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Toggleमुनाफ़िक़ों से छुटकारा
मदीने में इस दौरान मुनाफ़िकों ने हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ग़ैर मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर लोगों में अपना ज़हर फैलाने में कोई कसर न उठा रखी थी। वो मुसलमानों को बग़ावत पर उकसाने लगे थे। मुनाफ़िक़ों ने मदीने से क़रीब एक घंटे की दूरी के फ़ासले पर ज़ीअ़वान के मक़ाम पर एक मस्जिद बनाई थी जहाँ से वो अपनी कार्यवाहियाँ करते थे। अल्लाह के कलाम की तावीलें करके लोगों में फुट डालने लगे थे। इन लोगों ने ‘तबूक’ के लिये रवानगी से पहल् हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से गुज़ारिश की थी के वो इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ें लेकिन आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने वापसी तक उन्हें इंतेज़ार करने को कह दिया था। लेकिन वापसी पर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मुनाफ़िक़ों की हरकतों की ख़बर मिली और मस्जिद बनाने की हक़ीक़त ‘वही’ (अल्लाह के संदेश वाहक) के ज़रीये मालूम हुई तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मस्जिद जला देने का हुक्म दिया और मुनाफ़िकों पर सख़्ती शुरू कर दी जिससे अब उनकी कमर टूट गई और फिर कभी वो उठ न पाये।
सारे अरबी क्षेत्र में अल्लाह का कलमा बुलंद हो चुका था और हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साम्राज्य को कोई चैलेंज करने वाला न था। अ़रब के क़बाईल के लोग फ़ौज दर फ़ौज हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आते और अल्लाह की इताअ़त तस्लीम करते थे।
दोस का प्रतिनिधिमंडल
‘तुफैल बिन अम्र’ रज़िअल्लाह अन्हु दौसी जब ईमान ले आये तो हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से इजाज़त मांगी और दुआ की दरख़्वासत भी की। हज़रत आमिर दौसी ने कहा “अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुआ कर दीजिये कि मेरी क़ौम भी मेरी दावत पर मुसलमान हो जाये।” नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अल्लाह से दुआ की कि “या रब।’ तुफैल’ रज़िअल्लाह अन्हु को एक मिसाल बना दे।” जब हज़रत ‘तुफैल’ रज़िअल्लाह अन्हु घर आये तो उनके बूढ़े वालिद उनसे मिलने के लिये आये। हज़रत ‘तुफ़ैल’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “अब्बा जान अब मैं आपका हूँ न आप मेरे हैं।” वालिद ने पूछा “क्यों ऐसा क्या हो गया?’ हज़रत ‘तुफ़ैल’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “मैं मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का दीन कुबूल कर के आ रहा हूँ।’ वालिद ने कहा “जो तेरा दीन है वही मेरा भी दीन है।”
तुफ़ैल रज़िअल्लाह अन्हु:- बहुत खूब! तो आप फ़ौरन जाईये और ग़ुस्ल करके पाक कपड़े पहनें। फिर मैं आपको इस्लाम की तालीम सिखाता हूँ।
इसके बाद हज़रत ‘तुफैल’ रज़िअल्लाह अन्हु की पत्नी आयीं। आपने उनसे भी कह दिया कि न मैं आपका शौहर हूँ न आप मेरी बीवी हैं। इसी तरह पत्नी ने भी इस्लाम कुबूल कर लिया और वो मुसलमान हो गयीं। घर मुसलमान हुआ तो हज़रत ‘तुफैल’ रज़िअल्लाह अन्हु ने बाहर तबलीग़ शुरु कर दी। मगर नतीजा अच्छा नहीं निकला।
हज़रत ‘तुफैल’ रज़िअल्लाह अन्हु फिर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में आये और सारा माजरा बताते हुए कहा कि ‘मेरी क़ौम ज़िना ज़्यादा सम्मलित है। अब क्योंकि इस्लाम ज़िना को सख्ती के साथ मना करता है इसलिये लोग मुसलमान होने से कतरा रहे हैं।’ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फिर रब से दुआ कि “ऐ रब ‘दोस’ रज़िअल्लाह अन्हु को सीधा रास्ता दिखा।” और उनसे कहा’ दोस’! जाओ और लोगों को दीन की तालीम दो और उनके साथ नर्मी और मुहब्बत से पेश आओ।’
इस बार हज़रत ‘तुफ़ैल’ रज़िअल्लाह.अन्हु को खैर ख्वाह कामयाबी मिली। वो 5 हिजरी में दोस के सत्तर अस्सी लोगों को जिन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया था, साथ लेकर मदीना पहुँचे। मालूम हुआ कि हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ैबर गये हुए हैं। इसलिये वो ख़ैबर ही पहुँच गये और हुज़ूर के दर्शन का सौभाग्य हासिल किया। इधर आपके चचेरे भाई ‘जाफ़र’ रजिअल्लाह अन्हु जैश से नौमुस्लिमों को लेकर ख़ैबर आ गये। इन दोनों सहाबियों का नौमुस्लिमों को ख़ैबर लेकर आना अल्लाह तआला की तरफ़ से यहूदियों को ये पैग़ाम देना था कि जैश और यमन के दूर दराज़ इलाक़ों में जहाँ इस्लाम का कसरत से दिलों के किले फत्ह करके इस्लाम की तालीम फैल रही है वहाँ तुम्हारे ये ईंट पत्थर के क़िलों की हैसियत ही क्या है।