- अल्लज़ीनत्त – ख़जू दीनहुम् लह़्वंव् – व लअिबंव – व ग़र्रत्हुमुल् – हयातुद्दुन्या फ़ल्यौ-म नन्साहुम् कमा नसू लिका-अ यौमिहिम् हाज़ा व मा कानू बिआयातिना यज्हदून
जिन लोगों ने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया था और दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी ने उनको फरेब दिया था तो हम भी आज (क़यामत में) उन्हें (क़सदन) भूल जाएगें(51) - व ल – कद् जिअ्नाहुम् बिकिताबिन् फ़स्सल्नाहु अ़ला अिल्मिन् हुदंव् -व रह़्मतल्-लिकौमिंय्-युअ्मिनून
जिस तरह यह लोग (हमारी) आज की हुज़ूरी को भूलें बैठे थे और हमारी आयतों से इन्कार करते थे हालांकि हमने उनके पास (रसूल की मारफत किताब भी भेज दी है) (52) - हल् यन्जुरू -न इल्ला तअ्वी -लहू, यौ-म यअ्ती तअ्वीलुहू यकूलुल्लज़ी – न नसूहु मिन् कब्लु कद् जाअत् रूसुलु रब्बिना बिल्हक्कि फ़हल् – लना मिन् शु-फ़आ-अ फ़यश्फ़अू लना औ नुरद्दू फ़नअ्-म-ल गैरल्लज़ी कुन्ना नअ् – मलु, क़द् खसिरू अन्फु-सहुम् व जल्-ल अन्हुम् मा कानू यफ़्तरून *
जिसे हर तरह समझ बूझ के तफसीलदार बयान कर दिया है (और वह) ईमानदार लोगों के लिए हिदायत और रहमत है क्या ये लोग बस सिर्फ अन्जाम (क़यामत ही) के मुन्तजि़र है (हालांकि) जिस दिन उसके अन्जाम का (वक़्त) आ जाएगा तो जो लोग उसके पहले भूले बैठे थे (बेसाख़्ता) बोल उठेगें कि बेशक हमारे परवरदिगार के सब रसूल हक़ लेकर आये थे तो क्या उस वक़्त हमारी भी सिफारिश करने वाले हैं जो हमारी सिफारिष करें या हम फिर (दुनिया में) लौटाएं जाएं तो जो जो काम हम करते थे उसको छोड़कर दूसरें काम करें (53) - इन् -न रब्बकुमुल्लाहुल्लज़ी ख-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल् -अर्शि, युग्शिल्लैलन्नहा-र यत्लुबुहू हसीसंव् वश्शम्-स वल्क़-म-र वन्नुजू-म मुस्ख़्ख़रातिम्-बिअग्रिही, अला लहुल-ख़ल्कु वल्अम्रू, तबा-रकल्लाहु रब्बुल आलमीन
बेशक उन लोगों ने अपना सख़्त घाटा किया और जो इफ़तेरा परदाजि़या किया करते थे वह सब गायब़ (ग़ल्ला) हो गयीं बेशक तुम्हारा परवरदिगार ख़ुदा ही है जिसके (सिर्फ) 6 दिनों में आसमान और ज़मीन को पैदा किया फिर अर्श के बनाने पर आमादा हुआ वही रात को दिन का लिबास पहनाता है तो (गोया) रात दिन को पीछे पीछे तेज़ी से ढूंढती फिरती है और उसी ने आफ़ताब और माहताब और सितारों को पैदा किया कि ये सब के सब उसी के हुक्म के ताबेदार हैं (54) - उद्अू रब्बकुम् त-ज़र्रूअंव् -व खुफ़्य -तन्, इन्नहू ला युहिब्बुल मुअ्तदीन
देखो हुकूमत और पैदा करना बस ख़ास उसी के लिए है वह ख़ुदा जो सारे जहाँन का परवरदिगार बरक़त वाला है (55) - व ला तुफ़्सीदू फ़िल्अर्ज़ि बअ्-द इस्लाहिहा वद्अूहु ख़ौफ़ूंव्-व त मअ़न्, इन्-न रह़्मतल्लाहि क़रीबुम् मिनल मुह़्सिनीन
(लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके – चुपके दुआ करो, वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में असलाह के बाद फसाद न करते फिरो और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के ख़ुदा से दुआ मांगो (56) - व हुवल्लज़ी युर्सिलुर्रिया-ह बुश्रम् बै-न यदै रह़्मतिही, हत्ता इज़ा अक़ल्लत् सहाबन् सिक़ालन् सुक्नाहु लि-ब-लदिम् मय्यितिन् फ़- अन्ज़ल्ना बिहिल्-मा-अ फ़अखरज्ना बिही मिन् कुल्लिस्स – मराति, कज़ालि-क नुख़रिजुल्मौता लअ़ल्लकुम् तज़क्करून
(क्योंकि) नेकी करने वालों से ख़ुदा की रहमत यक़ीनन क़रीब है और वही तो (वह) ख़ुदा है जो अपनी रहमत (अब्र) से पहले खुशखबरी देने वाली हवाओ को भेजता है यहाँ तक कि जब हवाएं (पानी से भरे) बोझल बादलों के ले उड़े तो हम उनको किसी शहर की की तरफ (जो पानी का नायाबी (कमी) से गोया) मर चुका था हॅका दिया फिर हमने उससे पानी बरसाया, फिर हमने उससे हर तरह के फल ज़मीन से निकाले (57) - वल्ब – लदुत्तय्यिबु यखरूजु नबातुहू बि – इज्नि रब्बिही वल्लज़ी ख़बु – स ला यख्रुजु इल्ला नकिदन्, कज़ालि – क नुसर्रिफुल – आयाति लिकौमिंय्यश्कुरून *
हम यूही (क़यामत के दिन ज़मीन से) मुर्दों को निकालेंगें ताकि तुम लोग नसीहत व इबरत हासिल करो और उम्दा ज़मीन उसके परवरदिगार के हुक्म से उस सब्ज़ा (अच्छा ही) है और जो ज़मीन बड़ी है उसकी पैदावार ख़राब ही होती है (58) - ल-कद् अरसल्ना नूहन् इला कौमिही फ़का-ल या-कौमिअ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् गैरूहू, इन्नी अख़ाफु अ़लैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिन् अ़ज़ीम
हम यू अपनी आयतों को उलेटफेर कर शुक्रग़ुजार लोगों के वास्ते बयान करते हैं बेशक हमने नूह को उनकी क़ौम के पास (रसूल बनाकर) भेजा तो उन्होनें (लोगों से ) कहाकि ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की ही इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है और मैं तुम्हारी निस्बत (क़यामत जैसे) बड़े ख़ौफनाक दिन के अज़ाब से डरता हूँ (59) - कालल्म-लउ मिन् कौमिही इन्ना ल – नरा – क फी ज़लालिम् – मुबीन
तो उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने कहा हम तो यक़ीनन देखते हैं कि तुम खुल्लम खुल्ला गुमराही में (पड़े) हो (60) - का – ल या कौमि लै – स बी ज़लालतुंव व लाकिन्नी रसूलुम् मिर्रब्बिल् – आलमीन
तब नूह ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम मुझ में गुमराही (वैग़रह) तो कुछ नहीं बल्कि मैं तो परवरदिगारे आलम की तरफ से रसूल हूँ (61) - उबल्लिगुकुम् रिसालाति रब्बी व अन्सहु लकुम् व अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
तुम तक अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुचाएं देता हूँ और तुम्हारे लिए तुम्हारी ख़ैर ख़्वाही करता हूँ और ख़ुदा की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते (62) - अ-व अ़जिब्तुम् अन् जा-अकुम् ज़िक्रुम मिर्रब्बिकुम् अ़ला रजुलिम् – मिन्कुम् लियुन्ज़ि – रकुम् व लि – तत्तकू व लअ़ल्लकुम् तुर्हमून
