- व ला सदीकिन् हमीम
और न कोई दिलबन्द दोस्त हैं (101) - फलौ अन् – न लना कर्र तन् फ-नकू-न मिनल्-मुअ्मिनीन
तो काश हमें अब दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रुर) इमान वालों से होते (102) - इन् – न फ़ी ज़ालि क लआ-यतन्, व मा का-न अक्सरुहुम् मुअ्मिनीन
इबराहीम के इस किस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें से अक्सर इमान लाने वाले थे भी नहीं (103) - व इन्-न रब्ब-क लहुवल अ़ज़ीजुर्रहीम *
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है (104) - कज़्ज़बत् क़ौमु नूहि – निल् – मुर्सलीन
(यूँ ही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरो को झुठलाया (105) - इज् का – ल लहुम् अखूहुम् नूहुन् अला तत्तकून
कि जब उनसे उन के भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मै तो तुम्हारा यक़ीनी अमानत दार पैग़म्बर हूँ (106) - इन्नी लकुम् रसूलुन् अमीन
तुम खु़दा से डरो और मेरी इताअत करो (107) - फ़त्तकुल्ला – ह व अतीअून
और मैं इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ उजरत तो माँगता नहीं (108) - व मा अस्अलुकुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन् इन् अज्रि-य इल्ला अ़ला रब्बिल्-आ़लमीन
मेरी उजरत तो बस सारे जहाँ के पालने वाले ख़ुदा पर है (109) - फत्तकुल्ला – ह व अतीअून
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो वह लोग बोले जब कमीनो मज़दूरों वग़ैरह ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है (110) - काल अनुअ्मिनु ल क वत्त-ब अ़कल् अर् ज़लून
तो हम तुम पर क्या इमान लाए (111) - का – ल व मा ज़िल्मी बिमा कानू यअ्मलून
नूह ने कहा ये लोग जो कुछ करते थे मुझे क्या ख़बर (और क्या ग़रज़) (112) - इन् हिसाबुहुम् इल्ला अ़ला रब्बी लौ तश्अुरून
इन लोगों का हिसाब तो मेरे परवरदिगार के जि़म्मे है (113) - व मा अ-न बितारिदिल्-मुअ्मिनीन
काश तुम (इतनी) समझ रखते और मै तो इमानदारों को अपने पास से निकालने वाला नहीं (114) - इन् अ – न इल्ला नज़ीरूम् – मुबीन
मै तो सिर्फ़ (अज़ाबे ख़ुदा से) साफ़ साफ़ डराने वाला हूँ (115) - कालू ल – इल्लम् तन्तहि या नूहु ल-तकूनन् – न मिनल्- मरजूमीन
वह लोग कहने लगे ऐ नूह अगर तुम अपनी हरकत से बाज़ न आओगे तो ज़रुर संगसार कर दिए जाओगे (116) - का – ल रब्बि इन् – न क़ौमी कज्ज़बून
नूह ने अर्ज़की परवरदिगार मेरी क़ौम ने यक़ीनन मुझे झुठलाया (117) - फ़फ़्तह् बैनी व बैनहुम् फ़त्हंव् – व नज्जिनी व मम् – मअि – य मिनल्- मुअ्मिनीन
तो अब तू मेरे और इन लोगों के दरम्यिान एक क़तई फैसला कर दे और मुझे और जो मोमिनीन मेरे साथ हें उनको नजात दे (118) - फ़- अन्जैनाहु व मम्-म-अ़हू फ़िल्फुल्किल् मश्हून
ग़रज़ हमने नूह और उनके साथियों को जो भरी हुयी कश्ती में थे नजात दी (119) - सुम्म अग्ररक़्ना बअ्दुल् – बाक़ीन
फिर उसके बाद हमने बाक़ी लोगों को ग़रख़ कर दिया (120) - इन् – न फ़ी ज़ालि क लआ-यतन् व मा का-न अक्सरुहुम् – मुअ्मिनीन
बेशक इसमे भी यक़ीनन बड़ी इबरत है और उनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (121) - व इन् – न रब्ब – क लहुवल अ़ज़ीजुर्रहीम *
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है (122) - कज़्ज़ – बत् आ़दु – निल् मुर्सलीन
(इसी तरह क़ौम) आद ने पैग़म्बरों को झुठलाया (123) - इज् का – ल लहुम् अखूहुम् हूदुन् अला तत्तकून
जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नही डरते (124) - इन्नी लकुम् रसूलुन् अमीन
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ (125)
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