कैसे सुल्तान रुकनद्दीन बैबर्स ने अंताकिया के पूरे शहर पर विजय प्राप्त की
इस किले की सीधी दीवारें घाटियों के किनारे से ऊपर उठाई गई थीं और इनके कोनों पर ऊंची और मजबूत मीनारें ने बना दी गई थी। इन्हीं मीनारों के अंदर बैठकर यहां के सिपाही किले की सुरक्षा करते थे जिसके कारण किले पर आक्रमण करना असंभव समझा जाता था। इस किले की दीवार के बारे में यह समझा जाता था, कि इसे तोड़ा नहीं जा सकता। न ही इसके किसी हिस्से को गिरा कर अंदर जाया जा सकता था। इसलिए की दीवार का ज्यादा हिस्सा चट्टानों पर खड़ा था जिसे तराश कर दीवार का रूप दिया गया था और कुछ हिस्सा इतने चौड़े – चौड़े पत्थरों से बनाया गया था। कि इनको तोड़कर शहर में प्रवेश करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था दीवार के ऊपर जो पत्थरों की बड़ी – बड़ी मज़बूत मीनारें बनाई गई थी।
उनके अंदर यहां के सैनिक तीरों और पत्थरों के ढेर लगाए रहते थे और आक्रमणकारियों पर तीरों पर पत्थरों की बारिश करके उन्हें हार मान लेने पर मजबूर करते थे। इस किले के सैनिक रक्षक समझते थे कि आम हालत में इस किले पर कब्जा करना तो दूर, इस पर हमले की कल्पना करना भी एक सपना मालूम होता था। लेकिन कभी – कभी ऐसे योद्धा जिसे हराना असंभव हो जो सिर्फ नामुंकिन को मुंकिन बनाने के लिए पैदा होते हैं यही हाल ‘सुल्तान बैबर्स’ का था। अप्रैल सन् 1268 को सुल्तान अपनी सेना के साथ जहां से गुज़रना कठिन और ऊंचे पहाड़ी रास्तों को तय करता हुआ। अचानक इस किले के सामने आ गया। सुल्तान ने जब किले पर हमले शुरू किए तो किले के अंदर जो सलीबी सैनिक थे उन्होंने सुल्तान का डटकर मुकाबला किया।
सुल्तान को भी इस किले की मज़बूती की पूरी तौर पर जानकारी थी। अतः जल्द ही सुल्तान ने अपने आखिरी काम की शुरुआत की। थोड़ी देर युद्ध के बाद सुल्तान ने युद्ध रोक दिया। अचानक एक तरफ से मुसलमानों की मिनजिनेकें (बड़े – बड़े पत्थरों को फेंकने का हथियार) सामने आईं और देखते ही देखते सुल्तान के आदेश पर किले के पास 26 बड़ी – बड़ी मिनजिनेकें खड़ी कर दी गई थी। यह सब देखते हुए किले के अंदर जो सलीबी सैनिक थे वह घबरा गए थे। उन्होंने जब इतनी बड़ी – बड़ी और इतनी ज्यादा संख्या में मिनजिनेकों को देखा तो वह घबरा कर रह गए। सुल्तान ने पहले दीवार का जायज़ा लिया। उसके बाद उसने खुद सही स्थान पर मिनजिनेकें खड़ी करने का आदेश दिया। सुल्तान का आदेश मिलते ही जल्द ही मिनजिनेकें उस जगह पर खड़ी कर दी गई जहां सुल्तान ने कहा था।
इसके बाद मिनजिनेकों से बड़े-बड़े भारी पत्थरों की बारिश किले की दीवारों पर होने लगी। तो इस पथराव से किले की दीवार ही नहीं चट्टाने तक थरथराने और कांपने लग गई थी। किले को जल्द जीतने के लिए सुल्तान ने दो इरादे किए। पहला यह कि बड़ी – बड़ी के मिनजिनेकों के ज़रिए उसने लगातार दीवार पर पथराव शुरू करवा दिया था। दूसरा यह कि उसने किले का इस तरह जायज़ा किया था कि किले की तरफ आने वाले सारे रास्ते उसने बंद कर दिए और किले वालों को बाहर से कोई भी चीज़ मिलने की उम्मीद न रही। सुल्तान के इन दो इरादों के नतीजे में धीरे-धीरे किले के सैनिकों की लड़ने की शक्ति खत्म हो गई। इसके बाद वह घबरा उठे, इनमें से कुछ तो पहले ही सुल्तान के तेज़ और जानलेवा हमलों के कारण मारे जा चुके थे।
