सुलतान रुकनुद्दीन बैबर्स – भाग 3

सुल्तान रुकनुद्दीन बैबर्स : मंगोल बनाम मुसलमान

मिस्र के निवासियों ने मंगोल राजदूतों को मार कर हलाकू खाँन के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था। अब मिस्र के निवासियों के पास एक ही रास्ता था कि लड़कर जीत हासिल करें या अपनी जानें कुर्बान कर दें। इन हालात में मिस्र के सुल्तान अलमुल्कुल मुजफ्फर ने मंगोलों का मुकाबला करने के लिए सारे फैसले अपने सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स के हवाले कर दिये थे। सेनापति बैबर्स के बारे में बताया जाता है कि वह एक कमाल का इंसान और निडर सिपाही था।
मंगोलों की ताकत और शक्ति की कहानियाँ सुनकर वह कहता था कि समय आने दो हम इन घमंडी और जंगली मंगोलों को बता देंगे। कि सिर्फ वही लड़ना नहीं जानते, दुनियां में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उनका पंजा मरोड़ सकते हैं। मंगोल राजदूतों को मारने के बाद मिस्र के सुल्तान मलिक मुजफ्फर ने सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स से वादा किया। कि अगर वह मंगोलों को हरा देने में कामयाब हो गया तो वह सेनापति के अलावा मिस्र का सुल्तान भी बना दिया जाएगा।
फिर सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स ने सेना का मुकाबला करने के लिए युद्ध की तैयारी शुरु कर दी। और दिन–रात तैयारियों में लगा रहा। उसने काहिरा के हर तंदुरुस्त लड़के को सेना में भर्ती होना ज़रूरी कर दिया। जो कोई भी उचित कारण के बगैर सेना में भर्ती होने से मना मरेगा तो उसको कोड़े लगाए जाएँगे। काहिरा के निवासियों के अलावा रुकनुद्दीन बैबर्स ने अपनी सेना में शरण लेने वाले तुर्की, अरबी भाईयो और दूसरे कबीलों को भी भर्ती करना शुरु कर दिया। जो इससे पहले मंगोलों के हाथों नुकसान उठा चुके थे तथा ये लोग बहुत निडर और उच्च कोटि के योद्धा थे। जिनकी वीरता पर हर हाल में भरोसा किया जा सकता था।
कुछ ही दिनों में रुकनुद्दीन बैबर्स के पास एक बहादुर सेना तैयार हो गई। इस सेना में ज़्यादा संख्या उन लोगों की थी जो मंगोलों के हाथों सताए गए थे या गुलाम बना लिए गए थे या जो बिकते-बिकाते मिस्र पहुँच गए थे। अब वह मंगोलों से बदला लेने के लिए युद्ध में महारत हासिल कर चुके थे। वास्तव में यह वही लोग थे जो मंगोलों के आसपास रहते थे। जो उनके युद्ध के तरीकों को जानते थे और मंगोलों की आँखों में आँखें डालकर बात करने की हिम्मत और साहस भी रखते थे।
जिन दिनों सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स काहिरा में अपने युद्ध की तैयारियों में लगा था। उन्हीं दिनों हलाकू खाँन फिलस्तीन में ठहरा हुआ था। कि उसे खबर मिली की उसका भाई ‘मंगू खाँन’ जो उस समय मंगोलों का सर्वोच्च अधिकारी था, मर गया है। हलाकू खाँन को जब यह खबर हुई तो उसने अपने मूल स्थान पर वापस जाने का फैसला किया। इस मौके पर उसका सेनापति ‘कतबोगा’ और उसकी पत्नी ‘दखूज़ा खातून’ ने कहा मुसलमानों के खिलाफ हमारा हमला जारी रहना चाहिए।
रहा सवाल मंगू खाँन का, तो वह अब मर चुका है। दखूज़ा खातून जो हलाकू खाँन की पत्नी थी वह मूल रूप से ईसाई थी। तथा मुसलमानों की तबाही और बर्बादी चाहती था। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि हलाकू खाँन वापस जाए। वह यह इरादा किये हुए थी कि हलाकू को मिस्र पर आक्रमण करना चाहिए। इस मौके पर उसने हलाकू को याद कराया। कि जिस समय उसके भाई ने उसे मुसलमानों के इलाकों पर आक्रमण करने के लिए रवाना किया था। तो उसने हुक्म दिया था कि हर सूरत में मिस्र का खात्मा कर देना।
