- व इज़ा जाऊकुम् कालू आमन्ना व कद्द – खलू बिल्कुफ्रि व हुम् कद् ख़- रजू बिही, वल्लाहु अअ्लमु बिमा कानू यक्तुमून
और (मुसलमानों) जब ये लोग तुम्हारे पास आ जाते हैं तो कहते हैं कि हम तो ईमान लाए हैं हालाँकि वह कुफ़्र ही को साथ लेकर आए और फिर निकले भी तो साथ लिए हुए और जो निफ़ाक़ वह छुपाए हुए थे ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है (61) - व तरा कसीरम् मिन्हुम् युसारिअू – न फिल् इस्मि वल अुदवानि व अक्लिहिमुस्सुह – त, लबिअ् – स मा कानू यअ्मलून
(ऐ रसूल) तुम उनमें से बहुतेरों को देखोगे कि गुनाह और सरकशी और हरामख़ोरी की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं जो काम ये लोग करते थे वह यक़ीनन बहुत बुरा है (62) - लौ ला यन्हाहुमुर्रब्बानिय्यू – न वल् – अह्बारू अन् कौलिहिमुल – इस्- म व अक्लिहिमुस्सुह् त, लबिअ्-स मा कानू यस्नअून
उनको अल्लाह वाले और उलेमा झूठ बोलने और हरामख़ोरी से क्यों नहीं रोकते जो (दरगुज़र) ये लोग करते हैं यक़ीनन बहुत ही बुरी है (63) - व कालतिल – यहूदु यदुल्लाहि मग्लूलतुन्, गुल्लत् ऐदीहिम् व लुअिनू बिमा कालू • बल् यदाहु मब्सूततानि युन्फ़िकु कै – फ़ यशा उ व ल – यज़ीद्न्-न कसीरम् मिन्हुम् मा उन्ज़ि – ल इलै – क मिर्रब्बि – क तुग्यानंव – व कुफ्रन्, व अल्कै ना बैनहुमुल् – अदाव – त वल्ब़ग्ज़ा – अ इला यौमिल् कियामति कुल्लमा औक़दू नारल्-
लिल् – हरबि अत्-फ़-अहल्लाहु व यस्औ – न फिल्अर्ज़ि फ़सादन्, वल्लाहु ला युहिब्बुल् मुफ्सिदीन
और यहूदी कहने लगे कि ख़ुदा का हाथ बॅधा हुआ है (बुख़ील हो गया) उन्हीं के हाथ बांध दिए जाए और उनके (इस) कहने पर (ख़ुदा की) फिटकार बरसे (ख़ुदा का हाथ बॅधने क्यों लगा) बल्कि उसके दोनों हाथ कुशादा हैं जिस तरह चाहता है ख़र्च करता है और जो (किताब) तुम्हारे पास नाजि़ल की गयी है (उनका शक व हसद) उनमें से बहुतेरों को कुफ़्र व सरकशी को और बढ़ा देगा और (गोया) हमने ख़ुद उनके आपस में रोज़े क़यामत तक अदावत और कीने की बुनियाद डाल दी जब ये लोग लड़ाई की आग भड़काते हैं तो ख़ुदा उसको बुझा देता है और रूए ज़मीन में फ़साद फैलाने के लिए दौड़ते फिरते हैं और ख़ुदा फ़सादियों को दोस्त नहीं रखता (64) - व लौ अन् – न अह़्लल – किताब आमनू वत्तकौ ल-कफ्फर ना अन्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-अद्खल्नाहुम् जन्नातिन् नईम
और अगर एहले किताब ईमान लाते और (हमसे) डरते तो हम ज़रूर उनके गुनाहों से दरगुज़र करते और उनको नेअमत व आराम (बेहिशत के बाग़ों में) पहँचा देते (65) - व लौ अन्नहुम् अक़ामुत्तौरा-त वल् इन्जी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् मिर्रब्बिहिम् ल-अ-कलू मिन् फौकिहिम् व मिन् तह़्ति अर्जुलिहिम्, मिन्हुम् उम्मतुम् मुक़्तसि – दतुन्, व कसीरूम् मिन्हुम् सा-अ मा यअ्मलून*
और अगर यह लोग तौरैत और इन्जील और (सहीफ़े) उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाजि़ल किये गए थे (उनके एहकाम को) क़ायम रखते तो ज़रूर (उनके) ऊपर से भी (रिज़क़ बरस पड़ता) और पॉवों के नीचे से भी उबल आता और (ये ख़ूब चैन से) खाते उनमें से कुछ लोग तो एतदाल पर हैं (मगर) उनमें से बहुतेरे जो कुछ करते हैं बुरा ही करते हैं (66) - या अय्युहर्रसूलु बल्लिग् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क व इल्लम् तफ्अल् फ़मा बल्लग्- त रिसाल-तहू, वल्लाहु यअ्सिमु – क मिनन्नासि इन्नल्ला – ह ला यह़्दिल क़ौमल-काफ़िरीन
