05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 5

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

  1. व लौ कानू युअ्मिनू – न बिल्लाहि वन्नबिय्यि व मा उन्ज़ि-ल इलैहि मत्त खजू हुम् औलिया-अ व लाकिन् – न कसीरम् – मिन्हुम् फ़ासिकून
    और अगर ये लोग ख़ुदा और रसूल पर और जो कुछ उनपर नाजि़ल किया गया है इमान रखते हैं तो हरगिज़ (उनको अपना) दोस्त न बनाते मगर उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं (81)
  2. ल – तजिदन् – न अशद्दन्नासि अदा-व तल-लिल्लज़ी-न आमनुल् – यहू-द वल्लज़ी-न अश्रकू व ल – तजिदन् – न अक़्र – बहुम् मवद्दतल- लिल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा, ज़ालि-क बिअन्-न मिन्हुम किस्सीसी-न व रूह़्बानंव – व अन्नहुम् ला यस्तक्बिरून
    (ऐ रसूल) ईमान लाने वालों का दुशमन सबसे बढ़के यहूदियों और मुशरिकों को पाओगे और ईमानदारों का दोस्ती में सबसे बढ़के क़रीब उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं क्योंकि इन (नसारा) में से यक़ीनी बहुत से आमिल और आबिद हैं और इस सबब से (भी) कि ये लोग हरगिज़ शेख़ी नहीं करते (82)
  3. व इज़ा समिअू मा उन्ज़ि-ल इलर्रसूलि तरा अअ्यु – नहुम् तफ़ीजु मिनद्दम्अि मिम्मा अ- रफू मिनल् – हक्क़ि यकूलू – न रब्बना आमन्ना फ़क़्तुब्ना मअश्शाहिदीन
    और तू देखता है कि जब यह लोग (इस कु़रान) को सुनते हैं जो हमारे रसूल पर नाजि़ल किया गया है तो उनकी आँखों से बेसाख़्ता (छलक कर) आँसू जारी हो जातें है क्योंकि उन्होंने (अम्र) हक़ को पहचान लिया है (और) अर्ज़ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले हम तो ईमान ला चुके तो (रसूल की) तसदीक़ करने वालों के साथ हमें भी लिख रख (83)
  4. व मा लना ला नुअ्मिनु बिल्लाहि व मा जा-अना मिनल-हक्कि व नत्मअु अंय्युद्खि – लना रब्बुना मअल् कौमिस्सालिहीन
    और हमको क्या हो गया है कि हम ख़ुदा और जो हक़ बात हमारे पास आ चुकी है उस पर तो ईमान न लाएँ और (फिर) ख़ुदा से उम्मीद रखें कि वह अपने नेक बन्दों के साथ हमें (बेहिष्त में) पहुँचा ही देगा (84)
  5. फ़ – असाबहुमुल्लाहु बिमा कालू जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल् – अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालि-क जज़ाउल मुह़्सिनीन
    तो ख़ुदा ने उन्हें उनके (सदक़ दिल से) अर्ज़ करने के सिले में उन्हें वह (हरे भरे) बाग़ात अता फरमाए जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं (और) वह उसमें हमेशा रहेंगे और (सदक़ दिल से) नेकी करने वालों का यही ऐवज़ है (85)
  6. वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल जहीम *
    और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया यही लोग जहन्नुमी हैं (86)
  7. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहर्रिमू तय्यिबाति मा अ – हल्लल्लाहु लकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् मुअ्तदीन
    ऐ ईमानदार जो पाक चीज़े ख़ुदा ने तुम्हारे वास्ते हलाल कर दी हैं उनको अपने ऊपर हराम न करो और हद से न बढ़ो क्यों कि ख़ुदा हद से बढ़ जाने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (87)
  8. व कुलू मिम्मा र-ज़-क कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव वत्तकुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
    और जो हलाल साफ सुथरी चीज़ें ख़ुदा ने तुम्हें दी हैं उनको (शौक से) खाओ और जिस ख़ुदा पर तुम ईमान लाए हो उससे डरते रहो (88)
