सकीफ़ का प्रतिनिधिमंडल
‘सक़ीफ़’ में सबसे पहले जो इस्लाम की तालीम हासिल करने की वजह से नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुए। वो हज़रत ‘अम्र बिन मसूद’ रज़िअल्लाह अन्हु सकफ़ी थे। ये अपनी क़ौम के सरदार थे और कुफ्र के दौर में ‘सुलह हुदैबिया’ के मौक़े पर कुफ्फ़ार के वकील बन कर आये थे। ‘हवाज़न’ और ‘सक़ीफ़’ की जंग के बाद अल्लाह की मेहरबानी से इस्लाम कुबूल करके मक्का आये। हज़रत ‘अम्र’ रज़िअल्लाह अन्हु के घर में दस बीवियाँ थीं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा कि “तुम इनमें से चार को रख कर बाक़ी सभी को तलाक़ दे दो।” उन्होंने ऐसा ही किया।
यहाँ रह कर आपने इस्लाम की तालीम हासिल की और जब इस से फुर्सत हासिल हुई तो उन्होंने हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से इजाज़त मांगी कि अब उन्हें दूसरे लोगों में इस्लाम की तालीम व तरबियत के लिये इजाज़त दी जाये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया “तुम्हारी क़ौम तुम्हें क़त्ल कर देगी।” अम्र रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा ‘या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मेरी क़ौम को मुझसे इतनी ही मुहब्बत है जितनी किसी आशिक़ को अपने माशूक़ से होती है।” आप वहाँ से निकल कर ‘सक़फी’ आये। लोगों में इस्लाम की दावत आम की मगर एक दिन आप नमाज़ पढ़ रहे थे कि किसी ने तीर चलाया और आप शहीद हो गये।
ये और बात कि हज़रत अम्र रज़िअल्लाह अन्हु न रहे पर जो आवाज़ उन्होंने अपनी क़ौम के कानों तक पहुँचाई वो दिलों पर असर किये बग़ैर न रह सकी। कुछ दिन बाद ही क़ौम ने अपने चुनिंदा लोगों को हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास दीन की मुकम्मल मालूमात हासिल करने के लिए भेजा।
ये वक्फ़ 9 हिजरी में नबी अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सेवा में हाज़िर हुआ। इस प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई ‘अब्दुल यालील’ कर रहा था। ये वही व्यक्ति था जिसे दीन की दावत देने के लिये हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ‘ताईफ़’ गये थे और ‘यालील’ ने अपनी आबादी के आवारा लड़कों को नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बेइज़ज़ती करने के लिये उकसाया था। और इसी शख़्स के कहने पर लोगों ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर पत्थर बरसाये और कीचड़ फेंकी थी। आज अल्लाह के फ़ज़ल और इस्लाम की मुहब्बत में ये लोगों के साथ हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में खुद हाज़िर हुआ था।
हज़रत ‘मुग़ीरा बिन शैबा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से इजाज़त तलब की कि अगर आप हुक्म दें तो मैं इन लोगों को अपने पास उतार लूँ।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “ मैं मना नहीं करता कि तुम अपनी क़ौम की इज़्ज़त न करो। मगर मैं चाहता हूँ कि इन्हें ऐसे स्थान पर ठहराओ जहाँ से कुरआन की आवाज़ इनके कानों तक पहुँचे।” ये तय पाये जाने के बाद इनके डेरे मस्जिद के सहन में ही लगवा दिये गये। यहाँ से ये क़ुरआन भी सुनते और लोगों को नमाज़ पढ़ते हुए भी देखते। इस सद व्यवहार ने उनके दिलों में इस्लाम की सत्यता का असर डाला। उन्होंने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथों पर बैअत की और बैअत करने से पहले उन लोंगो ने नमाज़ को क़ायम करने की पाबन्दी से आज़ादी चाही। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “जिस मज़हब में नमाज़ नहीं, उसमें कोई खूबी नहीं।” फिर उन्होंने कहा- “अच्छा हमें जिहाद से दूर रखा जाये।” आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इनकी दूसरी शर्त को क़ुबूल कर लिया और सहाबा किराम से कहा “ इस्लाम के पवित्र असर से ये खुद ही दोनों काम करने लगेंगे।”
‘किनाया इब्ने अब्द यालील’ ने जो उनका सरदार था उसने विभिन्न समय पर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से समस्याओं पर वार्तालाप की।
1. या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ज़िना( व्यभिचार) के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं? हमारी क़ौम के लोग अक्सर वतन से दूर रहते हैं इसलिये ज़िना (व्यभिचार) के बग़ैर उनका गुज़ारा ही नहीं है?’
हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- “अल्लाह तआला कुरआन में ज़िना(व्यभिचार) को हराम क़रार देते हैं।”
– और तुम ज़िना (व्यभिचार) के हरगिज़ पास न जाओ। ये तो सख़्त बेहयाई वाला काम है।’
किनय इब्ने अब्द यलील ने पुछा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सूद के बारे में क्या आदेश है?”