ऐ रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल किया गया है पहँचा दो और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहँचाया और (तुम डरो नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा ख़ुदा हरगिज़ काफि़रों की क़ौम को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहँचाता (67) - कुल या अह़्लल-किताबि लस्तुम् अला शैइन् हत्ता तुकीमुत्तौरा – त वल् – इन्जी – ल व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम मिर्रब्बिकुम्, व ल – यज़ीदन् -न कसीरम् – मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क ‘ मिर्रब्बि-क तुग्यानंव् – व कुफ्रन् फला तस्-स अलल कौमिल – काफिरीन
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ एहले किताब जब तक तुम तौरेत और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल हुए हैं उनके (एहकाम) को क़ायम न रखोगे उस वक़्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं और (ऐ रसूल) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से भेजी गयी है (उसका) रश्क (हसद) उनमें से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा तुम काफि़रों के गिरोह पर अफ़सोस न करना (68) - इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिऊ-न वन्नसारा मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल आख़िरि व अमि-ल सालिहन फ़ला ख़ौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
इसमें तो शक ही नहीं कि मुसलमान हो या यहूदी हकीमाना ख़्याल के पाबन्द हों ख़्वाह नसरानी (गरज़ कुछ भी हो) जो ख़ुदा और रोज़े क़यामत पर ईमान लाएगा और अच्छे (अच्छे) काम करेगा उन पर अलबत्ता न तो कोई ख़ौफ़ होगा न वह लोग आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (69) - ल – क़द् अख़ज्ना मीसा-क़ बनी इस्राई-ल व अरसल्ना इलैहिम् रूसुलन्, कुल्लमा जाअहुम् रसूलुम् बिमा ला तह़्वा अन्फुसुहुम् फ़रीकन् कज़्ज़बू व फरीकंय्यक्तुलून
हमने बनी इसराईल से एहद व पैमान ले लिया था और उनके पास बहुत रसूल भी भेजे थे (इस पर भी) जब उनके पास कोई रसूल उनकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ हुक्म लेकर आया तो इन (कम्बख़्त) लोगों ने किसी को झुठला दिया और किसी को क़त्ल ही कर डाला (70) - व हसिबू अल्ला तकू-न फ़ित्नतुन् फ़-अमू व सम्मू सुम्-म ताबल्लाहु अलैहिम् सुम्-म अमू व सम्मू कसीरूम् – मिन्हुम् वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअ्मलून
और समझ लिया कि (इसमें हमारे लिए) कोई ख़राबी न होगी बस (गोया) वह लोग (अम्र हक़ से) अंधे और बहरे बन गए (मगर बावजूद इसक) जब इन लोगों ने तौबा की तो फिर ख़ुदा ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली (मगर) फिर (इस पर भी) उनमें से बहुतेरे अंधे और बहरे बन गए और जो कुछ ये लोग कर रहे हैं अल्लाह तो देखता है (71) - ल – कद् क- फरल्लज़ीन कालू इन्नल्ला-ह हुवल् – मसीहुब्नु मर- य-म, व कालल्मसीहु या बनी इस्राईल अ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम, इन्नहू मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-कद् हर्रमल्लाहु अलैहिल-जन्न-त व मअ्वाहुन्नारू, व मा लिज्जालिमी-न मिन् अन्सार
जो लोग उसके क़ायल हैं कि मरियम के बेटे ईसा मसीह ख़ुदा हैं वह सब काफि़र हैं हालाँकि मसीह ने ख़ुद यॅू कह दिया था कि ऐ बनी इसराईल सिर्फ उसी ख़ुदा की इबादत करो जो हमारा और तुम्हारा पालने वाला है क्योंकि (याद रखो) जिसने ख़ुदा का शरीक बनाया उस पर ख़ुदा ने बेहिश्त को हराम कर दिया है और उसका ठिकाना जहन्नुम है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं (72) - ल – क़द क- फरल्लज़ी-न कालू इन्नल्ला – ह सालिसु सलासतिन् • व मा मिन् इलाहिन् इल्ला इलाहुंव्वाहिदुन्, व इल्लम् यन्तहू अम्मा यकूलू – न ल – यमस्सन्नल्लज़ी – न क-फरू मिन्हुम् अज़ाबुन अलीम
