हजरत खालिद बिन वलीद-13

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) का बनी फजारा से जंग (गमरा की जंग)

बुजाखा की लड़ाई खत्म होते ही हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने जंग से भागे हुए बनी फजारा के बागियों का पीछा करने के लिए दो सैन्य दल भेजे। एक दल ने बुज़ाखा से लगभग 30 मील दूर रुमान में कुछ धर्मत्यागि बागियों को पकड़ा। उन्होंने बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया। उन्होंने पश्चाताप किया और इस्लाम को फिर से कबूल किया और जकात देने का वादा किया।

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने खुद ‘उययना’ की खोज में दूसरे दल का नेतृत्व किया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने बुजाखा से करीब 60 मिल दूर गमरा में उसे पछाड़ दिया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने ‘उययना को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन वह अवज्ञाकारी रहा, और लड़ने के लिए चुना। इसके बाद हुई तीखी झड़प में उययना के कई अनुयायी मारे गए, और उसको कैदी बना लिया गया और मदीना भेज दिया गया। उययना ने वहां इस्लाम फिर से कबूल किया और खलीफा हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उसे माफ़ कर रिहा कर दिया। उययना अपने कबीले को लौट आया और बाकी जीवन इस्लाम के मुताबिक गुज़ा रा।

गमरा की जंग में हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू आ) के नेतृत्व में मुसलमानों को बड़ी जीत हासिल हुई और इस्लाम के खिलाफ बगावत को कुचल दिया गया।

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) का बनी सुलैम से जंग (नकरा की जंग) 

बनी सुलैम मदीना के उत्तर के क्षेत्र पर रहने वाले एक कबीला थे। उनकी बस्तियां खैबर तक फैली हुई थीं। और उनकी मुख्य जगह ‘नकरा’ थी।

 पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में इस कबीले ने इस्लाम कबूल कर लिया था। उन्होंने मक्का की विजय में मुसलमानों की ओर से भाग लिया। वे अन्य मुसलमानों के साथ हुनैन और ताइफ की लड़ाई में भी लड़े। बनी सुलैम की एक टुकड़ी हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की कमान में लड़े हुए थे और वे उनसे बहुत जुड़े हुए थे। पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की विसाल के बाद, बनी सुलैम ने बगावत किया। उन्होंने तुलैहा के साथ मिलकर बुजाखा की लड़ाई में मुसलमानों के खिलाफ लड़ी। जब बुजाखा में तुलैहा की हार हुई तो बनी सुलैम भाग गए थे। आप ने पढ़ा था कि बुजाखा की लड़ाई के बाद हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने गमरा की जंग की थी। वहाँ जीत मिलने के बाद अब मुस्लिम सेना हज़रत खालिद इब्न वलीद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की कमान में, बनी सुलैम का पीछा किया। 

बुजाखा की लड़ाई के बाद, बनी सुलैम नकरा भाग गए थे। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उनका पीछा करते हुए नकरा पहुंचे और हमला शुरू कर दिया। बनी सुलैम ने हमला कड़ा प्रतिरोध किया, लेकिन वे हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के वार को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं कर सके। थोड़ी ही देर बाद मुस्लिम हमलों में बनी सुलैम कबीले के कई लोग मारे गए। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) का मकसद बनी सुलैम के नेता अमर् बिन अब्दुल उज्जा (जिसके अबू शाजरा के नाम से लोग बुलाते थे) को जिंदा पकड़ना था। मुसलमानों ने अबु शजरा को जंग के बीच ही पकड़ लिया। अबू शजरा के पकड़े जाने के साथ ही बनी सुलैम की ओर से सभी प्रतिरोध ध्वस्त हो गए और जंग मुसलमानों ने जीत ली। 

इस जंग को नकरा की जंग कहते हैं जो मुसलमानों ने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के नेतृत्व में लड़ी और जीती। 

अबु शजरा और बाकियों को कैद कर लाया गया। खलीफा हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) के सामने उन्होंने फिर से इस्लाम कबूल की और उनको माफ़ कर देने को कहा। खलीफा ने उन्हें माफ़ कर दिया। अबु शजरा और बाकी लोग अपने कबीले लौट गए। अबु शजरा ने उसके बाद इस्लाम के खिलाफ बगावत नहीं की।

लेकिन बनी सुलैम के कुछ लोग अब भी नहीं सुधरे थे। उनकी फिर से इस्लाम लाने का झूठा नाटक किया उन्होंने दूसरे बागियों का साथ दिया और एक डाकू बल बनाया जो मदीना और बुजाखा के करीब अपना अभियान करते थे। ये लोग मुसलमानों को पाकर कर शहीद कर देते थे। जब खलीफा हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) को इस बात का पता चला तो उन्होंने एक सेना दल हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के नेतृत्व में भेजा। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने जल्द ही उनका खेल ख़तम कर दिया। और उनके जिस जिस ने भी मुसलमानों को शहीद किया था उनको भी उसी तरह मार दिया गया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को खलीफा ने उनको सजा देने के लिए हुक्म देकर भेजा था। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने इस जंग की हाल का ख़बर खलीफा को भेजा। अब हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) बुजाखा में लगभग एक महीने रहे। बुजाखा के रहते समय उन्हें उम जिमल के सेना के बारे में पता चला और वे उनसे लड़ने चले गए।

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