  9. ला युआखिजुकुमुल्लाहु बिल्लग्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंग्यु आख़िजुकुम बिमा अक्कत्तुमुल्-ऐमा न फ़-कफ्फारतुहू इत्आमु अ-श-रति मसाकी-न मिन् औ- सति मा तुत्अिमू – न अह़्लीकुम् औ किस्वतुहुम् औ तह़रीरू र-क-बतिन्, फ़-मल्लम्
    यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन्, ज़ालि-क कफ्फारतु ऐमानिकुम् इज़ा हलफ्तुम् वह्फ़जू ऐमानकुम्, कज़ालि- क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तश्कुरून
    ख़ुदा तुम्हारे बेकार (बेकार) क़समों (के खाने) पर तो ख़ैर गिरफ्तार न करेगा मगर बाक़सद {सच्ची} पक्की क़सम खाने और उसके खि़लाफ करने पर तो ज़रुर तुम्हारी ले दे करेगा (लो सुनो) उसका जुर्माना जैसा तुम ख़ुद अपने एहलोअयाल को खिलाते हो उसी कि़स्म का औसत दर्जे का दस मोहताजों को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गु़लाम आज़ाद करना है फिर जिससे यह सब न हो सके तो मैं तीन दिन के रोज़े (रखना) ये (तो) तुम्हारी क़समों का जुर्माना है जब तुम क़सम खाओ (और पूरी न करो) और अपनी क़समों (के पूरा न करने) का ख़्याल रखो ख़ुदा अपने एहकाम को तुम्हारे वास्ते यूँ साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम शुक्र करो (89)
  10. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल – ख़म्रू वल्मैसिरू वल् अन्साबु वल अज्लामु रिज्सुम् – मिन् अ- मलिश्शैतानि फज्तनिबूहु लअल्लकुम् तुफ्लिहून
    ऐ ईमानदारों शराब, जुआ और बुत और पाँसे तो बस नापाक (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचे रहो ताकि तुम फलाह पाओ (90)
  11. इन्नमा युरीदुश्शैतानु अंय्यूकि-अ बैनकुमुल अदा-व-त वल-बगज़ा-अ फ़िल्खम्रि वल्मैसिरि व यसुद्दकुम् अन् जिक्रिल्लाहि व अनि स्सलाति फ़ – हल् अन्तुम् मुन्तहून
    शैतान की तो बस यही तमन्ना है कि शराब और जुए की बदौलत तुममें बाहम अदावत व दुश्मनी डलवा दे और ख़ुदा की याद और नमाज़ से बाज़ रखे तो क्या तुम उससे बाज़ आने वाले हो (91)
  12. व अतीअुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल वह्ज़रू फ़ – इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नमा अला रसूलिनल् बलागुल् मुबीन
    और ख़ुदा का हुक्म मानों और रसूल का हुक्म मानों और (नाफ़रमानी) से बचे रहो इस पर भी अगर तुमने (हुक्म ख़ुदा से) मुँह फेरा तो समझ रखो कि हमारे रसूल पर बस साफ़ साफ़ पैग़ाम पहुँचा देना फर्ज़ है (92)
  13. लै-स अलल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति जुनाहुन् फ़ीमा तअिमू इज़ा मत्तकौ व आमनू व अमिलुस् – सालिहाति सुम्मत्तकौ व आमनू सुम्मत्तकौ व अह्सनू, वल्लाहु युहिब्बुल मुहिसनीन *
    (फिर करो चाहे न करो तुम मुख़तार हो) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं उन पर जो कुछ खा (पी) चुके उसमें कुछ गुनाह नहीं जब उन्होंने परहेज़गारी की और ईमान ले आए और अच्छे (अच्छे) काम किए फिर परहेज़गारी की और नेकियाँ कीं और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है (93)
  14. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ल-यब्लुवन्न-कुमुल्लाहु बिशैइम् मिनस्सैदि तनालुहू ऐदीकुम् व रिमाहुकुम् लि-यअ् – लमल्लाहु मंय्यख़ाफुहू बिल्गैबि फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़- लहू अज़ाबुन् अलीम
    ऐ ईमानदारों कुछ शिकार से जिन तक तुम्हारे हाथ और नैज़ें पहुँच सकते हैं ख़ुदा ज़रुर इम्तेहान करेगा ताकि ख़ुदा देख ले कि उससे बे देखे भाले कौन डरता है फिर उसके बाद भी जो ज़्यादती करेगा तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है (94)