लेकिन हलाकू खाँन ने अपने सेनापति कतबोगा और पत्नी की बात नहीं मानी। उसने वापसी का इरादा कर लिया। वह चाहता था कि अपनी सेना का एक हिस्सा साथ लेकर जाए। उसने यह भी वजह पेश की, कि इस वक्त मेरा वापस जाना ज़रूरी है। क्योंकि इन दिनों रास्तों में घोड़ो के लिए खुराक की सूरत में घास मिल जाएगी। और अगर मैं वापस जानें से पीछे हट गया तो सर्दी का मौसम शुरु हो जाएगा। घास खत्म हो जाएगी और रास्ते में मुझे परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
फिर हलाकू ने वापस जाने का इरादा कर लिया और वापस जाते समय उसने अपने सेनापति कतबोगा से कहा मेरे बाद इस इलाके की ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है जब तक में वापस नहीं आता तुम यहीं रहोगे। कहीं आगे न बढ़ना तुम्हारे पीछे मंगोलों की एक बहुत बड़ी सेना है। इसके अलावा अर्मेनिया और कर्जिस्तान के ईसाई भी हज़ारों की संख्या में तुम्हारे साथ हैं। इसलिए इन सबके साथ मिलकर जीते हुए हलाकों की रखवाली करना। कतबोगा ने हलाकू खाँन के हुक्म के सामने सर झुका दिया और सीने पर हाथ रखकर कहा जो कर्तव्य उसे सौंपा गया है उसे वह पूरे मन से करेगा।
इसके बाद हलाकू खाँन सेना का एक हिस्सा लेकर अपने मूल निवास गोबी के रेगिस्तान की तरफ रवाना हो गया। अब सीरिया और इराक पूरी तरह से उसके सेनापति काताबोगा के नियंत्रण में थे। कतबोगा हलाकू का अत्यंत शक्तिशाली सेनापति था और मुसलमानों के इलाकों को तबाह करने में उसने खास हिस्सा लिया था। वह एक शक्की और पागल इंसान था। तथा उसके जंगलीपन की कहानियाँ सारे इस्लामिक इलाकों में मशहूर थी।
हलाकू खाँन के जाने के बाद कतबोगा ने अपनी सेना के साथ ‘एन-ए-जालूत’ स्थान पर ठहराव किया। और यह मुकाम फिलस्तीन के मशहूर शहर ‘नासिरा’ के करीब था। यह मुकाम उसके लिए बड़ा मुनासिब था। इसलिए कि वहाँ रहकर वह एक तरफ सीरिया और ईराक पर शासन बनाए रख सकता था तथा दूसरी तरफ जब चाहे मिस्र की तरफ बढ़ भी सकता था। मिस्र में सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स को भी खबर हो गई। कि हलाकू खाँन वापस अपने इलाके में चला गया है। इसलिए उसने एक ऐसा बड़ा फैसला किया। जो इस समय किसी के दिल व दिमाग में न था। मिस्री तो यह सोच रहे थे कि वह मंगोलों के सामने अपने देश की रक्षा करेंगे।
लेकिन इस मौके पर सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स ने ऐलान किया। कि हमारी सेना आगे बढ़कर हलाकू खाँन के सेनापति की सेना से लड़ेगी। उस समय रमजान का पाक महीना शुरू हो गया था। बैबर्स के ऐलान ने उसकी सेना को इस पवित्र महीने में मंगोलों के खिलाफ युद्ध करने की सबसे पवित्र इबादत से पीछे हटा लिया। फिर भी लोगों ने बड़ी खुश दिली से रुकनुद्दीन बैबर्स के इस फैसले को कुबूल कर लिया।
इसलिए रुकनुद्दीन बैबर्स अपनी सेना को लेकर बड़ी तेज़ी से फिलस्तीन में दाखिल हुए। उन दिनों ईसाई दुनिया जो कि मुसलमानों के खिलाफ मंगोलों का साथ दे रही थी। और रोम के किनारे-किनारे नसरानियों के बहुत से किले भी थे। इसलिए अपनी सेना की कुछ टुकड़ियाँ रुकनुद्दीन बैबर्स ने उन किलो के करीब ही लगा दी। ताकि उन किलो में जो लड़ने वाले ईसाई हैं वह अपने किलो से निकलकर मुसलमानों के खिलाफ मंगोलों की मदद न कर पाएं। रुकनुद्दीन बैबर्स 25 अगस्त सन् 1260 को ‘एन-ए-जालूत के स्थान पर मंगोलों के सामने आया। ‘एन-ए-जालूत’ के मुकाम पर मुसलमानों और मंगोलों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।
इस युद्ध की वजह से इतना शोर उठा कि धरती और आसमान कांप उठे। सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स ने इस युद्ध में हैरतअंगेज़ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और मंगोलों के साथ टकराने से पहले ही उसने सेना की कुछ बहुत प्रशिक्षण वाली टुकड़ी को घात में बैठा दिया। उसने पहले अपनी हल्की-फुल्की टुकड़ियों को आगे बढ़ाया। उन्हें खूब फैला दिया मंगोलों ने अपनी पूरी ताकत और शक्ति से पहले उन मिस्री सवारों पर हमला किया उन्हें पीछे धकेलते हुए अंधाधुंध आगे बढ़ने लगे और यह सब रुकनुद्दीन बैबर्स की योजना के मुताबिक हो रहा था।
