- कज़्ज़ – ब अस्हाबुल – ऐ – कतिल् मुर्सलीन
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया (176) - इज् का – ल लहुम् शुऐबुन् अला तत्तकून
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़़ुदा से) क्यों नहीं डरते (177) - इन्नी लकुम् रसूलुन् अमीन
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ (178) - फत्तकुल्ला – ह व अतीअून
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (179) - व मा अस् अलुकुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन् इन् अज्रि – य इल्ला अ़ला रब्बिल्-आ़लमीन
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के जि़म्मे है (180) - औ फुल्कै – ल व ला तकूनू मिनल्- मुख्सिरीन
तुम (जब कोई चीज़ नाप कर दो तो) पूरा पैमाना दिया करो और नुक़सान (कम देने वाले) न बनो (181) - व ज़िनू बिल – किस्तासिल् – मुस्तक़ीम
और तुम (जब तौलो तो) ठीक तराज़ू से डन्डी सीधी रखकर तौलो (182) - व ला तब्ख़सुन्ना स अश्या अहुम् व ला तअ्सौ फ़िलअर्ज़ि मुफ़्सिदीन
और लोगों को उनकी चीज़े (जो ख़रीदें) कम न ज़्यादा करो और ज़मीन से फसाद न फैलाते फिरो (183) - वत्तकुल्लज़ी ख-ल-क कुम् वल् – जिबिल्ल तल अव्वलीन
और उस (ख़ुदा) से डरो जिसने तुम्हे और अगली खि़लकत को पैदा किया (184) - कालू इन्नमा अन् – त मिनल् – मुसह्हरीन
वह लोग कहने लगे तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हों) (185) - व मा अन् – त इल्ला ब – शरुम् – मिस्लुना व इन् नजुन्नु – क लमिनल – काज़िबीन
और तुम तो हमारे ही ऐसे एक आदमी हो और हम लोग तो तुमको झूठा ही समझते हैं (186) - फ – अस्कित् अ़लैना कि- सफम् – मिनस्समा इ इन् कुन् – त मिनस्सादिक़ीन
तो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर आसमान का एक टुकड़ा गिरा दो (187) - का – ल रब्बी अअ्लमु बिमा तअ्मलून
और शुएब ने कहा जो तुम लोग करते हो मेरा परवरदिगार ख़ूब जानता है (188) - फ़ – कज़्ज़बूहु फ़ – अ – ख़ – ज़हुम् अ़ज़ाबु यौमिज़्ज़ुल्लति इन्नहू का-न अ़ज़ा-ब यौमिन् अ़ज़ीम
ग़रज़ उन लोगों ने शुएब को झुठलाया तो उन्हें साएबान (अब्र) के अज़ाब ने ले डाला- इसमे शक नहीं कि ये भी एक बड़े (सख़्त) दिन का अज़ाब था (189) - इन् – न फ़ी ज़ालि – क लआ यतन्, व मा का-न अक्सरुहुम् मुअमिनीन
इसमे भी शक नहीं कि इसमें (समझदारों के लिए) एक बड़ी इबरत है और उनमें के बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (190) - व इन् – न रब्ब – क लहुवल अ़ज़ीजुर रहीम *
और बेशक तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (191) - व इन्नहू ल – तन्ज़ीलु रब्बिल् – आलमीन
और (ऐ रसूल) बेशक ये (क़़ुरआन) सारी ख़़ुदायी के पालने वाले (ख़़ुदा) का उतारा हुआ है (192) - न-ज़-ल बिहिर – रूहुल – अमीन
जिसे रुहुल अमीन (जिबरील) साफ़ अरबी ज़बान में लेकर तुम्हारे दिल पर नाजि़ल हुए है (193) - अ़ला कल्बि – क लि – तकू न मिनल् – मुन्ज़िरीन
ताकि तुम भी और पैग़म्बरों की तरह (194) - अ़ला कल्बि – क लि – तकू न मिनल् – मुन्ज़िरीन
लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ (195) - व इत्तहू लफ़ी जुबुरिल् – अव्वलीन
और बेशक इसकी ख़बर अगले पैग़म्बरों की किताबों मे (भी मौजूद) है (196) - अ-व लम् यकुल्लहुम् आ यतन् अंय्यअ् – ल-महू अु-लमा-उ बनी इस्राईल
क्या उनके लिए ये कोई (काफ़ी) निशानी नहीं है कि इसको उलेमा बनी इसराइल जानते हैं (197) - व लौ नज्ज़ल्नाहु अ़ला बअ्जिल – अअ् – जमीन
और अगर हम इस क़़ुरआन को किसी दूसरी ज़बान वाले पर नाजि़ल करते (198) - फ़-क-र अहू अ़लैहिम् मा कानू बिही मुअ्मिनीन
और वह उन अरबो के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर इमान लाने वाले न थे (199) - कज़ालि – क सलक्नाहु फ़ी कुलूबिल् – मुज्रिमीन
इसी तरह हमने (गोया ख़ुद) इस इन्कार को गुनाहगारों के दिलों में राह दी (200)
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