हजरत खालिद बिन वलीद-6

अहज़ाब का युद्ध और यहूदी कबीलों की मुसलमानो से लड़ाई

मदीना की आबादी में एक महत्वपूर्ण हिस्सा यहूदी थे, जिनमें तीन जनजातियाँ शामिल थे बनू क़ैनकाअ, बनू नज़ीर और बनू-क़ुरैज़ा। जब पैगंबर मदीना पहुंचे, तो इन यहूदियों ने उन्हें बिना किसी दिक्कत के स्वीकार कर लिया और उन्हें कोई संभावित खतरा नहीं दिख रहा था। प्रत्येक कबीले ने पैगंबर के साथ एक समझौता किया जिसे मैत्री संधि या गैर-आक्रामकता संधि के रूप में वर्णित किया जा सकता है। संधि मे एक खंड शामिल था जिसके तहत एक पक्ष किसी भी तरह से दुश्मनों की सहायता नहीं करेगा।

 लेकीन जब मुसलमानों ने बदर की लड़ाई में शानदार जीत हासिल की तो यहूदियों को हिंसा और खतरा सताने लगा। उन्हें लगा कि मुसलमान अब ज्यादा ताकतवर हो गए है और जल्द ही वे पूरे मदीने पर राज करने लगेंगे। इसलिए बदर की जीत के बाद बनू क़ैनकाअ ने मुसलमानो से अपना समझौता तोड़ दिया और मुसलमानों के खुले विरोध में उतर आए। पैगंबर ने इस जनजाति को उनके गढ़ों और किलों में घेर लिया और उन्हें अधीन होने के लिए मजबूर कर दिया। और अपनी प्रतिज्ञा का उल्लंघन और संधि तोड़ने के जुर्म करने के लिए दंड स्वरुप मदीना से बनी क़ैनक़ा को निकाल दिया गया और वे सीरिया चले गए।

अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ने वाली अगली यहूदी जनजाति बनी नज़ीर थी, जो उहुद की लड़ाई के तुरंत बाद हुई। इस जनजाति को भी पहले कबीले की तरह मुसलमानों से समान दंड मिला। इसके कुछ सदस्य सीरिया में चले गए, जबकि अन्य मदीने के उत्तर खैबर के क्षेत्र में बस गए ।

इन दोनों जनजातियों के खिलाफ अभियान में, अब्दुल्ला बिन उबेय मुनाफिक प्रमुख था, यह यहूदियों और काफिरों का पक्षकार था, गुप्त रूप से उन्हें पैगंबर से लड़ने के लिए उकसाते थे और अपने अनुयायियों से सक्रिय मदद का वादा करते थे। जब वह युद्ध की किस्मत मुसलमानों के पक्ष में पलटते देखता, तो यहूदियों को उनके भाग्य पर छोड़ देता। यह मुनाफिकों का सरदार था और मुसलमान और पैगंबर से सख्त दुश्मनी रखता था। दिखावा मुसलमान होने का करता लेकिन अंदर से मुसलमान को तबाह करने की चालें चलाता।

तीसरी यहूदी जनजाति, बनी कुरैज़ा, मदीना में शांति से रहती रही। इसका मुसलमानों के साथ संबंध पूरी तरह से सामान्य और पूरी तरह से शांतिपूर्ण थे, मुसलमान और बनी कुरैज़ा, दोनों पक्ष संधि समझौते की शर्तों का सम्मान और उनका पालन करते रहे। 

लेकिन खैबर में बसे यहूदी कबीला बनी नज़ीर ने मदीना से निकले जाने के कारण मुसलमानों से और ज्यादा नफ़रत और मुसलमान की तबाही का इंतजार और उनसे बदला लेने के लिए मौका ढूंढता रहा। उहूद के बाद उन्हें मुसलमानों और कुरैश के बीच एक और जंग होने और उस लड़ाई में मुसलमान कुचले जाने की बाते करते रहे। लेकिन जब उन्हें एक साल बाद पता चला कि कोई दूसरा जंग नहीं होने वाला, तो उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ हमला करने के लिए सीधी कार्रवाई करने का फैसला किया।