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)- तुम अपना असल रुपया ले लो। देखो अल्लाह कुआन में फ़रमाता है।
– ‘ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और सूद में से जो रह गया है उसे भी छोड़ दो।’
फिर उसने पुछा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) शराब के बारे में अल्लाह का क्या आदेश हैं?”
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “शराब को अल्लाह ने हराम कर दिया है। देखो अल्लाह तआला फ़रमाता है। शराब और जुआ नापाक हैं। ये तो शैतान के काम हैं। इनसे बचा करो कि तुम्हें निजात (मोक्ष) मिले।”
दूसरे दिन ‘अब्द यलील’ रजिअल्लाह अन्हु ने आकर कहा “चलिये हम आपकी बातें मान लेंगे। लेकिन अपने ‘रब्बा’ का क्या करें ( रब्बा स्त्रीलिंग हैं रब का) जिस देवी के बुत को ये पूजा करते थे, उसे रब्बा कहते थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया “उसे तोड़ दो।” लोगों ने कहा “हाय! हाय! अगर हमने उसे तोड़ दिया तो वो हम लोगो को तबाह कर देगी।”
हज़रत ‘उमर बिन खिताब’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “अफ़सोस तुम लोग इतना भी नहीं समझते कि वो तो सिर्फ़ एक पत्थर ही है।” इस पर ‘इब्ने अबद यालील’ ने कहा- “उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु हम आपसे बात नहीं कर रहे हैं।” फिर वो रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से संबोधित हुआ- “रब्बा को तोड़ने की ज़िम्मेदारी आप खुद लें। क्योंकि हम तो उसे कभी नहीं गिरायेंगे।”
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “ खै़र मैं किसी गिरा देने वाले को भेज दूँगा।” यालील रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा- “आप उसे हमारे बाद भेजना। वो हमारे साथ न जाये।”
संक्षेप ये कि ये जितने आदमी आये थे मुसलमान होकर वापस चले गये। उन्होंने कहा- “हमारे लिये कोई ईमाम दे दीजिये।” इस प्रतिनिधिमण्डल में एक व्यक्ति ‘उस्मान बिन अबू आस’ रज़िअल्लाह अन्हु भी थे। जो उस जत्थे में सबसे कम उम्र के थे वो अपनी क़ौम से छुप-छुप कर कुरआन और अहकाम शरियत सीखते रहे। कभी रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कभी ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन्हें ही ईमाम बना दिया।
कुछ ही रोज़ गुज़रे थे कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कुछ सहाबियों को वहाँ भेजा जो हज़रत ‘ख़ालिद बिन वलीद’ रज़िअल्लाह अन्हु के घर तशरीफ़ ले गये। उन्होंने लात (देवता) के गिराने की कार्यवाही को पूरा करना चाहा। ‘सकीफ़’ के सब मर्द, औरत, बूढे और बच्चे इस काम को दुशवारतर समझ रहे थे। पर्दादार ख्वातीन भी इस नज़ारे को देखने के लिये बाहर निकल आयीं थीं। ‘हज़्र तम्ग़ीराह बिन शेबा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने इसे तोड़ने की ग़रज़ से तीर चलाया और अपने ही ज़ोर में लडखड़ा कर गिर पडे़। उनका गिरना था कि ‘सक़ीफ़’ वाले पुकार उठे “खुदा ने ‘मुग़ीराह’ रज़िअल्लाह अन्हु को धूत्कार दिया है और ये ऐसा कि ‘रब्बा’ ने उसे क़त्ल कर डाला।” फिर खुश हो कर बोले- “तुम लोग चाहे जितनी कोशिश कर लो इसे गिरा नहीं सकते।”
हज़रत ‘मुग़ीराह बिन ‘शैबा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा- “’सक़ीफ़’ के लोगो तुम सचमुच बहुत ही नासमझ हो। ये पत्थर का टुकड़ा कर ही क्या सकता है ? लोगो अल्लाह की अमान में आ जाओ और उसी की इबादत करो।” फिर ‘मुग़ीराह’ रज़िअल्लाह अन्हु उस बुतखाने के अन्दर दाख़िल हो गये और दरवाज़ा बन्द कर लिया। फिर बुत को गिराया। उसके बाद बुतखाने की ईमारत पर चढ़ गये और उसकी दीवारें गिराने लगे। आखिर में उस बुतखाने की सारी ईंटें उखाड फेंकी। पुजारी ने कहा- “इस मुर्ती घर की बुनियादें इन्हें ग़र्क़ कर देंगी।” ‘मुग़ीरा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने जब ये सुना तो उस बुत खाने की बुनियाद भी उखाड़ फेंकी। इस तरह लोगों के दिलों में इस्लाम की अज़मत बढा़ दी।