20 सूरह ताहा हिंदी में पेज 5

सूरह ताहा हिंदी में | Surat Ta-Ha in Hindi

  1. फ़ – य – ज़रूहा काअ़न् सफ़्सफ़ा
    और ज़मीन को एक चटियल मैदान कर छोड़ेगा।
  2. ला तरा फ़ीहा अि – वजंव् व ला अम्ता
    कि (ऐ शख़्स) न तो तू उसमें मोड़ देखेगा और न ऊँच-नीच।
  3. यौमइजिंय् – यत्तबिअूनद्दाअि-य ला अि – व – ज लहू व ख़-श-अ़तिल् – अस्वातु लिर्रहमानि फ़ला तस्मअु इल्ला हम्सा
    उस दिन लोग एक पुकारने वाले इसराफ़ील की आवाज़ के पीछे (इस तरह सीधे) दौड़ पड़ेगे कि उसमें कुछ भी कज़ी न होगी और आवाज़े उस दिन अल्लाह के सामने (इस तरह) घिघियाएगें कि तू घुनघुनाहट के सिवा और कुछ न सुनेगा।
  4. यौमइज़िल् – ला तन्फ़अुश्शफ़ा- अतु इल्ला मन् अज़ि – न लहुर्रह्मानु व रज़ि – य लहू क़ौला
    उस दिन किसी की सिफ़ारिश काम न आएगी मगर जिसको अल्लाह ने इजाज़त दी हो और उसका बोलना पसन्द करे।
  5. यअ्लमु मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्क़हुम् व ला युहीतू-न बिही अिल्मा
    जो कुछ उन लोगों के सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह जानता है और ये लोग अपने इल्म से उसपर हावी नहीं हो सकते।
  6. व अ़-नतिल्-वुजूहु लिल्हय्यिल्-क़य्यूमि, व क़द्ख़ा -ब मन् ह-म ल जुल्मा
    और (क़यामत में) सारी (खु़दाई के) मुँह जि़न्दा और बाक़ी रहने वाले अल्लाह के सामने झुक जाएँगे और जिसने जु़ल्म का बोझ (अपने सर पर) उठाया वह यक़ीनन नाकाम रहा।
  7. व मंय्य अ्मल् मिनस्सालिहाति व हु-व मुअ् मिनुन् फला यख़ाफु जुल्मंव्-व ला हज़्मा
    और जिसने अच्छे-अच्छे काम किए और वह मोमिन भी है तो उसको न किसी तरह की बेइन्साफ़ी का डर है और न किसी नुक़सान का।
  8. व कज़ालि क अन्ज़ल्लाहु कुरआनन् अ़-रबिय्यंव्-व सर्रफ़्ना फीहि मिनल्-वईदि लअ़ल्लहुम् यत्तकू-न औ युह्दिसु लहुम् ज़िक्रा
    हमने उसको उसी तरह अरबी ज़बान का कु़रान नाजि़ल फ़रमाया और उसमें अज़ाब के तरह-तरह के वायदे बयान किए ताकि ये लोग परहेज़गार बनें या उनके मिज़ाज में इबरत पैदा कर दे।
  9. फ़-तआ़लल्लाहुल मलिकुल्-हक़्कु व ला तअ्जल् बिलकुरआनि मिन् क़ब्लि अंय्युक्ज़ा इलै-क वह़्युहू व कुर्रब्बि जिद्नी अिल्मा
    पस (दो जहाँ का) सच्चा बादशाह अल्लाह बरतर व आला है और (ऐ रसूल) कु़रान के (पढ़ने) में उससे पहले कि तुम पर उसकी “वही” पूरी कर दी जाए जल्दी न करो और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे इल्म को और ज़्यादा फ़रमा।
  10. वल – क़द् अहिद्ना इला आद-म मिन् क़ब्लु फ़-नसि – य व लम् नजिद् लहू अ़ज़्मा*  
    और हमने आदम से पहले ही एहद ले लिया था कि उस दरख़्त के पास न जाना तो आदम ने उसे तर्क कर दिया और हमने उनमें सबात व इसतेक़लाल न पाया।
  11. व इज् कुल्ना लिल्मलाइ कतिस्जुदू लिआद-म फ़-स-जदू इल्ला इब्ली-स, अबा
    और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया मगर शैतान ने इन्कार किया।
  12. फ़कुल्ना या आदमु इन् – न हाज़ा अ़दुव्वुल- ल- क व लिज़ौजि-क फ़ला युख़्रिजन्नकुमा मिनल् – जन्नति फ़-तश्का