बाकी ने जब देखा था कि अगर उनके साथी इसी तरह मरते रहे तो एक दिन किला उनसे खाली हो जाएगा। इसलिए वह पीछे की तरफ भागे क्योंकि पीछे की तरफ तट था और वहां से अपनी जानें बचा कर भाग गए। इस तरह सुल्तान विजेता की हैसियत से किले में दाखिल हुआ और इसकी सबसे ऊंची मीनार पर सुल्तान ने अपना परचम लहराने का आदेश दे दिया। सकीफ-अरनून नाम के इस किले की जीत से फिलस्तीन के अंदर जिस कदर सलीबी सैनिक थे उन पर बड़ी गहरी चोट लगी और सुल्तान बैबर्स की तरफ से उन पर एक तरह का डर सवार हो गया था। वह सुल्तान का नाम सुनकर डर और खौफ से कांपने लग जाते थे। फिलस्तीन में इन शानदार और लगातार जीत ने सुल्तान बैबर्स के सैनिकों के हौसले बुलंद करके रख दिए थे और वह इस ज़मीन के इलाके को हमेशा के लिए सलीबी सैनिकों से पाक कर देने पर तुल गए।
सुल्तान बैबर्स जो कि अपनी सेना में बहुत लोकप्रिय था। उसके सैनिक उसके इशारे पर कट-मरने के लिए तैयार हो जाते थे और सकीफ-अरनून को जीतने के बाद सुल्तान सलीबियों के एक बहुत बड़े किले और शहर तराबलस की तरफ गया। सुल्तान की इन लगातार जीत के कारण सलीबियों के कई तटीय इलाके तेज़ी से युद्ध की तैयारी में व्यस्त हो गए थे। क्योंकि किसी को कुछ जानकारी न थी कि सुल्तान बैबर्स अब किसको अपने आक्रमण का निशाना बनाएगा। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि सुल्तान अपनी सेना के साथ ‘तराबलस’ पहुंचा और शहर से बाहर उसने अपनी सेना का पड़ाव कर लिया जिस पर तराबलस के लोग समझ गए अब उनकी बारी है।
तराबलस सलीबी सैनिकों का बड़ा मजबूत केंद्र और किला समझा जाता था। और उन्होंने वहां बहुत ज्यादा युद्ध की ताकत जमा कर रखी थी और वह किला-बंद होकर मुसलमानों से एक बड़ा युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे। उन दिनों तराबलस शहर की बड़ी अहमियत थी इसलिए कि पैदावार की वजह से यह बहुत महत्वपूर्ण शहरों में शामिल किया जाता था। हलब शहर से लेकर तराबलस तक लगभग 40 फर्लांग तक शहर बागों और पेड़ों से सजी हुई जमीन था। यहां गन्ना बहुत ज्यादा पैदा होता था। इसके अलावा संतरा, केला, नींबू, खजूर खूब होते थे। इसके अलावा तराबलस शहर ऐसे स्थान पर बसा था कि उसके तीन तरफ समुद्र और एक तरफ ज़मीन थी। जब समुद्र के पानी का उतार – चढ़ाव होता तो समुद्र का पानी किले की दीवार तक पहुंच जाता। ज़मीन के तरफ के इलाके को एक मज़बूत गड्ढा बनाकर बचा लिया गया था।
