09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 6

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. व मिम्-मन् हौलकुम् मिनल-अअ्-राबि मुनाफ़िक़ू-न, व मिन् अह़्लिल-मदीनति, म-रदू अलन्निफ़ाक़ि, ला तअ्लमुहुम्, नह्नु नअ्लमुहुम्, सनुअ़ज़्ज़िबुहुम् मर्रतैनि सुम्-म युरद्दू-न इला अ़ज़ाबिन अज़ीम
    और (मुसलमानों) तुम्हारे एतराफ़ (आस पास) के गॅवार देहातियों में से बाज़ मुनाफिक़ (भी) हैं और ख़ुद मदीने के रहने वालों मे से भी (बाज़ मुनाफिक़ हैं) जो निफ़ाक पर अड़ गए हैं (ऐ रसूल) तुम उन को नहीं जानते (मगर) हम उनको (ख़ूब) जानते हैं अनक़रीब हम (दुनिया में) उनकी दोहरी सज़ा करेगें फिर ये लोग (क़यामत में) एक बड़े अज़ाब की तरफ लौटाए जाएगें।
  2. व आखरू-नअ् त-रफू बिज़ुनूबिहिम् ख़-लतू अ़-मलन् सालिहंव्-व आख़-र सय्यिअन्, असल्लाहु अंय्यतू-ब अ़लैहिम्, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
    और कुछ लोग हैं जिन्होंने अपने गुनाहों का (तो) एकरार किया (मगर) उन लोगों ने भले काम को और कुछ बुरे काम को मिला जुला (कर गोलमाल) कर दिया क़रीब है कि अल्लाह उनकी तौबा कु़बूल करे (क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनी बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान हैं।
  3. ख़ुज़् मिन् अम्वालिहिम् स-द-क़तन् तुतह़्हिरूहुम् व तुज़क्कीहिम् बिहा व सल्लि अलैहिम्, इन्-न सलात-क स-कनुल्लहुम्, वल्लाहु समीअुन् अलीम
    (ऐ रसूल) तुम उनके माल की ज़कात लो (और) इसकी बदौलत उनको (गुनाहो से) पाक साफ करों और उनके वास्ते दुआए ख़ैर करो क्योंकि तुम्हारी दुआ इन लोगों के हक़ में इत्मेनान (का बाइस है) और अल्लाह तो (सब कुछ) सुनता (और) जानता है।
  4. अलम् यअ्लमू अन्नल्ला-ह हु-व यक़्बलुत्तौब-त अन् अिबादिही व यअ्ख़ुज़ुस्स-दक़ाति व अन्नल्ला-ह हुवत्-तव्वाबुर्रहीम
    क्या इन लोगों ने इतने भी नहीं जाना यक़ीनन अल्लाहबन्दों की तौबा क़़ुबूल करता है और वही ख़ैरातें (भी) लेता है और इसमें शक नहीं कि वही तौबा का बड़ा कु़बूल करने वाला मेहरबान है।
  5. व क़ुलिअ्मलू फ़-स-यरल्लाहु अ-म-लकुम् व रसूलुहू वल्-मुअ्मिनू-न, व सतुरद्दू-न इला आलिमिल-ग़ैबि वश्शहा दति फ़-युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    और (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग अपने अपने काम किए जाओ अभी तो अल्लाह और उसका रसूल और मोमिनीन तुम्हारे कामों को देखेगें और बहुत जल्द (क़यामत में) ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले (अल्लाह) की तरफ लौटाए जाएगें तब वह जो कुछ भी तुम करते थे तुम्हें बता देगा।
  6. व आख़रू-न मुरजौ-न लिअम्रिल्लाहि इम्मा युअ़ज़्ज़िबुहुम् व इम्मा यतूबु अलैहिम्, वल्लाहु अलीमुन् हकीम
    और कुछ लोग हैं जो हुक्मे अल्लाह के उम्मीदवार किए गए हैं (उसको अख़्तेयार है) ख़्वाह उन पर अज़ाब करे या उन पर मेहरबानी करे और अल्लाह (तो) बड़ा वाकिफकार हिकमत वाला है।