खैबर के यहूदियों का एक प्रतिनिधिमंडल मक्का रवाना हुआ। उनके नेता हुयाय बिन अख़ताब थे, जो बनी नज़ीर का प्रमुख था। मक्का पहुंचने पर इस प्रतिनिधिमंडल ने अबू सुफियान और कुरैश से भेंट की। और पैगंबर के खिलाफ एक अभियान का आयोजन करने के बारे में बातचीत की। हुयाय ने पहले कुरैश के डर और भावनाओं पर काम किया और उनकी कमजोरी का फायदा उठाया, और उन्होंने अरब में इस्लाम के प्रसार से कुरैश के सामने आने वाले खतरे को रेखांकित करते हुए कुरैश को बताया अगर मुसलमान यमामाह पहुंचे, तो इराक और बहरीन के लिए कुरैश के व्यापार मार्गों को अवरुद्ध कर दिया जाएगा। उसने कुरैश को अन्य अरब कबीलों के साथ मिलाने की बात कही। कुरैश ने कहा अगर अन्य अरब जनजातियां शामिल हो जाए तो वे पैगंबर से लड़ने के लिए है।

यहूदी प्रतिनिधिमंडल कुरैश से बात करने के बाद घाटफान और बनी असद के पास गए। वहां से उन्होंने  समान वार्ता की और समान परिणाम प्राप्त किया। घाटफान जनजाति कुरैश के बाद अरब प्रायद्वीप में दूसरी सबसे बड़ी शक्ति थी। इसके बाद वेउ अश्जा जनजाति और अन्य अरब जनजातियों के पास गए और उन्हें कुरैश से मिलकर एक विशाल अरब सेना बनाकर मुसलमानो को खत्म कर देने के लिए मनाया और उनसे सौदा कर लिया। विभिन्न अन्य जनजातियाँ सभी ने जंग के लिए सहमत हुए और मुसलमानों से लड़ने और उन्हें नष्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान में भाग लिया।

जंग की तैयारी शुरू हुई। क़ुरैश ने सबसे बड़ी सेना प्रदान की, जिसमें 4,000 सैनिक, 300 घोड़े और 1,500 ऊंट शामिल थे। इसके बाद उयैना बिन हिसन के तहत 2,000 सैनिक के साथ घाटफान आया, जबकि बनू सुलैम ने 700 योद्धाओं को भेजा। बनू असद ने एक दल का योगदान किया। कुल 10,000 की सेना तैयार हुआ। अरब में इतनी बड़ी संख्या में सेना कभी जमा नहीं हुए थे। इस फौज का सेनापति अबू सूफियान थे।

तल्हा इब्न ओबैद (रज़ियल्लाहु अन्हु) और सइद इब्न जयद (रज़ियल्लाहु अन्हु) द्वारा संचालित खुफिया सेवा के जरिए, कुरैश के यह समाचार अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक पहुँचा कि सेना 15 दिनों के भीतर मदीना पहुँच जाएगी।

पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुसलमानों को उनके साथ इस मामले पर चर्चा करने और उनसे परामर्श करने के लिए बुलाया। हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पूरी स्थिति को विस्तार से समझाया। सहाबा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को पता था कि उन्हें थोड़े दिनों के भीतर योजना बनाना, काम करना और प्रयास करना है। फारस के एक व्यक्ति हजरत सलमान अल-फ़ारसी (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने एक खाई खोदने का सुझाव दिया, ये एक सैन्य योजना था जो उनके देश फारस में जंग मे प्रचलित थी और अरब में ये बिल्कुल नई थी। हजरत सलमान (रज़ी अल्लाहु अन्हु) का विचार अच्छा था क्योंकि यह मदीना की प्रकृति के अनुरूप था। मदीना पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की ओर स्वाभाविक रूप से नुकीली, पथरीली भूमि से घिरा हुआ था, जिस पर कोई चल भी नहीं सकता था। इसलिए, उन्हें सिर्फ उत्तरी तरफ को खाई खोदना था।

पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सहाबा को समूहों में विभाजित किया, जिनमें से प्रत्येक में 25 व्यक्ति शामिल थे। प्रत्येक समूह, एक नेता के नेतृत्व में, एक विशिष्ट क्षेत्र की खुदाई के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने अपने क्षेत्र को गुणवत्ता के साथ खोदने के लिए अपनी पूरी मेहनत की। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एक समूह से दूसरे समूह में चलते, उनके साथ काम करके उनका उत्साह बढ़ाते और उन सभी को प्रोत्साहित करते। हुजूर ने खुद खाई खोदने का काम किया, धूल और पत्थरों को हटाया।

