03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 3

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. इन्नल्ला-ह रब्बी व रब्बुकुम् फ़अ्बुदूहु, हाज़ा सिरातुम् मुस्तक़ीम
    बस तुम अल्लाह से डरो और मेरी इताअत करो। बेशक अल्लाह ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है।
  2. फ़-लम्मा अ-हस्-स ईसा मिन्हुमुल् कुफ़्-र क़ा-ल मन् अन्सारी इलल्लाहि, क़ालल्-हवारिय्यू-न नह्नु अन्सारुल्लाहि आमन्ना बिल्लाहि वश्हद् बि-अन्ना मुस्लिमून
    बस उसकी इबादत करो (क्योंकि) यही नजात का सीधा रास्ता है। फिर जब ईसा ने (इतनी बातों के बाद भी) उनका कुफ्र (पर अड़े रहना) देखा तो (आखि़र) कहने लगे कौन ऐसा है जो अल्लाह की तरफ़ होकर मेरा मददगार बने (ये सुनकर) हवारियों ने कहा हम अल्लाह के तरफ़दार हैं और हम अल्लाह पर ईमान लाए।
  3. रब्बना आमन्ना बिमा अन्ज़ल्-त वत्त-बअ्नर्-रसू-ल फ़क्तुब्ना म- अ़श्शाहिदीन
    और (ईसा से कहा) आप गवाह रहिए कि हम फ़रमाबरदार हैं।
  4. व म-करू व म-करल्लाहु, वल्लाहु ख़ैरुल् माकिरीन
    और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ की कि ऐ हमारे पालने वाले! जो कुछ तूने नाजि़ल किया हम उसपर ईमान लाए और हमने तेरे रसूल (ईसा) की पैरवी इख़्तेयार की। बस तू हमें (अपने रसूल के) गवाहों के दफ़्तर में लिख ले।
  5. इज़् क़ालल्लाहु या ईसा इन्नी मु-तवफ़्फ़ी-क व राफ़िअु-क इलय्-य व मुतह्हिरु-क मिनल्लज़ी-न क-फ़रू व जाअिलुल्लज़ीनत्-त-बऊ-क फ़ौक़ल्लज़ी-न क-फ़रू इला यौमिल्- क़ियामति, सुम् -म इलय्-य मर्जिअुकुम् फ़-अह्क़ुमु बैनकुम् फ़ीमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफ़ून
    और यहूदियों (ने ईसा से) मक्कारी की और अल्लाह ने उसके तोड़ की तदबीर की और अल्लाह सब से बेहतर तदबीर करने वाला है। (वह वक़्त भी याद करो) जब ईसा से अल्लाह ने फ़रमाया, ऐ ईसा! मैं ज़रूर तुम्हारी जि़न्दगी की मुद्दत पूरी करके तुमको अपनी तरफ़ उठा लूगा और काफ़िरों (की जि़न्दगी) से तुमको पाक व पाकीज़ रखुंगा और जिन लोगों ने तुम्हारी पैरवी की उनको क़यामत तक काफि़रों पर ग़ालिब रखूँगा फिर तुम सबको मेरी तरफ़ लौटकर आना है।
  6. फ़-अम्मल्लज़ी-न क-फ़रू फ़-उअ़ज़्ज़िबुहुम् अ़ज़ाबन् शदीदन् फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति, व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
    तब (उस दिन) जिन बातों में तुम (दुनिया) में झगड़े करते थे (उनका) तुम्हारे दरमियान फ़ैसला कर दूंगा। बस जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उन पर दुनिया और आखि़रत (दोनों में) सख़्त अज़ाब करूंगा और उनका कोई मददगार न होगा।
  7. व अम्मल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फ़-युवफ़्फ़ीहिम् उजूरहुम्, वल्लाहु ला युहिब्बुज़्ज़ालिमीन
    और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए तो अल्लाह उनको उनका पूरा अज्र व सवाब देगा और अल्लाह ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता।
  8. ज़ालि-क नत्लूहु अ़लै-क मिनल्-आयाति वज़्ज़िक्रिल हकीम
    (ऐ रसूल!) ये जो हम तुम्हारे सामने बयान कर रहे हैं कु़दरते अल्लाह की निशानियाँ और हिकमत से भरे हुये तज़किरे हैं।
  9. इन्-न म-स-ल ईसा अिन्दल्लाहि क-म-सलि आद-म, ख़-ल-क़हू मिन् तुराबिन् सुम्-म क़ा-ल लहू कुन् फ़-यकून
    अल्लाह के नज़दीक तो जैसे ईसा की हालत वैसी ही आदम की हालत कि उनको मिट्टी का पुतला बनाकर कहा कि ‘हो जा’ बस (फ़ौरन ही) वह (इन्सान) हो गया।
