05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 5

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

  1. व लौ कानू युअ्मिनू-न बिल्लाहि वन्नबिय्यि व मा उन्ज़ि-ल इलैहि मत्त ख़ज़ू हुम् औलिया-अ व लाकिन्-न कसीरम्-मिन्हुम् फ़ासिक़ून
    और अगर ये लोग अल्लाह और रसूल पर और जो कुछ उनपर उतारा किया गया है ईमान रखते हैं। तो बिल्कुल (उनको अपना) दोस्त न बनाते मगर उनमें के अधिकतर तो भ्रष्ट हैं।
  2. ल-तजिदन्-न अशद्दन्नासि अदा-व तल्-लिल्लज़ी-न आमनुल्-यहू-द वल्लज़ी-न अश्रकू, व ल-तजिदन्-न अक़्र-बहुम् मवद्दतल-लिल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा, ज़ालि-क बिअन्-न मिन्हुम किस्सीसी-न व रूह़्बानंव्-व अन्नहुम् ला यस्तक्बिरून
    (ऐ रसूल!) ईमान लाने वालों का दुश्मन सबसे बढ़के यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे और ईमानदारों का दोस्ती में सबसे बढ़के क़रीब उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं। क्योंकि इन (नसारा) में से यक़ीनी बहुत से उपासक तथा सन्यासी हैं। और इस कारण से (भी) कि ये लोग हरगिज़ अभिमान नहीं करते। (पारा 6 समाप्त)

