जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 35

हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यहूद के साथ एक मुहाईदा किया था। जिसमें जान माल व मज़बह में आज़ादी दी थी। लेकिन कुरैश ने उनको डराया-धमकाया तो ये लोग बग़ावत के लिये तैयार हो गये। इसके बावजूद प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने समझौते को नये सिरे से तैयार करने की पेशकश रखी। जिसको ‘नसीर’ ने ठुकरा दिया और उन्हें देश निकाला दे दिया गया। लेकिन कुरैज़ ने महाईदे की ताईद की और उसे नये सिरे से कलमबन्द करवाया। जिसके बदले में उन्हें आमान दे दी गई। ‘बनू नसीर’ के जिला वतन के बाद ‘ख़ैबर’ में जाकर आबाद हो गये और जल्द ही रियासत क़ायम कर ली। जंग ए अहज़ाब उन्हीं की कोशिशों का नतिजा थी। इस वक़्त तक कुरैज़ समझौते पर क़ायम थे। मगर ‘हई बिन अख़तब’ ने उन्हें यक़ीन दिलाया कि अगर कुरैज़ा अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते हैं तो भी ख़ैबर में ही रहूँगा। इस यक़ीन दिलाने के बाद कुरैश ने भी मुहईदे को काट दिया और वो अपने इस वादे पर क़ायम भी रहे। कुरैश ने अहज़ाब में ऐलानिया प्रतिभाग किया और हार का मजा चख कर वापस पलट आये। तब इस्लाम के बड़े दुश्मनों में से ‘हई बिन अख़तब’ को साथ लेकर आये। इसके अलावा उनके पास कोई और रास्ता न था कि अब आख़री फैसला किया जाये। 

जंग ए अहज़ाब से निपट कर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सहाबा से कहा कि हथियार न निकालें और कुरैज़ा की जानिब बढें। लेकिन कुरैज़ा मुक़ाबला करने का फैसला कर चुके थे इसलिये उन्होंने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को गालियाँ दी और जंग के लिये ललकारा। ग़रज़ उनके क़िले को घेरे में ले लिया गया। यह घेरा एक महीने तक रहा क़िलें में खाने पीने के लाले पड गये। तब उन्होंनें कहा कि हज़रत ‘सआद बिन मआज़’ रज़िअल्लाह अन्हु जो फैसला करेंगे वो हमें मंज़ूर होगा। प्यारे नबी ने उनकी ये पेशकश कुबूल कर ली।

अभी तक इस संदर्भ में कुरआन में कोई आयत नाज़िल न हुई थी और ऐसे हस्सास मसले के हल के लिये प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तौरेत के फ़ैसले माना करते थे तौरेत इस मसले को ऐसे हल करती थी – जब किसी शहर पर हमला करने के लिये तू जाये तो पहले समझौते करने की दावत दे। अगर वो सुलह कर लें और तेरे लिये दरवाज़े खोल दें तो जितने लोग वहाँ मौजूद हों वो सब तेरे गुलाम बन जायेंगे। अगर वो सुलह पर आमादा न हों तो घेरा डाल दो। और जब तेरा रब उन पर क़ब्ज़ा दिला दे तो वहाँ जितने मर्द हो सब को क़त्ल कर दे। बाकी जितने औरतें, बच्चे, जानवर और माल वहाँ मौजूद हो वो सब माल ए ग़नीमत है। 

हदीस में जिक्र आता है कि हज़रत ‘सआद बिन मआज़’ रज़िअल्लाह अन्हु ने भी यही फैसला सुनाया तो दो जहानों के आक़ा सरवर ए कायनात ने कहा “तुमने आसमानी फ़ैसला सुनाया।” जब यहूदियों ने यह फैसला सुना तो उन्होंने भी माना कि ये बात तौरेत में लिखी हुई है और वो इससे सहमत हैं।

हज़रत समामा रज़िअल्लाह अन्हु का क़बूले इस्लाम 

नबी अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुछ जंगजू को ‘नजद’ की तरफ रवाना किया था जो वापस लौटते वक़्त हज़रत ‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु को गिरफ़्तार कर लाये थे। उन्हें मस्जिद नब्वी के स्तंभ से बाँध दिया था। कुछ अर्से बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके पास आये और पूछा, “कैसे हो समामा?”