  10. अल्-हक़्क़ु मिर्रब्बि-क फ़ला तकुम् मिनल्-मुम्तरीन
    (ऐ रसूल! ये है) हक़ बात (जो) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (बताई जाती है) तो तुम शक करने वालों में से न हो जाना।
  11. फ़-मन् हाज्ज-क फ़ीहि मिम्-बअ्दि मा जाअ-क मिनल् अिल्मि फ़क़ुल् तआ़लौ नद्अु अब्ना-अना व अब्ना-अकुम् व निसा-अना व निसा-अकुम् व अन्फ़ु-सना व अन्फ़ु-सक़ुम्, सुम्-म नब्तहिल् फ़-नज्अ़ल्-लअ्-नतल्लाहि अ़लल्काज़िबीन
    फिर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरान) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाए) औेर तुम अपनी औेरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं ओर तुम अपनी जानों को।
  12. इन्-न हाज़ा लहुवल् क़-ससुल्-हक़्क़ु, व मा मिन् इलाहिन् इल्लल्लाहु, व इन्नल्ला-ह ल-हुवल्-अ़ज़ीज़ुल हकीम
    उसके बाद हम सब मिलकर (अल्लाह की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर अल्लाह की लानत करें (ऐ रसूल!) ये सब यक़ीनी सच्चे वाक़यात हैं और अल्लाह के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं है।
  13. फ़-इन् तवल्लौ फ़-इन्नल्ला-ह अ़लीमुम् बिल्मुफ़्सिदीन *
    और बेशक अल्लाह ही सब पर ग़ालिब और हिकमत वाला है।
  14. कुल् या अह्-लल्-किताबि तआ़लौ इला कलि- मतिन् सवा-इम् बैनना व बैनकुम् अल्ला नअ्बु-द इल्लल्ला-ह व ला नुश्रि-क बिही शैअंव्-व ला यत्तख़ि-ज़ बअ्ज़ुना बअ्ज़न् अर्बाबम् मिन् दूनिल्लाहि, फ़-इन् तवल्लौ फ़-क़ूलुश्-हदू बिअन्ना मुस्लिमून
    फिर अगर इससे भी मुँह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) अल्लाह फ़सादी लोगों को खूब जानता है। (ऐ रसूल!) तुम (उनसे) कहो कि ऐ एहले किताब! तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरम्यान एक सा है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बुलाएं और अल्लाह के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुँह मोडे़ं तो तुम गवाह रहना हम (अल्लाह के) फ़रमाबरदार हैं।
  15. या अह्-लल्-किताबि लि-म तुहाज्जू-न फ़ी इब्राही-म व मा उन्ज़ि-लतित्तौरातु वल्-इन्जीलु इल्ला मिम्-बअ्दिही, अ-फ़ला तअ्क़िलून
    ऐ एहले किताब! तुम इब्राहीम के बारे में (ख़्वाह मा ख़्वाह) क्यों झगड़ते हो कि कोई उनको नसरानी कहता है कोई यहूदी हालांकि तौरात व इन्जील (जिनसे यहूद व नसारा की इब्तेदा है वह) तो उनके बाद ही नाज़िल हुई।
  16. हा-अन्तुम् हा-उला-इ हाजज्तुम् फ़ीमा लकुम् बिही अिल्मुन् फ़लि-म तुहाज्जू-न फ़ी मा लै-स लकुम् बिही अिल्मुन्, वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून
    तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते? तुम वही एहमक़ लोग हो कि जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खै़र) फिर तब उसमें क्या (ख्व़ाह मा ख़्वाह) झगड़ने बैठे हो जिसकी (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर नहीं और (हकी़क़ते हाल तो) अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
  17. मा का-न इब्राहीमु यहूदिय्यंव्-व ला नस्रानिय्यंव्-व लाकिन् का-न हनीफ़म् मुस्लिमन्, व मा का-न मिनल् मुश्रिकीन
    इब्राहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ पर थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) थे और मुशरिकों से भी न थे।
  18. इन्-न औलन्नासि बि-इब्राही-म लल्लज़ीनत्त-बअूहु व हाज़न्नबिय्यु वल्लज़ी-न आमनू, वल्लाहु वलिय्युल् मुअ्मिनीन
