हजरत खालिद बिन वलीद-34

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और यरमुक की जंग

हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने मुस्लिम सेना की कमान सम्भाल ली थी। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) अब उनकी कमान में जंग कर रहे थे। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उनकी कमान में फहल, मार्ज उर रूम, की जंग लड़ी। उन सभी जंगों में मुस्लिम सेना ने जीत हासिल की। अब वह एमेसा में जंग लड़ रहे थे।

जब एमेसा जंग जारी थी तब मुसलमानों को पता चला कि, हेराक्लियस बाज़ंटाइन सम्राट ने सीरिया की भूमि से मुसलमानों को भगाने के लिए एक बड़ी ताकत जुटाई है। सम्राट इस बार बड़े पैमाने पर कार्रवाई की योजना बनाई थी। उन्होंने 1, 50,000 संख्या की एक बाज़ंटाइन सेना एंटिओक में जमा किया था।

इस समय मुसलमान चार जगह में जंग लड़ रहे थे। हजरत अम्र बीन अल आस (रज़ी अल्लाहू अनहू) फिलिस्तीन में अपनी वाहिनी के साथ जंग कर रहे थे; हजरत शूरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) जॉर्डन में ; हजरत यजीद बिन अबु सूफियान (रज़ी अल्लाहू अनहू) कैसरा में थे, जबकि हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) और हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) एमेसा में थे।

बाज़ंटाइन की योजना यह थी कि एक बाज़ंटाइन बल को पश्चिम से दमिश्क से जाए, रास्ता काट कर मुस्लिम बल को एमेसा में रोक दे। एक अन्य बल उत्तर से एमेसा में मुसलमानों पर हमला करे और एक बल को पूर्व से एमेसा पर हमला करे और फिर पश्चिम से दूसरा बल मुसलमानों पर हमला करे। बाजान्टिनीयों की योजना एमेसा और दमिश्क पर फिर से कब्जा करने की थी।

जब मुसलमानों को बाज़ंटाइन योजना के बारे में पता चला तो उन्होंने युद्ध परिषद आयोजित की। मुसलमानों ने फैसला किया कि चार भागों में विभाजित होने के बजाय, वे एक जगह पर अपनी सेनाओं को मजबूत करे और एक संयुक्त बल के रूप में बाज़ंटाइन का सामना करे।

इस फैसले के अनुसार, मुसलमानों ने उत्तरी सीरिया में एमेसा, दमिश्क और अन्य चौकियों को खाली कर दिया, और दमिश्क के दक्षिण में यारमुक घाटी के जबिया में अपनी सेना केंद्रित की।

जब बाज़ंटाइन बल एमेसा पहुंचा तो उन्होंने पाया कि मुसलमान चले गए थे। उन्होंने दमिश्क को भी खाली पाया। बाज़ंटाइन ने दक्षिण की ओर मार्च किया और कुछ दिन बाद यारमुक घाटी पहुंच गए। यहां उन्होंने शिविर लगाया, और मुसलमानों के साथ टकराव की तैयारी शुरू कर दी। बाज़ंटाइन शिविर 18 मील लंबा था, और बाज़ंटाइन शिविर और मुस्लिम शिविर के बीच यारमुक के मैदान के मध्य भाग थे। बाज़ंटाइन बलों में 2 लाख सैनिक पूरी तरह से सुसज्जित थे। इसके मुकाबले में मुस्लिम सेना में 40,000 सैनिक शामिल थे। हर पांच बाज़ंटाइन सैनिकों के खिलाफ केवल एक मुस्लिम सैनिक था। जब बाज़ंटाइन जनरलों ने अपनी सेना का सर्वेक्षण किया, तो उन्हें अपनी जीत का यकीन हो गया।

दोनों सेनाओं के बीच कई दिन जंग नहीं हुई। दोनों सेनाओं के बीच पहले कई बार समझौते की बात हुई लेकिन हर बार नाकाम हो गयी। हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने मुस्लिम सेना प्रमुखों की सभा बुलाई जिसमें उन्होंने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की जंग की क़ाबिलियत की वज़ह से इस जंग की कमान करने दिया।

