जान निसारी की मिसालें
हज़रत ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु ज़ख्म खाते-खाते चूर हो गए और गिर पड़े। जब बाक़ी सहाबा पहुँचे तो हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु की ख़बर लो उनकी हालत ख़राब है। लोगों ने उन्हें उठाया तो बड़े-बड़े दस (10) ज़ख्म थे। हज़रत ‘अब्दुर्रहमान बिन ऑफ़’ रज़िअल्लाह अन्हु के भी बीस (20) ज़ख्म आये थे। हज़रत ‘अबू तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु जो मशहूर तीर अंदाज़ थे उन्होंने इतने तीर बरसाए थे कि दो-तीन कामनें तोड़ दी थीं। हज़रत ‘अबू तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने ही हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को फिर एक ढ़ाल के पीछे ले लिया कि हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)को और ज़ख्म न लगे। हुज़ूर कभी गर्दन उठा कर दुश्मनों की फ़ौज की तरफ़ देखते तो ‘अबू तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु अर्ज़ करते कि आप गर्दन न उठाएं। ऐसा न हो कि कोई तीर लग जाये। हज़रत ‘साद बिन वक़्क़स’ रज़िअल्लाह अन्हु भी बहुत माहिर तीरंदाज़ थे। उस वक़्त वो भी हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में वहीँ थे। हुज़ूर ने अपना तरकश उनके सामने रख कर फ़रमाया ‘तुम पर मेरे माँ बाप क़ुर्बान। तीर मारते जाओ।’
एक बहादुर मुस्लमान इस तबाही के मंज़र में भी बेपरवाह हो कर ख़जूर खा रहा था उसने हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा “या रसूलल्लाह! अगर मैं मारा गया तो कहाँ जाऊँगा?” हुज़ूर ने फ़रमाया ‘जन्नत में’ इस ख़बर को सुनते ही वो बेसुध हो कर लड़ने लगा और इस तरह लड़ा कि शहीद हो गया। जंग के दौरान एक वक़्त ऐसा आया कि हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास कुछ ही लोग रह गए उस वक़्त एक सहाबिया ‘उम्मे अम्मारा ‘ रज़िअल्लाह अन्हा हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास पहुँची और हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हिफ़ाज़त में लग गयीं। जब भी दुश्मन हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ़ बढ़ता तो ‘उम्मे अम्मारा’ रज़िअल्लाह अन्हा तीर तलवार से हुज़ूर की हिफ़ाज़त करतीं। ‘इब्ने कुमइय्या’ अपने घोड़े पर सवार हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर हमलावर हुआ तो ‘उम्मे अम्मारा’ रज़िअल्लाह अन्हा ने उसे बढ़कर रोका। इस झड़प में उनके कंधे पर बड़ा ज़ख्म लग गया। पलट कर उन्होंने मारना चाहा लेकिन ‘इब्ने कुमइय्या’ लौहे से ढ़का हुआ था। इसलिए वार खाली गया।
‘उबई बिन ख़लफ़’ सर से पाँव तक लोहे की ज़िरह से बंधा हुज़ूर की तरफ़ बढ़ा। वो ये कहता जाता कि अगर आज मुहम्मद बच गए तो मेरी ख़ैर नहीं। वो हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को शहीद करने की क़सम खा कर चला था। उसकी गर्दन और ज़िरह के बीच ज़रा सा फ़ासला था जिससे गर्दन की हड्डी साफ़ नज़र आ रही थी। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एक भाला उठाया और ज़ोर से दे मारा। नेज़ा लगते ही ‘उबई बिन ख़लफ़’ ज़मीन पर गिरा और बैल की तरह चिल्लाने लगा। उसके लोग उसे उठा कर ले जाने लगे और कहते कि ज़्यादा बड़ा ज़ख्म नहीं है। इस पर वो जवाब देता कि मैंने तुम से कहा था कि अगर मैंने मुहम्मद को क़त्ल न करा तो मेरी ख़ैर नहीं। इस वक़्त मुझे इतनी तकलीफ़ महसूस हो रही है कि अगर इस दर्द को पूरी बस्ती पर बाँट दिया जाये तो सब मर जाएँ। कुछ ही देर में ‘उबई बिन ख़लफ़’ दर्द से कराहते कराहते मर गया।
