03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 4

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. बला मन् औफ़ा बि-अ़ह्दिही वत्तक़ा फ़-इन्नल्ला-ह युहिब्बुल् मुत्तक़ीन
    हाँ (अलबत्ता) जो शख़्स अपने अहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख़्तेयार करे तो बेशक अल्लाह परहेज़गारों को दोस्त रखता है।
  2. इन्नल्लज़ी-न यश्तरू-न बि-अह्दिल्लाहि व ऐमानिहिम् स-मनन् कलीलन् उलाइ-क ला ख़ला-क़ लहुम् फिल्-आख़ि-रति व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु व ला यन्ज़ुरु इलैहिम् यौमल्-क़ियामति व ला युज़क्कीहिम्, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    बेशक जो लोग अपने अहद और (क़समे) जो अल्लाह (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आख़िरत में कुछ हिस्सा नहीं। और क़यामत के दिन अल्लाह उनसे बात तक तो करेगा नहीं और न उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा। और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है।
  3. व इन्-न मिन्हुम् ल-फ़रीकंय्यल्वू-न अल्सि-न-तहुम् बिल्किताबि लि-तह्सबूहु मिनल्-किताबि व मा हु-व मिनल्-किताबि, व यक़ूलू-न हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि व मा हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि, व यक़ूलू-न अ़लल्लाहिल्- कज़ि-ब व हुम् यअ्लमून
    और एहले किताब! से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरात) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालांकि वह किताब का जुज़ नहीं। और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) अल्लाह के यहाँ से (उतरा) है हालांकि वह अल्लाह के यहाँ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर अल्लाह पर झूठ (बोहतान) जोड़ते हैं
  4. मा का-न लि-ब-शरिन् अंय्युअ्ति-यहुल्लाहुल् किता-ब वल्हुक्-म वन्नुबुव्व-त सुम्- म यक़ू-ल लिन्नासि कूनू अिबादल्ली मिनू दूनिल्लाहि व लाकिन् कूनू रब्बानिय्यी-न बिमा कुन्तुम् तुअ़ल्लिमूनल्-किता-ब व बिमा कुन्तुम् तद्-रूसून
    किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि अल्लाह तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ। बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ। क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे अल्लाह (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो।
  5. व ला यअ्मु-रकुम् अन् तत्तख़िज़ुल्-मलाइ-क-त वन्नबिय्यी-न अर्बाबन्, अ-यअ्मुरुकुम् बिल्कुफ़्रि बअ्-द इज़् अन्तुम् मुस्लिमून
    और वह तुमसे ये तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को अल्लाह बना लो। भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ्र का हुक्म करेगा।
  6. व इज़् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसाक़न्-नबिय्यी-न लमा आतैतुकुम् मिन् किताबिंव्-व हिक्मतिन् सुम्- म जा-अकुम् रसूलुम् मुसद्दिक़ुल्लिमा म अ़कुम् लतुअ्मिनुन्-न बिही व ल-तन्सुरुन्नहू, क़ा-ल अ- अक़्रर्तुम् व अ-ख़ज़्तुम् अ़ला ज़ालिकुम् इस्री, क़ालू अक़्रर्ना, क़ा-ल फ़श्हदू व अ-ना म-अ़कुम् मिनश्शाहिदीन
    (और ऐ रसूल! वह वक़्त भी याद दिलाओ) जब अल्लाह ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगै़रह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) अल्लाह ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार कर लिया? तुमने मेरे (अहद का) बोझ उठा लिया? सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया। इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना।
  7. फ़-मन् तवल्ला बअ्-द ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुल् फ़ासिक़ून
    और तुम्हारे साथ मैं भी एक गवाह हॅू। फिर उसके बाद जो शख़्स (अपने क़ौल से) मुँह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं।