    तो मैंने (आदम से कहा) कि ऐ आदम ये यक़ीनी तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुशमन है तो कहीं तुम दोनों को बेहिश्त से निकलवा न छोड़े तो तुम (दुनिया की) मुसीबत में फँस जाओ।
  13. इन् – न ल – क अल्ला तजू – अ़ फ़ीहा व ला तअ्-रा
    कुछ शक नहीं कि (बेहिश्त में) तुम्हें ये आराम है कि न तो तुम यहाँ भूके रहोगे और न नँगे।
  14. व अन्न – क ला तज़्मउ फ़ीहा व ला तज़्हा
    और न यहाँ प्यासे रहोगे और न धूप खाओगे।
  15. फ़- वस्व – स इलैहिश्शैतानु का – ल या आदमु हल अदुल्लु – क अ़ला श- ज-रतिल् – खुल्दि व मुल्किल् – ला यब्ला
    तो शैतान ने उनके दिल में वसवसा डाला (और) कहा ऐ आदम क्या मैं तम्हें (हमेशगी की जि़न्दगी) का दरख़्त और वह सल्तनत जो कभी ज़ाएल न हो बता दूँ।
  16. फ़ अ – कला मिन्हा फ़- बदत् लहुमा सौआतुहुमा व तफ़िक़ा यख़्सिफ़ानि अ़लैहिमा मिंव्व – रकिल्- जन्नति, व अ़सा आदमु रब्बहू फ़-ग़वा
    चुनान्चे दोनों मियाँ बीबी ने उसी में से कुछ खाया तो उनका आगा पीछा उनपर ज़ाहिर हो गया और दोनों बेहिश्त के (दरख़्त के) पत्ते अपने आगे पीछे पर चिपकाने लगे और आदम ने अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी की तो (राहे सवाब से) बेराह हो गए।
  17. सुम्मज्तबाहु रब्बहू फ़ता-ब अ़लैहि व हदा
    इसके बाद उनके परवरदिगार ने बर गुज़ीदा किया फिर उनकी तौबा कु़बूल की और उनकी हिदायत की।
  18. कालम्बिता मिन्हा जमीअ़म् बअ्जुकुम् लिबअ्ज़िन् अ़दुव्वुन् फ़- इम्मा यअ्ति – यन्नकुम् मिन्नी हुदन् फ़ – मनित्त – ब अ हुदा-य फ़ला यजिल्लु व ला यश्का
    फरमाया कि तुम दोनों बेहिश्त से नीचे उतर जाओ तुम में से एक का एक दुशमन है फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ से हिदायत पहुँचे तो (तुम) उसकी पैरवी करना क्योंकि जो शख़्स मेरी हिदायत पर चलेगा न तो गुमराह होगा और न मुसीबत में फँसेगा।
  19. व मन् अअ्र – ज़ अ़न् ज़िक्री फ़ इन् – न लहू मई – शतन् ज़न्कंव् व नह्शुरूहू यौमल्-कियामति अअ्मा
    और जिस शख़्स ने मेरी याद से मुँह फेरा तो उसकी जि़न्दगी बहुत तंगी में बसर होगी और हम उसको क़यामत के दिन अंधा बना के उठाएँगे।
  20. व मन् अअ्र-ज़ अ़न् ज़िक्री फ़ इन्-न लहू मई-शतन् ज़न्कंव् व नह्शुरूहू यौमल्-कियामति अअ्मा
    वह कहेगा इलाही मैं तो (दुनिया में) आँख वाला था तूने मुझे अन्धा करके क्यों उठाया।
  21. का-ल कज़ालि-क अतत् क आयातुना फ़-नसीतहा व कज़ालिकल्-यौ-म तुन्सा
    अल्लाह फरमाएगा ऐसा ही (होना चाहिए) हमारी आयतें भी तो तेरे पास आई तो तू उन्हें भुला बैठा और इसी तरह आज तू भी भूला दिया जाएगा।
  22. व कज़ालि-क नज्ज़ी मन् अस्-र-फ़ व लम् युअ्मिम् – बिआयाति रब्बिही, व ल-अ़ज़ाबुल आख़िरति अशद्दु व अब्का
    और जिसने (हद से)तजावुज़ किया और अपने परवरदिगार की आयतों पर इमान न लाया उसको ऐसी ही बदला देगें और आखि़रत का अज़ाब तो यक़ीनी बहुत सख़्त और बहुत देर पा है।
  23. अ – फलम् यह्दि लहुम् कम् अह़्लक्ना क़ब्लहुम् मिनल् – कुरूनि यम्शू – न फ़ी मसाकिनिहिम्, इन् – न फ़ी ज़ालि- क लआयातिल् लिउलिन्नुहा *