यह गड्ढा दीवार के पूरब में स्थित था इसके पार लोहे का बहुत मज़बूत दरवाज़ा बना दिया गया था इसके अलावा तराबलस शहर की दीवारें तराशे हुए बड़े – बड़े पत्थरों से मज़बूती से और कठिन परिश्रम से बनाई गई थी। और यह समझा जाता था कि इसे जीतना नामुंकिन है। सुल्तान जब अपनी सेना के साथ तराबलस के सामने आया। तब तराबलस वालों ने डटकर सुल्तान का मुकाबला करने का इरादा कर लिया था तराबलस वालों के हौसले इसलिए भी ऊंचे थे कि उन दिनों अंताकिया के बादशाह बोहेमण्ड भी तराबलस में ही रुके हुए थे और वह शायद सुल्तान बैबर्स का मुकाबला करने के सिलसिले में ही तराबलस के लोगों से सलाह मशवरा करने के लिए आया था। जिस दिन सुल्तान अपनी सेना के साथ तराबलस पहुंचा। उसके बाद रात को सुल्तान के जासूसों ने सुल्तान को बता दिया कि अंताकिया का बादशाह बोहेमण्ड भी तराबलस में रुके हुए हैं।
यह खबर सुल्तान के लिए बड़ी हौसला-अफज़ा थी और उसने एक बहुत बड़ा फैसला कर लिया। सुल्तान ने अभी तक तराबलस का जायज़ा नहीं लिया था। तराबलस के सामने उसने अपनी सेना का पड़ाव किया था। अगले दिन जब तराबलस के लोग जागे। तो उन्होंने देखा कि जिस मैदान में उनके सामने सुल्तान ने अपनी सेना के साथ पड़ाव किया था वह तो बिल्कुल खाली पड़ा था सुल्तान और उसके सब सैनिक गायब थे। तराबलस के लोग यह समझने लगे कि मुसलमानों के सुल्तान को उनकी सैन्य ताकत और शक्ति का अंदाजा हो गया है। इसलिए वह उनसे टकराने नहीं चाहता। इसलिए अपना बोरिया – बिस्तर समेट कर यहां से भाग गया है। लेकिन सुल्तान ने सलीबी सैनिकों को हैरत में डाल दिया था। सुल्तान रात के समय में ही अपनी सेना के साथ वहां से चला गया था और अगले दिन फिलस्तीन के उत्तरी हिस्सों में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ।
तराबलस को छोड़कर सुल्तान ने नसरानियों के सबसे बड़े पूर्वी शहर अंताकिया को अपना लक्ष्य बनाने का इरादा कर लिया था। अंताकिया का बादशाह बोहेमण्ड प्रसिद्ध प्रस्तावक अबुल फज़ा के शब्दों के अनुसार बहुत ही दुष्ट और कमीने इंसानों में शामिल किया जाता था और वह मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। अंताकिया समुद्र तट से लगभग 14 मील के फासले पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर था। इस शहर को 300 ईसा में एक बादशाह सेल्यूकस प्रथम ने बसाया था। सन् 64 ईसा में रोमन सरदार पैंपी ने इस शहर पर आक्रमण किया और इस पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद यह शहर एशिया में रोमनों का सबसे महत्वपूर्ण शहर और सल्तनतों रोमां की एशियाई सल्तनत का सदर मुकाम भी बन गया था।
इसके बाद इस शहर पर ईरानियों ने लगातार हमले शुरू कर दिए और कुछ समय तक यह ईरानी हमलों के अभ्यास की जगह बनी रही। सबसे पहले ईरान के शहंशाह शाहपोर प्रथम ने सन् 258 में और इसके बाद सन् 260 में इस शहर को जीत लिया और यहां के बहुत से लोगों को वहां से निकाल कर दूसरे इलाकों में बसाया। सन् 266 से सन् 272 तक इस पर ‘कदहर’ शहर की मलिका ज़नूबिया काबिज़ रही। इन हमलों के बावजूद शहर की वेश – भूषा बनी रही। आखिर सन् 540 में ईरान के बादशाह नौशेरवान ने इस शहर का जायज़ा करके इसे जीत लिया और इसे बिल्कुल पूरे तौर पर तबाह-बर्बाद करके रख दिया और यहां के निवासियों को निकालकर दूसरे इलाकों में बसाया।
