22 सूरह अल हज हिंदी में पेज 4

सूरह अल हज हिंदी में | Surat Al-Hajj in Hindi

  1. ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह यूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व यूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व अन्नल्ला-ह समीअुम्-बसीर
    बेशक अल्लाह बड़ा माफ करने वाला बख़शने वाला है ये (मदद) इस वजह से दी जाएगी कि अल्लाह (बड़ा क़ादिर है वही) तो रात को दिन में दाखि़ल करता है और दिन को रात में दाखि़ल करता है और इसमें भी शक नहीं कि अल्लाह सब कुछ जानता है।
  2. ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कु व अन्न मा यद्अू – न मिन् दूनिही हुवल्-बातिलु व अन्नल्ला-ह हुवल् – अ़लिय्युल्-कबीर
    (और) इस वजह से (भी) कि यक़ीनन अल्लाह ही बरहक़ है और उसके सिवा जिनको लोग (वक़्ते मुसीबत) पुकारा करते हैं (सबके सब) बातिल हैं और (ये भी) यक़ीनी (है कि) अल्लाह ही (सबसे) बुलन्द मर्तबा बुज़ुर्ग है।
  3. अलम् त-र अन्नल्ला-ह अन्ज़-ल मिनस्समा इ मा-अन् फ़तुस्बिहुल्-अर्जु मुख़्ज़र्र तन्, इन्नल्ला-ह लतीफुन् ख़बीर
    अरे क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि अल्लाह ही आसमान से पानी बरसाता है तो ज़मीन सर सब्ज़ (व शादाब) हो जाती है बेशक अल्लाह (बन्दों के हाल पर) बड़ा मेहरबान वाकि़फ़कार है।
  4. लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि व इन्नल्ला-ह लहुवल्-ग़निय्युल्-हमीद *
    जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह (सबसे) बेपरवाह (और) सज़ावार हम्द है।
  5. अलम् त-र अन्नल्ला-ह सख़्ख़-र लकुम् मा फ़िल्अर्जि वल्फुल्-क तजरी फिल्बहरि बिअम्रिही, व युम्सिकुस्समा-अ अन् त-क़-अ अ़लल्-अर्जि इल्ला बि – इज्निही, इन्नल्ला-ह बिन्नासि ल रऊफुर्रहीम
    क्या तूने उस पर भी नज़र न डाली कि जो कुछ रूए ज़मीन में है सबको अल्लाह ही ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है और कश्ती को (भी) जो उसके हुक्म से दरिया में चलती है और वही तो आसमान को रोके हुए है कि ज़मीन पर न गिर पड़े मगर (जब) उसका हुक्म होगा (तो गिर पडे़गा) इसमें शक नहीं कि अल्लाह लोगों पर बड़ा मेहरबान व रहमवाला है।
  6. व हुवल्लज़ी अह्याकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म युह़्यीकुम्, इन्नल्-इन्सा-न ल-कफूर
    और वही तो क़ादिर मुत्तलिक़ है जिसने तुमको (पहली बार माँ के पेट में) जिला उठाया फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको दोबारा जि़न्दगी देगा।
  7. लिकुल्लि उम्मतिन् जअ़ल्ना मन्स-कन् हुम् नासिकूहु फ़ला युनाज़िअन्न-क फ़िल्अमरि वद्अु इला रब्बि-क, इन्न-क ल-अ़ला हुदम्-मुस्तक़ीम
    इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाए जाओ।
  8. व इन् जादलू-क फ़कुलिल्लाहु अअ्लमु बिमा तअ्मलून
    बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो और अगर (इस पर भी) लोग तुमसे झगड़ा करें तो तुम कह दो कि जो कुछ तुम कर रहे हो अल्लाह उससे खू़ब वाकि़फ़ है।
  9. अल्लाहु यह्कुमु बैनकुम् यौमल्-क़ियामति फ़ीमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
    जिन बातों में तुम बाहम झगड़ा करते थे क़यामत के दिन अल्लाह तुम लोगों के दरम्यिान (ठीक) फ़ैसला कर देगा।
  10. अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समा-इ वल्अर्जि इन्-न ज़ालि- क फ़ी किताबिन, इन्-न ज़ालि क अ़लल्लाहि यसीर
    (ऐ रसूल!) क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ आसमान और ज़मीन में है अल्लाह यक़ीनन जानता है उसमें तो शक नहीं कि ये सब (बातें) किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई मौजूद) हैं।
  11. व यअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही सुल्तानंव् – व मा लै – स लहुम् बिही अिल्मुन्, व मा लिज़्ज़ालिमी – न मिन् नसीर