  7. वल्लज़ीनत्त-ख़ज़ू मस्जिदन ज़िरारंव्-व कुफ्रंव् व तफ्रीक़म्-बैनल्मुअ्मिनी-न व इरसादल्-लिमन् हा-रबल्ला-ह व रसूलहू मिन् क़ब्लु, व ल यह़्लिफुन्-न इन् अरद्-ना इल्लल्-हुस्-ना, वल्लाहु यश्हदु इन्नहुम् लकाज़िबून
    और (वह लोग भी मुनाफिक़ हैं) जिन्होने (मुसलमानों के) नुकसान पहुचाने और कुफ्ऱ करने वाले और मोमिनीन के दरम्यिान तफरक़ा (फूट) डालते और उस शख़्स की घात में बैठने के वास्ते मस्जिद बनाकर खड़ी की है जो अल्लाह और उसके रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है कि) ज़रूर क़समें खाएगें कि हमने भलाई के सिवा कुछ और इरादा ही नहीं किया और अल्लाह ख़ुद गवाही देता है।
  8. ला तक़ुम् फ़ीहि अ-बदन्, ल-मस्जिदुन् उस्सि-स अलत्तक़्वा मिन् अव्वलि यौमिन् अ-हक़्क़ु अन् तक़ू-म फ़ीहि, फीहि रिजालुंय्युहिब्बू-न अंय्यत तह़्हरू, वल्लाहु युहिब्बुल मुत्तह़्हिरीन
    ये लोग यक़ीनन झूठे है (ऐ रसूल) तुम इस (मस्जिद) में कभी खड़े भी न होना वह मस्जिद जिसकी बुनियाद अव्वल रोज़ से परहेज़गारी पर रखी गई है वह ज़रूर उसकी ज़्यादा हक़दार है कि तुम उसमें खडे़ होकर (नमाज़ पढ़ो क्योंकि) उसमें वह लोग हैं जो पाक व पाकीज़ा रहने को पसन्द करते हैं और अल्लाह भी पाक व पाकीज़ा रहने वालों को दोस्त रखता है।
  9. अ-फ़-मन् अस्स-स बुन्यानहू अ़ला तक़्वा मिनल्लाहि व रिज़्वानिन् ख़ैरून् अम् मन् अस्स-स बुन्यानहू अला शफा जुरूफ़िन् हारिन् फ़न्हा-र बिही फी नारि जहन्न-म, वल्लाहु ला यह़्दिल कौमज़्-ज़ालिमीन
    क्या जिस शख़्स ने अल्लाह के ख़ौफ और ख़ुशनूदी पर अपनी इमारत की बुनियाद डाली हो वह ज़्यादा अच्छा है या वह शख़्स जिसने अपनी इमारत की बुनियाद इस बोदे किनारे के लब पर रखी हो जिसमें दरार पड़ चुकी हो और अगर वह चाहता हो फिर उसे ले दे के जहन्नुम की आग में फट पडे़ और अल्लाह ज़ालिम लोगों को मंजि़लें मक़सूद तक नहीं पहुचाया करता।
  10. ला यज़ालु बुन्यानु-हुमुल्लज़ी बनौ री-बतन् फ़ी क़ुलूबिहिम् इल्ला अन् त-क़त्त-अ क़ुलूबुहुम्, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम *
    (ये इमारत की) बुनियाद जो उन लोगों ने क़ायम की उसके सबब से उनके दिलो में हमेषा धरपकड़ रहेगी यहाँ तक कि उनके दिलों के परख़चे उड़ जाएँ और अल्लाह तो बड़ा वाकि़फकार हकीम हैं।
  11. इन्नल्लाहश्तरा मिनल्मुअ्मिनी न अन्फु सहुम् व अम्वालहुम् बिअन्-न लहुमुल्जन्न-त, युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि फ़-यक़्तुलू-न व युक़्तलू-न, वअ्दन् अलैहि हक़्क़न् फित्तौराति वल्इन्जीलि वल्क़ुरआनि, व मन् औफ़ा बि-अ़ह़्दिही मिनल्लाहि फ़स्तब्शिरू बिबैअिकुमुल्लज़ी बायअ्तुम् बिही, व ज़ालि-क हुवल् फौज़ुल अज़ीम
    इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह ने मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके लिए बेहष्त है (इसी वजह से) ये लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं तो (कुफ़्फ़ार को) मारते हैं और ख़ुद (भी) मारे जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) अल्लाह पर लाजि़म है और ऐसा पक्का है कि तौरैत और इन्जील और क़ुरान (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने एहद का पूरा करने वाला अल्लाह से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख़्त से जो तुमने अल्लाह से की है खुषियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है।
