09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 5

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. फ़रिहल मुख़ल्लफू न बिमक़् अदिहिम् ख़िला-फ़ रसूलिल्लाहि व करिहू अंय्युज़ाहिदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् फ़ी सबीलिल्लाहि व क़ालू ला तन्फिरू फ़िल्हर्रि, क़ुल नारू जहन्न-म अशद्दु हर्रन्, लौ कानू यफ्क़हून
    (जंगे तबूक़ में) रसूले अल्लाह के पीछे रह जाने वाले अपनी जगह बैठ रहने (और जिहाद में न जाने) से ख़ुश हुए और अपने माल और आपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद करना उनको मकरू मालूम हुआ और कहने लगे (इस) गर्मी में (घर से) न निकलो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जहन्नुम की आग (जिसमें तुम चलोगे उससे कहीं ज़्यादा गर्म है।
  2. फ़ल्यज़्हकू क़लीलंव् वल्यब्कू कसीरन, जज़ाअम् – बिमा कानू यक्सिबून
    अगर वह कुछ समझें जो कुछ वह किया करते थे उसके बदले उन्हें चाहिए कि वह बहुत कम हॅसें और बहुत रोएँ।
  3. फ़-इर्र-ज-अ़कल्लाहु इला ताइ-फ़तिम् मिन्हुम् फ़स्तअ्ज़नू-क लिल्ख़ुरूजि फक़ुल्-लन् तख़्रुजू मअि- य अ-बदंव्-व लन् तुक़ातिलू मअि-य अदुव्वन, इन्नकुम् रज़ीतुम बिल्क़ुअूदि अव्व-ल मर्रतिन् फक़्अुदू मअ़ल् ख़ालिफ़ीन
    तो (ऐ रसूल) अगर अल्लाह तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो।
  4. व ला तुसल्लि अ़ला अ-हदिम् मिन्हुम् मा-त अ-बदंव् – व ला तक़ुम् अला क़ब्रिही, इन्नहुम् क-फरू बिल्लाहि व रसूलिही व मातू व हुम् फ़ासिक़ून
    और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे़ जनाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे़ होना इन लोगों ने यक़ीनन अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए।
  5. व ला तुअ्जिब्-क अम्वालुहुम् व औलादुहुम्, इन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युअ़ज़्ज़ि-बहुम् बिहा फ़िद्दुन्या व तज़्ह- क़ अन्फुसुहुम् व हुम् काफिरून
    और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) मने डाले (क्योकि) अल्लाह तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक़्त भी ये काफि़र (के काफि़र ही) रहें।
  6. व इज़ा उन्ज़िलत् सूरतुन् अन् आमिनू बिल्लाहि व जाहिदू म-अ रसूलिहिस्तअ्ज़-न-क उलुत्तौलि मिन्हुम् व क़ालू ज़र्ना नकुम् मअल् क़ाअिदीन
    और जब कोई सूरा इस बारे में नाजि़ल हुआ कि अल्लाह को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी (घर बैठने वालो के साथ (बैठे) रहें।
  7. रज़ू बिअंय्यकूनू मअल् ख़्वालिफ़ि व तुबि-अ़ अला क़ुलूबिहिम् फ़हुम् ला यफ़्क़हून
    ये इस बात से ख़ुश हैं कि पीछे रह जाने वालों (औरतों, बच्चों, बीमारो के साथ बैठे) रहें और (गोया) उनके दिल।
  8. लाकिनिर्रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अहू जाहदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, व उलाइ-क लहुमुल् – ख़ैरातु व उलाइ-क हुमुल मुफ्लिहून
    पर मोहर कर दी गई तो ये कुछ नहीं समझतें। मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं।
  9. अ-अद्दल्लाहु लहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल् अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, ज़ालिकल् फौज़ुल अज़ीम*
    अल्लाह ने उनके वास्ते (बेहष्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और ये) इसमें हमेशा रहेंगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं।
  10. व जाअल् मुअ़ज़्ज़िरू-न मिनल् अअ्-राबि लियुअ् ज़-न लहुम् व क़-अदल्लज़ी-न क-ज़बुल्ला-ह व रसूलहू, सयुसीबुल्लज़ी-न क-फ़रू मिन्हुम् अ़ज़ाबुन अलीम
    और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोंगों ने कुफ्ऱ एख़्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा।
  11. लै-स अ़लज़्जु-अफ़ा इ वला अलल् मरज़ा वला अलल्लज़ी-न ला यजिदू-न मा युन्फ़िक़ू-न ह-रजुन् इज़ा न-सहू लिल्लाहि व रसूलिही, मा अलल् मुह्सिनी-न मिन् सबीलिन्, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
    (ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग अल्लाह और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  12. वला अ़लल्लज़ी-न इज़ा मा अतौ-क लितह़्मि-लहुम् क़ुल्-त ला अजिदु मा अह़्मिलुकुम् अ़लैहि, तवल्लौ व अअ्युनुहुम् तफ़ीज़ु मिनद्-दम्अिह-ज़नन् अल्ला यजिदू मा युन्फ़िक़ून
    और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस) उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया।
  13. इन्नमस्सबीलु अलल्लज़ी-न यस्तअ्ज़िनून-क व हुम् अग़्निया-उ, रज़ू बिअंय्यकूनू मअ़ल् ख़्वालिफ़ि, व त-बअ़ल्लाहु अला क़ुलूबिहिम् फ़हुम् ला यअ्लमून
    उनकी आँखों से आँसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों,बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और अल्लाह ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते। (पारा 10 समाप्त)