    तो क्या उन (एहले मक्का) को उस (अल्लाह) ने ये नहीं बता दिया था कि हमने उनके पहले कितने लोगों को हलाक कर डाला जिनके घरों में ये लोग चलते फिरते हैं इसमें शक नहीं कि उसमें अक़्लमंदों के लिए (कु़दरते अल्लाह की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं।
  24. व लौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्-रब्बि-क लका-न लिज़ामंव्व अ-जलुम्-मुसम्मा
    और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से पहले ही एक वायदा और अज़ाब का) एक वक़्त मुअय्यन न होता तो (उनकी हरकतों से) फ़िरऔन पर अज़ाब का आना लाज़मी बात थी।
  25. फ़स्बिर् अ़ला मा यकूलू-न व सब्बिह् बि-हमिद रब्बि – क कब्-ल तुलूअिश्शम्सि व कब्-ल गुरूबिहा व मिन् आनाइल्लैलि फ़-सब्बिह् व अतराफन्नहारि लअ़ल्ल-क तरज़ा
    (ऐ रसूल) जो कुछ ये कुफ़्फ़ार बका करते हैं तुम उस पर सब्र करो और आफ़ताब निकलने के क़ब्ल और उसके ग़ुरूब होने के क़ब्ल अपने परवरदिगार की हम्दोसना के साथ तसबीह किया करो और कुछ रात के वक़्तों में और दिन के किनारों में तस्बीह करो ताकि तुम निहाल हो जाओ।
  26. व ला तमुद्दन्-न ऐनै-क इला मा मत्तअ्ना बिही अज़्वाजम् मिन्हुम् ज़ह र-तल् हयातिद्दुन्या लि-नफ्ति नहुम् फ़ीहि, व रिज़्कु रब्बि-क ख़ैरूंव्-व अब्का
    और (ऐ रसूल) जो उनमें से कुछ लोगों को दुनिया की इस ज़रा सी जि़न्दगी की रौनक़ से निहाल कर दिया है ताकि हम उनको उसमें आज़माएँ तुम अपनी नज़रें उधर न बढ़ाओ और (इससे) तुम्हारे परवरदिगार की रोज़ी (सवाब) कहीं बेहतर और ज़्यादा पाएदार है।
  27. वअमुर् अह़्ल-क बिस्सलाति वस्तबिर् अ़लैहा, ला नस् अलु-क रिज़्क़न्, नह्नु नरज़ुकु-क, वल्आ़कि बतु लित्तक़्वा
    और अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म दो और तुम खु़द भी उसके पाबन्द रहो हम तुम से रोज़ी तो तलब करते नहीं (बल्कि) हम तो खु़द तुमको रोज़ी देते हैं और परहेज़गारी ही का तो अन्जाम बखै़र है।
  28. वअमुर् अह़्ल-क बिस्सलाति वस्तबिर् अ़लैहा, ला नस् अलु – क रिज़्क़न्, नह्नु नरज़ुकु-क, वल्आ़कि बतु लित्तक़्वा
    और (एहले मक्का) कहते हैं कि अपने परवरदिगार की तरफ से हमारे पास कोई मौजिज़ा हमारी मर्ज़ी के मुवाफिक़ क्यों नहीं लाते तो क्या जो (पेशीन गोइयाँ) अगली किताबों (तौरेत, इन्जील) में (इसकी) गवाह हैं वह भी उनके पास नहीं पहुँची।
  29. व लौ अन्ना अह़्लक्नाहुम् बि-अ़ज़ाबिम् मिन् क़ब्लिही लकालू रब्बना लौ ला अर्सल्-त इलैना रसूलन् फ़-नत्तबि-अ़ आयाति-क मिन् क़ब्लि अन् नज़िल-ल व नख़्ज़ा
    और अगर हम उनको इस रसूल से पहले अज़ाब से हलाक कर डालते तो ज़रूर कहते कि ऐ हमारे पालने वाले तूने हमारे पास (अपना) रसूल क्यों न भेजा तो हम अपने ज़लील व रूसवा होने से पहले तेरी आयतों की पैरवी ज़रूर करते।
  30. कुल कुल्लुम् मु-तरब्बिसुन फ़-तरब्बसू फ़ सतअ्लमू-न मन् अस्हाबुस्-सिरातिस्-सविय्यि व मनिह्तदा *
    रसूल तुम कह दो कि हर शख़्स (अपने अंजाम कार का) मुन्तिज़र है तो तुम भी इन्तिज़ार करो फिर तो तुम्हें बहुत जल्द मालूम हो जाएगा कि सीधी राह वाले कौन हैं (और कज़ी पर कौन हैं) हिदायत याफ़ता कौन है और गुमराह कौन है। (पारा 16 समाप्त)

Surah Ta-Ha Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!