हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) का तुलैहा के साथ जंग (बुजाखा की जंग)
तुलैहा बनू असद जनजाति से था। ये कबीला मदीना के उत्तर क्षेत्र में रहते थे। तुलैहा ने पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जीवनकाल के दौरान नबी होने का दावा किया था। उसने नमाज के मुस्लिम तरीके का इन्कार किया, और अपने अनुयायियों को खड़े होकर प्रार्थना करने के लिए कहा। उसने अपने अनुयायियों को जकात ना देने को कहा और नमाज की संख्या कम कर दी।
पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस धोखेबाज के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया। इससे पहले कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा बनाई गई मुस्लिम सेना तुलैहा के खिलाफ आगे बढ़ पाती, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का वफात हो चुक था। तुलैहा ने घोषणा की कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की वफात उसकी नबी होने की भविष्यवाणी की पुष्टि का संकेत थी।
बनू फ़ज़ारा, उनके नेता ‘उययना’ के तहत तुलैहा साथ शामिल हो गए थे। अबराक की लड़ाई में मुसलमानों द्वारा पराजित अब्स, गटफान, बानू बकर और जयीबान की कबीलों ने भी तुलैहा के साथ समझोता कर लिया। बनी तई और बानू जदिला के कुछ हिस्से भी उस के साथ शामिल हो गए। इसने तुलैहा को पर्याप्त रूप से मजबूत और शक्तिशाली बना दिया, और वह कई जनजातियों के संघ का नेतृत्व करने के लिए आया, और उत्तर पूर्व अरब को गढ़ बना लिया था।
हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हजरत खालिद बिन वलीद को तुलैहा के खिलाफ अभियान चलाने के लिए नियुक्त किया। तुलैहा के पास सेना की ताकत को देखते हुए हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को एक बेहतरीन मुस्लिम सेना दी गई थी। उत्तर की ओर बढ़ते हुए हजरत खालिद की टुकड़ी बनू तई के कब्जे वाले अजा और सलमा के पहाड़ी क्षेत्र में घुस गए। यहां हजरत खालिद ने बानी ताई के प्रमुख अदी बिन हातिम के साथ बातचीत की और एक समझौता हुआ।
ज़ुल क़िस्सा की लड़ाई के बाद, बनी तई के प्रमुख ने मदीना का दौरा किया, ज़कात का भुगतान किया और इस्लाम के प्रति निष्ठा की पेशकश की थी। इसके बावजूद, हालांकि अदी खुद इस्लाम के प्रति वफादार रहे, उनके कबीले के अधिकांश लोगों ने तुलैहा का समर्थन किया, और मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए बुज़ाखा के लिए एक सेना दल भेजा। हजरत खालिद बिन वलीद ने अदी के लिए हजरत अबू बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) का एक विशेष संदेश दिया, जिसमें उन्हें अपने लोगों के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करके तुलैहा के समर्थन से उन्हें दूर करने और इस्लाम की मदद करने के लिए कहा गया था ।
अदी ने अपने प्रभाव का उपयोग कर अपने कबीले के लोगों को इस्लाम में फिर से लाए और उन लोगों को इस्लाम के प्रति निष्ठा का वादा करवाया और एक सेना बल हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को दिया। अदी ने उसके बाद बनी जदिला को भी समझाया और वो भी तुलैहा को छोड कर इस्लाम ले आए और उन्होंने ने भी हजरत खालिद इब्न वलीद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को सेना बल दिए जिससे हजरत खालिद की सेना लगभग 6000 हो गयी।
इस के बाद मुस्लिम सेना बुजाखा की तरफ गई। बुजाखा में तुलैहा की सेना, मुस्लिम सेना से कई अधिक की संख्या की डेरा डाले हुए थे। जब मुस्लिम सेना बुजाखा पहुंची, तो उनका सामना धर्मत्यागी जनजातियों की सेनाओं से हुआ। कुछ दलबदल के बावजूद, बागी जनजातियों की ताकतें मुस्लिम ताकत से काफी ज्यादा थीं,। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने तुलैहा को इस्लाम के सामने घुटने टेकने का आह्वान किया, लेकिन उसने इस प्रस्ताव का मजाक उड़ाया। इसके बाद दोनों सेनाएं आपस में भिड़ गईं। मुस्लिम सेनाओं की कमान हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने संभाली थी, जबकि तुलैहा की सेनाओं की कमान बनी फजारा के प्रमुख ‘उययना’ ने संभाली थी। दोनों सेनाए अच्छी तरह से मेल खाती थी, और जंग का नतीज़ा अनिश्चित था।
तुलैहा एक सुरक्षित स्थान पर चला गया, और आसमान से वही आने की प्रतीक्षा करने का नाटक किया। हजरत खालिद ने अपना हमला तेज कर दिया था और बागियों पर दबाव बढ़ा दिया था और इसी बीच ‘उययना ने तुलैहा से पूछा “क्या जिब्रील तुम्हारे पास आया है? ” उसने उत्तर दिया, “नहीं”। उययना फिर से जंग के मैदान में गया। थोरे समय बाद फिर पूछा “क्या जिब्रील तुम्हारे पास आया है? ” उसने फिर उत्तर दिया, “नहीं”। उययना फिर से जंग के मैदान में गया और थोरी समय बाद तीसरी बार पूछा, “क्या जिब्रील तुम्हारे पास आया है? तुलैहा ने उत्तर दिया,” हाँ”। उययना ने पूछा “उन्होंने क्या कहा?”, तुलैहा ने घबराहट में उत्तर दिया,”उसने कहा ‘तुम्हारे पास उसकी एक हथकड़ी है, और यह एक ऐसा दिन है कि तुम भूलोगे नहीं!’।
उययना ने तुलैहा की घबराहट से पता लगा लिया कि ये झूठा है। उन्होंने मुड कर अपनी कबीले के लोगों को चिल्ला कर बताया कि ये तुलैहा झूठा नबी है, लड़ाई बंद कर दो। बनी फजारा के लोगों ने जंग बंद कर दी और अपने कबीले के प्रमुख के साथ पीछे हट गए। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने अब जो बचे हुए दूसरे इस्लाम बिरोधी थे उनपर जोरदार हमला किया और उन्हें तितर बितर कर दिया। तुलैहा ये देख कर अपने पत्नी और कुछ उसके अनुयायी सेना के साथ वहाँ से भाग गए। बाकी जो सेना बचे थे उन कबीलों ने आत्मसमर्पण कर दिया और इस्लाम ले आए और इस्लाम पालन करने और जकात खिलाफत को देने का वादा किया। बुजाखा में हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और मुस्लिमों की शानदार जीत थी। इस जंग को बुजाखा की जंग कहते है।
तुलैहा भागकर सीरिया चला गया। बाद में जब मुस्लिमों ने सीरिया में जंग जीती, तो वो मुस्लिम हो गया और हजरत उमर (रज़ी अल्लाहू अनहू) की खिलाफ़त में ईरान की जंग में मुस्लिमों के साथ मिलाकर जंग लड़ी।