हजरत खालिद बिन वलीद-32

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और दमिश्क की जंग

अजनादीन की लड़ाई के बाद, मुसलमान सेना दमिश्क के लिए रवाना हो गए। रास्ते में उन्हें रोकने के लिए रोमियो ने यकुसा और मरज उस सफर में जंग की जिसमें रोमियो को बुरी तरह हार मिली और उनका काफी नुकसान हुआ।

अजनादीन में हुई जंग में मुस्लिम सेना की जीत से रोमियो के मन में घबराहट छाई हुई थी। सम्राट हेराक्लियस ने 5,000 की सहायता सेना शहर की हिफाजत में मदद करने के लिए दमिश्क भेजी। दमिश्क में अजाज़ीर के नेतृत्व में 12,000 रक्षकसेना पहले से थी। दमिश्क में बाज़ंटाइन सेना की मुख्य कमान थॉमस ने संभाली थी, जो बाज़ंटाइन सम्राट हेराक्लियस के दामाद थे। शहर के प्रमुख द्वार पर, बाज़ंटाइन ने एक बुलंद क्रॉस बनाया, जिसके सामने प्रार्थना की गई कि परमेश्वर का पुत्र अपने सेवकों की रक्षा करेगा और अपनी सच्चाई की पुष्टि करेगा। थॉमस ने शहर के फाटक बंद कर दिए थे और शहर के हिफाजत के लिए हर तरह की तैयारी कर ली थी।

दमिश्क को सीरिया के स्वर्ग के रूप में जाना जाता था। एक चमकदार महानगर जिसमें वह सब कुछ था जो एक शहर को महान और प्रसिद्ध बनाता है। शहर का मुख्य हिस्सा 11 मीटर ऊंची एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। शहर फाटकों द्वारा प्रवेश किया जाता था और शहर 6 दरवाजे थे : पूर्वी द्वार, थॉमस का द्वार, जबिया द्वार, फरादीस का द्वार, कैसन का द्वार और छोटा द्वार। उत्तर की दीवार के साथ बरादा नदी चलती थी, जो हालांकि, बहुत छोटी थी, लेकिन उसका सैन्य महत्व बहुत था। दमिश्क सीरिया की सबसे बड़ी शहर और पूरे बाज़ंटाइन साम्राज्य के बड़े शहरों में से एक था, इस वजह से इसका महत्व बहुत था और आज भी ये सीरिया की राजधानी है। थॉमस ने शहर की हिफाजत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।

मुस्लमान सेना जब दमिश्क पहुंची तो उन्होंने जल्दी से घेराबंदी कर दी। दमिश्क को घेरने वाली मुस्लिम सेना को एक कमांडर के तहत पांच भागों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक वाहिनी को शहर के एक या दो द्वारों की घेराबंदी करने की आवश्यकता थी। उत्तर में दो द्वार थे, अर्थात् थॉमस गेट, और फरादिस गेट। हजरत शूरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) की कमान वाली वाहिनी थॉमस द्वार के बाहर तैनात थी, जबकि हजरत अम्र बिन अल आस (रज़ी अल्लाहू अनहू) की कमान वाली वाहिनी फरिदिस द्वार के बाहर तैनात थी। पूरब में एक द्वार था, जिसे हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वाहिनी संभाल रहे थे। दक्षिण में दो द्वार थे, जिसे हजरत यजीद बिन अबु सूफियान (रज़ी अल्लाहू अनहू) की कमान वाली वाहिनी सम्भाल रहे थे और पश्चिम की द्वार जबिया द्वार को हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वाहिनी सम्भाल रहे थे।

मुस्लिम सेना शहर की घेराबंदी कर रहे थे और कोई जंग नहीं हुई थी, लेकिन एक दिन थॉमस ने उत्तर में थॉमस गेट से हमला किया। यहां हजरत शुरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) के नेतृत्व वाली वाहिनी ने उनका विरोध किया। बाज़ंटाइन सैनिक थॉमस द्वार से बाहर निकले और मुसलमानों पर हमला किया। लड़ाई जमकर हुई। हजरत शुरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वाहिनी की संख्या कम थी, लेकिन मुसलमान खड़े रहे। थॉमस ने व्यक्तिगत रूप से बाज़ंटाइन बलों की कमान संभाली हुई थी। मुस्लिम सेनाओं को हतोत्साहित करने के लिए, थॉमस मुस्लिम कमांडर हजरत शुरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) पर काबू पाने के लिए आगे बढ़े। थॉमस के हजरत शूरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) के पास पहुंचने से पहले ही हजरत अबान की विधवा द्वारा चलाए गए तीर ने उस पर प्रहार कर दिया। इससे बाज़ंटाइन सेना जंग छोड़कर किले में वापस आ गए। रात को हर द्वार में छोटी बड़ी जंग होती रहीं।

अगले दिन जोनाह नाम से एक युनानी (ग्रीक) युवा किले से निकल कर,मुस्लिम शिविर में आकर हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) से मिले। उसने कहा कि वह एक लड़की के प्यार में पागल था, जिसके साथ उसकी शादी हुई थी, लेकिन दुल्हन को सौंपने की रस्म नहीं हुई थी। उसने अपने ससुर से समारोह करने के लिए कहा था, लेकिन वह चाहता था कि वह युद्ध खत्म होने तक इंतजार करे। जोनाह ने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को बताया कि अगर मुसलमान उसकी दुल्हन पाने में उसकी मदद कर सकते हैं, तो वह किले को जीतने में मुसलमानों की मदद करेगा। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उसकी मदद करने का वादा किया, और जोनाह ने शहर की दीवारों पर एक जगह की ओर इशारा किया जिससे मुसलमान शहर के अंदर जा सकते थे। उस रात हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू), उनके सैनिकों के एक समुह के साथ दीवार फांदकर किले में घुस गये। फिर उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया, जिससे हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की बाकी मुस्लिम सेना अंदर आ गयी, और बाज़ंटाइन पर हमला करना शुरू कर दिया।

जब थॉमस को पूर्वी द्वार से हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के प्रवेश के बारे में पता चला, तो उसने पश्चिमी द्वार पर हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) से मुलाकात की और जजिया के भुगतान करने की सामान्य शर्तों पर आत्मसमर्पण की पेशकश की। हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने आत्मसमर्पण स्वीकार कर लिया और बाज़ंटाइन को माफी दे दी। जब हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) की सेना ने पश्चिमी द्वार से शहर में प्रवेश किया तो उन्होंने जल्द ही पाया कि हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) पहले ही पूर्वी द्वार से इसमें प्रवेश कर चुके थे। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) शहर के बीचों बीच मिले। हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को बताया कि बाज़ंटाइन कमांडर ने आत्मसमर्पण कर दिया है और उसने बाज़ंटाइन को माफी की पेशकश की थी। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने कहा कि उन्होंने अपने बल पर दमिश्क जीत लिया है और माफी की अनुमति देने का सवाल ही नहीं उठता। इस बात को लेकर मुस्लिम जनरलों की युद्ध परिषदों की बैठक हुई, और अंततः यह तय किया गया कि हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) द्वारा किए गए समझौते का कर सम्मान किया जाना चाहिए। 13 हिजरी, रजब के महीने में मुसलमानों ने दमिश्क शहर जीत लिया था।

बाज़ंटाइन को किले से बाहर जाने की अनुमति दी गई। उन्हें अपना सामान ले जाने की अनुमति दी गई। और यह भी निर्धारित किया गया कि तीन दिनों तक उनक कोई पीछा नहीं किया जाएगा।

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