सूरह अल मोमिनून में 118 आयतें और 6 रुकुउ हैं। यह सूरह पारा 18 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।
इस सूरह का नाम पहली आयत “निश्चय ही सफलता पाई है ईमान वालों (मोमिनून) ने” से लिया गया है।
सूरह अल मोमिनून हिंदी में | Surat al-Muminun in Hindi
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
- कद् अफ़्ल-हल मुअ्मिनून
अलबत्ता वह इमान लाने वाले रस्तगार हुए (1) - अल्लज़ी – न हुम् फ़ी सलातिहिम् ख़ाशिअून
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं (2) - वल्लज़ी – न हुम् अ़निल्लग्वि मुअ्-रिजून
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं (3) - वल्लज़ी न हुम् लिज़्ज़काति फ़ाअिलून
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं (4) - वल्लज़ी – न हुम् लिफुरूजिहिम् हाफिजून
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं (5) - इल्ला अ़ला अज़्वाजिहिम् औ मा म – लकत् ऐमानुहुम् फ़ – इन्नहुम् ग़ैरू मलूमीन
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता (6) - फ़ मनिब्तग़ा वरा अ ज़ालि क फ़-उलाइ-क हुमुल् आ़दून
पस जो शख़्स उसके सिवा किसी और तरीके़ से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (7) - वल्लज़ी – न हुम् लि- अमानातिहिम् व अ़दिहिम् राअून
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं (8) - वल्लज़ी – न हुम् अ़ला स – लवातिहिम् युहाफ़िजून *
और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं (9) - उलाइ – क हुमुल् – वारिसून
(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है (10) - अल्लज़ी – न यरिसूनल् फ़िरदौ-स हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
जो बेहिश्त बरीं का हिस्सा लेगें (और) यही लोग इसमें हमेशा(जिन्दा) रहेंगे (11) - व ल – क़द् ख़लक़्नल् – इन्सा-न मिन सुलालतिम् – मिन् तीन
और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया (12) - सुम् – म जअ़ल्नाहु नुत्फ़ – तन् फ़ी क़रारिम् – मकीन
फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुत्फ़ा बना कर रखा (13) - सुम्-म ख़लक़्नन्-नुत्फ़-त अ़-ल क़तन् फ़-ख लक़्नल् अ-ल-क त मुज् – ग़तन् फ़ ख़लक्नल् मुज़्ग़ त अिज़ामन् फ़- कसौनल्-अिज़ा-म लह़्मन्, सुम् – म अन्शअ्नाहु ख़ल्क़न् आख – र, फ़- तबा – रकल्लाहु अहसनुल् ख़ालिक़ीन
फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया फिर हम ही ने मुनजमिद खू़न को गोश्त का लोथड़ा बनाया हम ही ने लोथडे़ की हड्डियाँ बनायीं फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया फिर हम ही ने उसको (रुह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहान अल्लाह) ख़ुदा बा बरकत है जो सब बनाने वालो से बेहतर है (14) - सुम् – म इन्नकुम् बअ् – द ज़ालि-क ल-मय्यितून
फिर इसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगों को (एक न एक दिन) मरना है (15) - सुम् – म इन्नकुम् यौमल् – कियामति तुब्अ़सून
इसके बाद क़यामत के दिन तुम सब के सब कब्रों से उठाए जाओगे (16) - व ल – क़द्ख़लकना फ़ौक़कुम् सब् – अ तराइ क़ व मा कुन्ना अ़निल् – ख़ल्कि ग़ाफ़िलीन
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान बनाए और हम मख़लूक़ात से बेख़बर नही है (17) - व अन्ज़ल्ना मिनस्समा-इ मा-अम् बि-क़-दरिन् फ-अस्कन्नाहु फिल्अर्जि व इन्ना अ़ला ज़हाबिम् बिही लकादिरून
और हमने आसमान से एक अन्दाजे़ के साथ पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में (हसब मसलहत) ठहराए रखा और हम तो यक़ीनन उसके ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते है (18) - फ़- अन्शअ्ना लकुम् बिही जन्नातिम् मिन् नख़ीलिंव् – व अअ्नाबिन् • लकुम् फ़ीहा फ़वाकिहु कसीरतुंव् – व मिन्हा तअ्कुलून
फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अँगूरों के बाग़ात बनाए कि उनमें तुम्हारे वास्ते (तरह तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो (19) - व श-ज-रतन् तख़्रुजु मिन् तूरि सैना – अ तम्बुतु बिद्दुह़्नि व सिब्गिल् लिल् आकिलीन
और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख़्त (पैदा किया) जो तूरे सीना (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है जिससे तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन भी है (20) - व इन् – न लकुम् फ़िल् – अन्आ़मि ल – अिब् – रतन्, नुस्क़ीकुम् मिम्मा फ़ी बुतूनिहा व लकुम् फ़ीहा मनाफ़िअु कसी – रतुंव् – व मिन्हा तअ्कुलून
और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चैपायों में भी इबरत की जगह है और (ख़ाक बला) जो कुछ उनके पेट में है उससे हम तुमको दूध पिलाते हैं और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फायदे हैं और उन्हीं में से बाज़ तुम खाते हो (21) - व अ़लैहा व अ़लल्-फुल्कि तुह्मलून *
और उन्हें जानवरों और कश्तियों पर चढे़ चढ़े फिरते भी हो (22) - व ल – क़द् अरसल्ना नूहन् इला क़ौमिही फ़का – ल या क़ौमि अ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् ग़ैरूहू, अ-फ़ला तत्तकून
और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा ऐ मेरी क़ौम खु़दा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो (23)
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