इसके बाद रोमन शहंशाह जैकलिन ने इस शहर को दुबारा बसाया। इसके बाद रोमनों पर आक्रमण करके यह शहर अरबों के कब्जे में चला गया पर आजकल यह शहर पूर्वी तुर्की का एक आम शहर में शामिल किया जाता है यह भी कहा जाता है कि अंताकिया हर ज़माने का प्रसिद्ध शहर रहा है और नसरानियों के नज़दीक यह पवित्र स्थान का दर्जा रखता था। मुसलमानों ने इसे सबसे पहले फारूक-ए-आज़म हजरत उमर रजि० की खिलाफत में जीत लिया था। कुछ ही साल बाद इसको यूनानियों ले लिया मगर बहुत जल्द मुसलमानों के कब्जे़ में दुबारा आ गया। अर्सा-ए-दरास के बाद पहली सलीबी जंग के दौरान सलीबियों ने इस पर पूरी ताकत और शक्ति से हमला किया और सात महीने के लंबे समय के बाद उन्होंने इस शहर को जीत लिया।
यह जीत भी एक नए मुस्लिम अर्मनी फिरोज़ की गद्दारी की आभारी थी। जो एक खुफिया रास्ते के ज़रिए से सलीबी को किले के अंदर ले गया था। उस समय तक यह शहर सलीबियों के कब्जे में था और यहां उन्होंने एक रियासत बना ली थी इस तरह से अंताकिया शहर सलीबियों का बहुत बड़ा केंद्र और बहुत महत्वपूर्ण मज़बूत शहरों में शामिल किया जाता था। सुल्तान बैबर्स इस शहर पर हमला करके हर सूरत में इसे जीतना चाहता था क्योंकि यह शहर लगभग 117 साल से लगातार सलीबियों के कब्जे में आ रहा था। यह शहर आबाद होने के साथ-साथ बड़ा मज़बूत भी था। इसलिए कि इस शहर के आसपास दो चौड़ी-चौड़ी दीवारें थी इसके अलावा यह शहर ओरण्टस नदी के किनारे बसा था और इन सब चीज़ों ने इसको बहुत मज़बूत कर दिया था।
इस शहर में ईसाइयों /नसरानियों के पवित्र स्थान, बड़े-बड़े गिरजाघरों और मज़बूत किले थे। कहते हैं कि जब सुल्तान बैबर्स इस शहर पर हमलावर हुआ उस समय शहर के अंदर दो लाख प्रशिक्षण सलीबी सैनिकों की सेना थी। इसके अलावा और बहुत से लोग भी थे जो बेहतरीन सैन्य प्रशिक्षण हासिल किए हुए थे। सुल्तान जिस समय अचानक अपनी सेना के साथ अंताकिया शहर के पास आया तो अंताकिया के लोग दंग रह गए। इसलिए कि उन्होंने तो सुना था कि मुसलमानों के सुल्तान ने तो तराबलस का रुख किया है और इस शहर का उसने जायज़ा कर लिया है। तराबलस के जायज़े का सुनकर अंताकिया के लोग बिल्कुल बेफिक्र थे। उनकी सोच में भी न था कि वह खतरा तराबलस पर नहीं उन पर मंडरा रहा है जिस समय सुल्तान ने तराबलस के पास पड़ाव किया था और उसकी खबरें अंताकिया वालों को पहुंची तो वह यह समझ रहे थे कि मुसलमान अंताकिया की भयंकर शक्ति से टकराने की कभी कोशिश नहीं करेंगे।