  12. अत्ता-इबूनल्-आबिदूनल् हामिदूनस् सा-इहूनर् – राकिअूनस्-साजिदूनल् आमिरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि वन्नाहू-न अनिल्मुन्करि वल्हाफ़िज़ू-न लिहुदूदिल्लाहि, व बश्शिरिल् मुअ्मिनीन
    (ये लोग) तौबा करने वाले इबादत गुज़ार (अल्लाह की) हम्दो सना (तारीफ़) करने वाले (उस की राह में) सफर करने वाले रूकूउ करने वाले सजदा करने वाले नेक काम का हुक्म करने वाले और बुरे काम से रोकने वाले और अल्लाह की (मुक़र्रर की हुयी) हदो को निगाह रखने वाले हैं और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन को (बेहिष्त की) ख़ुषख़बरी दे दो।
  13. मा का-न लिन्नबिय्यि वल्लज़ी-न आमनू अंय्यस्तग़्फिरू लिल्मुश्रिकी-न व लौ कानू उली क़ुर्बा मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुम् अन्नहुम् अस्हाबुल्-जहीम
    नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका कि मुशरेकीन जहन्नुमी है तो उसके बाद मुनासिब नहीं कि उनके लिए मग़फिरत की दुआए माँगें अगरचे वह मुशरेकीन उनके क़राबतदार हो (क्यों न) हो।
  14. व मा कानस्तिग़्फ़ारू इब्राही-म लिअबीहि इल्ला अम्- मौअि-दतिंव् व-अ-दहा इय्याहु, फ़-लम्मा तबय्य-न लहू अन्नहू अदुव्वुल्-लिल्लाहि त बर्र-अ मिन्हु, इन्-न इब्राही-म ल-अव्वाहुन् हलीम
    और इबराहीम का अपने बाप के लिए मग़फिरत की दुआ माँगना सिर्फ इस वायदे की वजह से था जो उन्होंने अपने बाप से कर लिया था फिर जब उनको मालूम हो गया कि वह यक़ीनी अल्लाह का दुश्मन है तो उससे बेज़ार हो गए, बेशक इबराहीम यक़ीनन बड़े दर्दमन्द बुर्दबार (सहन करने वाले) थे।
  15. व मा कानल्लाहु लियुज़िल्-ल क़ौमम् बअ्-द इज़् हदाहुम् हत्ता युबय्यि-न लहुम् मा यत्तक़ू-न, इन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
    अल्लाह की ये शान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेशक अल्लाह उन्हें गुमराह कर दे हता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेशक अल्लाह हर चीज़ से (वाकि़फ है)।
  16. इन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युह़्यी व युमीतु, व मा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-वला नसीर
    इसमें तो शक ही नहीं कि सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत अल्लाह ही के लिए ख़ास है वही (जिसे चाहे) जिलाता है और (जिसे चाहे) मारता है और तुम लोगों का अल्लाह के सिवा न कोई सरपरस्त है न मददगार।
  17. ल-क़त्ताबल्लाहु अलन्नबिय्यि वल्मुहाजिरी-न वल् अन्सारिल्लज़ीनत् त-बअूहु फ़ी सा अ़तिल्-अुस्रति मिम्-बअ्दि मा का-द यज़ीग़ु क़ुलूबु फरीक़िम् मिन्हुम् सुम्-म ता-ब अ़लैहिम्, इन्नहू बिहिम् रऊफुर्रहीम
