जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 42

मक्का की विजय

मुसलमान जब मुअता की लड़ाई से वापस आये जिसमें बहुत ज़्यादा जानी नुक़्सान उठाना पड़ा था तो कु़रैश को ये ख़्याल हुआ के इनका ख़ातमा हो गया है। इसलिये उन्होंने अपने हलीफ़ क़बीला ‘बनी बक्र’ को मुसलमानों के खिलाफ़ उकसाया और हथियारों से मदद की कि वो मुसलमानों के हलीफ़ क़बीला-ए-खु़ज़ाआ पर हमला करे। बनी बक्र ने खुज़ाआ पर हमला करके उनके कुछ लोग क़त्ल कर दिये। खु़ज़ाआ मक्का पहुँच गये और उनके सरदार अ़म्र बिन सालिम अल-खु़ज़ाई हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास मदीना गये और उन्हें तमाम हालात से आगाह करके उनसे मदद चाही। हुजू़र(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया “एै ‘अ़म्र बिन सालिम’ तुम्हारी मदद हो।” हुजू़र (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फै़सला किया के कु़रैश ने यह विश्वासघात किया है और अब इसका हल यही है कि मक्का फ़तह कर लिया जाये।

उधर कु़रैश को भी इस विश्वासघात की वजह से ख़ौफ़ था। चुनांचे उन्होंने मुआहिदा हुदैबिया को पक्का करने और उसकी मुदद्त बढ़वाने के लिये ‘अबू सुफ़ीयान ‘को भेजा। ‘अबू सुफ़ीयान’ मदीना पहुँचे तो हुजू़र (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मिलने से कतरा रहे थे। लिहाज़ा वो अपनी बेटी हज़रत ‘उम्मे हबीबा’ रज़िअल्लाह अन्हु के घर की तरफ़ गये। जो हुज़ूर की पत्नियों में से थीं। जब वो हुजू़र पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बिस्तर पर बैठने लगे तो हज़रत ‘उम्मे हबीबा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने उस बिस्तर को लपेट कर रख दिया। ‘अबू सुफ़ीयान’ ने पूछा के क्या तुमने यह बिस्तर इसलिये लपेट दिया कि मैं इस बिस्तर के लायक़ नहीं हूँ या इसलिये के यह बिस्तर मेरे लायक़ नहीं है? हज़रत ‘उम्मे हबीबा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने जवाब दिया कि यह बिस्तर हुजू़र पाक(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का है और तुम एक नापाक मुश्रिक हो। मैं नहीं चाहती के तुम इस पर बैठो। ‘अबू सुफ़ीयान’ निहायत ग़ज़बनाक हालत में बेटी से यह कहते हुये बाहर निकल गये कि तुम ने जब से मुझे छोड़ा है तू ख़राब हो गई है। फिर वे हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास गये और उनसे मुहाईदा की मीआद बढ़ाने की बात की लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कोई जवाब नहीं दिया। उसके बाद वो हज़रत ‘अबू बक्र’ सिद्दीक रज़िअल्लाह अन्हु के पास गये और उनसे कहा कि वो हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से बात करें। लेकिन हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु ने मना कर दिया। अब वो हज़रत ‘उ़मर’ रज़िअल्लाहअन्हु के पास गये। हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु ने भी उन्हें झिड़क दिया और फ़रमाया कि क्या मैं तुम लोगों की अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सिफ़ारिश करुँ? अल्लाह की क़सम अगर मेरे पास एक ज़िराह भी रह जाये तो मैं उसी से तुम से जिहाद करूंगा।

इसके बाद वो हज़रत ‘अ़ली’ रज़िअल्लाह अन्हुके पास गये जहां हज़रत ‘फ़ातिमा’ रज़िअल्लाह अन्हा भी थीं। उन्हें अपने आने की वजह बताई और हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सिफ़ारिश करने को कहा। हज़रत ‘अ़ली’ रज़िअल्लाह अन्हु ने जवाब दिया कि जब हुजू़र(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) किसी बात का फै़सला कर लें तो कोई भी उन्हें उस फै़सला पर अ़मल करने से नहीं रोक सकता। ‘अबू सुफ़ीयान’ ने अब हज़रत ‘फ़ातिमा’ रज़िअल्लाह अन्हा से रुजूअ़ किया और दरख़्वास्त की कि वो अपने बेटे हज़रत ‘हसन’ रज़िअल्लाह अन्हु को इस काम में लायें जो अभी बहुत कम उ़म्र थे। हज़रत फ़ातिमा रज़िअल्लाह अन्हु ने ये कहते हुये इन्कार कर दिया कि एक तो ‘हसन’ रज़िअल्लाह अन्हु बहुत छोटे हैं और दूसरे ये कि अल्लाह के रसूल के मुआमिलात में कोई भी ऐसा नहीं जो मुदाखि़लत कर सके। ‘अबू सुफ़ीयान’ हर तरफ़ से मायूस होकर मक्का लौट गये और लोगों को अपनी रूदाद सुनाई। उधर हुजू़र अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़ौरन लोगों को तैयार होने का हुक्म दिया और उनके साथ मक्का के लिये रवाना हुये। इस तरह आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का मंशा ये थी कि कु़रैश को अचानक घेर लिया जाये और वो इस तरफ़ से ग़ाफ़िल हों ताकि बग़ैर खून बहाये ही वो हथियार डाल दें।