पारा 7 शुरू

  1. व इज़ा समिअू मा उन्ज़ि-ल इलर्रसूलि तरा अअ्यु- नहुम् तफ़ीज़ु मिनद्दम्अि मिम्मा अ-रफू मिनल्-हक़्क़ि, यक़ूलू-न रब्बना आमन्ना फ़क़्तुब्ना मअश्शाहिदीन
    और तू देखता है कि जब यह लोग (इस कु़रान) को सुनते हैं जो हमारे रसूल पर उतरा है तो उनकी आँखों से बेसाख़्ता (छलक कर) आँसू जारी हो जातें है।क्योंकि उन्होंने सत्य को पहचान लिया है (और) कहते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले हम तो ईमान ला चुके तो (रसूल की) तसदीक़ करने वालों के साथ हमें भी लिख रख।
  2. व मा लना ला नुअ्मिनु बिल्लाहि व मा जा-अना मिनल-हक़्क़ि, व नत्मअु अंय्युद्ख़ि-लना रब्बुना मअल् क़ौमिस्सालिहीन
    और हमको क्या हो गया है कि हम अल्लाह और जो सत्य बात हमारे पास आ चुकी है उस पर तो ईमान न लाएँ और (फिर) अल्लाह से उम्मीद रखें कि वह अपने नेक बन्दों के साथ हमें (जन्नत में) पहुँचा ही देगा।
  3. फ़-असाबहुमुल्लाहु बिमा क़ालू जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालि-क जज़ाउल मुह़्सिनीन
    तो अल्लाह ने उन्हें उनके (सदक़ दिल से) अर्ज़ करने के कारण उन्हें वह (हरे भरे) बाग़ प्रदान किए जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं (और) वह उसमें हमेशा रहेंगे। और (सदक़ दिल से) नेकी करने वालों का यही बदला है।
  4. वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल जहीम *
    और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया यही लोग जहन्नुमी हैं।
  5. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहर्रिमू तय्यिबाति मा अ -हल्लल्लाहु लकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् मुअ्तदीन
    ऐ ईमानदार! जो पाक चीज़े अल्लाह ने तुम्हारे वास्ते हलाल कर दी हैं उनको अपने ऊपर हराम न करो और हद से न बढ़ो। क्यों कि अल्लाह हद से बढ़ जाने वालों को निश्चय ही दोस्त नहीं रखता।
  6. व कुलू मिम्मा र-ज़-क़ कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव् वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
    और जो हलाल साफ सुथरी चीज़ें अल्लाह ने तुम्हें दी हैं उनको (शौक से) खाओ। और जिस अल्लाह पर तुम ईमान लाए हो उससे डरते रहो।
  7. ला युआख़िज़ुकुमुल्लाहु बिल्लग़्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंयु आख़िज़ुकुम बिमा अक़्क़त्तुमुल्-ऐमा न, फ़-कफ्फारतुहू इत्आमु अ-श-रति मसाकी-न मिन् औ- सति मा तुत्अिमू-न अह़्लीकुम् औ किस्वतुहुम् औ तह़रीरू र-क़-बतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन्, ज़ालि-क कफ्फारतु ऐमानिकुम् इज़ा हलफ्तुम्, वह्फ़ज़ू ऐमानकुम्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तश्कुरून
    अल्लाह तुम्हारे बेकार (बेकार) क़समों (के खाने) पर तो ख़ैर गिरफ्तार न करेगा। मगर बाक़सद {सच्ची} पक्की क़सम खाने और उसके खि़लाफ करने पर तो ज़रुर तुम्हारी ले दे करेगा। (लो सुनो) उसका जुर्माना जैसा तुम ख़ुद अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो उसी कि़स्म का औसत दर्जे का दस मोहताजों को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गु़लाम आज़ाद करना है फिर जिससे यह सब न हो सके तो मैं तीन दिन के रोज़े (रखना) ये (तो) तुम्हारी क़समों का जुर्माना है। जब तुम क़सम खाओ (और पूरी न करो) और अपनी क़समों (के पूरा न करने) का ख़्याल रखो। अल्लाह अपने आदेश को तुम्हारे वास्ते यूँ साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम उसका उपकार मानो।
  8. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल्-ख़म्रू वल्मैसिरू वल् अन्साबु वल अज़्लामु रिज्सुम्-मिन् अ-मलिश्शैतानि फज्तनिबूहु लअल्लकुम् तुफ्लिहून
    ऐ ईमानदारों! शराब, जुआ और देवस्थान और पाँसे तो बस गन्दे (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचे रहो ताकि तुम सफल हो।
  9. इन्नमा युरीदुश्शैतानु अंय्यूक़ि-अ बैनकुमुल् अदा-व-त वल्-बग़्ज़ा-अ फ़िल्ख़म्रि वल्मैसिरि व यसुद्दकुम् अन् ज़िक्रिल्लाहि व अनि स्सलाति, फ़-हल् अन्तुम् मुन्तहून
    शैतान की तो बस यही तमन्ना है कि शराब और जुए की बदौलत तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे। और अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे तो क्या तुम उससे बाज़ आने वाले हो।
  10. व अतीअुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल वह्ज़रू, फ़-इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नमा अला रसूलिनल् बलागुल् मुबीन
    और अल्लाह का हुक्म मानों और रसूल का हुक्म मानों और (नाफ़रमानी) से बचे रहो। इस पर भी अगर तुमने (हुक्म अल्लाह से) मुँह मोड़ा तो समझ रखो कि हमारे रसूल पर बस साफ़ साफ़ पैग़ाम पहुँचा देना फर्ज़ है।
  11. लै-स अलल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति जुनाहुन् फ़ीमा तअिमू इज़ा मत्तक़ौ व आमनू व अमिलुस्-सालिहाति सुम्मत्तक़ौ व आमनू सुम्मत्तक़ौ व अह्सनू, वल्लाहु युहिब्बुल मुह्सिनीन *
    (फिर करो चाहे न करो तुम मुख़तार हो) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं उन पर जो कुछ खा (पी) चुके उसमें कुछ गुनाह नहीं। जब उन्होंने परहेज़गारी की और ईमान ले आए और अच्छे (अच्छे) काम किए फिर परहेज़गारी की और नेकियाँ कीं और अल्लाह नेकी करने वालों को दोस्त रखता है।
  12. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ल-यब्लुवन्न-कुमुल्लाहु बिशैइम् मिनस्सैदि तनालुहू ऐदीकुम् व रिमाहुकुम् लि-यअ्-लमल्लाहु मंय्यख़ाफुहू बिल्गैबि फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू
    अज़ाबुन् अलीम

