जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 41

शाह ए ईरान को ख़त

‘खुसरु परवेज़ किसरा’ ईरान का शहनशाह था। ‘अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफ़ा’ रज़िअल्लाह अन्हु उसकी ओर ख़त लेकर गये।

बिस्मिल्लाह अर्रहमान निर्रहीम 

मुहम्मद रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जानिब से किसरा के बुजुर्ग फारस के नाम। सलाम उस पर जो सीधे रास्ते पर चलाता है और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाता है। साथ ही ये गवाही देता है कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके रसूल हैं। मैं तुझे अल्लाह के पैग़ाम की दावत देता हूँ। और मैं अल्लाह का रसूल हूँ मुझे नस्ल ऐ आदम की तरफ़ भेजा गया है। ताकि जो ज़िन्दा हैं उसे खुदा के अज़ाब का डर सुनाया जाये। और जो इससे मुन्किर हुए उनपर अल्लाह का कथन पूरा हो। तू मुसलमान हो जाये। अल्लाह की पनाह में रहेगा वरना जादू का गुनाह तेरे सर होगा।

खुसरू परवेज़ ने गुस्से के आलम मे ख़त के पुर्जे-पुर्जे कर डाले और दहाड़ते हुए बोला- “मेरी प्रजा का छोटा सा आदमी मुझे ख़त लिखने की हिम्मत करता है और अपना नाम भी मेरे नाम से पहले लिखता है।” उसने खुसरो बाज़ान को हुकुम दिया कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को गिरफ़्तार कर लाये। बाज़ान ने एक फौजी दस्ते को भेजा। फौजी अफ़सर का नाम खर्र खुसरु था। एक और मुल्की अफ़सर जिसका नाम बाबुईया था। उसे हिदायत दी गई थी कि वो हज़रत(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर नज़रे रखे और उनको गिरफ़्तार करके किसरा के पास पहुँचा दे। अगर वो साथ चलने से इंकार करें तो तुरन्त ख़बर करे। गरज़ बाबूईया मदीने में नबी अल्लाह के हुजूर हाज़िर हुआ और गिरफ़्तारी का फ़रमान सुनाया। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा तुम कल फिर आना। दूसरे दिन जब वो हाज़िर हुआ तो हज़रत(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)ने कहा- “आज रात तुम्हारे बादशाह को अल्लाह ने क़त्ल करवा डाला। जाओ और जाकर देख लो।” अफ़सरों ने जब ये सुना तो यमन को वापस लौट गये। वहाँ वायसरा पर सरकारी इत्तिला आ चुकी थी कि खुसरु परवेज़ को उसके बेटे ने क़त्ल कर दिया है और खुद विराजमान हो गया है। उसका नाम शिरोईया था।

इसके बाद बाज़ान ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर गहरी तहक़ीक़ की। समझा कि उनकी तालीम क्या है? हिदायतें कैसी हैं? धर्म कर्म कैसे हैं? अपने लोगों के साथ उनका रवैया कैसा है? वग़ैरा वग़ैरा और फिर वो मुसलमान हो गया। उसी के साथ मुल्क का एक बड़ा हिस्सा भी इस्लाम में दाख़िल हो गया।

जो सफीर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ख़त लेकर गया था उसने वापस आकर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बताया कि शाह ए ईरान ने आपके खत के पुर्जे पुर्जे करके हवा में उड़ा दिये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा “उसने ख़त के टुकड़े नहीं किये है बल्कि अपनी सल्तनत के टुकडे किये हैं।” फिर तारीख ने देखा कि ईरान के कितने टुकडे हुए।

ख़ैबर का युद्ध 

ख़ैबर मदीने से शाम की तरफ़ एक जगह का नाम है। यहाँ सिर्फ यहूदियों का क़ब्ज़ा था। आबादी के आस-पास बहुत मज़बूत क़िले बने हुए थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हुदैबिया से लौटे और एक महीना भी न गुज़रा था कि आपको खबर मिली कि यहूदी हमलाआवर होने वाले हैं। उन्होंने क़बीला अतफान के चार हज़ार जंगजू को भी अपने साथ इस शरत पर राज़ी कर लिया कि अगर मदीना फतह हो गया तो पैदावार का आधे हिस्से का हकदार बनू अतफान रहेगा।