पारा 11 शुरू

  1. यअ्तज़िरू-न इलैकुम् इज़ा र-जअ्तुम् इलैहिम्, क़ुल-ला तअ्तज़िरू लन्नुअ्मि-न लकुम् क़द् नब्ब अनल्लाहु मिन् अख्बारिकुम्, व स-यरल्लाहु अ-म-लकुम् व रसूलुहू सुम्म तुरद्दू-न इला आलिमिल्ग़ैबि वश्शहादति फ़्युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    जब तुम उनके पास (जिहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफिक़ीन) तुमसे (तरह तरह) की माअज़रत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनाओ हम हरगि़ज़ तुम्हारी बात न मानेंगे (क्योंकि) हमे तो अल्लाह ने तुम्हारे हालात से आगाह कर दिया है अनक़ीरब अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारी कारस्तानी को मुलाहज़ा फरमाएगें फिर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वालों (अल्लाह) की हुज़ूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे (ज़र्रा ज़र्रा) बता देगा।
  2. स-यह़्लिफू-न बिल्लाहि लकुम् इज़न्क़लब्तुम् इलैहिम् लितुअ्-रिज़ू अन्हुम्, फ़-अअ्-रिज़ू अन्हुम्, इन्नहुम् रिज्युंव-व मअ्वाहुम् जहन्नमु, जज़ाअम् बिमा कानू यक्सिबून
    जब तुम उनके पास (जिहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएगें ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम उनकी तरफ से मुँह फेर लो बेशक ये लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उसकी जो ये (दुनिया में) किया करते थे।
  3. यह़्लिफू-न लकुम् लितरज़ौ अन्हुम्, फ़-इन् तरज़ौ अ़न्हुम् फ़-इन्नल्ला-ह ला यरज़ा अनिल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन
    तुम्हारे सामने ये लोग क़समें खाते हैं ताकि तुम उनसे राज़ी हो (भी) जाओ तो अल्लाह बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा।
  4. अल्अअ़राबु अशद्दु कुफ्रंव्-व निफाक़ंव् व अज्दरू अल्ला यअ्लमू हुदू-द मा अन्ज़लल्लाहु अला रसूलिही, वल्लाहु अ़लीमुन्, हकीम
    (ये) अरब के गॅवार देहाती कुफ्र व निफाक़ में बड़े सख़्त हैं और इसी क़ाबिल हैं कि जो किताब अल्लाह ने अपने रसूल पर नाजि़ल फरमाई है उसके एहक़ाम न जानें और अल्लाह तो बड़ा दाना हकीम है।
  5. व मिनल्-अअ्-राबि मंय्यत्तख़िज़ु मा युन्फ़िक़ु मग़्र्मंव्-व य-तरब्बसु बिकुमुद् दवाइ-र, अलैहिम् दाइ-रतुस्सौ-इ, वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
    और कुछ गॅवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ अल्लाह की) राह में खर्च करते हैं उसे तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की) गर्दिशों के मुन्तजि़र (इन्तेज़ार में) हैं उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी गर्दिश पड़े और अल्लाह तो सब कुछ सुनता जानता है।
  6. व मिनल-अअ्-राबि मंय्युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व यत्तख़िज़ु मा युन्फ़िक़ु क़ुरूबातिन् अिन्दल्लाहि व स-लवातिर्रसूलि, अला इन्नहा क़ुर- बतुल्लहुम् सयुदख़िलुहुमुल्लाहु फ़ी रह़्मतिही, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम *
    और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो अल्लाह और आखि़रत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते है उसे अल्लाह की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है अल्लाह उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाखि़ल करेगा बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  7. वस्साबिक़ू नल् अव्वलू न मिनल्मुहाजिरी-न वल् अन्सारि वल्लज़ीनत्त-ब अूहुम् बि-इह़्सानिर्- रज़ियल्लाहु अन्हुम् व रज़ू अन्हु व अ-अद्-द लहुम् जन्नातिन् तज्री तह् तहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, ज़ालिकल् फौज़ुल अज़ीम
    और मुहाजिरीन व अन्सार में से (ईमान की तरफ) सबक़त (पहल) करने वाले और वह लोग जिन्होंने नेक नीयती से (कुबूले ईमान में उनका साथ दिया अल्लाह उनसे राज़ी और वह अल्लाह से ख़ुश और उनके वास्ते अल्लाह ने (वह हरे भरे) बाग़ जिन के नीचे नहरें जारी हैं तैयार कर रखे हैं वह हमेशा अब्दआलाबाद (हमेशा) तक उनमें रहेगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं।

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