हजरत खालिद बिन वलीद-33

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) का भागने वालों से जंग

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को बहुत कड़वा लगा कि जब उन्होंने तलवार से दमिश्क शहर ले लिया था, तो थॉमस की चतुर कूटनीति और हजरत अबू उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) के बड़े रहम दिल से उनके श्रम का फल छीन लिया गया। वह बाज़ंटाइन बलों के कमांडर थॉमस और उसके उप सेनापति हर्बीस के शहर से आराम से निकल जाने से भी दुखी थे।

जब तीन दिनों के लिए दिए गए संघर्ष विराम की समाप्त हो गई, तो मुसलमानों ने एंटिओक से थोड़ी दूरी पर अल अब्राश में बाज़ंटाइन काफिले को घेर लिया। यहां बारिश हो गई थी, और काफिला खराब मौसम से शरण लेने के लिए मैदान पर तितर-बितर हो गया था। उनका सामान खुले में पड़ा था।

मुस्लिम बलों ने चारों तरफ से काफिले पर हमला किया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने थॉमस और हरबीस के साथ द्वंद्व युद्ध किया, और उन दोनों को मार डाला। कुछ देर लड़ने के बाद बाज़ंटाइन प्रतिरोध ध्वस्त हो गया।

मुस्लिम सेना ने बाकियों को कैद कर जब दमिश्क चलने लगे तो, कुछ बीजान्टिनी घुड़सवार आए उन्होंने बताया कि वो सम्राट हेराक्लियस के दूत है और वो सम्राट की बेटी को लेने आए है। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उन्हें सम्राट हेराक्लियस की बेटी को बिना फिरौती की रक़म लिए जाने दिया।

जब हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) दमिश्क पहुंचे तो उन्होंने हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) को भेजने के लिए पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने तमाम घटना की हाल लिखी, जब वो दूत को पत्र देने वाले थे तो हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उन्हें बताया कि हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) की वफात हो गयी है, और अब हजरत उमर (रज़ी अल्लाहू अनहू) खलीफा है। हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उन्हें हजरत उमर (रज़ी अल्लाहू अनहू) का पत्र दिया, जिसमें खलीफा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) को लिखा था कि हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) पूरे मुस्लिम सेना के मुख्य सेनापति बने।

हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को खलीफा हजरत उमर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने मुख्य सेनापति के पद से निलंबित कर दिया था। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने जब पत्र देखा तो उन्हें पता चला कि पत्र लगभग एक महीने पहले की थी। हजरत अबु उबैदा (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने बताया कि जंग के दौरान सेनापति का बदलाव करना ठीक नहीं था इसलिए उन्होंने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को इस पत्र के बारे में नहीं बताया।

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