इस जंग में नबी अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन सहाबा को साथ लिया था जो एक दरख़्त के साये तले आपके हाथ पर बैअत हुऐ थे और अल्लाह ने कहा था कि हम इनके दिलों के राज़ जानते हैं। अल्लाह की रहमत उनपर नाज़िल हो। आपके अल्लाह की जानिब से ये खुश ख़बरी मिल चुकी थी।- 

‘अल्लाह ने आपसे बहुत से मक़ाम दिलाने का वादा किया जिन्हें आप हासिल करेंगे।’

इस्लाम का लश्कर रात के वक्त खैबर पहुँच गया था। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ये आदत थी कि आप रात के वक़्त लडाई शुरु नहीं किया करते थे। इस्लामी फ़ौज के डेरे ख़ैबर और बनू अतफान के बीच में थे। इस हिकमत अमली का ये असर हुआ कि जब बनू अतफान यहूदियों की मदद के लिये निकला तो रास्ते में इस्लाम के लश्कर को डेरा डाले पाया और चुप चाप वापस निकल गये।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सबसे पहले ख़ैबर के क़िलों की तरफ अपनी तवज्जो की। एक एक करके उन किलों पर फत्ह का झंडा लहराते रहे। उन क़िलों में एक किला मरजह यहूदी का था। जिसे हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु ने फत्ह किया। तारीख की रौशनी से मालूम होता है कि ये क़िला और क़िलों के मुक़ाबले में ज्यादा पायदार और महफूज़ समझा जाता था। मुसलमान जी तोड़ मेहनत कर रहे थे मगर ये फत्ह होने का नाम नहीं ले रहा था। यही मौक़ा था जब हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु की आँखें दुखने को आ गई थीं। 

हज़रत(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- “कल फौज का झंडा उस शख़्स को दिया जायेगा जिससे अल्लाह और अल्लाह के रसूल मुहब्बत करते हैं और अल्लाह तआला हमें फत्ह नसीब फरमायेगा।”

ये ऐसा ऐलान था कि फौज के बड़े-बड़े बहादुर अगले दिन झंडा मिलने की ख्वाहिश दिल में पाल बैठै थे। हर एक की आरज़ू थी कि फौज का झंडा उसके हाथों में हो। सुबह हुई तो हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु को बुलवा भेजा। लोगों ने बताया कि उनकी आँखें दुख रही है और दर्द की शिददत भी महसूस कर रहे हैं। मगर हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु तशरीफ़ ले आये। आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपना लुआबे दहन (मुखस्राव) उनकी आँखों पर लगाया जिससे पल भर में आप की आँखें ठीक हो गयीं। अब न आँखों में सुर्खी बाकी थी न ही दर्द की शिददत ही मालूम होती थी। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- अली जाओ और राह ऐ खुदा में जिहाद करो। याद रखो पहले इस्लाम की दावत देना, फिर जंग करना। अली! अगर तुम्हारे हाथों एक आदमी भी मुसलमान हो गया तो ये काम बडा माल ए ग़नीमत मिलने से ज़्यादा अच्छा है।

हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु ने क़िला नाअम पर घेरा डाल दिया। मुक़ाबले के लिये क़िले का बहादुर मरजब सामने आया। उसके बारे में मशहूर था कि वो हज़ार बहादुरों के बराबर था। उसने आते ही कहा “क़िला अच्छी तरह जानता है कि मैं हथियार सजाने वाला बहादुर और तजर्बेकार मरजब हूँ। जब फौज के कदम उखड जाते हैं तब मैं अपनी बहादुरी दिखाता हूँ।”

मरजब के मुक़ाबले के लिये हज़रत आमिर बिन अलकू्अ निकले। उनकी जबान पर ये अल्फाज थे।

“ख़ैबर जानता है कि मैं हथियार चलाने में माहिर और उस्ताद हूँ। साथ ही सख्त ज़बान भी हूँ और मेरा नाम आमिर है।’