उसने पहले ही अपने सवारों को समझाया था कि वह जमकर मंगोलों का मुकाबला न करें। बल्कि धीरे-धीरे पीछे हटना शुरु हो जाएं। अतः उन्होंने उसी के अनुसार काम किया। जब मंगोल उन पर हमला करने लगे तो वह धीरे-धीरे पीछे हटना शुरु हो गए। यहाँ तक की मंगोल वहाँ आ गए जहाँ रुकनुद्दीन बैबर्स ने अपनी सेना की एक टुकड़ी घात में बिठा रखी थी और वह टुकड़ी मंगोलों पर हमला करने के लिए बेचैन और बेताब थी। अचानक घात में बैठी हुई वह टुकड़ी नारे लगाते हुए निकली और मंगोलों पर टूट पड़ी।
इससे पहले मंगोल अपने आप को संभालते मिस्र की वह सेना जो पीछे हट रही थी। वह भी बेमिसाल बहादुरी दिखाती हुई मंगोलों पर टूट पड़ी। हलाकू खाँन के सेनापति कतबोगा ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, कि अपनी सेना को संभालें लेकिन उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। मुसलमानों के तेज और कठोर हमलों ने मंगोल सेना को उड़ा दिया। मंगोलों के साथ जो कर्जिस्तानी और अर्मेनिया की ईसाई सेना थी उनका सबसे बुरा हाल हुआ। मुसलमान हमलावरों ने उन्हें पूरे तौर पर रौंद कर रख दिया था।
थोड़ी ही देर में रुकनुद्दीन बैबर्स ने सेना के साथ बहुत तेज हमला किया। उनकी ऐसी कमर तोड़ी की उन्हें तकरीबन रौंद कर रख दिया। और उन्हें ऐसे संकट में डाल दिया कि पिछले 40 वर्षों में उसका उदाहरण नहीं मिलता था। मंगोलों का सेनापति कतबोगा इस युद्ध में सुल्तान बैबर्स के हाथों गिरफ्तार हो गया था। यह दरिंदा मंगोल सेनापति मुसलमानों पर बहुत ज़्यादा अत्याचार कर चुका था और दया का पात्र नहीं था। उसे जब रुकनुद्दीन बैबर्स के सामने पेश किया गया। तो वह रुकनुद्दीन बैबर्स को संबोधित करते हुए कहने लगा।
मुसलमानों ने मैदान जीत लिया तो क्या हुआ। क्या मंगोलों की औरतों ने बच्चों को जन्म देना छोड़ दिया है। क्या उनकी औरतें बांझ हो गई हैं। मेरे मरने के बाद मंगोल घुड़सवार इस हार का बदला ज़रूर लेंगे और तुम्हें और तुम्हारे देश को अपने घोड़ो की टापों से कुचल कर रख देंगे। रुकनुद्दीन बैबर्स मंगोलों के सेनापति की इन बातों पर मुस्कुराया और उसका सर काट कर रख दिया। उसका कटा सर नुमाइश के लिए काहिरा भेज दिया गया। इसके साथ ही जो बड़े-बड़े मंगोल सरदार युद्ध में गिरफ्तार किये गए थे उनके पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर उन्हें काहिरा भेजा गया। जहाँ उनको गलियों में घुमा कर मार दिया गया।
इस तरह मंगोल जिनके बारे में मशहूर था कि कोई उनको हरा नहीं सकता। सुल्तान रुकनुद्दीन बैबर्स ने उन्हें हराकर उन्हें उनके भयानक अंजाम तक पहुँचा दिया। एन-ए-जालूत के इस युद्ध को इतिहास में फैसला करने वाले युद्ध की तरह देखा जाता है। अगर इस युद्ध में मुसलमानों की हार हो जाती तो दुनियां में उनके लिए कोई जगह न रहती और उनकी संस्कृति, रहन-सहन और इतिहास बिल्कुल बर्बाद हो जाता। अतः पूरे इस्लामी दुनियां में इस जीत पर बेपनाह खुशी का इज़हार किया गया और शुक्राने की नमाज़े पढ़ी गईं।
हलाकू खाँन को अपने सेनापति कतबोगा की हार की खबर उस समय हुई। जब वह अपने इलाके की तरफ जा रहा था और उसने इरादा कर लिया था। कि ‘सहरा-ए-गोबी’ से लौटकर वह मिस्र पर आक्रमण करेगा। और मिस्र को बर्बाद करके रख देगा। दूसरी तरफ सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स ने ‘एन-ए-जालूत’ में मंगोलों को हराकर उनकी कमर तोड़कर रख दी थी। लेकिन उसका काम अभी पूरा नहीं हुआ था। इसलिए कि मंगोलों को ‘एन-ए-जालूत’ में हराने के बावजूद वह देख रहा था कि हलब, अम्माद, दमिश्क और इस तरह बहुत से मुसलमानों के शहरों में मंगोल दनदनाते फिर रहे थे।