  15. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक्तुलुस्सै द व अन्तुम् हुरूमुन्, व मन् क-त-लहू मिन्कुम् मु-तअ़म्मिदन फ-जज़ाउम् – मिस्लु मा
    क -त -ल मिनन्न अ़मि यह़्कुमु बिही ज़वा अद् लिम् – मिन्कु म् हद् यम् बालिग़ल कअ्-बति औ कफ़्फ़ारतुन् तआ़मु मसाकी-न औ अद्लु ज़ालि-क सियामल-लियजू-क व बा-ल अग्रिही, अफ़ल्लाहु अम्मा स-लफ, व मन् आ द फ़-यन्तकिमुल्लाहु मिन्हु, वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिकाम
    (ऐ ईमानदारों जब तुम हालते एहराम में हो तो शिकार न मारो और तुममें से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चैपायों में से उसका मसल तुममें से जो दो मुन्सिफ आदमी तजवीज़ कर दें उसका बदला (देना) होगा (और) काबा तक पहुँचा कर कुर्बानी की जाए या (उसका) जुर्माना (उसकी क़ीमत से) मोहताजों को खाना खिलाना या उसके बराबर रोज़े रखना (यह जुर्माना इसलिए है) ताकि अपने किए की सज़ा का मज़ा चखो जो हो चुका उससे तो ख़ुदा ने दरग़ुज़र की और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो ख़ुदा उसकी सज़ा देगा और ख़ुदा ज़बरदस्त बदला लेने वाला है (95)
  16. उहिल – ल लकुम सैदुल्बह़रि व तआमुहू मताअल्लकुम् व लिस्सय्या-रति व हुर्रि-म अ़लैकुम् सैदुल्बर्रि मा दुम्तुम् हुरूमन्, वत्तकुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह़्शरून
    तुम्हारे और काफि़ले के वास्ते दरियाई शिकार और उसका खाना तो (हर हालत में) तुम्हारे वास्ते जायज़ कर दिया है मगर खुश्की का शिकार जब तक तुम हालते एहराम में रहो तुम पर हराम है और उस ख़ुदा से डरते रहो जिसकी तरफ (मरने के बाद) उठाए जाओगे (96)
  17. ज – अलल्लाहुल कअ् – बतल् बैतल्- हरा-म कियामल लिन्नासि वश्शहरल् – हरा-म वल्हद्-य वल्कलाइ – द, ज़ालि – क लितअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि व अन्नल्ला – ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
    ख़ुदा ने काबा को जो (उसका) मोहतरम घर है और हुरमत दार महीनों को और कुरबानी को और उस जानवर को जिसके गले में (कुर्बानी के वास्ते) पट्टे डाल दिए गए हों लोगों के अमन क़ायम रखने का सबब क़रार दिया यह इसलिए कि तुम जान लो कि ख़ुदा जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है यक़ीनन (सब) जानता है और ये भी (समझ लो) कि बेशक ख़ुदा हर चीज़ से वाकि़फ है (97)
  18. इअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल् अिकाबि व अन्नल्लाहा-ह ग़फूरुर्रहीम
    जान लो कि यक़ीनन ख़ुदा बड़ा अज़ाब वाला है और ये (भी) कि बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (98)
  19. मा अलर्रसूलि इल्लल् – बलागु, वल्लाहु अअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून
    (हमारे) रसूल पर पैग़ाम पहुँचा देने के सिवा (और) कुछ (फजऱ्) नहीं और जो कुछ तुम ज़ाहिर बा ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छुपा कर करते हो ख़ुदा सब जानता है (99)
  20. कुल ला यस्तविल् – ख़बीसु वत्तय्यिबु व लौ अअ्ज-ब-क कस् रतुल ख़बीसि फत्तकुल्ला-ह या उलिल-अल्बाबि लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून*
    (ऐ रसूल) कह दो कि नापाक (हराम) और पाक (हलाल) बराबर नहीं हो सकता अगरचे नापाक की कसरत तुम्हें भला क्यों न मालूम हो तो ऐसे अक़्लमन्दों अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम कामयाब रहो (100)

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