लेकिन एक दिन जब उन्होंने किले की दीवार पर खड़े होकर देखा कि अंताकिया के चारों तरफ अनगिनत झंडो का एक समुद्र ठाठें मार रहा था तो वह हैरत और डर के मिले-जुले विचार से दंग रह गए। यह झंडे सुल्तान बैबर्स की सेना के थे और फिर यही सेना धीरे-धीरे अंताकिया शहर के पास आती चली गई। इसके बाद जब मुसलमानों ने अंताकिया शहर के पास आकर एक साथ मिलकर नारे लगाए तो नारों की इन आवाजों ने अंताकिया शहर को उसकी नींव तक हिलाकर रख दिया था। सुल्तान बैबर्स का अंताकिया शहर पर हमला अचानक भी था, ज़ोरदार और हिम्मत से भरा हुआ भी था। वहां जो सलीबी ताकत थी उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। कि सुल्तान और उसकी सेनाओं को रोके और अंताकिया शहर में दाखिल न होने दें।
अंताकिया के लोग यह भी सोच रहे थे कि एक तो अंताकिया शहर की दीवार बहुत ऊंची है जिससे इसे जीतना नामुंकिन है। इसके अलावा बाहर वाली दीवार के अंदर एक और दीवार भी थी जिसने शहर को बहुत मज़बूत बनाकर रखा था। लेकिन दूसरी तरफ आक्रमण करने वाला भी सुल्तान बैबर्स था। जो नामुमकिन को मुमकिन बनाने का हुनर और कला जानता था। अपना पहला ही हमला सुल्तान ने ऐसे ज़ोरदार अंदाज में किया कि उसने अंताकिया की सेना को हिलाकर रख दिया और अपने पहले ही हमले में सुल्तान अपनी सेना के साथ दीवार के एक हिस्से पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गया था। शहर के अंदर जो सलीबी भी सेना थी उन्होंने जब देखा। कि मुसलमान तो शहर को जीतने का इरादा कर चुके हैं उन्होंने दीवार के एक हिस्से पर कब्ज़ा भी कर लिया है।
तो उन्होंने अपनी पूरी ताकत और शक्ति को लगाते हुए मुसलमानों को इस हिस्से से निकाल बाहर करना चाहा जिस पर वह काबिज़ हो चुके थे। लेकिन वह दंग रह गए वह मुसलमानों को पीछे हटाना तो बहुत दूर की बात अपनी जगह से हिला भी न सके। इस मौके पर अंताकिया की सेना के साथ सुल्तान बैबर्स का भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध के परिणाम में सुल्तान अपनी सेना के साथ शहर में दाखिल हो गया अब शहर की गली – कूचों के अंदर युद्ध शुरू हो गया था शहर की गलियों में खून बहने लगा था हर तरफ लाशों के ढेर लगने लगे थे। अंताकिया के लोगों ने जब देखा कि मुसलमान तो उनके शहर के अंदर घुस आए हैं। तो वह सैनिक जो पहले से मुसलमानों के दुश्मन थे वह तो युद्ध जारी रखे हुए थे अब दूसरे लोग भी अपने आप को रोके हुए थे मुसलमानों पर टूट पड़े।
दूसरी तरफ सुल्तान और उसकी सेना को भी यह एहसास था। कि वह अपने घरों से सैकड़ों मील दूर दुश्मन के खिलाफ लड़ रहे हैं इसलिए दुश्मन को अपने सामने हराने के लिए सरों पर कफन बांध कर युद्ध शुरू कर दिया था। इसके अलावा मुस्लिम सेनाएं यह नहीं जानती थी कि अगर अंताकिया में वह पराजित हो गए तो फिर मिस्र और सीरिया के अंदर भी उनके शहर असुरक्षित हो जाएंगे। भयंकर युद्ध के दौरान मुसलमान सैनिकों ने देखा की सुल्तान बैबर्स उनके कदमों से कदम मिलाए बहुत हिम्मत से दुश्मन पर हमलावर हो रहा है और सुल्तान की यह हिम्मत और बहादुरी देखते हुए मुसलमान सैनिक आग बरसाने वाले लावे की सूरत में आ गए। इसके बाद नारे लगाते हुए अंताकिया शहर की सेना के लाशों के ढेर लगाते चले गए।