‘समामा’ वे जवाब दिया “मैं ख़ैर खैरियत से हूँ। अगर आप मेरे क़त्ल का हुकुम देते हैं तो ये एक खूनी के लिये मुनासिब सज़ा है। और अगर आप ईनाम फरमायेंगें तो ये एक शुक्रगुज़ार के लिये रहमत का बाईस होगा। और अगर माल की ख़्वाहिश है तो जिस क़दर चाहें बता दीजिये।”

प्यारे नबी ने कुछ जवाब न दिया और वो वहाँ से चले गये।

दूसरे दिन बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फिर आये और वही सवाल किया “कैसे हो ‘समामा’?”

‘समामा ‘ने कहा “मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर आप ऐहसान करेंगे तो एक शुक्रगुज़ार पर करेंगे।”

आप फिर वापस चले गये और तीसरे दिन फिर तशरीफ़ लाये और वही सवाल किया। ‘समामा’ ने कहा मैं आपसे कह चुका हूँ कि अगर आप मुझे माफ़ करेंगे तो एक शुक्रगुज़ार बन्दे पर ऐहसान करेंगे।

प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा।’ ‘समामा’ को रिहा कर दो।’ ‘समामा’ को रिहाई मिली तो वो मस्जिद नब्वी के पास ख़जूर के एक बाग़ में गये और वहाँ ग़ुस्ल किया और वापस मस्जिद में आकर कलमा पढ़ा।

‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मेरे नजदीक दुनिया में कोई शख्स अगर नफ़रत के क़ाबिल था तो वो आप ही थे। मगर आज अगर कोई मुझे सबसे प्यारा है तो वो भी आप ही हैं। और कोई शहर जिसे मैं सबसे ज्यादा नापसंद करता था तो वो आप का शहर था। मगर आज मेरा सबसे महबूब शहर आपका शहर है। अगर दुनिया में किसी मज़हब से द्वेष रखता था तो वो आप ही का मज़हब था और आज जो मुझे सबसे ज्यादा अज़ीज़ है वो भी आपका मज़हब है।”

‘समामा’रज़िअल्लाह अन्हु ने बताया कि मैं अपने वतन से मक्का उमरा करने जा रहा था रास्ते में गिरफ़्तार कर लिया गया। अब आप बतायें उमरा के बारे में क्या ईरशाद है। 

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु को उमरा करने की इजाज़त दे दी और साथ ही इस्लाम कुबूल करने की मुबारकबाद भी दी।

हज़रत ‘समामा’ रज़िअल्लाबह अन्हु मक्का पहुँचे तो एक आदमी ने कहा। क्या आप सहाबी बन गए?’ ‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “नहीं, मैं मुहम्मद रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ईमान लाया हूँ और इस्लाम कुबूल किया है। और अब याद रखना कि जब तक प्यारे नबी की इजाज़त न होगी तब तक मुल्क यमामा से गेंहू का एक दाना भी तुम्हारे पास न आयेगा।

जब हज़रत ‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु अपने मुल्क पहुँचे तो सबसे पहले बाहर जाने वाले गेंहू पर पाबन्दी आयद कर दी। गल्ला न मिलने की वजह से मक्का वालों का बुरा हाल हो गया। आखिर थक हार के मक्का के लोगों ने रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से विनती की। महबूब खुदा रहमत ए आलम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ‘समामा’ रज़िअल्लाह अन्हु को लिख भेजा कि जैसे पहले मक्का में गेंहूँ आता रहा वैसे ही भेजते रहो।’

इस वाक़िये से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की रहमदिली, करुणा, उम्मत के लिये हमदर्दी और समाज के लिये इख़लास का प्रदर्शन हुआ और दुश्वमनों ने भी आपको रहमतुल आलामीन (सर्वसंसार पर करुणा) कहा।

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