05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 4

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

  1. व इज़ा जाऊकुम् क़ालू आमन्ना व क़द्द-ख़लू बिल्कुफ्रि व हुम् क़द् ख़-रजू बिही, वल्लाहु अअ्लमु बिमा कानू यक्तुमून
    और (मुसलमानों!) जब ये लोग तुम्हारे पास आ जाते हैं तो कहते हैं कि हम तो ईमान लाए हैं जबकि वे कुफ़्र लिए हुए आये और फिर निकले भी तो साथ लिए हुए। और जो कपट वह छुपाए हुए थे अल्लाह उसे ख़ूब जानता है।
  2. व तरा कसीरम् मिन्हुम् युसारिअू-न फिल् इस्मि वल् अुदवानि व अक्लिहिमुस्सुह-त, लबिअ्-स मा कानू यअ्मलून
    (ऐ रसूल!) तुम उनमें से बहुतेरों को देखोगे कि गुनाह और अत्याचार और हरामख़ोरी की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं। जो काम ये लोग करते थे वह यक़ीनन बहुत बुरा है।
  3. लौ ला यन्हाहुमुर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह्बारू अन् क़ौलिहिमुल-इस्- म व अक्लिहिमुस्सुह् त, लबिअ्-स मा कानू यस् नअून
    उनको धर्माचारी तथा विद्वान झूठ बोलने और अवैध खाने से क्यों नहीं रोकते। निश्चय ही बहुत बुरा है जो काम वे कर रहे हैं।
  4. व क़ालतिल्-यहूदु यदुल्लाहि मग़्लूलतुन्, ग़ुल्लत् ऐदीहिम् व लुअिनू बिमा क़ालू • बल् यदाहु मब्सूततानि, युन्फ़िक़ु कै-फ़ यशा उ, व ल-यज़ीद्-न्न कसीरम् मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, व अल्क़ै ना बैनहुमुल्-अदाव-त वल्ब़ग़्ज़ा-अ इला यौमिल् क़ियामति, कुल्लमा औक़दू नारल्-लिल्-हरबि अत्-फ़-अहल्लाहु, व यस्औ-न फिल्अर्ज़ि फ़सादन्, वल्लाहु ला युहिब्बुल् मुफ्सिदीन
    और यहूदी कहने लगे कि अल्लाह का हाथ बँधा हुआ है,  उन्हीं के हाथ बांध दिए जाए। और उनके (इस) कहने पर (अल्लाह की) फिटकार बरसे बल्कि उसके दोनों हाथ तो खुले हुए हैं जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। और जो (किताब) तुम्हारे पास उतारी गयी है (उनका शक व हसद) उनमें से बहुतेरों को कुफ़्र व उल्लंघन को और बढ़ा देगा। और हमने उनके बीच प्रलय के दिन तक के लिए शत्रुता तथा बैर डाल दिया है। जब ये लोग लड़ाई की आग भड़काते हैं तो अल्लाह उसको बुझा देता है। और धरती में उपद्रव फैलाने के लिए दौड़ते फिरते हैं और अल्लाह बिगाड़ फैलानेवालों को दोस्त नहीं रखता।
  5. व लौ अन्-न अह़्लल्-किताबि आमनू वत्तक़ौ ल-कफ्फर् ना अन्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-अद्ख़ल्नाहुम् जन्नातिन् नईम
    और अगर एहले किताब ईमान लाते और (हमसे) डरते तो हम उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर देते। और उनको नेअमत व आराम (स्वर्ग के बाग़ों में) पहँचा देते।
  6. व लौ अन्नहुम् अक़ामुत्तौरा-त वल् इन्जी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् मिर्रब्बिहिम् ल-अ-कलू मिन् फौक़िहिम् व मिन् तह़्ति अर्जुलिहिम्, मिन्हुम् उम्मतुम् मुक़्तसि-दतुन्, व कसीरूम् मिन्हुम् सा-अ मा यअ्मलून*
    और अगर यह लोग तौरैत और इन्जील और (सहीफ़े) उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाजि़ल किये गए थे (उनके एहकाम को) क़ायम रखते तो ज़रूर (उनके) ऊपर से भी (रिज़क़ बरस पड़ता) और पॉवों के नीचे से भी उबल आता। और (ये ख़ूब चैन से) खाते उनमें से कुछ लोग तो एतदाल पर हैं (मगर) उनमें से बहुतेरे जो कुछ करते हैं बुरा ही करते हैं।
  7. या अय्युहर्रसूलु बल्लिग़् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क, व इल्लम् तफ्अल् फ़मा बल्लग़्-त रिसाल-तहू, वल्लाहु यअ्सिमु-क मिनन्नासि, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल क़ौमल-काफ़िरीन
