वापसी
रुह को फ़ानी दुनिया में इतने समय तक रहने की ज़रूरत थी जब तक कि शरीयत को पूरा करने और आत्माओं को शुद्ध करने का महान कार्य पूरा नहीं हो जाता।
हज्जतुल विदा में इस ख़ास फ़र्ज़ को पूरा किया गया है। पूर्ण एकेश्वरवाद और महान नैतिकता के सिद्धांतों को व्यवहार में स्थापित करके अराफ़ात के जन साधारण में ये ऐलान कर दिया गया- आज के दिन मैंने तुम्हारे दीन को पूरा कर दिया और अपनी रहमतें पूरी कर दीं
सूरह: नसर के ज़रिए ख़ास ख़ास सहाबा को हजरत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दुनिया से जाने की ख़़बर हो चुकी थी और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के हुक्म से ज़्यादातर समय तस्बीह व तहलील में गुज़ारने लगे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हर साल रमज़ान के महीने में दस दिन ऐतकाफ़ में बैठते थे लेकिन रमज़ान 10 हिजरी में बीस दिन ऐतकाफ़ में बैठे। साल में एक बार आप पूरा क़ुरआन सुनते थे लेकिन दुनिया से रुख़सत होने वाले साल में आपने दो दफ़ा क़ुरआन सुना। हज्जतुल विदा के मौके़ पर हज की तालीम के साथ-साथ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह ऐलान भी फ़रमाया कि मुझे उम्मीद नहीं के आने वाले साल तुम से मिल सकूँ। कुछ और लोगों से रिवायत में ये अल्फ़ाज़ इस तरह आए हैं शायद इसके बाद हज न कर सकूँ। हज्जतुल विदा के मौके़ पर तमाम मुस्लमानों से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ख़ास मुलाक़ात की और उसके बाद एक ख़ुत्बा दिया-
मैं तुमसे पहले हौज़ (जन्नत के पानी का स्रोत – हौज़ ए कौसर) पर जा रहा हूँ । उसकी लम्बाई चौड़ाई इतनी है जितनी आसमान से ज़मीन तक। मुझको तमाम दुनिया के ख़ज़ानों की चाबी दी गई है। मुझे डर नहीं कि मेरे बाद तुम शिर्क करोगे लेकिन इससे डरता हूँ कि दुनिया में न घिर जाओ और इसके लिए आपस में खून न बहाना तो फिर इसी तरह बरबाद हो जाओगे जिस तरह पहली क़ौमें हलाक हुई।
18 या 19 सफ़र 11 हिजरी में आधी रात को आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जन्नतुल बक़ीअ में जो आम मुस्लमानों का कब्रिस्तान था तशरीफ़ लाए तो तबीयत खराब महसूस हुई। यह हज़रत ‘मेमूना’ रजिअल्लाह अन्हा के घर रुकने का दिन था। 5 दिन तक आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी हालत में एक-एक बीवी के घर पे तशरीफ़ ले जाते रहे। मंगल के दिन तबीयत ज्यादा ख़राब हुई तो उन्होंने अपनी बीवियों से इजाज़त माँगी कि हज़रत आयशा रज़िअल्लाह अन्हा के घर रुक जाऊँ? किसी को बुरा न लग जाए इसलिए इजाज़त भी साफ़ शब्दों में नहीं माँगी थी बल्कि पूछा था कि कल मैं किस के घर रहूँगा। दूसरे दिन हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के यहाँ रुके। बीवियों ने भी आपकी इच्छा को देखते हुए कहा कि आपका जहाँ दिल चाहे वहाँ रुक जाऐं। तबीयत इस क़दर ख़राब हो गई थी कि आप से चला भी नहीं जाता था। हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु और हज़रत अब्बास रज़िअल्लाह अन्हु आपके दोनों बाज़ू थामकर बहुत मुश्किल से हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के घर तक ले आए। जब तक चलने फिरने की ताक़त रही आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने के लिए आ जाया करते थे। सबसे आख़री नमाज़ जो आपने पढ़ाई वह मग़रिब की नमाज़ थी। सिर में दर्द था इसलिए सिर में रुमाल बाँधकर आप तशरीफ़ लाए और नमाज अदा की।
ईशा का वक्त आया तो लोगों से पूछा। क्या नमाज़ हो चुकी? लोगों ने जवाब दिया- सब हुजूर का इंतजार कर रहे हैं। बर्तन में पानी भरवा कर ग़ुस्ल किया? फिर उठना चाहा तो चक्कर आ गये। कुछ आराम करने के बाद फिर पूछा कि नमाज़ हो चुकी लोगों ने फिर वही जवाब दिया। आपने फिर ग़ुस्ल फ़रमाया और फिर जब उठना चाहा तो चक्कर आ गये। कुछ आराम के बाद फिर पूछा।
