मक्का शहर के सरदार और हुज़ूर की बातचीत
“मक्का” के मुश्रिकों को एक के बाद एक नाकामी झेलनी पड़ रही थी। हर तरकीब हर बात खराब हो रही थी। इसके लिए उन सबने तय किया कि एक बार हम सब मिल कर एक साथ “मुहम्मद”मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से बात हैं और उन्हें राज़ी करने की कोशिश करते है। एक शख्स पैग़ाम लेकर हुज़ूर अकरम के पास आ पहुँचा कि क़ौम के सभी सरदार आपसे कुछ बात करना चाहते हैं और “काबा” के पास जमा हैं। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गए क्योंकि हुज़ूर अकरम को बड़ी तमन्ना थी कि यह लोग ईमान ले आएं। जब नबी पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) वहाँ जाकर बैठे तो सरदारों ने बात शुरू की।
“ऐ मुहम्मद” मुस्तफ़ा!(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमने आपको यहाँ बात करने के लिए बुलाया है। क़सम अल्लाह की हम किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानते जो अपनी क़ौम के लिए इतनी मुश्किल लाया हो जितना आपने हमें परेशान किया है। हम बड़े परेशान हो गए हैं। अब तुम यह बताओ अगर इस नए धर्म से तुम को माल व दौलत जमा करना हो तो हम सब इतना माल लाकर तुम्हें देंगे कि हमारे पास एक सिक्का भी नहीं बचेगा। अगर इज़्ज़त व शौहरत के इच्छुक हो तो हम तुम्हें सब का सरदार बना देते हैं और अगर तुम अलग राज्य बनाना चाहते हो तो हम ख़ुशी से तुम्हें अपना राजा मान लेंगे या अगर तुम समझते हो जो चीज़ तुम्हें दिखाई देती है वो कोई “जिन” है जो तुमको तंग कर रहा है तो हम तंत्र-मंत्र में अपना सब कुछ झोंक देंगे ताकि तुम इस परेशानी से निकल सको।”
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया “तुमने जो कुछ भी कहा उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैं जो तालीम लेकर आया हूँ न तो उसका मक़सद माल इकठ्ठा करना है, न ही इज़्ज़त और न कोई सल्तनत। बात दरअस्ल ये है कि अल्लाह ने मुझे “रसूल’ बनाया है। मुझपर अपनी किताब उतरी है। मुझे अपना पैग़म्बर बनाया है। मैंने अपने रब के पैग़ाम तुम तक पहुँचाये हैं। अगर तुम इन बातों को मानो, एक अल्लाह को मानो तो ये तुम्हारी दुनिया और दुनिया के बाद की ज़िन्दगी के लिए फायदेमंद है। अगर तुम मेरी इस बात को ठुकरा दो तो फिर मैं अल्लाह के संदेश की प्रतिक्षा करूँगा। वो मेरे और तुम्हारे लिए देता है।’
यह जवाब सुन के क़ुरैश ने कहा, “अच्छा ‘मुहम्मद’(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)! अगर तुम हमारी पेशकश को नहीं मानते और अपनी बात पर ही अडे रहोगे तो एक बात सुनो। तुम को मालूम ही है कि यहाँ की जिंदगी कितनी कठिन है। पानी कितना कम है। न कोई पैदावार है न फल सब्ज़ी तो एक काम करो अपने अल्लाह से कहो ये आस-पास के पहाड़ों को हटा दे ताकि हमें खुला मैदान मिल सके। यहाँ ऐसी नहरें बहा दे जैसे मुल्क “शाम” (सीरिया)और “इराक़” में हैं। इसके साथ ही हमारे बाप दादाओं को भी फिर से ज़िंदा कर दे। उन ज़िंदा होने वालों में “क़ासिम बिन किलाब” भी होना चाहिए। क्योंकी वो हमारा सरदार हुआ करता था और बिल्कुल सच्चा आदमी था। हम उससे तेरे बारे में भी पूछ लेंगे और अगर वो तेरे बारे में राज़ी हुआ तो हम भी मान जाएंगे। अगर ये सब तू कर दे तो तो हम मान जाएंगे कि वाक़ई अल्लाह की ओर से यह तेरा कोई मुक़ाम है और हक़ीक़त में अल्लाह ने तुझे अपना रसूल बना कर भेजा है।
रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाब में फ़रमाया “ मुझे इन कामों के लिए रसूल बना कर नहीं भेजा गया है न ये काम मेरे करने के हैं, मैं अल्लाह की तालीम तुम तक पहुँचाने के लिए रसूल बनाया गया हूँ। वो पैग़ाम मैंने तुम्हें सुना दिया है। अगर तुम उनको मानोगे और उन पर अमल करोगे तो ये तुम्हारी ही दुनिया और दुनिया की बाद वाली ज़िन्दगी के लिए फायदेमंद है। अगर तुम इन पैग़ामो को नहीं मानते तो अल्लाह के हुक्म का इंतज़ार करो। देखो वो मेरा तुम्हारा क्या फैसला करता है।”
