कफ़न दफ़न
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के चाहने वालों को यक़ीन नहीं आता था कि हुज़ूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है । इसलिए हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु ने तलवार खींच ली कि जो कहेगा के आंहज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने वफ़ात पाई उसका सर उड़ा दूँगा।
फिर हज़रत ‘अबू बक्र सिद्दीक़’ रज़िअल्लाह अन्हु आए और उन्होंने तमाम सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु के सामने खुत्बा दिया कि हुज़ूर का इस जहां से तशरीफ़ ले जाना यक़ीनी है और क़ुरआन मजीद की आयत पढ़कर सुनाई तो लोगों की आंखें खुली और उस नागुरेज़ घटना का विश्वास आया। कफ़न दफ़न का काम शनिवार को शुरू हुआ। यह खिदमत उनके ख़ास रिश्तेदार और दोस्तों ने अंजाम दी । हज़रत ‘फ़ज़ल बिन अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु, हज़रत ‘उसामा बिन ज़ैद’ रज़िअल्लाह अन्हु ने पर्दा किया और हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु ने ग़ुस्ल दिया। हज़रत ‘अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु भी मौके़ पर मौजूद थे। ग़ुसल और कफ़न के बाद यह सवाल पैदा हुआ कि आपको दफन कहाँ किया जाए। हज़रत ‘अबू बक्र सिद्दीक़’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा नबी जिस मुकाम पर वफ़ात पाते हैं वहीं दफ़न भी होते हैं। इसलिए जिस्म मुबारक उठाकर और बिस्तर पलटकर ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के कमरे में ही उसी मकान पर कब्र खोदना सुनिश्चित किया गया। हजरत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा कहती है कि आपको किसी मैदान में इसलिए दफ़्न नहीं किया गया कि आखिरी क्षणों में आपको यह विश्वास था कि लोग आस्था से मेरी क़ब्र को भी इबादत गाह न बना लें । मैदान में इसके अलावा और भी मुश्किल थी।
हज़रत अबु तल्हा रज़िअल्लाह अन्हु ने मदीने के रिवाज के अनुसार कब्र खोदी जो बग़ली थी। जनाज़ा तैयार हो गया तो लोग नमाज़ के लिए टूट पड़े। जनाज़ा हुजरे के अंदर था। बारी-बारी से लोग थोड़े-थोड़े करके जाते थे। पहले मर्दों ने फिर औरतों ने फिर बच्चों ने नमाज़ पढ़ी लेकिन कोई इमाम न था। जिस्म मुबारक को हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु, हज़रत ‘फज़ल बिन अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु, हज़रत ‘उसाम बिन जै़द’ रज़िअल्लाह अन्हु और हज़रत ‘अब्दुल रहमान’ बिन औफ़’ रज़िअल्लाह ने कब्र में उतारा।