मरजब ने ‘आमिर’ रज़िअल्लाह अन्हु पर वार किया जिसे ‘आमिर’ रजिअल्लाहअन्हु ने अपनी ढाल पर रोक लिया और पलटवार में हमला किया। मरजब कुछ कदम पीछे हटा ‘आमिर’ रजिअल्लाह अन्हु की तलवार छोटी थी नतीजन उनकी तलवार उचट कर आपके ही घुटने पर लगी और आप वहीं शहीद हो गये। इसके बाद अली मुर्तज़ा निकले। नारा ए हैदरी से मैदान गूंज उठा।

 – मैं हूँ कि मेरी मां ने मेरा नाम शेर ग़जंफर रखा है। और मैं जंगल की शेर की तरह बेखौफ़ हूँ। मैं अपने पैमानों की सखावत से ज्यादा सखावत करुंगा।

इतना कह कर आपने मरजब पर पहला ही ऐसा वार किया कि उसका काम तमाम हो गया।

खैबर का एक और क़िस्सा है कि एक स्याहफाम हब्शी जो यहूदी आक़ा की बकरियाँ चराया करता था उसने देखा कि यहूदी चढ़ाई की तैयारी कर रहे हैं तो उसने पूछा- “आप लोगों का क्या ईरादा है?” यहूदी ने कहा- “हम उस आदमी से लडने जा रहे हैं जो नबूवत का दावा करता है।” जब उसने ये सुना कि कोई नबूवत का दावा करता है तो उसके दिल में हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मिलने का शौक़ पैदा हुआ और वो अपना रेवड़ लेकर आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और अदब के साथ पूछा- “आप क्या फरमाते हैं और किस बात की दावत लोगों को देते हैं?’ आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “मैं इस्लाम की दावत देता हूँ और ये कि तुम गवाही दो कि अल्लाह के सिवा कोई ईबादत के लायक़ नहीं। और ये कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ और तुम अल्लाह के सिवा किसी की ईबादत न करो।” जैशी गुलाम ने पूछा- “अगर मैं ये गवाही दूँ और अल्लाह पर ईमान ले आऊँ तो इसके बदले में मुझे क्या मिलेगा?” आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- “अगर तुमने ये गवाही दी और इसी पर तुम्हारी मौत हो गयी तो जन्नत मिलेगी।” गुलाम ने कलमा पढ़ा और और रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा- “या नबी अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये रेवड़ मेरे पास अमानत है। इसका मैं क्या करुँ?’ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा इनको हकां दो और इनपर कंकरी मारो। अल्लाह तुम्हारी अमानत अदा करा देगा। उसने ऐसा ही किया और सारी बकरियाँ अपने मालिक के पास पहुँच गयीं। मालिक समझ गया कि गुलाम मुसलमान हो चुका है। जब कुफ़्फ़ार का मुक़ाबला हुआ तो मुसलमान शहीदों में ये गुलाम भी शामिल था। लोग उसकी मय्यत को उठा कर खेमे में ले गये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब गुलाम को देखा तो कहा- “अल्लाह ने इस पर बडी मेहरबानी की है और इसे बडी नेमत अता की है। मैंने इसके सिरहाने दो हूरें देखीं हैं। हांलाकि ये सच है कि इसे अल्लाह ने एक सजदा तक अदा करने की तौफीक़ नहीं दी।”

इसी तरह का एक और वाक़िया है। हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की खिदमत में एक शख़्स आया और उसने कहा- “या रसूल अल्लाह मैं एक स्याहफाम गुलाम हूँ और बद सूरत आदमी हूँ। माल भी मेरे पास नहीं है। अगर मैं यहूदियों से जंग करता मारा जाऊँ तो क्या मुझे भी जन्नत मिलेगी? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- ‘हां’। ये सुनकर वो आगे बढ़ा और यहूदियों से जंग करता हुआ शहीद हो गया। आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके पास आये और फरमाया- “अल्लाह ने तुम्हें खूबसूरत बना दिया और खुशबू से भर दिया और तुम्हें मालदार कर दिया। फिर फरमाया- “मैंने देखा कि दो हूरें इसकी बीवियाँ हैं।”

