एक ख़त शाह ए अम्मान के नाम
अम्मान के बादशाह ‘जेफ़र’ व ‘अब्द खुल्दी’ के पास ‘अम्र बिन आस’ रज़िअल्लाह अन्हु को ख़त ले कर भेजा। ‘अम्र बिन आस’ रज़िअल्लाह अन्हु ने बताया कि मैं सबसे पहले जेफ़र बिन खुल्दी के भाई अब्द से मिला वो जेफर के मुक़ाबले में ज़्यादा अच्छे अख़लाक़ वाला और मिलनसार था। मैंने उसे बताया कि ‘मैं आपके पास रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का सफ़ीर (दूत) बन कर आपके और आपके भाई के पास आया हूँ।’
अब्द ने कहा। ‘मेरे भाई मुझसे बड़े और मुल्क के मालिक है। मैं आपको उनके पास पहुँचा देता हूँ। मगर आपने ये नहीं बताया कि आप किस बात की दावत देने आये हो?” आस रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “एक अल्लाह की तरफ़ बुलाने आया हूँ और वो भी इस बात के साथ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।”
अब्द ने कहा “ये क्योंकर मुम्किन है। जबकि मेरा भाई मुल्क का बादशाह है और हम उसे आईन्दा ज़िन्दगी के लिये मिसाल बना सकते हैं। जबकि तुम्हारे बाप ने भी इस्लाम कुबूल नहीं किया।”
‘आस’ रज़िअल्लाह अन्हु :- मेरे वालिद का इंतक़ाल हो गया और वो कुफ्र में मरे। जबकि मैं चाहता था कि वो इस्लाम कुबूल करें और अल्लाह और अल्लाह के रसूल पर ईमान लाये। हाँ पहले मैं भी अपने वालिद की राय पर था। यहाँ तक कि फिर मैंने इस्लाम कुबूल कर लिया।
‘अब्द’:- आप कब से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पैरोकार हो गये?’
‘अम्रो बिन आस’ रज़िअल्लाह अन्हु- अभी कुछ वक़्त पहले ही।’
अब्द:- कहाँ?
अम्रो बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- नजाशी के दरबार में। और हाँ! नजाशी भी मुसलमान हो गया।’
अब्द:- नजाशी की प्रजा ने नजाशी के साथ क्या बरताव किया?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु- वो इस्लाम क़ुबूल करने के बाद भी बादशाह ही रहे और उसकी प्रजा ने भी ब-खुशी इस्लाम कुबूल कर लिया।
अब्द (हैरत से)- क्या हब्श के पादरियों ने भी इस्लाम कुबूल कर लिया ?’
अम्र बिन आस- ‘बेशक’
अब्द:- अम्र तुम जानते हो कि इंसान के लिये झूठ से ज्यादा ज़िल्लत वाली कोई चीज़ नहीं।
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु- मैं क्यों झूंठ बोलने लगा जबकि मैं जानता हूँ कि इस्लाम में झूँठ बोलना हराम है।
अब्द:- हरक़ुल ने क्या किया? क्या उसे नजाशी के ईमान लाने का ईल्म है?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- बेशक उसे पता है।
अब्द:- तुम ऐसा किस बिना पर कह सकते हो?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- नजाशी हरक़ुल को खिराज दिया करता था और जब से वो मुसलमान हुआ है कह दिया है कि अगर हरक़ुल एक दरहम भी मांगेगा तो हरगिज़ न दूँगा।
नजाशी के ईमान लाने की ख़बर हरक़ुल के भाई यन्नाक़ ने दी। उसने कहा कि नजाशी खिराज देने से मना करता है और अपने दीन से बददीन होकर उसने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दीन को अपना लिया है। तब हरकुल ने कहा “नजाशी ने क्या बुरा किया। उसे एक दीन अच्छा लगा और उसे पसंद कर लिया। इसमें बुराई क्या है? और अगर मुझे अपनी बादशाही का ख़्याल न होता तो मैं भी वही करता जो नजाशी ने किया।”
अब्द पर हैरत के पहाड़ टूट रहे थे उसे यक़ीन न आता था कि ‘अम्र बिन आस’ रज़िअल्लाह अन्हु जो कुछ कह रहे हैं वो सच है। उसने हैरत से पूछा ‘क्या सच कह रहे हो।’
‘अम्र बिन आस’ रज़िअल्लाह अन्हु को क़सम उठानी पड़ी और बोले:- अल्लाह की क़सम जो कह रहा हूँ वो बिल्कुल सच है।’
अब्द:- अच्छा मुझे बताओ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) किस तरह के काम करने का हुकुम देते हैं और किन कामों से मना फरमाते हैं?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- वो एक अल्लाह की पूजा और इताअत का प्रचार करते हैं और अल्लाह की नाफ़रमानी से रोकते हैं। वो ज़िना, शराब के इस्तमाल और पत्थरों, सलीब की इबादत से मना करते हैं।
