62 सूरह जुमुअ़ह | Surah Al-Jumua
सूरह जुमा में कुल 11 आयतें हैं और ये सूरह मदनी है। यह सूरह पारा नंबर 28 मे है।
इस सूरा के दो भाग अलग-अलग समयों में अवतरित हुए हैं। इसलिए दोनों के विषय अलग हैं और जिनसे सम्बोधन है वे भी अलग हैं। पहला भाग उस समय अवतरित हुआ जब यहूदियों के सारे प्रयास असफल हो चुके थे जो इस्लाम के बुलावे का रास्ता रोकने के लिए विगत वर्षों के अन्तराल में उन्होंने किए थे। इन आयतों के अवतरण के समय उनका सबसे बड़ा गढ़ खैबर भी बिना किसी असाधारण अवरोध के विजित हो गया। इस अन्तिम पराजय के पश्चात् अरब में यहूदी शक्ति बिलकुल समाप्त हो गई। वादि-उल-कुरआ, फ़दक, तैमा, तबूक सब एक-एक करके हथियार डालते चले गए, यहाँ तक कि अरब के सभी यहूदी इस्लामी राज्य की प्रजा बनकर रह गए। यही वह अवसर था जब अल्लाह ने इस सूरा में एक बार फिर उनको सम्बोधित किया और सम्भवतः यह अन्तिम सम्बोधन था जो कुरआन मजीद में उनसे किया गया।
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
- युसब्बिहू लिल लाहि मा फिस सामावति वमा फिल अरज़िल मलिकिल कुद्दूसिल अजीज़िल हकीम
आसमान व ज़मीन की तमाम चीज़ें अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करती हैं। जो बादशाह, पवित्र, प्रभावशाली और गुणी हैं। - हुवल लज़ी बअस फिल उममिय यीना रसूलम मिन्हुम यतलूना अलैहिम आयातिही व युज़क कीहिम व युअल्लिमु हुमुल किताब वल हिकमह वइन कानू मिन क़ब्लु लफ़ी ज़लालिम मुबीन
वही अल्लाह है जिस ने अनपढ़ लोगों में उन ही में से एक नबी भेजा। जो उन पर अल्लाह की आयतें पढ़ कर सुनाते हैं, उन को अक़ीदा व अमल की गंदगियों से पाक व साफ़ करते हैं, और उन को किताब और हिकमत की शिक्षा देते हैं। हालांकि इस से पहले ये लोग खुले कुपथ में थे। - व आखरीन मिन्हुम लम्मा यल्हकू बिहिम वहुवल अज़ीज़ुल हकीम
और उन दुसरे लोगों की तरफ भी भेजा जो अभी मुसलमानों के साथ नहीं मिले (लेकिन आइन्दा ईमान लायेंगे) और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली और गुणी हैं। - ज़ालिका फज़लुल लाहि युअ’तीहि मय यशाअ वल लाहू ज़ुल फजलिल अज़ीम
ये अल्लाह का अनुग्रह है जिसे चाहते हैं प्रदान करते हैं। और अल्लाह बड़े अनुग्रह का मालिक हैं। - मसलुल लज़ीना हुममिलुत तौराता सुम्म लम यहमिलूहा कमासलिल हिमारि यहमिलु अस्फारा बिअ,सा मसलुल कौमिल लज़ीना कज्ज़बू बिआयातिल लाह वललाहू ला यहदिल कौमज़ ज़ालिमीन
जिन लोगों को तौरात दी गयी, फिर उन्होंने उसको नहीं उठाया (यानी अमल नहीं किया) उन की मिसाल उस गधे की सी है, जो बहुत सी किताबें लादे हुए हो, कितनी बुरी मिसाल है। (अर्थात जैसे गधे को अपने ऊपर लादी हुई पुस्तकों का ज्ञान नहीं होता कि उन में क्या लिखा है वैसे ही यह यहूदी तोरात के अनुसार कर्म न कर के गधे के समान हो गये हैं।) उन लोगों की जिन्होंने अल्लाह तआला की आयातों को झुटलाया, और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देते। - कुल या अय्युहल लज़ीना हादू इन ज़अमतुम अन्नकुम अव्लियाउ लिल मिन दूनिन नासि फ़ तमन्नवुल मौत इन कुन्तुम सादिक़ीन
आप कह दीजिये: हे यहूदियों! अगर तुम समझते हो कि तमाम लोगों को छोड़ कर तुम ही अल्लाह के दोस्त हो, तो अगर तुम सच्चे हो तो मौत की कामना करो। - वला यता मन नौनहू अबदम बिमा क़द्दमत ऐदीहिम वल लाहु अलीमुम बिज़ ज़ालिमीन
वो अपनी हरकतों की वजह से जो पहले कर चुके हैं कभी मौत की तमन्ना नहीं करेंगे। और अल्लाह इन जालिमों से भली-भाँति अवगत हैं। - कुल इन्नल मौतल लज़ी तफिररूना मिन्हु फ़इन्नहू मुलाक़ीकुम सुम्मा तुरददूना इला आलिमिल ग़ैबि वश शहादति फ़ युनबबिउकुम बिमा कुन्तुम त’अलमून
आप कह दीजिये जिस मौत से तुम भागते हो वो ज़रूर ही तुम पर आकर रहेगी, फिर तुम उस अल्लाह की तरफ लौटा दिए जाओगे, जो परोक्ष को भी जनता है और प्रत्यक्ष को भी, फिर वो तुम को तुम्हारे किये हुए काम भी बता देगा। - या अय्युहल लज़ीना आमनू इज़ा नूदिया लिस सलाति मिय यौमिल जुमुअति फ़स औ इला ज़िकरिल लाहि वज़रुल बैअ ज़ालिकुम खैरुल लकुम इन कुन्तुम त’अलमून
ए मुसलमानों! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाये तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ पड़ो। और ख़रीद फ़रोख्त छोड़ दिया करो, यह तुम्हारे लिए अच्छा है, यदि तुम जानो। - फ़इज़ा कुज़ियतिस सलातु फन तशिरू फ़िल अरज़ि वबतगू मिन फजलिल लाहि वज्कुरुल लाह कसीरल लअल्लकुम तुफ्लिहून
जब नमाज़ पूरी हो जाये तो अल्लाह की ज़मीन में फ़ैल जाओ, अल्लाह की रोज़ी तलाश करो। और उस को कसरत से याद करते रहो ताकि तुम सफल हो। - व इज़ा रऔ तिजारतन औ लहवनिन फज्जू इलैहा व तरूका क़ाइमा क़ुल मा इन्दल लाहि खैरुम मिनल लहवि वमिनत तिजारह वल लाहू खैरुर राज़िकीन
और जब ये व्यापार या खेल तमाशा देखते हैं तो उस की तरफ दौड़ पड़ते हैं। और आप को खड़ा छोड़ जाते हैं, आप कह दें कि जो कुछ अल्लाह के पास है, वो खेल तमाशा और खरीद फरोख्त से बेहतर है। और अल्लाह सब से बेहतर जीविका देने वाला हैं।
सूरह जुमा वीडियो
प्रश्न:
सूरा अल-जुमुआ (Al-Jumu’ah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 62 वां सूरह (अध्याय) है। यह सूरह पारा नंबर 28 मे है।
सूरह जुमा कब पढ़ना है?
सूरह अल-कहफ के बजाय हर शुक्रवार को सूरह अल-जुमुआ पढ़ना।