दोनों सेनाओं के बीच झड़प होने से पहले, बाज़ंटाइन जनरल जॉर्ज बाज़ंटाइन केंद्र से निकले और मुसलमानों की ओर बढ़े। मुस्लिम केंद्र के पास जाकर उन्होंने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) से बात की। उन्होंने कई सवाल पूछे और उसके बाद मुस्लिम होकर मुसलमानों के साथ मिल गए।

इसके बाद पारंपरिक द्वंद्वयुद्ध की शुरूवात हुई। मुस्लिम सेना से हजरत अब्दुर रहमान बिन अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) आगे आए और उन्होंने पांच रोमी सैनिक को मार दिया।

द्वंद्व युद्ध समाप्त होने के बाद, बाज़ंटाइन बलों के मुख्य कमांडर माहान ने अपने बलों को हमला शुरू करने के लिए कहा। मुसलमानों ने उनके हमलों को रोका और पीछे ना हटे। जंग उसी तरह चलती रहीं। सूर्यास्त के समय जब जंग समाप्त हुई तो मुसलमानों की तुलना में बाज़ंटाइन पक्ष में अधिक हताहत हुए। और दोनों सेना अपने अपने शिविर चले गए।

दूसरे दिन, मुसलमान अभी सुबह की नमाज में थे जब बाज़ंटाइन ने हमला किया। मुसलमान तुरंत स्थिति में आ गए और दोनों सेनाएं आपस में भिड़ गईं। बाज़ंटाइन सेना ने मुस्लिम पर केंद्र को छोरकर दोनों तरफ दबाव डला। मुस्लिम दक्षिण पंथ का नेतृत्व हजरत अम्र बिन आस (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने किया था। उन्होंने दो बड़े हमलों को रोक दिया था लेकिन तीसरे बड़े हमले में मुस्लिम सेना की शृंखला में अनियमित हो गयी और रोमियो ने मुस्लिम सेना को पीछे हटाना शुरू कर दिया। रोमियो ने मुस्लिम सेना को ढकेलते हुए उनके शिविर तक पहुँच गए। मुस्लिम सेना ने यहां से रोमियो पर जवाबी करवाई की और उन्हें धकेल दिया। 

शाम होते होते मुस्लिम सेना और रोमी बाजान्टिनी सेना फिर उसी जगह आ गए जहा पहले थे। अब रात हो गयी थी और दोनों फिर अपने अपने शिविर चले गए। दूसरे दिन भी जंग की कोई नतीज़ा नहीं निकला लेकिन इस जंग में कई मुस्लिम सैनिक घायल हुए। 

तीसरे दिन भी उसी तरह जंग हुई जिस तरह दूसरे दिन हुई रोमियो ने फिर मुस्लिम सेना को पीछे हटाकर मुस्लिम शिविर तक पहुँच गए थे लेकिन फिर मुस्लिम सेना ने रोमियो को हटा दिया। इसी तरह की जंग दोनों के बीच चलती रहीं और कोई नतीजा नहीं निकला रात को फिर दोनों अपने अपने शिविर चले गए।

चौथे दिन बाज़ंटाइन ने फिर से हजरत अम्र बिन अल आस (रज़ी अल्लाहू अनहू) और हजरत शुरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वाहिनी पर हमले के साथ लड़ाई शुरू की। हजरत अम्र (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वाहिनी को पीछे धकेल दिया गया था, लेकिन वहां उन्होंने रोमियो को घेर कर मार दिया। हजरत शूरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) के क्षेत्र में बाज़ंटाइन जोरदार हमला कर रहे थे और मुसलमानों को अपने शिविर में धकेल दिया थे। हजरत शुरहबिल (रज़ी अल्लाहू अनहू) की दुर्दशा को देखते हुए हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) अपने सेना के साथ उनकी मदद के लिए आगे आए। 

