15 सूरह अल-हिज्र हिंदी में पेज 4

सूरह अल-हिज्र हिंदी में | Surat Al-Hijr in Hindi

  1. व इन्नहा लबि-सबीलिम् मुक़ीम
    के रास्ते पर है।
  2. इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् लिल्मुअ्मिनीन
    इसमें तो शक हीं नहीं कि इसमें ईमानदारों के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है।
  3. व इन् का-न अस्हाबुल-ऐ कति लज़ालिमीन
    और एैका के रहने वाले (क़ौमे शोएब की तरह बड़े सरकश थे)।
  4. फ़न्त-क़म्-ना मिन्हुम • व इन्नहुमा लबि-इमामिम्-मुबीन
    तो उन से भी हमने (नाफरमानी का) बदला लिया और ये दो बस्तियाँ (क़ौमे लूत व शोएब की) एक खुली हुयी शह राह पर (अभी तक मौजूद) हैं।
  5. व ल-क़द् कज़्ज़-ब अस्हाबुल हिज्रिल्-मुर्सलीन
    और इसी तरह हिज्र के रहने वालों (क़ौम सालेह ने भी) पैग़म्बरों को झुठलाया।
  6. व आतैनाहुम् आयातिना फ़कानू अ़न्हा मुअ्-रिज़ीन
    और (बावजूद कि) हमने उन्हें अपनी निशानियाँ दी उस पर भी वह लोग उनसे रद गिरदानी करते रहे।
  7. व कानू यन्हितू-न मिनल्-जिबालि बुयूतन् आमिनीन
    और बहुत दिल जोई से पहाड़ों को तराश कर घर बनाते रहे।
  8. फ़ अ ख़ज़त्हुमुस्सैहतु मुस्बिहीन
    आखि़र उनके सुबह होते होते एक बड़ी (जोरों की) चिंघाड़ ने ले डाला।
  9. फ़मा अ़ग्-ना अ़न्हुम् मा कानू यक्सिबून
    फिर जो कुछ वह अपनी हिफाज़त की तदबीर किया करते थे (अज़ाब ख़ुदा से बचाने में) कि कुछ भी काम न आयीं।
  10. व मा ख़लक़्नस्समावाति वल्अर्-ज़ व मा बैनहुमा इल्ला बिल्हक़्क़ि, व इन्नस्सा-अ-त लआति-यतुन् फ़स्फ़हिस्सफ़्हल-जमील
    और हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उन दोनों के दरम्यिान में है हिकमत व मसलहत से पैदा किया है और क़यामत यक़ीनन ज़रुर आने वाली है तो तुम (ऐ रसूल) उन काफिरों से शाइस्ता उनवान (अच्छे बरताव) के साथ दर गुज़र करो।
  11. इन्-न रब्ब-क हुवल् ख़ल्लाक़ुल-अ़लीम 
    इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा पैदा करने वाला है।
  12. व ल क़द् आतैना-क सब्अम् मिनल्-मसानी वल्क़ुर्आनल् अ़ज़ीम
    (बड़ा दाना व बीना है) और हमने तुमको सबअे मसानी (सूरे हम्द) और क़ुरान अज़ीम अता किया है।
  13. ला तमुद्दन्-न ऐनै-क इला मा मत्तअ्ना बिही अज़्वाजम् मिन्हुम् व ला तह्ज़न् अ़लैहिम् वख़्फिज़् जनाह-क लिल्मुअ्मिनीन
    और हमने जो उन कुफ्फारों में से कुछ लोगों को (दुनिया की) माल व दौलत से निहाल कर दिया है तुम उसकी तरफ हरगिज़ नज़र भी न उठाना और न उनकी (बेदीनी) पर कुछ अफसोस करना और इमानदारों से (अगरचे ग़रीब हो) झुककर मिला करो और कहा दो कि मै तो (अज़ाबे ख़ुदा से) सरीही तौर से डराने वाला हूँ।
  14. व क़ुल इन्नी अनन्नज़ीरूल मुबीन
    (ऐ रसूल) उन कुफ्फारों पर इस तरह अज़ाब नाजि़ल करेगें जिस तरह हमने उन लोगों पर नाजि़ल किया।
  15. कमा अन्ज़ल्ना अलल्-मुक़्तसिमीन
    जिन्होंने क़ुरान को बाँट कर टुकडे़ टुकड़े कर डाला।
  16. अल्लज़ी-न ज अ़लुल्-क़ुरआ-न अिज़ीन
    (बाज़ को माना बाज को नहीं) तो ऐ रसूल तुम्हारे ही परवरदिगार की (अपनी) क़सम।
  17. फ़-वरब्बि-क लनस्-अलन्नहुम् अज्मईन
    कि हम उनसे जो कुछ ये (दुनिया में) किया करते थे (बहुत सख़्ती से) ज़रुर बाज़ पुर्स (पुछताछ) करेंगे।
  18. अ़म्मा कानू यअ्मलून
    पस जिसका तुम्हें हुक्म दिया गया है उसे वाजेए करके सुना दो।
  19. फ़स्दअ् बिमा तुअ्मरू व अअ्-रिज़् अ़निल्-मुश्रिकीन
    और मुश्रिकिन की तरफ से मुँह फेर लो।
  20. इन्ना कफ़ैनाकल्-मुस्तह़्ज़िईन
    जो लोग तुम्हारी हँसी उड़ाते है।
  21. अल्लज़ी-न यज्अ़लू-न मअ़ल्लाहि इलाहन् आ-ख-र, फ़सौ-फ़ यअ्लमून
    और ख़ुदा के साथ दूसरे परवरदिगार को (शरीक) ठहराते हैं हम तुम्हारी तरफ से उनके लिए काफी हैं तो अनक़रीब ही उन्हें मालूम हो जाएगा।
  22. वल-क़द् नअ्लमु अन्न-क यज़ीक़ु सद्रू-क बिमा यक़ूलून
    कि तुम जो इन (कुफ्फारों मुनाफिक़ीन) की बातों से दिल तंग होते हो उसको हम ज़रुर जानते हैं।
  23. फ़-सब्बिह् बिहम्दि रब्बि-क व कुम् मिनस्-साजिदीन
    तो तुम अपने परवरदिगार की हम्दो सना से उसकी तस्बीह करो और (उसकी बारगाह में) सजदा करने वालों में हो जाओ।
  24. वअ्बुद् रब्ब-क हत्ता यअ्ति-यकल्-यक़ीन *
    और जब तक तुम्हारे पास मौत आए अपने परवरदिगार की इबादत में लगे रहो।

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