    ऐ रसूल! जो हुक्म तुम्हारे पालनहार की तरफ़ से तुम पर उतारा किया गया है उसे (सबको) पहुँचा दो। और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहुँचाया और (तुम डरो नहीं) अल्लाह तुमको लोगों के बुराइयों से बचाएगा। निश्चय ही अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।
  8. क़ुल या अह़्लल्-किताबि लस्तुम् अला शैइन् हत्ता तुक़ीमुत्तौरा-त वल्-इन्ज़ी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम मिर्रब्बिकुम्, व ल-यज़ीदन्-न कसीरम्-मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, फला तअ्-स अलल् क़ौमिल-काफिरीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ एहले किताब! जब तक तुम तौरात और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल हुए हैं उनके (एहकाम) को क़ायम न रखोगे उस वक़्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं। और (ऐ रसूल!) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से भेजी गयी है (उसका) रश्क (हसद) उनमें से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना।
  9. इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिऊ-न वन्नसारा मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व अमि-ल सालिहन फ़ला ख़ौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
    निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाए हैं और जो यहूदी हुए हैं और साबई और ईसाई, (गरज़ कुछ भी हो) जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएगा और अच्छे काम करेगा। उन पर अलबत्ता न तो कोई डर होगा न वह लोग शोकाकुल होंगे।
  10. ल-क़द् अख़ज़्ना मीसा-क़ बनी इस्राई-ल व अरसल्ना इलैहिम् रूसुलन्, कुल्लमा जाअहुम् रसूलुम् बिमा ला तह़्वा अन्फुसुहुम्, फ़रीक़न् कज़्ज़बू व फरीकंय्यक़्तुलून
    हमने बनी इसराईल से दृढ़ वचन ले लिया था और उनके पास बहुत रसूल भी भेजे थे। (इस पर भी) जब उनके पास कोई रसूल उनकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ हुक्म लेकर आया। तो इन (बुरे) लोगों ने किसी को झुठला दिया और किसी को क़त्ल ही कर डाला।
  11. व हसिबू अल्ला तकू-न फ़ित् नतुन् फ़-अमू व सम्मू सुम्-म ताबल्लाहु अलैहिम् सुम्-म अमू व सम्मू कसीरूम्-मिन्हुम्, वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअ्मलून
    और उन्होंने समझा कि कोई आपदा न आएगी; इसलिए वे अंधे और बहरे बन गए। (मगर बावजूद इसके) जब इन लोगों ने तौबा की तो फिर अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली। (मगर) फिर (इस पर भी) उनमें से बहुतेरे अंधे और बहरे बन गए और जो कुछ ये लोग कर रहे हैं अल्लाह तो देखता है।
  12. ल-क़द् क-फरल्लज़ीन क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल् – मसीहुब्नु मर-य-म, व क़ालल्मसीहु या बनी इस्राईल अ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम, इन्नहू मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् हर्रमल्लाहु अलैहिल-जन्न-त व मअ्वाहुन्नारू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
    जो लोग उसके क़ायल हैं कि मरियम के बेटे ईसा मसीह अल्लाह हैं, वह सब काफ़िर हैं। हालाँकि मसीह ने ख़ुद यॅू कह दिया था कि ऐ बनी इसराईल! सिर्फ उसी अल्लाह की इबादत करो जो हमारा और तुम्हारा पालने वाला है।क्योंकि (याद रखो) जिसने अल्लाह का शरीक बनाया उस पर अल्लाह ने जन्नत को हराम कर दिया है। और उसका ठिकाना जहन्नुम है और अत्याचारियों का कोई मददगार नहीं।