सभी सहाबा हुज़ूर के गिर्द जमा हो गए। हुज़ूर की जंगी टोपी की दो कड़ियाँ आपके मुबारक चेहरे में घुसी हुई थीं। हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु बताते हैं कि मैं उसको निकलने चला तो ‘अबू उबैदा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अल्लाह की क़सम दे कर मुझसे कहा कि मुझे मौक़ा दें। उन्होंने अपने दांतों में कड़ी दबा कर बहुत आहिस्ता – आहिस्ता निकलना शुरू किया कि जिससे हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को तकलीफ़ न हो। कड़ी निकल गयी लेकिन साथ ही ‘अबू उबैदा’ रज़िअल्लाह अनहु का एक दांत भी उखड़ गया। ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु दूसरी कड़ी निकलने को आगे बढ़े फिर से ‘अबू उबैदा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने विनम्र निवेदन किया। फिर से कड़ी को अपने दांतों में दबा कर आहिस्ता-आहिस्ता निकाला। फिर से कड़ी के साथ अपना एक दांत गवां बैठे। हज़रत ‘मालिक बिन सिनान’ रज़िअल्लाह अन्हु अंसारी ने हुज़ूर के चेहरे से बहते हुए खून को चूस लिया। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कुल्ली कर दो। उन्होंने अदब से कहा बखुदा! कभी नहीं करूँगा। जब वहाँ से चले तो हुज़ूर ने फ़रमाया अगर किसी को शौक़ हो जन्नती आदमी देखने का तो इन्हें देख लें।
हुज़ूर के देहांत की ख़बर मदीना पहुँची तो शहर के लोग परेशान हो उठे और तड़प कर मैदान ऐ जंग की तरफ़ भागे। इनमें सबसे पहले हुज़ूर की प्रिय बेटी हज़रत ‘फ़ातिमा’ रज़िअल्लाह अन्हा थीं। जब ‘फातिमा ज़हरा’ रज़िअल्लाह अन्हा मैदान के पास पहुँची तो अभी तक हुज़ूर के मुबारक चेहरे से खून बह रहा था। हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु अपनी ढ़ाल में पानी लेकर लाये। हज़रत ‘फ़ातिमा’ रज़िअल्लाह अन्हा हुज़ूर का मुंह साफ़ करती लेकिन खून रुकता नहीं था। आख़िरकार चटाई का एक टुकड़ा जलाकर उसकी राख को ज़ख्म पर रखा गया तब कहीं जाके खून रुका। हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इसके बाद एक चट्टान पर चढ़ना चाहा लेकिन इतनी ताक़त जिस्म में नहीं बची थी कि चढ़ सकें। हज़रत ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु बैठ गए और खुद को एक ज़ीने की तरह बना दिया। नमाज़ का वक़्त हुआ तो भी हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने नमाज़ बैठ कर ही पढ़ाई। हुज़ूर की ज़ख़्मी हालत देख कर कुछ सहाबा ने अर्ज़ किया ‘या रसूलल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आप इनके लिए बद्दुआ कर दीजिये। नबी अल्लाह ने फ़रमाया ‘मैं लानत करने के लिए नबी नहीं बनाया गया हूँ। मुझे तो अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाला और पूर्णतः दयालु बनाया गया है। ऐ अल्लाह! मेरी क़ौम को सही रास्ता दिखा क्योंकि वो मुझे जानते नहीं।’
रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अब एक चोटी पर महफ़ूज़ थे जहाँ दुश्मन नहीं पहुँच सकता था। ‘अबू सुफ़ियान’ की नज़र हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर पड़ी तो हमले के लिए आगे बढ़ा लेकिन हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु और कुछ सहाबा ने पत्थर बरसा कर उन्हें भगा दिया। अबू ‘सुफियान’ ने सामने की पहाड़ी पर चढ़ कर पुकारा “यहाँ मुहम्मद हैं?”
हुज़ूर ने हुक्म दिया कि सब खामोश रहें । अबू सुफियान ने हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु और ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु का नाम लेकर पुकारा। जब कुछ आवाज़ न आयी तो ज़ोर से बोला “सब मारे गए।”
हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु से बर्दाश्त नहीं हुआ और बोल पड़े –ओ अल्लाह के दुश्मन! हम सब ज़िंदा हैं।
‘अबू सीफूयन’ ने कहा- ऐ ‘हुबुल’! तू ऊँचा रहे।
सहाबा ने हुज़ूर के हुक्म से कहा- “अल्लाह ही सबसे महान है और बड़ा है।”
‘अबू सुफियान’ ने कहा- हमारे पास उज़्ज़ा है। तुम्हारे पास नहीं।
सहाबा ने कहा- अल्लाह हमारा मालिक है और तुम्हारा कोई मालिक नहीं।
‘अबू सुफियान’ ने कहा- आज का दिन ‘बद्र’ के दिन का बदला है। फ़ौज के लोगों ने मुर्दों के नाक- कान काट लिए हैं। हालाँकि मैंने ऐसा करने को नहीं कहा था पर उन्होंने कर लिया तो मुझे अफ़सोस भी नहीं।