क्या तुम्हें उस बात पर ताअज्जुब है कि तुम्हारे पास तुम्ही में से एक मर्द (आदमी) के ज़रिए से तुम्हारे परवरदिगार का जि़क्र (हुक्म) आया है ताकि वह तुम्हें (अज़ाब से) डराए और ताकि तुम परहेज़गार बनों और ताकि तुम पर रहम किया जाए (63) - फ़- कज्जबूहु फ़-अन्जैनाहु वल्लज़ी-न म-अहू फिल्फुल्कि व अग्रक्नल्लज़ी – न कज़्ज़बू बिआयातिना, इन्नहुम् कानू कौमन् अ़मीन *
इस पर भी लोगों ने उनकों झुठला दिया तब हमने उनको और जो लोग उनके साथ कष्ती में थे बचा लिया और बाक़ी जितने लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था सबको डुबो मारा ये सब के सब यक़ीनन अन्धे लोग थे (64) - व इला आदिन अख़ाहुम हूदन्, का-ल या कौमिअ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् गैरूहू, अ-फला तत्तकून
और (हमने) क़ौम आद की तरफ उनके भाई हूद को (रसूल बनाकर भेजा) तो उन्होनें लोगों से कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम (ख़ुदा से) डरते नहीं हो (65) - कालल् -म-लउल्लज़ी-न क-फरू मिन् कौमिही इन्ना ल – नरा – क – फ़ी सफ़ाहतिंव – व इन्ना ल – नजुन्नु – क मिनल् – काज़िबीन
(तो) उनकी क़ौम के चन्द सरदार जो काफिर थे कहने लगे हम तो बेशक तुमको हिमाक़त में (मुब्तिला) देखते हैं और हम यक़ीनी तुम को झूठा समझते हैं (66) - का-ल या कौमि लै-स बी सफ़ाहतुंव-व लाकिन्नी रसूलुम् मिर्रब्बिल-आलमीन
हूद ने कहा ऐ मेरी क़ौम मुझमें में तो हिमाक़त की कोई बात नहीं बल्कि मैं तो परवरदिगार आलम का रसूल हूँ (67) - उबल्लिगुकुम् रिसालाति रब्बी व अ-न लकुम् नासिहुन् अमीन
मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार के पैग़ामात पहुचाये देता हूँ और मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैरख़्वाह हूँ (68) - अ-व अ़जिब्तुम् अन् जा-अकुम् ज़िक्रुम् – मिर्रब्बिकुम् अला रजुलिम् – मिन्कुम् लियुन्ज़ि – रकुम्, वज्कुरू इज् ज -अ -लकुम् खु-लफा-अ मिम् बअ्दि कौमि नूहिंव् -व ज़ादकुम् फिल्ख़ल्कि बस्त-तन् फज़्कुरू आला-अल्लाहि लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून
क्या तुम्हें इस पर ताअज्जुब है कि तुम्हारे परवरदिगार का हुक्म तुम्हारे पास तुम्ही में एक मर्द (आदमी) के ज़रिए से (आया) कि तुम्हें (अजा़ब से) डराए और (वह वक़्त) याद करो जब उसने तुमको क़ौम नूह के बाद ख़लीफा (व जानषीन) बनाया और तुम्हारी खि़लाफ़त में भी बहुत ज़्यादती कर दी तो ख़ुदा की नेअमतों को याद करो ताकि तुम दिली मुरादे पाओ (69) - कालू अजिअ्तना लिनअ्बुदल्ला-ह वह्दहू व न-ज़-र मा का-न यअ्बुदु आबाउना फअ्तिना बिमा तअिदुना इन् कुन्-त मिनस् – सादिक़ीन
तो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमारे पासइसलिए आए हो कि सिर्फ ख़़ुदा की तो इबादत करें और जिनको हमारे बाप दादा पूजते चले आए छोड़ बैठें पस अगर तुम सच्चे हो तो जिससे तुम हमको डराते हो हमारे पास लाओ (70) - का-ल क़द् व-क-अ अलैकुम् मिर्रब्बिकुम् रिज्सुंव्-व ग़-ज़बुन् अतुजादिलू – ननी फी अस्माइन् सम्मैतुमूहा अन्तुम् व आबाउकुम् मा नज्जलल्लाहु बिहा मिन् सुल्तानिन्, फ़न्तज़िरू इन्नी म-अ़कुम् मिनल मुन्तज़िरीन