अब्द ने ये बातें सुनी तो उसके दिल पर ख़ैर ख्वाह असर हुआ उसने मसरुर होकर कहा।
‘क्या ही प्यारी बातें हैं। अल्लाह करे मेरा भाई मेरी राय से मुत्ताफिक़ हो जाये और क्या ही अच्छा हो हम दोनों एक साथ हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हो कर इस्लाम कुबूल करें। आज मेरा मानना है कि अगर मेरे भाई ने इस पैगाम को रद किया और दुनिया की ही परवाह की तो वो अपने मुल्क के लिये भी नुकसानदा साबित होगा।”
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- अगर उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसे यहाँ का बादशाह बने रहने देंगे बस इतना होगा कि उसे इस्लाम के कानून लागू करने पड़ेंगे। जैसे सदक़ा वसूल करके यहाँ के ग़रीबों में तक़सीम करना पड़ेगा।
अब्द:- सदके़ से आपकी क्या मुराद है?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु ने उन्हें सदक़ा और ज़कात के मसाईल से बखूबी वाक़िफ़ करवाया। सदक़ा और ज़कात के मसाईल पर बोलते-बोलते आपने ये भी बताया कि ज़कात ऊँटों की भी निकाली जाती हैं।
अब्द:- ये कैसे मुम्किन है? जबकि ऊँट तो खुद पेडों और घास खाकर अपना पेट भरते हैं। उन पर ज़कात किस तरह वाजिब हो सकती है? और क्या हमारी प्रजा इस बात को तस्लीम करेगी। फिर खुद ही होंटों-होंटो में बुदबुदाये काश हमारी क़ौम इस अमल को तस्लीम कर ले।
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु वहाँ कई दिनों तक रुके। अब्द उनकी बातें रोज़ाना जा कर अपने भाई जेफर को बताया करते हैं। एक दिन बादशाह ने अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु को अपने दरबार में तलब कर लिया। दो चौबदारों ने आपके दोनों बाज़ू पकड़े और आपको दरबार में बादशाह के सामने पेश किया। बादशाह ने अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु को चौबदारों के इस तरह पकड़ कर लाने पर हुकुम दिया- ‘इन्हें छोड़ दो।’
बादशाह ने पूछा- कहो तुम किस काम से यहाँ आये हो?
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु ने बादशाह को आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का मुहर लगा ख़त दिया।
जेफ़र ने ख़त खोल कर पढ़ा और फिर अपने भाई अब्द की तरफ़ ख़त को बढ़ा दिया। अब्द ने भी ख़त पढ़ा
जेफर:- ‘कुरैश का क्या हाल है?’
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- सबने अपनी मर्जी से इस्लाम क़ुबूल किया हुआ है
जेफ़र:- उनके साथ रहने वाले कौन लोग हैं?
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु:- जिन्होंने अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़ुबूल किया। अपना सब कुछ गवां कर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपनाया। जिन्होंने अपनी अक़्ल का इस्तमाल करके नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को जांचा परखा।
जेफ़र:- अच्छा हम तुमसे कल फिर मिलना चाहेंगे।
अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु यहाँ से निकल कर अब्द के पास गये। अब्द ने कहा अगर हमारी हुकूमत को कोई नुकसान न हुआ तो मेरा मानना है कि बादशाह ईमान ले आयेंगे।
अगले दिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाह अन्हु फिर बादशाह से मिले
जेफ़र:- मैंने इस मसले पर ग़ौर किया और इस नतिजे पर पहुँचा कि मैं जिस रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इताअत करता हूँ। अगर उनकी फौज मेरी मदद को न पहुँची तो मैं सारे अरब में सबसे कमज़ोर पड़ जाऊँगा। हाँलाकि अगर उनकी फौज मेरी मदद को आये तो तुम देखोगे कि मैं ऐसी लड़ाई लडूँगा कि तुमने आज तक न देखी होगी। तुम कल तक और रुको।
दूसरे दिन बादशाह और उसके भाई ने इस्लाम कुबूल कर लिया। उनके साथ ही उनकी प्रजा के एक बडे हिस्से ने भी खुशी ख़ुशी रसूल अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ईताअत मंज़ूर कर ली।