शहर के अंदर खतरनाक युद्ध के परिणाम में काफी सलीबी सैनिक मारे गए। जब उन्होंने अपनी सेना का अंदाज़ा लगाया तो उन्होंने देखा कि सैनिकों का एक बड़ा हिस्सा उनके अपने ही शहर के गली – कूचों में मर चुका था और युद्ध उसी तरह जारी रहा तो मुसलमान उनके बचे-खुचे सैनिकों को भी मौत के घाट उतार देंगे। इसलिए आपस में सलाह – मशवरा करने के बाद अंताकिया के सरदार और सैनिकों ने सुल्तान के सामने हथियार डाल दिए। हथियार डालते हुए हार मान ली और अधीनता स्वीकार कर ली। सुल्तान बैबर्स के हाथों अंताकिया शहर को जीतने से पश्चिम के इलाकों में रोमनों की पुरानी और बदतरीन रियासत हमेशा के लिए खत्म हो गईं। सुल्तान ने अब तक जो सलीबियों के खिलाफ जीत हासिल की थी। अंताकिया की जीत उनमें सबसे बड़ी जीत थी।
अंताकिया शहर के लिए लड़े जाने वाले युद्ध में सलीबी सेना के लगभग 16 हज़ार सैनिक मौत के घाट उतार दिए गए थे और उनके एक लाख के करीब सैनिकों को कैदी बना लिया गया था। युद्ध के परिणाम में प्रस्तावक लिखते हैं कि एक गुलाम की कीमत 12 दिरहम और एक लड़की 5 दिरहम में बिकने लगी। यहां से सुल्तान को बहुत सारा धन मिला। सुल्तान ने पैमानों में दिरहम और दीनार भर-भर कर अपने सैनिकों को बांटे। पश्चिमी और ईसाई प्रस्तावक भेदभाव से काम लेते हुए इस युद्ध के बारे में लिखते हैं सुल्तान ने शहर के कई पुराने गिरजाघरों और किलो को जलाकर रख दिया था। इनमें बहुत से विश्व प्रसिद्ध थे। लेकिन यह असलियत नहीं है और न ही उनके विचारों में किसी हद तक कोई सच्चाई है।
इसलिए कि अंताकिया में आज भी बहुत से पुराने गिरजाघर और किले मौजूद है जिस समय सुल्तान बैबर्स ने अंताकिया में पड़ाव किया था उस समय अंताकिया का बादशाह बोहेमण्ड तराबलस शहर में रुका हुआ था। उसकी गैर-मौजूदगी में ही आक्रमण करके सुल्तान ने अंताकिया को जीत लिया था शहर को जीतने और इसका सारा इंतज़ाम अपने हाथ में लेने के बाद सुल्तान ने एक पत्र लिखा और पत्रवाहक के ज़रिए वह पत्र उसने तराबलस में ठहरे हुए अंताकिया के बादशाह बोहेमंड को भेजा। उस पत्र में सुल्तान ने लिखा था, अंताकिया में तुम्हारे आदमियों में से एक भी नही बचा। जो तुम्हें इस शहर के अंजाम के बारे में सूचित करता। इसलिए हम खुद यह अच्छा न लगने वाला कर्तव्य पूरा करते हैं। जिस मज़बूती पर तुमको घमंड था वह सब बर्बाद हो चुका है क्योंकि इनकी बर्बादी पर तुम्हारे साथ हमदर्दी जताने वाला भी कोई नहीं इसलिए हम ही हमदर्दी का यह कर्तव्य पूरा कर रहे हैं।