    बेशक ये (सब कुछ) अल्लाह पर आसान है और ये लोग अल्लाह को छोड़कर उन लोगों की इबादत करते हैं जिनके लिए न तो अल्लाह ही ने कोई सनद नाजि़ल की है और न उस (के हक़ होने) का खु़द उन्हें इल्म है और क़यामत में तो ज़ालिमों का कोई मददगार भी नहीं होगा।
  12. व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिन् तअ्-रिफु फ़ी वुजूहिल्लज़ी-न क-फ़रूल् – मुन्क-र यकादू – न यस्तू – न बिल्लज़ी – न यत्लू – न अ़लैहिम् आयातिना, कुल् अ – फ़- उनब्बिउकुम् बिशर्रिम् – मिन् ज़ालिकुम्, अन्नारू, व-अ़-दहल्लाहुल्लज़ी-न क-फरू, व बिअ्सल् – मसीर *
    और (ऐ रसूल!) जब हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें उनके सामने पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो तुम (उन) काफ़िरों के चेहरों पर नाखु़शी के (आसार) देखते हो (यहाँ तक कि) क़रीब होता है कि जो लोग उनको हमारी आयातें पढ़कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ रसूल) तुम कह दो (कि) तो क्या मैं तुम्हें इससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूँ (अच्छा) तो सुन लो वह जहन्नुम है जिसमें झोंकने का वायदा अल्लाह ने काफि़रों से किया है।
  13. या अय्युहन्नासु जुरि – ब म-सलुन् फ़स्तमिअू लहू, इन्नल्लज़ी – न तद्अू – न मिन् दूनिल्लाहि लंय्यख़्लुकू जुबाबंव् व लविज्त-मअू लहू, व इंय्यस्लुब्हुमुज् – जुबाबु शैअल् – ला यस्तन्किजूहु मिन्हु, ज़अुफ़त्तालिबु वल्मत्लूब
    और वह क्या बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा के सुनो कि अल्लाह को छोड़कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब के सब इस काम के लिए इकट्ठे भी हो जाएँ तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते और कहीं मक्खी कुछ उनसे छीन ले जाए तो उससे उसको छुड़ा नहीं सकते (अजब लुत्फ है) कि माँगने वाला (आबिद) और जिससे माँग लिया (माबूद) दोनों कमज़ोर हैं।
  14. मा क-दरूल्ला-ह हक्-क़ क़द्रिही, इन्नल्ला – ह ल – क़विय्युन् अ़ज़ीज़
    अल्लाह की जैसे क़द्र करनी चाहिए उन लोगों ने न की इसमें शक नहीं कि अल्लाह तो बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है।
  15. अल्लाहु यस्तफ़ी मिनल् – मलाइ कति रूसुलंव् – व मिनन्नासि इन्नल्ला – ह समीअुम् – बसीर
    अल्लाह फरिश्तों में से बाज़ को अपने एहकाम पहुँचाने के लिए मुन्तखि़ब कर लेता है।
  16. यअ्लमु मा बै- न ऐदीहिम् व मा ख़ल्क़हुम, व इलल्लाहि तुर्जअल- उमूर
    और (इसी तरह) आदमियों में से भी बेशक अल्लाह (सबकी) सुनता देखता है जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका है) (अल्लाह सब कुछ) जानता है।
  17. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुर्कअू वस्जुदू वअ्बुदू रब्बकुम् वफ़अ़लुल् – ख़ै-र लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून *सज़्दा*
    और तमाम उमूर की रूजूअ अल्लाह ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों! रूकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो।
  18. व जाहिदू फ़िल्लाहि हक् क जिहादिही, हुवज्तबाकुम् व माज- अ- ल अलैकुम् फ़िद्दीनि मिन् ह – रजिन्, मिल्ल त अबीकुम् इब्राहीम, हु- व सम्माकुमुल मुस्लिमीन मिन् क़ब्लु व फ़ी हाज़ा लि – यकूनर्रसूलु शहीदन् अलैकुम् व तकूनू शु – हदा – अ अलन्नासि फ़ अक़ीमुस्सला त व आतुज़्ज़कात वस्तसिमू बिल्लाहि हु – व मौलाकुम् फ़ – निअमल् – मौला व निमन् – नसीर *
    ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है अल्लाह की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख़्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम के मजह़ब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (अल्लाह) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कु़राआन में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और अल्लाह ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तेा क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है। (पारा 17 समाप्त)

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