हीरा की जंग
जब हजरत खालिद बिन वालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को इराक में कारवाई करने के लिए कहा गया, तो उन्हें हीरा को विजय करने के लिए हजरत अबू बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने कहा था। उलैस की लड़ाई के बाद, हीरा का रास्ता खुल गया था। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) और उनकी सेना ने तुरंत हीरा की ओर राह पकड़ी। उलैस से निकलने से एक दिन के बाद मुस्लिम सेना अमगिशिया पहुंची। अमगिशिया महत्व और वैभव में हिरा की तरह एक बड़ा शहर था। शहर सुनसान था, और मुसलमानों का विरोध करने वाला कोई नहीं था। मुसलमानों ने सुनसान शहर पर कब्जा कर लिया। अमगिशिया की संपत्ति मुसलमानों के कब्जे में आई। निर्जन शहर से एकत्रित लूट मुसलमानों ने काज़िमा, मजार, वलजा और उलीस की लड़ाई में जीते युद्ध की लूट से अधिक थी। अमगिशिया से मदीना के हिस्से का सम्पत्ति मदीना भेज दिया गया।
अमगिशिया पर कब्जे के बाद हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हीरा जाने का फैसला किया। हीरा एक नाममात्र अरब प्रमुख ईयास बिन कुबैसा अधीन था। शहर का वास्तविक प्रशासन फारसी गवर्नर अराजबा की ज़िम्मेदारी थी। जब अराजबा को मुस्लिम सेना के बारे में पता चला, तो उसने शहर की सुरक्षा का आयोजन किया। उन्होंने मुसलमानों के बढ़ते सेना को रोकने के लिए अपने बेटे की कमान वाले एक घुड़सवार समूह को आगे बढ़ाया। इस घुड़सवार सेना समूह को मुस्लिम सेना को रोकने के लिए यूफ्रेट्स के बांध में कारवाई करने के लिए कहा गया था ।
हिरा के ओर बढ़ते मुख्य मुस्लिम सेना के ऊंटों और घोड़ों,और भारी सैन्य भार नदी पर नावों द्वारा ले जाया गया। मुस्लिम सेना कुछ ही दूरी तय कर पाई थी, तभी नदी के बांध को बंद कर देने के कारण जलस्तर गिर गया और सैन्य भार ढोने वाली नावें जमींदोज होने लगी। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) घुड़सवार सेना के साथ समान को वही छोडकर हीरा की ओर तेजी से जाने लगे। हिराह से लगभग बारह मील दूर बड़काला में, अराजबा के बेटे के दस्ते पर हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के दस्ते ने हमला किया, और एक एक आदमी को काट दिया। हजरत खालिद ने इसके बाद बांध खोला, और जैसे ही नदी में जल स्तर बढ़ा, मुस्लिम सेना ने भूमि के साथ-साथ नदी द्वारा अपनी प्रगति फिर से शुरू कर दी।
हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को उम्मीद थी कि उन्हें हीरा के लिए लड़ना पड़ेगा। इसलिए आगे से हीरा के पास जाने के बजाय खालिद ने चक्कर लगाया और पीछे से हीरा शहर के पास पहुंचा। जब मुसलमान शहर के द्वार पर पहुंचे, तो उनका विरोध करने के लिए कोई फारसी सेना नहीं थी। जब अजरबेह को अपने बेटे की मौत के बारे में पता चला, तो वह शोक से ग्रसित हो गया था। इस बीच फारस के सम्राट अर्शीर की मृत्यु हो गई और फारस उत्तराधिकार विवादों से हिल गया था। इससे अराजबा घबरा गया था। और वह हीरा को छोड़कर भाग गया था।
ईसाई अरबों ने, हालांकि, खुद को किलों में बंद कर लिया था और आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। हीरा के चार किले थे, जिसमें हर एक में एक कमांडर था जिनमें इयास बिन कुबैस, अदि बिन अदि, इब्न अकल, और अब्दुल मसीह थे।
हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) हर किले की तरफ एक एक सैन्य दस्ते भेजे और उनका घेराव कर लिया। मुसलमानों ने चार गढ़ों की घेराबंदी से, ईसाई अरबों समझौता करने के लिए तैयार हो गए और समझौते को मन लिया गया। ईसाई अरबों ने आत्मसमर्पण कर दिया, और मुसलमानों को वार्षिक जजिया देने के लिए सहमत हो गए।
समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हीरा में सामूहिक नमाज की इमामत किया। हीरा की जीत की खबर मदीना पहुंची। मध्य इराक अब मुसलमानों के पूर्ण कब्जे में था।
इस जंग को हीरा की जंग से इतिहास में जाना जाता है। हीरा की जीत 12 हिजरी, रबि उल अव्वल के महीने में हुई।