हजरत खालिद बिन वलीद-14

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और जफर की जंग

बुजाखा की लड़ाई के बाद, तुलैहा के कुछ अनुयायियों ने की एक जोशीले और आक्रामक महिला नेता उम ज़िमल के पास बनी गटफान में शरण ली। वह बनी फजारा के एक प्रमुख नेता ‘उययना’ जिसने बुजाखा में बागी सेनाओं की कमान संभाली थी, उसकी चचेरी या मामाजाद बहन थी। उम ज़िमल का असली नाम सलमा था, लेकिन उसे आमतौर पर उम जिमल के नाम से जाना जाता था। उनके पिता मलिक बिन हुजैफा थे, जो बनू गटफान के प्रमुखों में से एक थे।

उनकी मां उम किरफा भी एक बहादुर और साहसी महिला थीं। पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जीवनकाल के दौरान, उम किरफा और उनके अनुयायियों ने अल कारा घाटी में कुछ मुसलमानों पर घात लगाकर हमला कर शहिद कर दिया था। जवाबी कार्रवाई में सलमा के साथ उम किरफा और कई अनुयायियों को मुसलमानों ने बंदी बना लिया और मदीना लाए।

मदीना में, उम किरफ़ा को मौत की सजा दिया गया, और सलमा हजरत आयशा (रज़ी अल्लाहू अनहा) की नौकरानी बनी। कुछ समय बाद, हजरत आयशा (रज़ी अल्लाहू अनहा) ने सलमा को मुक्त कर दिया, और वह अपने कबीले में लौट आई। सलमा मुसलमानों के खिलाफ द्वेष और अपनी मां की मौत का बदला लेने की इच्छा से जली हुई थी। जब धर्म त्याग बागियों की लहर अरब में फैल गई तो वह उस में शामिल हो गईं और इसके नेताओं में से एक नेता बन गईं।

जब बुजाखा की जंग में तुलैहा की हार के बाद, उनके कई अनुयायियों ने उम जिमल के साथ शरण ली, तो उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाने और मुसलमानों के खिलाफ गठबंधन का नेतृत्व करने का फैसला किया। वह जनजाति (कबिला) में गई और उन्हें मुसलमानों के खिलाफ शत्रुता के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सलमा पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी छोर पर जफर में एक काफी बड़ी ताकत जुटाई और जफर को अपना मुख्यालय बनाया। सलमा पर्वत श्रृंखला नाम उम जिमल के असली नाम सलमा पर रखी गई थी, जो एक ऊबड़-खाबड़ पर्वत था।

जब हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को उम जिमल के शत्रुतापूर्ण इरादों के बारे में पता चला, तो उन्होंने बुजाखा से जफर की तरफ एक मुस्लिम बल का नेतृत्व किया। जफर पहुंचते ही हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने पहल की और हमला शुरू कर दिया। उम जिमल और उसकी सेनाओं ने कठोर प्रतिरोध से हमले को रोका, जंग का पहला चरण में कठिन लड़ाई थी, और दुश्मन अच्छी तरह से हमले को रोक रहे थे और वो काफी जोश से लड़ाई लड़ रहे थे। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को ये जानने में देर ना हुई कि दुश्मन के जोश का कारण उनकी मुख्य उम जिमल थी जो जंग में एक बड़े ऊंट पर सवार होकर जंग की कमान संभाल रही थी। उसके आस-पास काफी रक्षाबल थे जो उसकी हिफाजत कर रहे थे और पूरे साहस से लड़ रहे थे। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने अपने तीरंदाजों को उस ऊंट की तरफ तीर चलाने को कहा। कई तीरंदाजों ने एक साथ उम ज़िमल की तरफ तीर चलाई और वो ऊंट से गिर गई और उसके साथ ही उसके जितने रक्षा बल थे वो भी मारे गए। उम जिमल के मृत्यु के साथ ही दुश्मन सेना भी तितर बितर हो गई और मुसलमानों ने जंग जीत ली।

इस जंग को जफर की जंग कहते हैं जो मुसलमानों ने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के नेतृत्व में लड़ी और जीती। ये ज़ंग 11 हिजरी, रजब महीने की आखिरी के कुछ दिनों में लड़ी गई थी।

जफर जंग के बाद हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) मालिक बिन नुवैरा से लड़ने बहरैन चले गए थे। 

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