  8. अ-फ़ग़-र दीनिल्लाहि यब़्ग़ू-न व लहू अस्ल-म मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि तौअ़ंव्-व कर्-हंव्-व इलैहि युर्जअून
    तो क्या ये लोग अल्लाह के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूढते हैं। हालांकि जो (फ़रिश्ते) आसमानों में हैं औेर जो (लोग) ज़मीन में हैं सबने ख़ुशी ख़ुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दन डाल दी है और (आख़िर सब) उसकी तरफ़ लौट कर जाएंगे।
  9. क़ुल् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल अ़लैना व मा उन्ज़ि-ल अ़ला इब्राही-म व इस्माई-ल व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब वल्अस्बाति व मा ऊति-य मूसा व ईसा वन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम्, ला नुफ़र्रिक़ु ब-न अ-हदिम् मिन्हुम्, व नह्नु लहू मुस्लिमून
    (ऐ रसूल! उन लोगों से) कह दो कि हम तो अल्लाह पर ईमान लाए और जो किताब हम पर नाज़िल हुयी और जो (सहीफ़े) इब्राहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकू़ब और औलादे याकू़ब पर नाज़िल हुये और मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायत हुयी (सब पर ईमान लाए)। हम तो उनमें से किसी एक में भी फ़क्र नहीं करते।
  10. व मंय्यब्तग़ि ग़ैरल्-इस्लामि दीनन् फ़-लंय्युक़्ब-ल मिन्हु, व हु-व फ़िल्-आख़ि-रति मिनल् ख़ासिरीन
    और हम तो उसी (यकता अल्लाह) के फ़रमाबरदार हैं। और जो शख़्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख़्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा। और वह आख़िरत में सख़्त घाटे में रहेगा।
  11. कै-फ़ यह्दिल्लाहु क़ौमन् क-फ़रू बअ्-द ईमानिहिम् व शहिदू अन्नर्रसू-ल हक्कुंव्-व जा-अहुमुल्बय्यिनातु, वल्लाहु ला यह्दिल् क़ौमज़्ज़ालिमीन
    भला अल्लाह ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो इमाने लाने के बाद फिर काफिर हो गए हालांकि वह इक़रार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आखि़रूज़ज़मा) बरहक़ हैं। और उनके पास वाज़ेह व रौशन मौजिज़े भी आ चुके थे। और अल्लाह ऐसी हठधर्मी करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता।
  12. उलाइ-क जज़ाउहुम् अन्-न अ़लैहिम् लअ्-नतल्लाहि वल्मलाइ-कति वन्नासि अज्मईन
    ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उन पर अल्लाह और फ़रिश्तों और (दुनिया जहान के) सब लोगों की फिटकार हैं।
  13. ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख़फ़्फ़फ़ु अ़न्हुमुल्-अ़ज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून
    और वह हमेशा उसी फिटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख़्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न उनको मोहलत दी जाएगी।
  14. इल्लल्लज़ी-न ताबू मिम्- बअ्दि ज़ालि-क व अस्लहू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुर्रहीम
    मगर (हां) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी की) इस्लाह कर ली। तो अलबत्ता अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  15. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू बअ्-द ईमानिहिम् सुम्मज़्दादू कुफ़्रल्-लन् तुक़्ब-ल तौबतुहुम् व उलाइ-क हुमुज़्ज़ाल्लून
    जो अपने ईमान के बाद काफि़र हो बैठे फि़र (रोज़ बरोज़ अपना) कुफ्र बढ़ाते चले गये तो उनकी तौबा हरगिज़ न कु़बूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दरजे के) गुमराह हैं।
  16. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू व मातू व हुम् कुफ़्फ़ारुन् फ-लंय्युक़्ब -ल मिन् अ-हदिहिम् मिल्उल्-अर्ज़ि ज़-हबंव्-व लविफ़्तदा बिही, उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीमुंव्-व मा लहुम् मिन्नासिरीन
    बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इखि़्तयार किया और कुफ्र की हालत में मर गये तो अगरचे इतना सोना भी किसी की गुलू ख़लासी {छुटकारा पाने} में दिया जाए कि ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कु़बूल किया जाएगा। यही लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक अज़ाब होगा और उनका कोई मददगार भी न होगा। (पारा 3 समाप्त)