यह फ़ौज जिसकी तादाद दो हज़ार थी रवाना हुई और मक्का से तक़रीबन इक्कीस (21) किलो मीटर के फ़ासला पर ‘मर्र अज़-ज़हरान’ के मुक़ाम तक पहुँची। अभी तक कु़रैश को इस फ़ौज के आने की ख़बर नहीं हुई थी। लेकिन उन्हें मक्का पर ख़तरा का बहरहाल अन्दाज़ा था और वो उसके बचाव की तदबीरों पर आपस में बहसें कर रहे थे। ‘अबू सुफ़ीयान’ जो मक्का की हिफ़ाज़त और उसके ख़तरात से चौकस रहते थे आस पास में गश्त कर रहे थे कि उन्हें हज़रत ‘अ़ब्बास इब्ने अ़ब्दुल मुत्तलिब’ रज़िअल्लाह अन्हु मिले जो इस्लाम में दाख़िल हो चुके थे और हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के खच्चर पर सवार थे। हज़रत ‘अ़ब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु कु़रैश को ख़बरदार करने जा रहे थे कि वो मुसलमानों की पनाह हासिल कर लें क्योंकि उनके पास अब और कोई रास्ता रह नहीं गया है। जब यह दोनो मिले तो हज़रत ‘अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अबू सुफ़ीयान से कहा कि अल्लाह के रसूल आ पहुंचे हैं और अगर कु़रैश मुसलमानों की पनाह में नहीं आ जाते तो उनके लिये सिर्फ़ बर्बादी ही होगी। अबू सुफीयान ने हज़रत ‘अ़ब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु से पूछा- ‘मेरे माँ-बाप तुम पर कुर्बान। अब क्या रास्ता रह गया है? जवाबन हज़रत ‘अ़ब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु ने ‘अबू सुफ़ीयान’ को ख़च्चर के पीछे बिठाया और दोनों चले। रास्ता में हज़रत ‘उ़मर’ रज़िअल्लाह अन्हु ने जब उन्हें देखा तो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ख़च्चर को और ‘अबू सुफ़ीयान’ को पहचान लिया और समझ गये के ये हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास किसी वजह से जा रहे हैं। तो वो हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के खे़मे की तरफ़ दौडे़ और ये आग्रह किया कि ‘अबू सुफ़ीयान’ की गर्दन उड़ा दी जाये। उधर हज़रत ‘अ़ब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु भी पहुँच गये और कहा कि उन्होंने ‘अबू सुफ़ीयान’ को पनाह दी है। हज़रत अ़ब्बास और हज़रत ‘उ़मर’ रज़िअल्लाह अन्हु के दरमियान गर्म बहस हुई। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अ़ब्बास से कहा कि वो ‘अबू सुफ़ीयान’ को लेकर अपने खै़में में चले जायें और सुब्ह को उनके पास लायें। अगली सुब्ह जब ‘अबू सुफ़ीयान’ को हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास लाया जा रहा था तो उन्होंने इस्लाम कुबू़ल किया और जब हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास पहुँचे तो हज़रत अ़ब्बास रज़िअल्लाह अन्हु ने हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)से कहा के अबू सुफ़ीयान को अपनी ख़ुद्दारी और ग़ूरूर निहायत अ़ज़ीज़ हैं। लिहाज़ा आप ऐसा कुछ कर दीजिये जिससे उसकी ख़ुद्दारी बनी रहे। हुजू़र(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

हां। जो कोई अबू सुफ़ीयान के घर मे दाखि़ल हो गया वो महफूज़ हुआ जिस ने ‘अबू सुफ़ीयान’ के घर का दरवाज़ा बंद किया वो महफ़ूज़ हुआ और जो कोई मस्जिद (काबा) में दाख़िल हुआ वो भी महफूज़ हो गया।

फिर हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हुक्म दिया कि अबू सुफ़ीयान को मक्का के रास्ता में पड़ने वाले पहाड़ के दामन में तंग सी वादी में कै़द रखा जाये ताकि वो अपने सामने से गुज़रने वाली फ़ौज को देखे। लेकिन जल्दी पहुंचकर कु़रैश को इत्तिलाअ़ न दे सके और कु़रैश ज़रा सा भी विरोध न कर पाऐं। इसके बाद हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पूरी एैहतियात और चैकसी से मक्का मे दाख़िल हुये और इधर अबू सुफ़ीयान मक्का पहुँचे और ऊँची आवाज़ से ये एैलान किया के एै कु़रैश, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का में दाख़िल हो गये हैं और अब तुम्हारे पास कोई राह नहीं बची है। अब जो कोई अबू सुफ़ीयान के घर में दाखि़ल हो गया वो महफू़ज़ है। जो ‘अबू सुफ़ीयान’ के दरवाज़े पर पहुँच गया वो महफ़ूज़ है और जो कोई मस्जिद हरम में पहुंच गया वो महफूज़ है। 

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