    अलबत्ता अल्लाह ने नबी और उन मुहाजिरीन अन्सार पर बड़ा फज़ल किया जिन्होंने तंगदस्ती के वक़्त रसूल का साथ दिया और वह भी उसके बाद कि क़रीब था कि उनमे से कुछ लोगों के दिल जगमगा जाएँ फिर अल्लाह ने उन पर (भी) फज़ल किया इसमें शक नहीं कि वह उन लोगों पर पड़ा तरस खाने वाला मेहरबान है।
  18. व अलस्-सला-सतिल्लज़ी-न खुल्लिफू, हत्ता इज़ा ज़ाक़त् अ़लैहिमुल्-अर्ज़ु बिमा रहुबत् व ज़ाक़त् अ़लैहिम् अन्फुसुहुम् व ज़न्नू अल्ला मल्ज-अ मिनल्लाहि इल्ला इलैहि, सुम्-म ता-ब अलैहिम् लि-यतूबू, इन्नल्ला-ह हुवत्तव्वाबुर्रहीम *
    और उन यमीमों पर (भी फज़ल किया) जो (जिहाद से पीछे रह गए थे और उन पर सख़्ती की गई) यहाँ तक कि ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के उन पर तंग हो गई और उनकी जानें (तक) उन पर तंग हो गई और उन लोगों ने समझ लिया कि अल्लाह के सिवा और कहीं पनाह की जगह नहीं फिर अल्लाह ने उनको तौबा की तौफीक दी ताकि वह (अल्लाह की तरफ) रूजू करें बेशक अल्लाह ही बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है।
  19. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह व कूनू मअ़स्सादिक़ीन
    ऐ ईमानदारों अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ।
  20. मा का-न लिअह़्लिल-मदीनति व मन् हौ-लहुम् मिनल्-अअ्-राबि अंय्य-तख़ल्लफू अर्रसूलिल्लाहि व ला यर्ग़बू बिअन्फुसिहिम् अन् नफ़्सिही, ज़ालि-क बिअन्नहुम् ला युसीबुहुम् ज़-मउंव्व ला न-सबुंव्व ला मख़्म-सतुन फ़ी सबीलिल्लाहि व ला य-तऊ-न मौति अंय्यग़ीज़ुल्-कुफ्फा-र वला यनालू-न मिन् अदुव्विन्- नैलन् इल्ला कुति-ब लहुम् बिही अ-मलुन् सालिहुन्, इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
    मदीने के रहने वालों और उनके गिर्दोनवा (आस पास) देहातियों को ये जायज़ न था कि रसूल अल्लाह का साथ छोड़ दें और न ये (जायज़ था) कि रसूल की जान से बेपरवा होकर अपनी जानों के बचाने की फ्रिक करें ये हुक्म उसी सब्ब से था कि उन (जिहाद करने वालों) को अल्लाह की रूह में जो तकलीफ़ प्यास की या मेहनत या भूख की षिद्दत की पहुँचती है या ऐसी राह चलते हैं जो कुफ़्फ़ार के ग़ैज़ (ग़ज़ब का बाइस हो या किसी दुश्मन से कुछ ये लोग हासिल करते हैं तो बस उसके ऐवज़ में (उनके नामए अमल में) एक नेक काम लिख दिया जाएगा बेशक अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र (व सवाब) बरबाद नहीं करता है।
  21. व ला युन्फ़िक़ू-न न-फ-क़तन् सग़ी-रतंव्-वला कबी-रतंव्-वला यक़्तअू-न वादियन् इल्ला कुति-ब लहुम् लियज्ज़ि यहुमुल्लाहु अह़्स-न मा कानू यअ्मलून
    और ये लोग (अल्लाह की राह में) थोड़ा या बहुत माल नहीं खर्च करते और किसी मैदान को नहीं क़तआ करते मगर फौरन (उनके नामाए अमल में) उनके नाम लिख दिया जाता है ताकि अल्लाह उनकी कारगुज़ारियों का उन्हें अच्छे से अच्छा बदला अता फरमाए।
  22. व मा कानल्-मुअ्मिनू-न लियन्फ़िरू काफ्फ़-तन्, फ़लौ ला न-फ़-र मिन् कुल्लि फिरक़तिम् मिन्हुम् ताइ-फतुल् लि-य तफ़क़्क़हू फ़िद्दीनि व लियुन्ज़िरू क़ौमहुम् इज़ा र-जअू इलैहिम् लअ़ल्लहुम् यह़्ज़रून*