पारा 4 शुरू

  1. लन् तनालुल्बिर्-र हत्ता तुन्फ़िक़ू मिम्मा तुहिब्बू-न, व मा तुन्फ़िक़ू मिन् शैइन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अ़लीम
    (लोगों) जब तक तुम अपनी पसन्दीदा चीज़ों में से कुछ राहे अल्लाह में ख़र्च न करोगे, हरगिज़ नेकी के दरजे पर फ़ायज़ नहीं हो सकते और तुम कोई सी चीज़ भी ख़र्च करो अल्लाह तो उसको ज़रूर जानता है।
  2. कुल्लुत्तआ़मि का-न हिल्लल् लि-बनी इस्राई-ल इल्ला मा हर्र-म इस्राईलु अ़ला नफ़्सिही मिन् क़ब्लि अन् तुनज़्ज़लत्तौरातु, क़ुल् फ़अ्तू बित्तौराति फ़त्लूहा इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    तौरात के नाज़िल होने के क़ब्ल याकू़ब ने जो जो चीज़े अपने ऊपर हराम कर ली थीं उनके सिवा बनी इसराइल के लिए सब खाने हलाल थे। (ऐ रसूल! उन यहूद से) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में सच्चे हो तो तौरात ले आओ।
  3. फ़-मनिफ़्तरा अलल्लाहिल् कज़ि-ब मिम्-बअ्दि ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
    और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो कोई अल्लाह पर झूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो) कि यही लोग ज़ालिम (हठधर्म) हैं।
  4. क़ुल् स-दक़ल्लाहु फ़त्तबिअू मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न्, व मा का-न मिनल् मुश्रिकीन
    (ऐ रसूल!) कह दो कि अल्लाह ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इब्राहीम (इस्लाम) की पैरवी करो। जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे।
  5. इन्-न अव्व-ल बैतिंव्वुज़ि-अ़ लिन्नासि लल्लज़ी बि-बक्क-त मुबा-रकव्ं-व हुदल्- लिल्आ़लमीन
    लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है। बड़ी (खै़र व बरकत) वाला और सारे जहान के लोगों का रहनुमा।
  6. फ़ीहि आयातुम् बय्यिनातुम् मक़ामु इब्राही-म, व मन् द-ख़-लहू का-न आमिनन्, व लिल्लाहि अ़लन्नासि हिज्जुल्बैति मनिस्तता-अ़ इलैहि सबीलन्, व मन् क-फ़-र फ़-इन्नल्ला-ह ग़निय्युन् अ़निल् आ़लमीन
    इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानिया हैं (उनमें से) मुक़ाम इब्राहीम है (जहाँ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाखि़ल हुआ अमन में आ गया। और लोगों पर वाजिब है कि महज़ अल्लाह के लिए ख़ानाए काबा का हज करें। जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कु़दरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि अल्लाह सारे जहान से बेपरवाह है।
  7. क़ुल् या अह्-लल्-किताबि लि-म तक्फ़ुरू-न बिआयातिल्लाहि वल्लाहु शहीदुन् अ़ला मा तअ्मलून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब! अल्लाह की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो? हालांकि जो काम काज तुम करते हो अल्लाह को उसकी (पूरी) पूरी इत्तेला है।
  8. क़ुल् या अह्-लल्-किताबि लि-म तसुद्दू-न अ़न् सबीलिल्लाहि मन् आम-न तब्ग़ूनहा अि-वजंव्-व अन्तुम् शु-हदा-उ, व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अ़म्मा तअ्मलून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब! दीदए दानिस्ता (जान बुझ कर) अल्लाह की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढूंढो (ढूढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो? ओर जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।
  9. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तुतीअू फ़रीक़म् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब यरुद् दूकुम् बअ्-द ईमानिकुम् काफ़िरीन
    ऐ ईमान वालों! अगर तुमने एहले किताब के किसी फिरके का भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफिर बना छोड़ेंगे।

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