जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 47

अब्दुल क़ैस का प्रतिनिधिमण्डल

क़बीला ‘अब्दुल क़ैस’ का वफ़द ख़िदमत नब्वी में हाज़िर हुआ। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- तुम लोग किस क़बीले के हो? उन्होंने जवाब में कहा-“’राबिया’ क़ौम से।” नबी करीम ने उन्हें खुश आमदीद कहा। उन्होंने अर्ज़ किया- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमारे और आपके बीच क़बीला ‘मजार’ के काफ़िर आबाद हैं। हम शहर हराम में ही हाज़िर हो सकते हैं। इसलिये आप से गुज़ारिश है कि हमें साफ़-साफ़ समझा दिया जाये जिसपर हम भी अमल करते रहें और क़ौम के दबे कुचले लोग भी।”

फरमाया मैं चार बातों पर अमल करने और चार बातों के न करने का हुक्म देता हूँ। जो करना है वो ये बातें हैं-

1. एक अल्लाह पर ईमान लाना उससे मुराद ये है कि ला ईलाहा इलल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह की गवाही देते रहा करो।

2. नमाज़ की पाबंदी किया करो।

3. ज़कात अदा किया करो।

4. रमज़ान के रोज़े और माले ग़निमत से पाचवाँ हिस्सा निकाला करो।

और जिन चार बातों के न करने की ताईद की जाती है

1. दुब्बा( ये कददू के छिलके का एक बर्तन हुआ करता था)

2. हन्तम ( हरे रंग का एक घडा)

3. नक़ीर ( पेड की जड को अन्दर से खेखला करके बनाया गया बर्तन)

4. मुज़फ़्फत ( तारकोल के बर्तन पर लगाने को कहते है)

ये सभी बर्तन शराब पीने के काम में आते थे

उन्होंने कहा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आपको क्या मालूम की ‘नक़ीर’ क्या होती है?”

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “मैं जानता हूँ खजूर के तने को खोखला करते हो और उसमें खजूरें भर दिया करते हो। फिर उसमें पानी डालते हो। उसको उबालते हो। जब वो ठंडा हो जाता है तो उसको पिया करते हो। मुमकिन है कि तुममें से कोई इस नशे को करने के बाद अपने चचेरे भाई का क़त्ल कर दे।”

कमाल की बात ये थी कि इस वफ़्द में ‘जारुद बिन मौअल्ला’ जो मसीह के मज़बह से था। उसने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सम्बोधन किया- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मैं इस वक़्त भी एक मज़हब रखता हूँ। अगर हम इसे तर्क करके आपके मज़हब में दाखिल हो जायें तो क्या आप हमारे ज़ामिन बन सकते हैं?”

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “मैं ज़ामिन बनता हूँ क्योंकि जिस मज़हब की मैं दावत दे रहा हूँ ये उससे बेहतर है जिस पर तुम अब हो।”

ये सुनकर ‘जारूद’ रज़िअल्लाह अन्हु के साथ बहुत से ईसाइयों ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया और वो मुसलमान हो गये।

बनू उनैफ़ा का प्रतिनिधिमण्डल 

बनू ‘उनैफ़ा’ का प्रतिनिधिमण्डल नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। हज़रत ‘समामा बिन उसाल’ रज़िअल्लाह अन्हु के प्रयासों से यहाँ इस्लाम फैला था। ये प्रतिनिधि मण्डल मदीने आकर मुसलमान हुआ था। इसी परितिनिधि मण्डल में मुस्लिमा ‘कस्साब’ भी शामिल था। उसने आकर ये ऐलान कर दिया कि अगर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये वादा करें कि उनके बाद मुझे उनका उत्तराधिकारी बनाया जायेगा तो मैं इस्लाम कुबूल कर लूँगा। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथ में उस वक़्त एक छड़ी थी तो उसी को ज़मीन पर मार के कहने लगे- “ मैं तो इस छड़ी के देने की शर्त पर भी बैअत लेना नहीं चाहता। अगर वो बैअत न करेगा तो अल्लाह उसे बर्बादी में डाल देगा। उसका अंजाम अल्लाह रब्बुल इज़ज़त ने मुझे दिखा दिया है।”

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