    ऐ ईमानदारों! कुछ शिकार से जिन तक तुम्हारे हाथ और नैज़ें पहुँच सकते हैं अल्लाह ज़रुर इम्तेहान करेगा ताकि अल्लाह देख ले कि उससे बिन देखे कौन डरता है। फिर उसके बाद भी जो ज़्यादती करेगा तो उसके लिए दर्दनाक यातना है।
  13. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्तुलुस्सै द व अन्तुम् हुरूमुन्, व मन् क़-त-लहू मिन्कुम् मु-तअ़म्मिदन फ-जज़ाउम्-मिस्लु मा क़-त-ल मिनन्न अ़मि यह़्कुमु बिही ज़वा अद् लिम्-मिन्कु म् हद् यम् बालिग़ल कअ्-बति औ कफ़्फ़ारतुन् तआ़मु मसाकी-न औ अद्लु ज़ालि-क सियामल्-लियज़ू-क़ व बा-ल अम्रिही, अफ़ल्लाहु अम्मा स-लफ, व मन् आ द फ़-यन्तक़िमुल्लाहु मिन्हु, वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिक़ाम
    ऐ ईमानदारों! जब तुम इहराम की हालत में हो तो शिकार न मारो और तुममें से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चैपायों में से उसका मसल तुममें से जो दो न्यायप्रिय आदमी फ़ैसला कर दें उसका बदला (देना) होगा। (और) काबा तक पहुँचा कर कुर्बानी की जाए या (उसका) जुर्माना (उसकी क़ीमत से) निर्धनों को खाना खिलाना या उसके बराबर रोज़े रखना। (यह जुर्माना इसलिए है) ताकि अपने किए की सज़ा का मज़ा चखो। जो हो चुका उससे तो अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो अल्लाह उसकी सज़ा देगा। और अल्लाह ज़बरदस्त बदला लेने वाला है।
  14. उहिल-ल लकुम सैदुल्बह्-रि व तआमुहू मताअल्लकुम् व लिस्सय्या-रति, व हुर्रि-म अ़लैकुम् सैदुल्बर्रि मा दुम्तुम् हुरूमन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह़्शरून
    तुम्हारे और काफि़ले के वास्ते जलीय शिकार और उसका खाना तो (हर हालत में) तुम्हारे वास्ते जायज़ कर दिया है मगर थलीय का शिकार जब तक तुम हालते एहराम में रहो तुम पर हराम है। और उस अल्लाह से डरते रहो जिसकी तरफ (मरने के बाद) उठाए जाओगे।
  15. ज-अलल्लाहुल कअ्-बतल् बैतल्-हरा-म क़ियामल् लिन्नासि वश्शह्-रल्-हरा-म वल्हद्-य वल्क़लाइ-द, ज़ालि-क लितअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
    अल्लाह ने काबा को जो (उसका) आदरणीय घर है और हुरमत दार महीनों को और कुरबानी को और उस जानवर को जिसके गले में (कुर्बानी के वास्ते) पट्टे डाल दिए गए हों लोगों के अमन क़ायम रखने का सबब क़रार दिया। यह इसलिए कि तुम जान लो कि अल्लाह जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है यक़ीनन (सब) जानता है।और ये भी (समझ लो) कि बेशक अल्लाह हर चीज़ से अवगत है।
  16. इअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल् अिक़ाबि व अन्नल्लाहा-ह ग़फूरुर्रहीम
    जान लो कि यक़ीनन अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है। और ये (भी) कि बड़ा क्षमाशील दयावान् है।
  17. मा अलर्रसूलि इल्लल्-बलाग़ु, वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून
    (हमारे) रसूल पर पैग़ाम पहुँचा देने के सिवा (और) कुछ (फर्ज) नहीं और जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ तुम छुपा कर करते हो, अल्लाह सब जानता है।
  18. क़ुल् ला यस्तविल्-ख़बीसु वत्तय्यिबु व लौ अअ्ज-ब-क कस् रतुल ख़बीसि, फत्तक़ुल्ला-ह या उलिल्-अल्बाबि लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून*
    (ऐ रसूल!) कह दो कि नापाक (हराम) और पाक (हलाल) बराबर नहीं हो सकता। चाहे बुरी चीज़ों की बहुतायत तुम्हें प्रिय ही क्यों न मालूम हो। तो ऐसे अक़्लमन्दों अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम कामयाब रहो।

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