अब रुकनुद्दीन बैबर्स अपनी सेना के साथ हरकत में आया। एक तूफानी आक्रमण में, वह सीरिया के अलग-अलग शहरों में जो मंगोल थे उन पर आक्रमण किया। उन्हें लगातार पराजित किया और भागने पर मजबूर कर दिया। अपनी इस तूफानी मुहिम में रुकनुद्दीन बैबर्स ने उन सभी गद्दर मुसलमानों का भी खात्मा कर दिया जिन्होंने मुसलमानों के खिलाफ हमलावर हलाकू खाँन का साथ दिया था। और उसकी कामयाबियों में उसके सहायक साबित हुए थे। इस तरह कुछ दिनों के अंदर-अंदर रुकनुद्दीन बैबर्स ने सीरिया के कई शहरों से मंगोलों का सफाया कर दिया। 

वह यह भी जानता था कि जल्द ही हलाकू खाँन लौटेगा और मुसलमानों से बदला लेगा। इसलिए वह भी अपनी सेना की तादाद बढ़ाना चाहता था। सेना को मज़बूत करना चाहता था। इसलिए अपने कुछ सरदारो और सेना को उसने सीरिया में ही छोड़ा। और खुद वापस काहिरा की तरफ चला गया। काहिरा में उन दिनों एक बुरा वाक्या पेश आया। वह यह कि जिस वक्त सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स सीरिया और फिलस्तीन से मंगोलों को मार के उनको बाहर निकाल रहे थे। तब मिस्र के सुल्तान मलिक मुजफ्फर ने एक व्यक्ति ‘बदरुद्दीन रूहलू’ के बेटे ‘अलाउद्दीन’ को ‘हलब’ का हाकिम नियुक्त कर दिया। क्योंकि बगदाद पर हमले के समय बदरुद्दीन रूहलू ने हलाकू का साथ दिया था यह देखते हुए बहुत से सरदार मलिक मुजफ्फर के खिलाफ हो गए इसलिए इन्होंने उसको मार दिया। और उसकी जगह रुकनुद्दीन बैबर्स को अपना सुल्तान बना दिया। इस तरह सन् 1260 ई. को रुकनुद्दीन बैबर्स मिस्र का सुल्तान बना।