कहते हैं सुल्तान बैबर्स का यह पत्र अंताकिया के बादशाह बोहेमंड को तराबलस में मिला। तो पत्र के स्तर और अंताकिया के विजय हो जाने की खबर पर उसका खून खौल उठा। उसने यह सारे हालात यूरोप के अलग – अलग बादशाहों और रोम के पादरियों को बताए और उनसे सुल्तान बैबर्स के खिलाफ मदद मांगी। लेकिन कोई भी सुल्तान बैबर्स का मुकाबला करने की हिम्मत न कर सका और अफसोस के साथ वह तराबलस से निकलकर कबरस की तरफ चला गया। अंताकिया को जीतने के बाद सुल्तान बैबर्स ने अपना ध्यान अर्मेनिया के तरफ लगाया। अर्मेनिया के बादशाह का नाम ‘बिटन’ था यह बड़ा कट्टर इस्लाम दुश्मनी में सबसे आगे रहने वाला था। यह कोई भी मौका हाथ से न जाने देता था जिससे फायदा उठाकर मुसलमानों पर नुकसान पहुंचा सके।
पहले वह मुसलमानों के खिलाफ पूरी ताकत और शक्ति के साथ हलाकू खाँन और दूसरी मंगोल शक्तियों का साथ देता रहता था और जब सुल्तान बैबर्स ने मंगोलों को अपने सामने परास्त कर दिया और उन्हें इस काबिल न छोड़ा कि वह मुसलमानों के खिलाफ कभी युद्ध कर सकें। इसके बाद सुल्तान ने सलीबियों के खिलाफ तलवार ऊंची की और उनके अलग – अलग शहरों और किलो पर आक्रमण करके जीत का सिलसिला फैलाना शुरू कर दिया। तो इस अर्मेनिया के बादशाह बिटन ने मंगोलों के बाद सलीबियों की भरपूर मदद करनी शुरू कर दी थी। इसलिए सुल्तान ने अब फिलिस्तीन के कुछ अन्य शहरों को नज़रअंदाज करते हुए। पहले अर्मेनिया के बादशाह पर आक्रमण करके उसकी कमर तोड़ने का इरादा कर लिया था। अर्मेनिया ज्यादातर कोहिस्तानी सिलसिले से घिरा हुआ था इसके उत्तर की तरफ बढ़े कोहिस्तानी सिलसिले थे जबकि दक्षिण की तरफ भी एक कोहिस्तानी सिलसिला था जिसे जमाले-तारूस कहकर पुकारते थे।
उन दिनों इसका क्षेत्रफल लगभग तीन लाख मुरब्बा किलोमीटर था। आजकल इस इलाके में से कुछ तुर्की के कब्जे़ में है और कुछ अर्मेनिया के पास। सुल्तान बैबर्स की जीत का सिलसिला कुछ इस तरह फैला था कि उसके सीरियाई इलाकों और अंताकिया की सीमाएं अब अर्मेनिया के बादशाह बिटन के इलाकों से जा मिली थी। इसलिए सबसे पहले सुल्तान ने अर्मेनिया के बादशाह बिटन का ही बंदोबस्त करने का इरादा कर लिया था। सुल्तान बिजली की तेज़ी से अर्मेनिया की तरफ बढ़ा और अर्मेनिया पर उसने आक्रमण कर दिया। उसका इरादा अर्मेनिया के उन पहाड़ी इलाकों पर कब्जा करना न था। बल्कि अर्मेनिया की ताकत और शक्ति की कमर तोड़नी थी। ताकि कभी भी वह इस्लाम दुश्मन शक्तियों का साथ न दे पाए।
इसके अलावा सुल्तान अर्मेनिया के सैनिकों को मंगोलो और उसके खिलाफ दूसरी शक्तियों की हिमायत और मदद की सज़ा भी देना चाहता था। सुल्तान अर्मेनिया के इलाकों में दाखिल होने के बाद आंधी और तूफान की तरह आगे बढ़ता चला गया। कई मौके पर अर्मेनिया के बादशाह बिटन ने सुल्तान की राह रोकनी चाही। लेकिन जो सेना भी सुल्तान के सामने आई सुल्तान ने उसे तिनके और मिट्टी की तरह उड़ा कर रख दिया। इसके बाद आगे बढ़कर हमले करते हुए सुल्तान अर्मेनिया के एक महत्वपूर्ण शहर ‘ओहना’ तक पहुँच गया। शहर पर आक्रमण किया और शहर की ईंट से ईंट बजाकर शहर पर कब्ज़ा कर लिया। इस तरह अर्मेनिया पर आक्रमण करके सुल्तान ने न सिर्फ आर्मेनिया के बादशाह बिटन बल्कि उसकी सैन्य ताकत और शक्ति की भी कमर तोड़ कर रख दी।