“क़ुरैश’ ने कहा। “अच्छा अगर तुम हमारे लिए कुछ नहीं करते तो खुद अपने ही लिए अल्लाह से मांग लो। मांग लो कि वो एक फ़रिश्ते को तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिए तैनात कर दे। जो यह कहता रहे यह शख्स सच्चा है। हमें तुम्हारी मुख़ालिफ़त से मना भी करे। साथ ही यह भी मांग लो कि तुम्हारे लिए बाग़ हों। बड़े-बड़े महल बन जाएँ। खज़ाना सोना-चाँदी जमा हो जाये। इन सब चीज़ों की तुम्हें ज़रूरत भी है, अब तक तो तुम खुद ही बाज़ार जाते हो और अपनी आमदनी के लिए काम करते हो। हाँ अगर ये सब हो जाये तो हम तुम्हारी बड़ाई मान लेंगे।
रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया : मैं ऐसा नहीं करूँगा। न ही अल्लाह से इन चीज़ो की माँग करूँगा। और इन बातों के लिए मैं ज़िम्मदेर भी नहीं बनाया गया हूँ। मुझे तो अल्लाह ने अपना प्रतिनिधि बनाया है। तुम मान लो तुम्हारा फायदा है वरना जो अल्लाह बेहतर समझे।”
“क़ुरैश” ने कहा “अच्छा तुम आसमान का टुकड़ा तोड़ कर हसिर पर गिरा दो। क्योंकि तुम्हारा दावा है कि अल्लाह ऐसा कर सकता है। फिर जब तक तुम ऐसा न करोगे हम ईमान नहीं लाएंगे।”
नबी अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया “ ये सब अल्लाह की मर्ज़ी है वो अगर चाहे तो ऐसा करे।”
“क़ुरैश” ने कहा“मुहम्मद” (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये तो बताओ कि तेरे अल्लाह ने तुझे पहले से ये नहीं बताया था कि हम तुझे बुलाएंगे। इस तरह के सवाल करेंगे। किन चीज़ों की मांग करेंगे। हमारी बातों का ये जवाब है और की मंशा ऐसा-ऐसा करने की है? अब क्योंकि तेरे रब ने ये सब नहीं बताया इस लिए हम समझते हैं कि जो हमने सुना है वही सही है।”यमामा” में एक “रहमान” नाम का व्यक्ति है जो तुझको ये सब बातें सिखाता है। इन बातों पर कभी ईमान नहीं लाने के। आज हमने अपनी सारी बात समझा दी है और ये भी कह देते हैं कि तुझे शिक्षा का प्रचार भी नहीं करने देंगे। इस सब में या तो हम मर जाएंगे या तू मारा जाएगा।”
ये हुई ही थी कि भीड़ में से एक बोला “हम “मलाइका” की पूजा करते हैं जो खुदा की बेटियां हैं।” दूसरा बोला ‘तेरी बात का यक़ीन तब तक नहीं करेंगे जब तक अल्लाह और फ़रिश्ते सामने नहीं आ जाते।’
नबी करीम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ये बात सुनी और उठ खड़े हुए। उनके साथ आपके फूफीज़ाद भाई “अबू उमैय्या बिन मुग़ीरा” भी उठ खड़े हुए। उसने हुज़ूर अकरम से कहा – “मुहम्मद” मुस्तफ़ा!(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) देखो तुम्हारी क़ौम ने कुछ चीज़ों का सवाल किया वो भी तुमने नहीं मानी। फिर इन्होंने ये चाहा कि तुम अपने लिए ही कुछ ऐसे करिश्मे करा लो जिससे तुम्हारा नबी होना साबित हो जाये। तुमने वो भी क़ुबूल नहीं किया। फिर इन्होंने अपने लिए थोड़ा सा अज़ाब माँगा जिससे तुम लोगों को डराते हो। तुमने इस बात को भी रद्द कर दिया। बस अब मैं तुम पर कभी विश्वास नहीं करुँगा चाहे तुम मेरे सामने आसमान पर सीढ़ी लगाकर ऊपर चढ़ जाओ और मेरे सामने उस सीढ़ी से नीचे उतर आओ और चाहे तुम्हारे साथ चार फ़रिश्ते भी हों जो तुम्हारे लिए गवाही दें। मैं तब भी तुम्हारी बात का यक़ीन नहीं करूँगा और तुम्हें नबी नहीं मानूँगा।
हुज़ूर अककम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस ख़राब बर्ताव के बाद भी इस्लाम की तालीम जारी रखी। आप मुहम्मद मुस्तफ़ा ने फ़रमाया कि मेरी तालीम में सब कुछ तुम्हारे लिए मौजूद है। जिन वुद्धिजीवी लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया और नबी की तालीम पर चले उन्हें उससे भी ज़्यादा फ़ायदे हासिल हुए जिसपर काफ़िर ऐतराज़ करते करते थे। आने वाले वक़्त में दुनिया कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पैरोकारों ने कई कामयाब सभ्यताओं की बुनियाद रखी और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दुश्मनो का नाम ओ निशान मिट गया।