उसके गद्दी पर बैठने के ऐलान पर मिस्र के निवासियों ने बहुत खुशी का इज़हार किया। इसलिए रुकनुद्दीन बैबर्स ने पहले मंसूरा और गज़ा में फ्राँनसीसियों के खिलाफ कामयाबी हासिल करते हुए मिस्र की सियासत में बड़ा पद हासिल कर लिया था। और अब एन-ए-जालूत में मंगोलों को शानदार तरीके से हराकर वह पूरे इस्लामी दुनियां, खासतौर पर मिस्र के निवासियों की आंख का तारा बन चुका था अतः जब उसे सुल्तान बनाया गया। तो मिस्र के निवासियों ने बहुत ही खुशी से न सिर्फ उसका स्वागत किया बल्कि उसकी लंबी उम्र की दुआएं मांगी। 

वास्तव में एन-ए-जालूत की जीत से मिस्र और सीरिया में रुकनुद्दीन बैबर्स को बहुत ऊंचा मुकाम हासिल हो गया था। मिस्र के लोग समझते थे कि बैबर्स की बहादुरी, वीरता और ऊंचे पद की वजह से उन्हें कामयाबी हासिल हुई है। और वह यह भी समझते थे कि सुल्तान बैबर्स ही मंगोलो और सलीबियों से लड़ने और लोगों की उम्मीदों को पूरा करने की हिम्मत रखता है। सुल्तान बैबर्स जो कि पहले गुलाम था। इसलिए वह खुद और उसके बाद जो उसके उत्तराधिकारी हुए उन्हें गुलाम या ममलूक शासक कहकर पुकारा जाता है । मिस्र का सुल्तान बनने के बाद बैबर्स ने अपना नाम ‘अलमुल्कुज़्ज़ाहिर’ रखा। अतः इतिहास में सुल्तान को ज्यादातर ‘अलमुल्कुज़्ज़ाहिर’ के नाम से ही याद रखा गया है। 

मिस्र का सुल्तान बनते ही रुकनुद्दीन बैबर्स ने सल्तनत के अंदर तमाम बुराइयों को खत्म करके रख दिया जो इससे पहले पैदा हो चुकीं थीं। खासतौर पर मलिक मुजफ्फर की हुकूमत में पैदा हुई थीं। अतः उसने किसी चेतावनी के बगैर हर किस्म के नाजायज़ टैक्सों और टोल टैक्स को खत्म कर दिया तथा कई शराब की दुकानों और जुए के अड्डों को सख्ती के साथ बंद करवा दिया। गद्दी पर बैठने के बाद सुल्तान बैबर्स के सामने अहम मसला सीरिया को मंगोलों के खतरों से सुरक्षित रखना था।

क्योंकि खतरा था कि वह एन-ए-जालूत की हार का बदला लेने के लिए किसी भी समय सीरिया पर आक्रमण कर सकते हैं। इसके साथ ही वह यह भी महसूस करता था कि सीरिया की सुरक्षा करना मिस्र की ज़िम्मेदारी है और जब तक वह सब हुक्मरान जो सीरिया में छोटी – छोटी जायदाद और रियासतों पर बैठे थे मिस्र का अधिकार नहीं मान लेते। उस समय तक सीरिया हमेशा मंगोलों और सलीबियों के हमलों की चपेट में रहेगा। अतः इन समस्याओं से निकलने के लिए अपनी गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद वह एक ताकतवर सेना लेकर रवाना हुआ। फिर सीरिया में दाखिल हुआ और दमिश्क में एक सभा आयोजित करके सीरिया के प्रभावशाली लोगों से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा। मुसलमानों की खुशकिस्मती की सीरिया के लोग बहुत समझदार साबित हुए उन्होंने बेझिझक उसकी अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह सुल्तान सिर्फ मिस्र ही का नहीं सीरिया का भी सुल्तान बन गया। a

