसका दूध दुह लूँ ? उम्मे मअबद को बड़ी हैरानी हुई कि बीमार बकरी में जान तक नहीं है, दूध कैसे होगा। उसने कहा अगर दूध दुह सकते हैं तो जैसे आपकी मर्ज़ी। हुज़ूर ने बर्तन माँगा और जाकर बकरी के थनों को हाथ लगाया ही था कि बकरी के थन दूध से भर गए। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बर्तन दूध से भर लिया। ये दूध हुज़ूर और उनके साथियों ने पिया। आपने दोबारा से दूध निकला और बर्तन भर लिया। ये दूध भी हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथियों ने पिया। प्यारे नबी ‘मुहम्मद’ मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तीसरी बार फिर से बर्तन को दूध से भर दिया और ये ‘उम्मे मअबद’ के लिए छोड़ दिया। पेट भ जाने के बाद ये लोग वहाँ से रवाना हो गए।

कुछ देर बाद ‘उम्मे मअबद’ के शौहर आये। घर में दूध का भरा बर्तन देखा तो हैरान हो गए। पूछा ये कहाँ से आया है। ‘उम्मे मअबद’ ने कहा एक बड़ा बरकत वाला महापुरुष आया था। ये दूध उनके हाथ का ही चमतकार है। ‘उम्मे मअबद’ की बात से उनके शौहर ने अंदाज़ा लगा लिया कि ये तो वही मशहूर ‘क़ुरैश’ के महापुरुष मालूम होते हैं। जिनकी मुझे तलाश है। उन्होंने पूछा- ज़रा उनका हुलिया बताओ। ‘उम्मे मअबद’ ने कहा – मैंने एक ऐसी पवित्र आत्मा को देखा जिसकी पवित्रता साफ़ प्रकट होती थी। चेहरा रौशन था।उसकी बनावट में कोई कमी नहीं थी। पाकीज़ा प्रभाव और न मोटापे की बदसूरती न पतलेपन की कमी। न पेट बाहर निकला हुआ न सिर के बाल गिरे हुए। चेहरे पर रौब छाया हुआ। स्वस्थ शरीर और अच्छा क़द। सुरमे से सजी आँखें चौड़ी और काली थीं। आँख का काला हिस्सा रात की तरह काला और सफ़ेद हिस्सा बिलकुल सफ़ेद। पलकें घनी और लम्बी थीं। मर्यादा से भरी ख़ामोशी और दिलचस्प मीठे बोल और साफ़ सीधी बातें। न चुप रहने वाले न ज़्यादा बातें मिलाने वाले। बातें इस तरह थी जैसे माला में पिरे हुए मोती। वो शख्स ऐसे लगते थे जैसे नरम टहनियों के बीच एक ताज़ा टहनी हो। जो देखने में बेहद खूबसूरत लगे। उनके साथी हमेशा उनके आस-पास रहते हैं। जो कुछ भी वो फरमाते थे उनके साथी ध्यान से सुनते थे। जो हुक्म वो देते उसको करने के लिए साथी दौड़ पड़ते। सेवा व आदर करने योग्य। न बेकार बात करते थे न फालतू बात।

यह हुलिया सुन कर ‘उम्मे मअबद’ के पति बोले यह वही शख्स हैं। मैं इससे ज़रूर जा कर मिलूँगा।

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ‘यसरिब’ के रस्ते में ही थे कि हुज़ूर को ‘बुरेदा असलमी’ मिल गया। यह अपनी क़ौम का सरदार था। ‘क़ुरैश’ ने जो हुज़ूर की गिरफ़्तारी का ईनाम लगाया था उसी लालच में ये हुज़ूर को ढूँढते हुए आ पहुँचा था। जब इसका नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सामना हुआ और बात चीत हुई तो ‘बुरेदा’ रज़िअल्लाह अन्हु अपने सत्तर आदमियों के साथ मुस्लमान हो गये। ‘बुरेदा अस्लमी’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अपनी पगड़ी को भाले पर लटका लिया। लहराती हुई सफ़ेद पगड़ी ये संदेश दे रही थी कि अमन का बादशाह व सुलह का प्रतीक आ रहा है। दुनिया को इन्साफ़ और अदालत का पाठ सिखाने वाला आ रहा है। रास्ते में हुज़ूर अकरम को ‘अवाम रज़िअल्लाह अन्हु’ मिल गए। यह मुस्लमानों के व्यापारिक क़ाफ़िले के साथ थे।

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54

Share this:
error: Content is protected !!