    इब्राहीम से ज़्यादा ख़ुसूसियत तो उन लोगों को थी जो ख़ास उनकी पैरवी करते थे और उस पैग़म्बर और ईमानदारों को (भी) है और मोमिनीन का अल्लाह मालिक है।
  19. वद्दत्ताइ-फ़तुम् मिन् अह्-लिल्-किताबि लौ युज़िल्लू-नकुम, व मा युज़िल्लू-न इल्ला अन्फ़ु-सहुम् व मा यश्अुरून
    (मुसलमानो!) एहले किताब से एक गिरोह ने बहुत चाहा कि किसी तरह तुमको राहेरास्त से भटका दे हालांकि वह (अपनी तदबीरों से तुमको तो नहीं मगर) अपने ही को भटकाते हैं।
  20. या अह्-लल्-किताबि लि-म तक़्फ़ुरू-न बिआयातिल्लाहि व अन्तुम् तश्हदून
    और उसको समझते (भी) नहीं ऐ एहले किताब! तुम अल्लाह की आयतों से क्यों इन्कार करते हो, हालांकि तुम ख़ुद गवाह बन सकते हो।
  21. या अह्-लल्-किताबि लि-म तल्बिसूनल् हक़्-क़
    बिल्- बातिलि व तक्तुमूनल्-हक़्-क़ व अन्तुम् तअ्लमून
    ऐ अहले किताब! तुम क्यो हक़ व बातिल को गड़बड़ करते और हक़ को छुपाते हो हालांकि तुम जानते हो।
  22. व क़ालत्ताइ-फ़तुम् मिन् अह्-लिल्-किताबि आमिनू बिल्लज़ी उन्ज़ि-ल अ़लल्लज़ी-न आमनू वज्हन्नहारि वक्फ़ुरू आख़ि-रहू लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
    और अहले किताब से एक गिरोह ने (अपने लोगों से) कहा कि मुसलमानों पर जो किताब नाजि़ल हुयी है उसपर सुबह सवेरे ईमान लाओ और आख़िर वक़्त इन्कार कर दिया करो शायद मुसलमान (इसी तदबीर से अपने दीन से) फिर जाए।
  23. व ला तुअ्मिनू इल्ला लिमन् तबि-अ़ दीनकुम, क़ुल् इन्नल्हुदा हुदल्लाहि, अंय्युअ्ता अ-हदुम् मिस्-ल मा ऊतीतुम् औ युहाज्जूकुम् अिन्- द रब्बिकुम्, क़ुल् इन्नल् फ़ज़्-ल बि-यदिल्लाहि, युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम
    और तुम्हारे दीन की पैरवरी करे उसके सिवा किसी दूसरे की बात का ऐतबार न करो (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि बस अल्लाह ही की हिदायत तो हिदायत है (यहूदी परस्पर ये भी कहते हैं कि) उसको भी न (मानना) कि जैसा (उम्दा दीन) तुमको दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जाय या तुमसे कोई शख़्स अल्लाह के यहाँ झगड़ा करे (ऐ रसूल! तुम उनसे) कह दो कि (ये क्या ग़लत ख़्याल है) फ़ज़ल (व करम) अल्लाह के हाथ में है वह जिसको चाहे दे और अल्लाह बड़ी गुन्जाईश वाला है (और हर शै को) जानता है।
  24. यख़्तस्सु बिरह्-मतिही मंय्यशा-उ, वल्लाहु ज़ुल्फ़ज़्लिल् अ़ज़ीम
    जिसको चाहे अपनी रहमत के लिये ख़ास कर लेता है और अल्लाह बड़ा फ़ज़लों करम वाला हे।
  25. व मिन् अह्-लिल्-किताबि मन् इन् तअ्मन्हु बिक़िन्तारिंय्युअद्दिही इलै-क, व मिन्हुम् मन् इन् तअ्मन्हु बिदीनारिल् ला युअद्दिही इलै-क इल्ला मा दुम्-त अ़लैहि क़ा इमन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ालू लै-स अ़लैना फ़िल्उम्मिय्यी-न सबीलुन्, व यक़ूलू-न अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब व हुम् यअ्लमून
    और एहले किताब! कुछ ऐसे भी हैं कि अगर उनके पास रूपए की ढेर अमानत रख दो तो भी उसे (जब चाहो) वैसे ही तुम्हारे हवाले कर देंगे और कुछ ऐसे हें कि अगर एक अशरफी भी अमानत रखो तो जब तक तुम बराबर (उनके सर) पर खड़े न रहोगे तुम्हें वापस न देंगे, ये इस वजह से है कि उन का तो ये क़ौल है कि (अरब के) जाहिलो (का हक़ मार लेने) में हम पर कोई इल्ज़ाम की राह ही नहीं और जान बूझ कर अल्लाह पर झूठ जोड़ते हैं।

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