दौमतुल ज़ंदल की जंग
दौमतुल जंदल, एक महान सामरिक महत्व का स्थान था। यह इराक और सीरिया की सीमा पर स्थित था, और मध्य अरब, इराक और सीरिया के मार्गों का मिलन स्थल था। अरब की रक्षा के लिए रणनीति में, दौमतुल जंदल एक महत्वपूर्ण बिंदु था।
जब पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तबुक के लिए एक अभियान चलाया, तो हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को दौमतुल जंदल के लिए एक अभियान का नेतृत्व करने का निर्देश दिया गया था। हजरत खालिद अपने मिशन में सफल रहे थे, और दौमतुल जंदल के ईसाई अरब शासक ऊकैदर को बंदी बना लिया गया। ऊकैदर ने भारी फिरौती का भुगतान किया, और वार्षिक जजिया देने के लिए सहमत होने पर, उन्हें अपनी पद में बहाल कर दिया गया था।
पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की वफात के बाद, ऊकैदर ने मुसलमानों के साथ समझौता तोड़ दिया, और जजिया के भुगतान नहीं देने लगा। खलीफा हजरत अबू बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने दौमतुल जंदल को कब्जा करने के लिए ‘अयाज बिन गनम’ के तहत एक दस्ता भेजा था। लेकिन हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के इराक़ में किए गए जंगों के परिणामस्वरूप कई ईसाई अरब सैनिक भागकर दौमतुल जन्दल में शरण ली थी, और इससे हजरत ‘अयाज’ को दौमतुल जंदल कब्जा करने में मुस्किल आ रहे थे। उन्होंने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) से मदद मांगी। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने तुरंत हजरत ‘अयाज’ की मदद के लिए जाने का फैसला किया। ऐन-उत-तम्र’ में सेना दस्ता छोड़कर, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने दौलतुल जन्दल की ओर अपने मुख्य बल के साथ सफ़र किया। हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने दस दिनों में दौमतुल जंदल तक का तीन सौ मील का सफर तय किया।
दौमतुल जंदल में ईसाई अरब बलों का नेतृत्व दो प्रमुखों ऊकैदर और जूडी बिन रबीआ के पास था। ऊकैदर, जिन्हें हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के कौशल का व्यक्तिगत अनुभव था, जब उन्हें पता चला कि हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ‘अयाज’ की मदद के लिए आया है, तो वह असहज हो गए। उन्होंने ईसाई अरबों को हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) के साथ शांति बनाने की सलाह दी।
हालांकि, उसकी सलाह को उसके लोगों ने स्वीकार नहीं किया, उन लोगों ने लड़ने का फैसला किया। इसके बाद ऊकैदर दौमतुल जंदल से भाग गया, और जॉर्डन के लिए सड़क पर निकल गया। लेकिन वह जल्द ही हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) की घुड़सवार सेना की एक टुकड़ी के हाथ लगा। ऊकैदर का इसके बाद किया हुआ इसका पता नहीं मिलता।
इसके बाद हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने दौमतुल जंदल की घेराबंदी की। जूडी बिन रबीआ के तहत ईसाई अरबों ने प्रतिरोध की, लेकिन वे लंबे समय तक नहीं टिक सके। दौमतुल जंदल जमादी-उल-अखिर, 12 हिजरी को मुस्लिम सेना ने जीत ली। इस लड़ाई में दो हजार से अधिक ईसाई अरब मारे गए थे।
इस जंग को दौमतुल जंदल की द्वितीय जंग से जाना जाता है।