खाई की खुदाई पूरी होने के बाद मुसलमानों ने अपना शिविर सिला की पहाड़ी के आगे स्थापित किया। उनकी कुल ताकत 3,000 थी जिसमें मुनाफिक भी शामिल थे जिनके लड़ने के मूल्य और विश्वसनीयता अनिश्चित थे। हुजूर ने 200 तीरंदाजों को पहाड़ों पर तैनात किया। और मदीना में अनदेखी में घुसने वाले घुसपैठिए से निपटने के लिए 500 लोगों के एक गिरोह को नियुक्त किया गया था। ये लोग मदीने की बस्तियों में गश्त करते थे।

5 हिजरी, शव्वाल के महीने में, अहज़ाब (कुरैश और अन्य अरब कबीलों की सेना) के दस हजार सैनिकों के साथ आकर मदीना को घेर लिया। खाई को देखकर अरब सेना बहुत हैरान हुई क्योंकि यह कोई अरब तकनीक नहीं थी और वे इसके लिए तैयार नहीं थे। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने खाई की रक्षा के लिए सहाबा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को समूहों में विभाजित किया।

कुरैश और उनके सहयोगियों ने मदीना को घेर लिया लेकिन दोनों सेनाओं के बीच लंबी, चौड़ी खाई थी। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनके लोग अपने अधिक शक्तिशाली दुश्मन के खिलाफ शहर की रक्षा करते हुए लगभग एक महीने तक इस खाई के पीछे रहे। कई बार क़ुरैश ने खाई को पार करके शहर में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन हर बार मुसलमानों ने उन्हें पीछे धकेल दिया। कुरैश हर रोज खाई के पास आते और तीरंदाजी करते। दोनों तरफ़ इसी तरह की जंग कई दिन होती रही। बीच में एक दो बार कुछ कुफ्फार खाई को पार कर दूसरी तरफ पहुचें तो उन्हें मार दिया गया। नतीजतन कुफ्फार खाई की दूसरी तरफ ही रहे और कुछ ना कर सके। कुफ्फार मौका ढूंढते रहे की कहीं मुसलमान लापरवाही करे तो वो हमला करे लेकिन मुसलमान पूरी तरह सतर्क थे। कुरैशी वहां से नहीं गुजर सके और उन्हें कोई समाधान नहीं मिला। फिर उन्होंने मदीना में यहूदियों की मदद से मुसलमानों के खिलाफ साजिश रचने की सोची। बनू-क़ुरैज़ा, एक मजबूत यहूदी जनजाति, अभी भी मदीना में रह रहे थे, और उनके पास बहुत सारे हथियार भी थे। बनि कुरैज़ा ने पैगंबर (SAW) के साथ एक संविधान पर हस्ताक्षर किया हुआ था और उसका पालन भी कर रहे थे, और तदनुसार उन्हें नागरिक माना गया, उनके अधिकार और कर्तव्य थे, और मुसलमानों पर हमला नहीं करना था और न ही उन पर हमला करने में किसी की मदद करना था। कुरैश ने बनू-क़ुरैज़ा के साथ संवाद करने पर विचार किया ताकि वे मदीना के दक्षिण से मुस्लिम महिलाओं और बच्चों पर हमला करे। कुरैश ने सोचा जब यहूदी मदीना के महिलाओं और बच्चों को मारना शुरू कर देंगे, तो पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनके साथी तुरंत खाई छोड़ देंगे या सेना की संख्या कम कर देंगे और मदीना के अंदर चले जाएंगे।

हुयाय इब्न अख़ताब बानी क़ुराइज़ा के नेता के साथ समझौता करने गए। उसने काब (बनू-क़ुरैज़ा के नेता) को कहा, कि वह कुरैश और घाटफान के साथ मुसलमानो को ख़तम करने मदीना आए है और उसे अपना चाल बताया। काब ने पहले संधि का उल्लंघन करने से इंकार किया। लेकिन हूयाई ने हार नहीं मानी और तब तक काब को समझाते रहे जब तक काब ने संविधान और पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और मुसलमानों को धोखा देने पर सहमत हुए। काब ने बस एक अनुरोध किया कि महिलाओं और बच्चों पर हमला करने का समय निर्धारण वह खुद करेगा।