    और ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आखि़रत से) डराए ताकि ये लोग डरें।
  23. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कातिलुल्लज़ी-न यलूनकुम् मिनल्कुफ्फ़ारि वल्यजिदू फ़ीकुम् गिल्ज़-तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह मअ़ल्मुत्तकीन
    ऐ इमानदारों कुफ्फार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेशुबहा अल्लाह परहेज़गारों के साथ है।
  24. व इज़ा मा उन्ज़िलत् सूरतुन् फ़-मिन्हुम् मंय्यक़ूलु अय्युकुम् जादत्हु हाज़िही ईमानन्, फ़-अम्मल्लज़ी-न आमनू फ़ज़ादत्हुम् ईमानंव्-व हुम् यस्तब्शिरून
    और जब कोई सूरा नाजि़ल किया गया तो उन मुनाफिक़ीन में से (एक दूसरे से) पूछता है कि भला इस सूरे ने तुममें से किसी का ईमान बढ़ा दिया तो जो लोग ईमान ला चुके हैं उनका तो इस सूरे ने ईमान बढ़ा दिया और वह वहा उसकी खुशियाँ मनाते है।
  25. व अम्मल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् म-रज़ुन् फज़ादत्हुम् रिज्सन् इला रिज्सिहिम् व मातू व हुम् काफिरून
    मगर जिन लोगों के दिल में (निफाक़ की) बीमारी है तो उन (पिछली) ख़बासत पर इस सूरो ने एक ख़बासत और बढ़ा दी और ये लोग कुफ्ऱ ही की हालत में मर गए।
  26. अ-वला यरौ-न अन्नहुम् युफ्तनू-न फ़ी कुल्लि आमिम्-मर्र-तन् औ मर्रतैनि सुम्म ला यतूबू-न वला हुम् यज़्ज़क्करून
    क्या वह लोग (इतना भी) नहीं देखते कि हर साल एक मरतबा या दो मरतबा बला में मुबितला किए जाते हैं फिर भी न तो ये लोग तौबा ही करते हैं और न नसीहत ही मानते हैं।
  27. व इज़ा मा उन्ज़िलत् सूरतुन् न-ज़-र बअ्ज़ुहुम् इला बअ्ज़िन्, हल् यराकुम् मिन् अ-हदिन् सुम्मन्स-रफू, स -रफ़ल्लाहु क़ुलूबहुम् बिअन्नहुम् क़ौमुल् ला यफ़्क़हून
    और जब कोई सूरा नाजि़ल किया गया तो उसमें से एक की तरफ एक देखने लगा (और ये कहकर कि) तुम को कोई मुसलमान देखता तो नहीं है फिर (अपने घर) पलट जाते हैं (ये लोग क्या पलटेगें गोया) अल्लाह ने उनके दिलों को पलट दिया है इस सबब से कि ये बिल्कुल नासमझ लोग हैं।
  28. ल-क़द् जा-अकुम् रसूलुम् मिन् अन्फुसिकुम् अज़ीज़ुन अ़लैहि मा अनित्तुम् हरीसुन् अ़लैकुम् बिल्मुअ्मिनी न रऊफुर्रहीम
    लोगों तुम ही में से (हमारा) एक रसूल तुम्हारे पास आ चुका (जिसकी शफक़्क़त (मेहरबानी) की ये हालत है कि) उस पर शाक़ (दुख) है कि तुम तकलीफ उठाओ और उसे तुम्हारी बेहूदी का हौका है इमानदारो पर हद दर्जे शफीक़ मेहरबान हैं।
  29. फ इन् तवल्लौ फ़क़ुल हस्बियल्लाहु, ला इला-ह इल्ला हु-व, अलैहि तवक्कल्तु व हु-व रब्बुल अर्शिल्-अज़ीम*
    ऐ रसूल अगर इस पर भी ये लोग (तुम्हारे हुक्म से) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मेरे लिए अल्लाह काफी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैने उस पर भरोसा रखा है वही अर्श (ऐसे) बुर्जूग (मख़लूका का) मालिक है।

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