एक और वाक़िया यहाँ दर्ज करना ज्यादा मुनासिब है। ये घटना ख़ैबर की लडाई से पहले पेश आया था एक अरबी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की खिदमत में हाज़िर हुआ और ईमान लाया। आपने उन्हें एक सहाबी को सौंप दिया कि इसकी तालीमों तरबियत करें। फिर ख़ैबर की जंग हुई और यहाँ से दो माले ग़नीमत हाथ आया उसमें अरबी का भी हिस्सा निकाला गया। जब वो आया उसका हिस्सा निकाल कर उन्हें दिया गया तो उसने हैरत से पूछा “या रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये क्या है?”

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- “ये तुम्हारा हिस्सा है।” तो उसने कहा “मैं इसलिये आप के पास थोड़ी न आया था। मैं तो इस लिये आपके साथ हुआ था कि (फिर उसने अपने हलक़ की तरफ़ ईशारा किया) यहाँ मेरे तीर लगे और मैं मर कर जन्न्त में चला जाऊँ।” आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “अगर तुम इस इरादे में सच्चे हो तो अल्लाह भी वही करके दिखायेगा।” ख़ैबर की लडाई में जब ये अरबी भी शहीद हुए तो लोग उनकी लाश को हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास लाये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा “ये वो ही है ना?” लोगो ने कहा “जी रसूल अल्लाह। फरमाया इसका मामला अल्लाह से सच्चा था। अल्लाह ने वही किया। आपने उन सहाबी को उन्हीं के जुब्बे में कफनाया और सामने रख कर नमाज़ पढाई। साथ ही दुआ में ये भी मांगा। “ऐ अल्लाह तेरा ये बंदा तेरे रास्ते में हिजरत करके निकला था और शहीद हुआ मैं इसका गवाह हूँ।” फतह कर लेने के बाद शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया गया तो यहूद ने कहा- “ज़मीन हमारे पास ही रहने दी जाये हम इसकी पैदावार का आधा हिस्सा दिया करेंगे।”

उनकी ये अर्ज़ी मंज़ूर कर ली गयी। जब फसल के बटने का वक़्त आता तो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़िअल्लाह को भेजते। वो पैदावार फसल के दो हिस्से करते और कहते जो हिस्सा चाहो ले सकते हो। उनकी इस ईमानदारी पर यहूद कहते- “ज़मीन और आसमान ऐसे ही इंसाफ़ से कायम हैं।” फिर ख़ैबर की सारी ज़मीन जो मुजाहिदीन इस जंग में शामिल थे उनमें बांट दी गयी।

