हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) का यशरबियों को इस्लाम की दावत, और हिजरत
पैगंबर मुहम्मद (सल्लललाहू अलैही वसललम) मक्का में लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाते रहे, उधर मक्का की जमीन हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) के लिए तंग होने लगी। कुफ्फार का जुल्म बढ़ रहा था। एक साल यशरिब (आज के समय मदीना) से कुछ लोग मदीनेवालों की तरफ से मक्कावालों से मदद मांगने के लिए आए हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) को पता चला तो उन्होंने उनसे मक्का के बाहर ही मिलने और इस्लाम की दावत दी। हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) से मिलने के बाद उन्होंने इस्लाम कबूल किया और मक्का वालों से मिले बगैर मदीना चले गए। उन लोगों ने मदीने में जाकर लोगों को इस्लाम के बारे में, और हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) के बारे में बताया। उन लोगों की इस्लाम की प्रचार से कई लोग मुसलमान हुए।
जब हज का मौसम आया तो यशरिब(मदीने) से वह लोग हज करने आए साथ में कई नए यशरिब (आज के समय मदीना) के मुसलमान भी आए। उन्होंने हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) से बताया कि यशरिब (मदीना) में इस्लाम की प्रचार का अच्छा परिणाम मिलेगा। यशरिब के लोग को मक्कावालों के विपरीत इस्लाम को जल्दी कबुल करने की खुशखबरी सुनाई। हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) ने उनके साथ हजरत मुस’अब इब्न उमैर (रजी अल्लाहू अनहू) को यशरिब भेजा ताकि वहां जाकर इस्लाम का प्रचार करें और नए मुसलमानों को इस्लाम की शिक्षा दें। हजरत मुस’अब इब्न उमैर ने अच्छे इस्लाम के जानने वाले को हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) से माँगा और उमैर (रजी अल्लाहू अनहू) यशरिब वालों के साथ चले गए। हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) के यशरिब के लोगों के साथ इस मुलाकात को “अल अकबह का पहला बैअत (प्रतिज्ञा)” कहते हैं।
हजरत मुस’अब इब्न उमैर (रजी अल्लाहू अनहू) की मेहनत से यशरिब में इस्लाम बढ़ने लगा। उनकी मेहनत से कई सरदार मुसलमान हुए जिसमें साद इब्न मुआद, उसैद इब्न हुदैर और साद इब्न उबादाह (रजी अल्लाहू अनहूम) शामिल हैं। यशरिब में अब मुसलमान काफी ताक़तवर हो गए थे। जब फिर हज का मौसम आया तो यशरिब से मुसलमान हज करने आए और हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) से मिले। हजरत मुस’अब इब्न उमैर (रजी अल्लाहू अनहू) ने हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) को यशरिब में इस्लाम की कामयाबी की बात बतायी।
पैगंबर (सल्लललाहू अलैही वसललम) और सहाबा पर मक्का वालों की तरफ से किए गए अत्याचार और ज़ुल्म और आने वाले खतरे को जानते हुए यशरिब(मदीना) के लोगों ने हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) और सहाबा को यशरिब (मदीना) में हिजरत कर आने का आमंत्रण किया। हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) ने उनके आमंत्रण को कबुल किया। यशरिब के लोगों ने हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) से बैअत (प्रतिज्ञा) की। हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) के यशरिबवालों से इस मुलाकात को अल अकबह का दूसरा बैअत (प्रतिज्ञा)” कहते हैं।
सितंबर 622 में, कुरैश ने हुजूर (सल्लललाहू अलैही वसललम) की हत्या करने का मन बना लिया। नियोजित हत्या की पूर्व संध्या पर, रात के दौरान, कुरैश की नाकाबंदी के बीच पैगंबर (सल्लललाहू अलैही वसललम) ने अपना घर छोड़ दिया और, हजरत अबू बक्र (रजी अल्लाहू अनहू) के साथ, यशरिब की तरफ हिजरत कर गए। उनके सुरक्षित आगमन के साथ ही यशरिब मुसलमानो का आसन, शासन और केंद्र बन गया। मुसलमानो पर उत्पीड़न का युग समाप्त हो गया था। लेकिन मक्कावाले चुप बैठने वाले नहीं थे।
पैगंबर (सल्लललाहू अलैही वसललम) के मक्का से जाने के तीन महीने बाद, अल वलीद (हजरत खालिद रज़ी अल्लाहु अन्हु के पिता) की मृत्यु हो गई। उन्हें एक महान सरदार, एक सम्मानित नेता और कुरैश के एक महान पुत्र के कारण पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया था।
अपने पिता की मृत्यु के बाद, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) मक्का में शांति से रहते थे। वो उस अच्छे जीवन का आनंद ले रहे थे जिसे उनके धन ने संभव बनाया था।
उस समय उनकी कितनी पत्नियाँ या बच्चे थे इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। लेकिन उनके दो पुत्रों के बारे में जानकारी मिलती है : बड़े का नाम सुलेमान, और छोटे का अब्दुर-रहमान था। अब्दुर – रहमान का जन्म अल वलीद की मृत्यु से लगभग छह साल पहले हुआ था, उन्होंने इस्लाम लाने के बाद के सीरिया के जिहाद में एक कमांडर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त किया था। लेकिन अरब प्रथा के अनुसार यह सुलेमान था जिसके नाम से हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की पहचान हो गई। इसलिए हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को लोग “अबू सुलेमान”, यानी सुलेमान का पिता के नाम से संबोधित करते थे।
हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) का हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के मक्का से यशरिब हिजरत कर जाने के बाद के हाल का कुछ ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। इतना मालूम होता है कि हजरत खालिद अपना ज्यादातर समय शिकार में गुजारते थे। उन्होंने हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हिजरत कर जाने बाद व्यापार के लिए सीरिया का भ्रमण किया। लेकिन क्यूंकि वे कुरैश के सरदारों में से थे तो उन्हें मुसलमानो की हालत की जानकारी मिलती रहती थी।