खबर पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक पहुंच गई। वह उस ख़बर से चिंतित हो गये। औस जनजाति के नेता हजरत साद इब्न मुआज (रज़ी अल्लाहू अनहू) को पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दो अन्य पुरुषों के साथ इस ख़बर की सच्चाई का पता लगाने के लिए भेजा। जब वे मदीना के उस भाग में पहुँचे जहाँ यहूदी रहते थे, तो उन्होंने पाया कि हालात ख़बर से भी बदतर थे। हजरत साद इब्न मुआज (रज़ी अल्लाहू अनहू),(जिनका कबीला बनू-क़ुरैज़ा के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था) ने काब को मुसलमानों के साथ संधि नहीं तोड़ने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया। इसका मतलब यह था कि मुसलमान एक पल के लिए भी अपने पहरेदारों को आराम नहीं दे सकते थे, क्योंकि अब उन्हें न केवल खाई के परे दुश्मन, बल्कि शहर की दीवारों के भीतर बनी कुरैजा से भी खतरा था।

मुसलमानों के लिए हालात दिन-ब-दिन मुश्किल होते जा रहे थे। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी और खाना खत्म होने लगा था। मामलों को बदतर बनाने के लिए, बनू-क़ुरैज़ा ने खुले तौर पर और सक्रिय रूप से कुफ्फार का साथ देना शुरू कर दिया और और मुसलमानों के लिए अनाज की आपूर्ति काट दी। बनी कुरैजा ने मुसलमानों के साथ व्यापार बंद कर दिया जिससे मुसलमानो की बड़ी परेशानी हुई। इस्लाम के दुश्मनों ने अब योजना बनाई कि कैसे मदीना पर कब्जा किया जाए।

कुफ्फार की सेना से अशजा जनजाति के नुऐम इब्न मसूद (रज़ी अल्लाहू अनहू) नाम का एक व्यक्ति पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास गया, अपनी पहचान घोषित की और मुस्लिम बन गया। पैगंबर(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उनसे बहुत खुश थे और उन्हें वापस जाने और उन्हें समाचार लाने को कहा। नुऐम (रज़ी अल्लाहु अन्हु), खुद को गैर-मुस्लिमो में से एक के रूप में प्रच्छन्न करते हुए, बानू कुरैजा के पास गए और उन्हें बताया कि कुरैशी इस भूमि से नहीं है, और इसलिए यदि वे घेराबंदी से ऊब गए और थक गए, तो वे पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने बानू कुरैजा को अकेला छोड़ देंगे जो उनकी धोखेबाजी के बदला लेंगे।

इसके बाद नुऐम(रज़ियल्लाहु अन्हु) अबू सूफियान के पास गए और उन्हें बताया कि बानू कुरैज़ा ने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक समझौता किया था ताकि उनके साथ शांति बनाने के लिए कुरैश के पचास नेताओं को लाया जा सके। अगले दिन अबू सूफियान ने बानू कुरैजा के नेता काब से संपर्क किया और उससे पूछा, “हम कब हमला करते हैं?”। काब ने कहा, “लड़ाई में अपनी गंभीरता सुनिश्चित करने के लिए हमें पहले पचास सैनिक दें। अबू सूफियान ने सोचा कि नुऐम (रहमतुल्लाह अलैह) सही था, इसलिए उसने जवाब दिया कि वह उन्हें एक आदमी भी नहीं देगा। इस प्रकार, काब ने भी सोचा कि नुऐम (रज़ी अल्लाहू अनहू) सही थे। यह जीत की ओर पहला कदम था क्योंकि नुऐम (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने अरब कुफ्फार की सेना और यहूदी बनी कुरैजा को एक साथ काम करने से रोकने के लिए दोनों को बेवकूफ बनाया था।

स्थिति हताश लग रही थी और पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह से दुआ की कि वह मुसलमानों को अपने दुश्मनों को हराने में मदद करे। उसी रात एक रेतीले तूफान चला और भारी बारिश हुई। जिसने कुरैशी सेना का भारी नुकसान कर दिया। तूफान ने दुश्मन के लिए भोजन पकाने या खुद को गर्म करने के लिए आग जलाना असंभव कर दिया और उनके तंबुओं को उखाड़ दिया तूफान और बारिश की वजह से ठंड और भी बढ़ गयी और आसमान में दिन में भी अंधेरा सा छाया हुआ था। तूफान कई दिनों तक चला।