ख़ैबर के ही मौक़े पर हज़रत ‘जाफर बिन अबी तालिब’ रज़िअल्लाह अन्हु अपने साथियों के साथ हब्शा पहुँचे। उनके साथ यमन के अशअरी भी थे। ये तक़रीबन पचास आदमी से ज़्यादा थे। ये कश्ती से आये थे। वहाँ हज़रत ‘जाफर बिन अबी तालिब’ रज़िअल्लाह अन्हु से मुलाक़ात हुई। हज़रत ‘जाफ़र बिन अबी तालिब’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा ‘हमको यहाँ रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भेजा है और ठहरने को कहा है। तुम लोग भी हमारे साथ ठहरो।” फिर वो हब्शा से एक साथ ही रवाना हुए। जब हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ‘जाफ़र बिन अबी तालिब’ रज़िअल्लाह अन्हु की आवाज़ सुनी तो बहुत खुश होकर उनसे मिले और उनके माथे पर बोसा भी दिया। कहने लगे “अल्लाह की क़सम मुझे नहीं पता कि मुझे ख़ैबर की फत्ह की ज्यादा खुशी है या जाफ़र’ रज़िअल्लाह अन्हु के आने की।” खैबर से मिलने वाले माले ग़निमत में से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने आने वालों का हिस्सा भी निकाला। ख़ैबर के मौक़े पर ही एक यहूदी औरत सलाम बिन मकशम यहूदी की ज़ोजा जैनब ने लोगों से पूछा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को कौन सा गोश्त ज्यादा पसंद है?’ लोगों ने बताया कि दस्त (आगे के पंजों) का। उसने एक बकरी को ज़िब्हा किया और उसके हाथ वाले गोश्त पर खूब ज़हर मला। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब उस हाथ वाले गोश्त को खाया तो अल्लाह ने आपको इसकी खबर दी कि इस गोश्त में ज़हर मिला हुआ है। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब यहूदियों से पूछा कि क्या आपने बकरी के हाथ वाले गोश्त में जहर मिलाया है तो यहूदियों ने इस जुर्म को क़ुबूल किया। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- “ऐसा क्यों किया?” तो यहूदी कहने लगे- “हमने सोचा अगर आप झूंठे हैं तो हमें आपसे छुटकारा मिल जायेगा और अगर आप पैग़म्बर हैं तो आपको कोई नुकसान नहीं होगा।” उस खातून को भी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की खिदमत में पेश किया। उसने भी क़ुबूल किया कि उसने आपके क़त्ल करने के ईरादे से ही गोश्त में ज़हर मिलाया था। आपने फरमाया “मेरा रब तुझे इसका मौक़ा नहीं दे सकता।” सहाबा ने पूछा- “क्या हम इसको क़त्ल कर दें?” आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “नहीं!”

सुलह हुदैबिया में जो समझौता हुआ था कि हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आईन्दा साल हज कर सकते हैं और सिर्फ तीन दिन रुक सकते हैं तो आपने ऐलान कर दिया कि जो लोग सुलह हुदैबिया के मौक़े पर हाज़िर थे वो सब हज के लिये रवाना हो जायें। सिवाये उनके जिन्हें अल्लाह ने अपने पास बुला लिया था सब हज के लिये रवाना हुए। समझौते में ये भी शर्त थी कि मुसलमान अपने साथ हथियार नहीं ला सकते। लिहाज़ा मक्का से आठ मील पहले छोड दिये और दो सौ लोगों को उसकी हिफ़ाज़त में वहीं छोड़ आये। ‘अब्दुल्लाह बिन रवाहा’ रज़िअल्लाह अन्हु आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ऊँट की लगाम थामे आगे आगे चल रहे थे और ये कलमात पढते जाते थे।

– ‘काफिरो! सामने से हट जाओ। आज जो तुमने उतरने से रोका तो हम तलवार का वार करेंगे और तुम्हारे सर पर वार करेंगे। वो वार जो तुम्हारे सर को ख्वाबगाह से अलग कर देगा और सारी दोस्ती हवा हो जायेगी।’

अहले मक्का का ख्याल था कि मुस्लमानों को मदीने की हवा ने कमज़ोर कर दिया होगा इसलिये अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सहाबा के बडे हुजूम को, जो अपनी पुरानी ख्वाहिश के पूरा होने की खुशी में मदहोश थे, को हुकुम दिया कि साथियो पहले तीन फेरों में अकड़ कर तवाफ़ करें। ये सुन्नत आज तक क़ायम है।

हालांकि मक्का वालों ने हज की इजाज़त दे दी थी मगर सहाबा का इतना बडा हुजूम देखकर वो इसकी ताब न ला सके और अक्सर लोग मक्का से निकल कर पहाडों में चले गये। ऐसा लगता था कि सारा शहर खाली हो गया है। तीन दिन पूरे होने के बाद ये लोग हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु के पास आये और कहने लगे। शर्त के मुकाबिक तीन दिन ठहरने की इजाज़त थी। अब आप लोग यहाँ से चले जायें। आपने उनका पैगाम आका-ए- नामदार को पहुँचा दिया और सब लोग मक्का से निकल गये।

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