सीरिया को अपने साथ मिलाने के बाद सुल्तान बैबर्स ने सीरिया के निवासियों को, मिस्र के निवासियों के बराबर अधिकार दिए और ऐलान किया कि सीरिया मिस्र की इस्लामी सल्तनत की दूसरी शाखा है और दमिश्क इस सल्तनत का दूसरा केंद्र होगा। सुल्तान बैबर्स ने सीरिया के कुछ शहरों और रियासतों में पुराने परिवारों की हुकूमत बरकरार रखी लेकिन उन पर यह शर्त लगा दी। कि वह सल्तनत के आदेश और मदद के पाबंद होंगे। इस तरह सीरिया भी सुल्तान बैबर्स की सल्तनत का एक हिस्सा बन गया। उन दिनों सीरिया बड़ी सल्तनत थी इसलिए क्योंकि सीरिया में उस समय लेबनान, उर्दन, फिलिस्तीन और इज़राइल के सारे इलाके शामिल हुआ करते थे। सिर्फ रोम के किनारे – किनारे नसरानियों के कब्जे़ में कुछ किले थे। यह सारे काम करने के बाद सुल्तान बैबर्स ने हलाकू खाँन का मुकाबला करने की तैयारी शुरू कर दी।

उसने जहाँ अपने सैन्य विभाग को मज़बूत किया वहाँ उसने अपनी सेना की तादाद बढ़ाई। उसने हलब शहर से लेकर ईराक तक सभी जंगलों और घास के इलाकों में आग लगवा दी। ताकि आक्रमण करने वाले मंगोल आसानी से आगे ना आ सकें। यह सब काम करने के बाद एक बार फिर सुल्तान बैबर्स सीरिया से मिस्र की तरफ चला गया। सीरिया से वापस मिस्र जाने के बाद सुल्तान बैबर्स ने सबसे पहले ‘अब्बासी खिलाफत’ को दुबारा शुरू किया। हलाकू खाँन के हाथों बगदाद की तबाही के साथ ही अब्बासी खिलाफत का खात्मा हो गया था। खिलाफत जैसी भी थी हर सूरत में वह इस्लामी दुनियां के नज़दीक सार्वजनिक तौर पर धर्म केंद्र का दर्जा रखती थी। इसके खत्म हो जाने से मुसलमान अपनी दीनी और सियासी ज़िंदगी के अंदर बहुत खाली जगह महसूस कर रहे थे। सुल्तान बैबर्स भी इस मामले में लोगों की भावनाओं से पूरी तरह अवगत था। 

अतः मिस्र आने के बाद उसने पक्का इरादा कर लिया था कि अब्बासी खिलाफत दुबारा शुरू करी जाएगी और जल्द ही इसका केंद्र काहिरा ही में स्थापित किया जाएगा। मंगोलों के हाथों बगदाद की तबाही के समय एक अब्बासी शहज़ादा जिसका नाम ‘अबुल कासिम’ था कैद में था। बाद में हंगामे के दौरान जब बगदाद के कैदखानों से बहुत से कैदी भाग निकले तो वह शहज़ादा भी उन कैदियों के साथ भाग निकला और साढे़ तीन साल तक गुमनामी में पढ़ा रहा। अचानक सुल्तान बैबर्स को उसके रहने का स्थान पता चल गया। अतः उसने दस सरदारों को भेजा और अबुल कासिम को मिस्र आने की दावत दी।