  13. ल-क़द क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह सालिसु सलासतिन् • व मा मिन् इलाहिन् इल्ला इलाहुंव्वाहिदुन्, व इल्लम् यन्तहू अम्मा यक़ूलू-न ल-यमस्सन्नल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् अज़ाबुन अलीम
    जो लोग इसके क़ायल हैं कि अल्लाह तीन में का एक है वह यक़ीनन काफ़िर  हो गए। (याद रखो कि) ख़ुदाए अकेले के सिवा कोई पूज्य नहीं और (अल्लाह के बारे में) ये लोग जो कुछ कहते हैं अगर उससे नहीं रुके तो (समझ रखो कि) जो लोग उसमें से (काफ़िर  के) काफ़िर  रह गए। उन पर ज़रूर दुखदायी यातना होगी।
  14. अ-फ़ला यतूबू न इलल्लाहि व यस्तग़्फिरूनहू, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
    तो ये लोग अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते? और अपने (क़सूरों की) माफ़ी क्यों नहीं मागते? हालाँकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
  15. मल्मसीहुब्नु मर्-य-म इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लिहिर्रुसुलु, व उम्मुहू सिद्दीक़तुन्, काना यअ्कुलानित्तआ-म, उन्ज़ुर् कै-फ नुबय्यिनु लहुमुल्-आयाति सुम्मन्ज़ुर् अन्ना युअ्फ़कून
    मरियम के बेटे मसीह तो बस एक रसूल हैं और उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं और उनकी माँ भी (अल्लाह की) एक सच्ची बन्दी थी (और आदमियों की तरह) ये दोनों खाना खाते थे (ऐ रसूल!) ग़ौर तो करो हम अपने एहकाम इनसे कैसा साफ़ साफ़ बयान करते हैं।
  16. क़ुल अ-तअ्बुदून मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लकुम् ज़र्रव् व ला नफ्अन्, वल्लाहु हुवस्समीअुल अलीम
    फिर देखो तो कि (उसपर भी उलटे) ये लोग कहाँ भटके जा रहे हैं। (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि क्या तुम अल्लाह (जैसे समर्थ व शक्तिशाली) को छोड़कर (ऐसी ज़लील) चीज़ की इबादत करते हो जिसको न तो नुक़सान ही का अधिकारी है और न लाभ का। और अल्लाह तो (सबकी) सुनता (और सब कुछ) जानता है।
  17. क़ुल या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् ग़ैरल् -हक़्क़ि व ला तत्तबिअू अह़्वा-अ क़ौमिन् क़द् ज़ल्लू मिन् क़ब्लु व अज़ल्लू कसीरंव्-व ज़ल्लू अन् सवा-इस्सबील*
    ऐ रसूल! तुम कह दो कि ऐ एहले किताब! तुम अपने धर्म में अवैध ज़्यादती न करो और तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो पहले ख़ुद ही कुपथ हो चुके। और (अपने साथ और भी) बहुतेरों को कुपथ कर छोड़ा और संमार्ग से (दूर) भटक गए।
  18. लुअिनल्लज़ी-न क-फरू मिम्-बनी इस्राई-ल अला लिसानि दावू-द व ईसब्-नि मर्-य-म, ज़ालि-क बिमा असौ व कानू यअ्तदून
    बनी इसराईल में से जो लोग काफ़िर थे उन पर दाऊद और मरियम के बेटे ईसा की ज़बानी लानत की गयी। ये (लानत उन पर पड़ी तो सिर्फ) इस वजह से कि (एक तो) उन लोगों ने अवज्ञा की और (फिर हर मामले में) हद से बढ़ जाते थे।
  19. कानू ला य तनाहौ-न अम् मुन्करिन् फ़ अ़लूहु, लबिअ् -स मा कानू यफ्अलून
    और किसी बुरे काम से जिसको उन लोगों ने किया, रोकते नहीं थे, (बल्कि उस पर बावजूद नसीहत अड़े रहते) जो काम ये लोग करते थे क्या ही बुरा था।
  20. तरा कसीरम्-मिन्हुम् य-तवल्लौनल्लज़ी-न क-फरू, लबिअ्-स मा क़द्द-मत् लहुम् अन्फुसुहुम् अन् सख़ितल्लाहु अलैहिम् व फिल-अज़ाबि हुम् ख़ालिदून
    (ऐ रसूल!) तुम उन (यहूदियों) में से अधिकतर को देखोगे कि काफ़िरों से दोस्ती रखते हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है, बहुत बुरा है। (जिसका नतीजा ये है) कि (दुनिया में भी) अल्लाह का उनपर प्रकोप हुआ और (आख़ेरत में भी) हमेशा यातना ही में रहेंगे।

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