चौथा दिन मुसलमानों के लिए लड़ाई का सबसे बुरा दिन था। मुस्लिम सेना में अनियमितता को देखकर बाज़ंटाइन ने अपना दबाव बढ़ा दिया था। यहां तक कि हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) और हजरत यजीद बिन अबु सूफियान (रज़ी अल्लाहू अनहू) की आरक्षित वाहिनी को भी इस जंग में रोमियो ने पीछे हटा दिया था। इस नाजुक घड़ी में, हजरत इकरमा (रज़ी अल्लाहू अनहू) और उनकी 400 की संख्या की टुकड़ी ने पीछे ना हटते हुए उन्होंने मृत्यु की बई’आह ली और पूरी ताकत के साथ बाज़ंटाइन सेना पर गिर गए। उनके वार के तहत बाज़ंटाइन पीछे हट गए थे। मृत्यु की बई’आह लेने वाले चार सौ समर्पित सैनिकों में से हजरत इकरमा (रज़ी अल्लाहू अनहू) सहित लगभग सभी शहीद हो गए थे, लेकिन उन्होंने मुसलमानों को भारी नुकसान से बचा लिया था।

पांचवें दिन दोनों सेनाएं फिर से जंग के लिए कतार में खड़ी रहीं, लेकिन कोई हमला नहीं हुआ। फिर बाज़ंटाइन पक्ष की ओर से एक दूत ने अगले कुछ दिनों के लिए संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा ताकि नए सिरे से बातचीत हो सके। मुसलमानों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उस दिन कोई लड़ाई नहीं हुई। 

लड़ाई शुरू होने से पहले छठे दिन बाज़ंटाइन सेना के एक जनरल ग्रेगरी ने आगे कदम बढ़ाया और मुस्लिम सेना के मुख्य सेना प्रमुख को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती दी। हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने चुनौती स्वीकार कर ली। द्वंद्वयुद्ध में, हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने ग्रेगरी को मार डाला।

इसके बाद हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने मुस्लिम सेना को हमले का संकेत दिया और मुस्लिम मोर्चा आगे बढ़ गया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के नेतृत्व में मुस्लिम घुड़सवार सेना ने बाज़ंटाइन घुड़सवार सेना के खिलाफ अपने प्रहार तेज कर दिए, और एक कठिन संघर्ष के बाद बाज़ंटाइन घुड़सवार सेना को मैदान से दूर कर दिया गया। बाज़ंटाइन पैदल सेना अब घुड़सवार सेना के समर्थन के बिना थी। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने बाज़ंटाइन पर सामने और पीछे दोनों तरफ से हमला किया, और इसलिए बाज़ंटाइन सेना का दोनों क्षेत्र ध्वस्त हो गया। बाज़ंटाइन पैदल सेना अब पूरी तरह से भागने लगी।

बाज़ंटाइन काजी-युर-रक्काद की ओर पीछे भाग गए। यहां हजरत जिरार के तहत एक मुस्लिम टुकड़ी घात लगाकर बैठी थी और उन्होंने भागने वाले बाज़ंटाइन सेना को घेर कर मार दिया।

बाज़ंटाइन मुख्य सेनापति, माहान अपनी सेना के साथ दमिश्क की ओर भाग गए। मुसलमानों ने उनका पीछा किया, और दमिश्क से कुछ मील की दूरी पर उन्हें पकड़ लिया। मुसलमानों ने बाज़ंटाइन पर बड़ी तेज़ी के साथ हमला किया। इस जंग में माहान की मौत हो गई। कई बाजान्टिनों का वध किया गया था, लेकिन कुछ भागने में कामयाब रहे।

यरमुक की जंग मुस्लिम सेना ने जीत ली थी। इस जंग में लगभग 4,000 मुस्लिम सैनिक शहीद हुए थे और रोमियो के लगभग 70,000 के करीब मारे गए थे।

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