जो लोग इसके क़ायल हैं कि ख़ुदा तीन में का (तीसरा) है वह यक़ीनन काफि़र हो गए (याद रखो कि) ख़ुदाए यक्ता के सिवा कोई माबूद नहीं और (ख़ुदा के बारे में) ये लोग जो कुछ बका करते हैं अगर उससे बाज़ न आए तो (समझ रखो कि) जो लोग उसमें से (काफि़र के) काफि़र रह गए उन पर ज़रूर दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल होगा (73) - अ- फ़ला यतूबू न इलल्लाहि व यस्तग्फिरूनहू, वल्लाहु गफूरुर्रहीम
तो ये लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा क्यों नहीं करते और अपने (क़सूरों की) माफ़ी क्यों नहीं मागते हालाँकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (74) - मल्मसीहुब्नु मर-य-म इल्ला रसूलुन् कद् ख़-लत् मिन् कब्लिहिर्रुसुलु, व उम्मुहू सिद्दीकतुन्, काना यअ्कुलानित्तआ – म उन्जुर् कै-फ नुबय्यिनु लहुमुल्-आयाति सुम्मन्जुर् अन्ना युअ्फ़कून
मरियम के बेटे मसीह तो बस एक रसूल हैं और उनके क़ब्ल (और भी) बहुतेरे रसूल गुज़र चुके हैं और उनकी माँ भी (ख़ुदा की) एक सच्ची बन्दी थी (और आदमियों की तरह) ये दोनों (के दोनों भी) खाना खाते थे (ऐ रसूल) ग़ौर तो करो हम अपने एहकाम इनसे कैसा साफ़ साफ़ बयान करते हैं (75) - कुल अ-तअ्बुदून मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लकुम् ज़र्रव व ला नफ्अन्, वल्लाहु हुवस्समीअुल अलीम
फिर देखो तो कि (उसपर भी उलटे) ये लोग कहाँ भटके जा रहे हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम ख़ुदा (जैसे क़ादिर व तवाना) को छोड़कर (ऐसी ज़लील) चीज़ की इबादत करते हो जिसको न तो नुक़सान ही इख़्तेयार है और न नफ़े का और ख़ुदा तो (सबकी) सुनता (और सब कुछ) जानता है (76) - कुल या अह़्लल् – किताब ला तग्लू फ़ी दीनिकुम् गैरल् – हक्कि व ला तत्तबिअू अह़्वा-अ कौमिन् कद् जल्लू मिन् क़ब्लु व अज़ल्लू कसीरंव – व ज़ल्लू अन् सवा – इस्सबील*
ऐ रसूल तुम कह दो कि ऐ एहले किताब तुम अपने दीन में नाहक़ ज़्यादती न करो और न उन लोगों (अपने बुज़ुगों) की नफ़सियानी ख़्वाहिशों पर चलो जो पहले ख़ुद ही गुमराह हो चुके और (अपने साथ और भी) बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा और राहे रास्त से (दूर) भटक गए (77) - लुअिनल्लज़ी-न क-फरू मिम् – बनी इस्राई-ल अला लिसानि दावू – द व ईसब्नि मर्-य-म, ज़ालि – क बिमा असौ व कानू यअ्तदून
बनी इसराईल में से जो लोग काफि़र थे उन पर दाऊद और मरियम के बेटे ईसा की ज़बानी लानत की गयी ये (लानत उन पर पड़ी तो सिर्फ) इस वजह से कि (एक तो) उन लोगों ने नाफ़रमानी की और (फिर हर मामले में) हद से बढ़ जाते थे (78) - कानू ला य तनाहौ-न अम् मुन्करिन् फ़ अ़लूहु, लबिअ् -स मा कानू यफ्अलून
और किसी बुरे काम से जिसको उन लोगों ने किया बाज़ न आते थे (बल्कि उस पर बावजूद नसीहत अड़े रहते) जो काम ये लोग करते थे क्या ही बुरा था (79) - तरा कसीरम् – मिन्हुम् य – तवल्लौनल्लज़ी – न क – फरू, लबिअ् – स मा कद्द – मत् लहुम् अन्फुसुहुम् अन् सख़ितल्लाहु अलैहिम् व फिल – अज़ाबि हुम् ख़ालिदून
(ऐ रसूल) तुम उन (यहूदियों) में से बहुतेरों को देखोगे कि कुफ़्फ़ार से दोस्ती रखते हैं जो सामान पहले से उन लोगों ने ख़ुद अपने वास्ते दुरूस्त किया है किस क़दर बुरा है (जिसका नतीजा ये है) कि (दुनिया में भी) ख़ुदा उन पर गज़बनाक हुआ और (आख़ेरत में भी) हमेशा अज़ाब ही में रहेंगे (80)
Surah Al-Maidah Video
Post Views:
91