हूद ने जवाब दिया (कि बस समझ लो) कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर अज़ाब और ग़ज़ब नाजि़ल हो चुका क्या तुम मुझसे चन्द (बुतो के फर्जी) नामों के बारे में झगड़ते हो जिनको तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने (ख़्वाहमख़्वाह) गढ़ लिए हैं हालाकि ख़ुदा ने उनके लिए कोई सनद नहीं नाजि़ल की पस तुम ( अज़ाबे ख़़ुदा का) इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ मुन्तिज़र हूँ (71) - फ़-अन्जैनाहु वल्लज़ी-न म-अ़हू बिरह़्मतिम्-मिन्ना व क़तअ्ना दाबिरल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना व मा कानू मुअ्मिनीन *
आखि़र हमने उनको और जो लोग उनके साथ थे उनको अपनी रहमत से नजात दी और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था हमने उनकी जड़ काट दी और वह लोग ईमान लाने वाले थे भी नहीं (72) - व इला समू -द अख़ाहुम् सालिहन् • का-ल या कौमिअ्बुदुल्ला – ह मा लकुम मिन् इलाहिन् गैरूहू, कद् जाअत्कुम् बय्यि-नतुम् मिर्रब्बिकुम्, हाज़िही नाकतुल्लाहि लकुम् आ -यतन् फ़ -ज़रूहा तअ्कुल् फी अरज़िल्लाहि व ला तमस्सूहा बिसूइन् फ़ -यअ्खु – जकुम् अजाबुन् अलीम
और (हमने क़ौम) समूद की तरफ उनके भाई सालेह को रसूल बनाकर भेजा तो उन्होनें (उन लोगों से कहा) ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो और उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं है तुम्हारे पास तो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वाज़ेए और रौषन दलील आ चुकी है ये ख़़ुदा की भेजी हुयी ऊँटनी तुम्हारे वास्ते एक मौजिज़ा है तो तुम लोग उसको छोड़ दो कि ख़़ुदा की ज़मीन में जहाँ चाहे चरती फिरे और उसे कोई तकलीफ़ ना पहुचाओ वरना तुम दर्दनाक अज़ाब में गिरफ़्तार हो जाआगे (73) - वज्कुरू इज् ज- अ-लकुम् खु-लफा-अ मिम् बअ्दि आदिंव् – व बव्व – अकुम् फ़िल्अर्जि तत्तखिजू – न मिन् सुहूलिहा कुसूरंव – व तन्हितूनल जिबा – ल बुयूतन् फ़ज्कुरू आलाअल्लाहि व ला तअ्सौ फिल्अर्जि मुफ्सिदीन
और वह वक़्त याद करो जब उसने तुमको क़ौम आद के बाद (ज़मीन में) ख़लीफा (व जानशीन) बनाया और तुम्हें ज़मीन में इस तरह बसाया कि तुम हमवार व नरम ज़मीन में (बड़े-बड़े) महल उठाते हो और पहाड़ों को तराश के घर बनाते हो तो ख़ुदा की नेअमतों को याद करो और रूए ज़मीन में फसाद न करते फिरो(74) - कालल् -म -लउल्लज़ीनस्तक्बरू मिन् कौमिही लिल्लज़ीनस् – तुज्अिफू लिमन् आम-न मिन्हुम् अ-तअ्लमू-न अन्-न सालिहम् मुर्सलुम् – मिर्रब्बिही, कालू इन्ना बिमा उर्सि-ल बिही मुअ्मिनून
तो उसकी क़ौम के बड़े बड़े लोगों ने बेचारें ग़रीबों से उनमें से जो ईमान लाए थे कहा क्या तुम्हें मालूम है कि सालेह (हक़ीकतन) अपने परवरदिगार के सच्चे रसूल हैं – उन बेचारों ने जवाब दिया कि जिन बातों का वह पैग़ाम लाए हैं हमारा तो उस पर ईमान है (75)
Surah Al-Araf Video
Post Views:
79