अबुल कासिम ने दावत कुबूल कर ली और अपने कुछ साथियों के साथ मिस्र में दाखिल हुआ। मिस्र में उसका शानदार तरीके से स्वागत किया गया। शहर को आलीशान अंदाज़ में सजाया गया। इसके बाद सुल्तान बैबर्स के न्यायाधीशों के अलावा दूसरे सरदारों और मनसबदारों ने भी अबुल कासिम के हाथ पर बैअत (अधीनता स्वीकार) की। इस तरह फिर अब्बासी खिलाफत शुरु हो गई। मिस्र के अंदर सुल्तान बैबर्स ने सिक्कों पर अब्बासी खलीफा अबुल कासिम का नाम जारी किया। दूसरी तरफ हलाकू खाँन भी अपने इलाके गोबी के रेगिस्तान से लौट आया था और अब वह मुसलमानों से अपने सेनापति की हार का बदला लेने के बारे में कुछ सोचने लगा।

हलाकू खाँन को सुल्तान बैबर्स पर बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा था। इसलिए की सुल्तान बैबर्स ने मंगोलों की भयंकर ताकत को ढेर करके रख दिया था। सुल्तान बैबर्स अपनी बहादुरी और वीरता से पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था। अब सुल्तान बैबर्स ही की वजह से इस्लामी दुनियां में मिस्र और सीरिया की रियासतों को केंद्रीय महत्व हासिल हो गया था। दूसरी तरफ हलाकू खाँन सुल्तान बैबर्स के सामने एक नई ताकत खड़ी करना चाहता था सुल्तान बैबर्स का मुकाबला करने के लिए मंगोल और पूर्वी यूरोप के सलीबी आपस में दोस्ती करने लगे। और उन्होंने मिस्र और सीरिया की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए संबंध बनाने शुरू कर दिए थे। 

सुल्तान बैबर्स ने देखा कि उस पर आक्रमण करने के लिए मंगोल, पूर्वी यूरोप के देशों से संबंध बना रहे हैं तो वह भी बेकार नहीं बैठा। सुल्तान बैबर्स की खुशकिस्मती की उसने अपनी अक्लमंदी से मंगोलों की ताकत को दो हिस्सों में तक्सीम कर दिया। वास्तव में चंगेज़ खाँन के चार बेटे थे जोची खाँन, चुगताई खाँन, उगदाई खाँन और तुलाई खाँन। जोची खाँन को उन इलाकों का हाकिम बनाया गया था जिसे आजकल पश्चिमी एशिया कहते हैं। जोची खाँन के दो बेटे थे बड़े का नाम बातों खाँन और उससे छोटे का नाम बिर्काई खान था। जोची खाँन के बाद उसका बेटा बातों खान उन इलाकों का हाकिम बना और बातों के बाद उसका छोटा भाई बिर्काई खाँन वोल्गा नदी के आस-पास के इलाकों का हाकिम बन गया था। 

मुसलमानों और सुल्तान बैबर्स की खुशकिस्मती कि चंगेज़ खाँन के पोते बिर्काई खाँन ने इस्लाम कुबूल कर लिया। इसकी वजह से बहुत से मंगोल इस्लाम में आने लगे। अब चंगेज़ खाँन के दो पोते हरक़त में थे एक हलाकू खाँन जो मुसलमानों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार था और दूसरा बिर्काई खाँन जो बड़ी सल्तनत का हुक्मरान था। इन हालात में सुल्तान बैबर्स ने हलाकू खाँन का मुकाबला करने के लिए चंगेज़ खाँन के नए मुस्लिम पोते बिर्काई खाँन से दोस्ती करने का संकल्प कर लिया।

मंगू खाँन के ज़माने में जो हलाकू खाँन का बड़ा भाई था बिर्काई खाँन और हलाकू खाँन में मेल-जोल रहा। लेकिन बाद मे अत्याधिक मतभेद पैदा हो गए थे। बिर्काई खाँन मुसलमान हो चुका था और कुदरती तौर पर उसे मुसलमानों से सहानुभूति थी। दूसरी तरफ हलाकू खाँन अपने पैतृक धर्म पर कायम था। जबकि उसकी पत्नी ‘दखूज़ा’ की वजह से यूरोप के ईसाई देश भी उसके सहायक हो गए थे और उसकी ईसाई पत्नी तुर्कों के कबीला ‘करेत’ के खाकान की बेटी थी जो नस्तूरी ईसाई था।

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