इन्हीं अंधेरी रातों में से एक रात पर पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने एक आदमी हजरत हुदैफा इब्न अल-यमन से एक खतरनाक मिशन पर जाने के लिए कहा। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनसे खाई पार कर दुश्मन के शिविर में जाने के लिए कहा, जहां उन्हें पता लगाना चाहिए कि वे क्या कर रहे थे। हजरत हुदैफा ने बहुत कठिनाई से खाई पार की और अंधेरे में बात कर रहे कुरैशी योद्धाओं के एक चक्र में अपना रास्ता बना लिया। वह उनके पास बैठा था, लेकिन आग नहीं लगने के कारण किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। और उन्हें वहां पता चाला की क़ुरैश घेराबंदी ख़तम कर चले जाने की तैयारी कर रहे है। उन्होंने वहाँ से ये खबर लाकर हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बतायी। अगली सुबह मुसलमान यह सुनकर आनन्दित हुए कि उन्होंने जो सुना था वह सच हो गया था। कुरैशी और उनके सहयोगी चले गए थे ! मदीना की घेराबंदी इस्लाम के लिए एक बड़ी जीत में समाप्त हो गई थी। इस जंग को गजवा-ए-अहजाब, गजवा-ए-खन्दक आदि नामों से जाना जाता है।

पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने साथियों को अपने घरों को वापस जाने के लिए कहा। घेराबंदी के लगभग एक महीने और खुदाई के 10 दिन से वे काफी थक गए थे। अपने घर पहुंचने से पहले जेब्राईल (अलैहिस्सलाम) उतरे और वही लाए की, “ऐ मुहम्मद! क्या तुमने अपने हथियार उतार दिए हैं और जबकि फरिश्तों ने अभी तक अपना हथियार नहीं रखा है?” इस वही का मतलब बनू-क़ुरैज़ा का मुसलमानों से किए गए विश्वासघात के लिए लड़ाई करने का था। हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सहाबा को वापस बुलाया और उन्हें अल्लाह की फरमान सुनाई। और मुसलमानो को बनी कुरैजा की तरफ जंग के लिए जाने का आदेश दिया और मुसलमान फौरन तैयार होकर चल दिये।

वे बनू-क़ुरैज़ा पहुंचे और उन्हें 15 दिनों तक घेर लिया। बनू-क़ुरैज़ा ने पेशकश की अपने हथियार छोड़कर मदीना से निकल जाएंगे, लेकिन पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पूरी तरह से इनकार कर दिया। वह चाहते थे कि वे उनके फैसले का पालन करें, लेकिन यहूदियों ने केवल हजरत साद इब्न मोआज़ (रज़ी अल्लाहू अनहू) के फैसले को स्वीकार करने की बात कही और हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस बात को मान लिया।

हजरत साद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने कहा कि उन्होंने उच्च राजद्रोह किया है, और तदनुसार सभी पुरुषों को मार दिया जाना चाहिए, महिलाओं और बच्चों को पकड़ लिया जाए। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस फैसले को मंजूरी दी। हजरत अब्दुल्ला बिन सलाम (रज़ी अल्लाहू अनहू) जो पहले यहूदी थे बाद में मुस्लिम हुए उनके निगरानी महिलाओं और बच्चों को रखा। यदि यहूदी कुफ्फार के साथ अपने समझौते में सफल हो जाते, तो इस्लाम नष्ट हो गया होता। इसके बजाय उस दिन से, मदीना एक ऐसा शहर बन गया जहां केवल मुसलमान रहते थे।

अहजाब की जंग की जीत से मुसलमान अब और ताक़तवर हो गए थे। और यहूदियों को हराने के बाद वे मदीना के इकलौती ताकत बन गए थे।

हजरत खालिद भी अहज़ाब में कुफ्फार के साथ मुसलमानो से जंग करने आए लेकिन जंग में कुछ हासिल ना किया। वे मक्का लौट कर फिर अपनी जिंदगी गुज़ारी और अन्य क़ुरैश नेताओं की तरह अहज़ाब की हार के बारे में सोचते। कुरैश को पता था कि अब मुसलमान और ज्यादा ताकतवर हो गए है। 

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