तीसरी बार भी जब किसी सूरत आराम नहीं मिला तो इरशाद फ़रमाया के अबू बक्र रज़िअल्लाह अन्हु से कहो कि नमाज़ पढ़ाऐं । हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा ने कहा या रसूल अल्लाह अबू बक्र रज़िअल्लाह अन्हु बहुत नाजुक दिल के मालिक हैं। उनसे आप की जगह पर खड़ा न हुआ जाएगा। आपने फिर यही हुक्म दिया कि अबू बक्र रज़िअल्लाह अनहु से कहो कि नमाज़ पढ़ाऐं। इसके बाद कई दिनों तक हज़रत अबू बक्र रज़िअल्लाह अन्हु ने नमाज़ पढ़ाई।
अपनी जिंदगी के आखिरी 4 दिन पहले ज़ोहर की नमाज़ के वक्त आपकी तबीयत ने कुछ सुकून पाया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हुक्म दिया कि पानी की सात मश्कें आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर डाली जाऐं। ग़ुस्ल कर चुके तो हज़रत ‘अली’ रज़िअल्लाह अन्हु और हज़रत ‘अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु आपको थाम कर मस्जिद में लाए। जमात खड़ी हो चुकी थी और हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु नमाज़ पढ़ा रहे थे। आहट पाकर हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु ने पीछे हटना चाहा आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इशारे से उन्हें रोक दिया और उनके बराबर में बैठ कर नमाज़ पढ़ाई। आपको देखकर हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु और हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु को देखकर और लोग नमाज़ अदा करते जाते थे।
नमाज़ के बाद आंहजरत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एक ख़ुत्बा दिया जो आपकी ज़िन्दगी का सबसे आख़री ख़ुतबा था आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-
अल्लाह ने अपने एक बंदे को यह अधिकार दिया कि वो चाहे तो दुनिया के सनसाधन को कुबूल कर ले, या अल्लाह के पास जो नेमतें हैं उनको कुबूल करले। यह सुनकर ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु रो पड़े।
लोगों ने उनकी तरफ़ हैरत से देखा कि आप तो एक शख्स का वाक़िया बयान करते हैं तो ये रोने की कौन सी बात है।
लेकिन अल्लाह के महबूब मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दोस्त समझ चुके थे कि वो बंदा खुद मोहम्मद रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हैं। आप ने अपनी तक़रीर का सिलसिला आगे बढ़ाया और फ़रमाया सबसे ज्यादा मैं जिस की दौलत-सेहत का अभारी हूँ। ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु हैं। अगर मैं दुनिया में किसी को अपनी उम्मत में से अपना दोस्त बना सकता तो ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु को बनाता। लेकिन इस्लाम का रिश्ता दोस्ती के लिए काफ़ी है। मस्जिद की तरफ कोई खिड़की ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु की खिड़की के अलावा बाकी न रहे।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीमारी के ज़माने में अंसार आप की मेहरबानियों को याद करके रोते थे। एक बार इसी हालत में हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हू और हज़रत ‘अब्बास’ रज़िअल्लाह अन्हु का गुज़र हुआ। उन्होंने अंसार को रोते हुए देखा तो कारण जानना चाहा। अंसार ने बताया कि हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बातें याद आती हैं। उनमें एक सहाबा ने जाकर और आंहज़रत से घटना को कह सुनाया। आज अंसार की माफ़ी का मौक़ा था। इसके बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अंसार की तरफ से लोगों से कहा।
ऐ लोगों! मैं अंसार के मामले में वसीयत करता हूँ आम मुसलमान बढ़ते जाएंगे। लेकिन अंसार इस तरह कम होकर रह जाएंगे जैसे खाने में नमक। वो अपनी तरफ़ से अपना फ़र्ज़ अदा कर चुके। अब तुम्हें उनका फ़र्ज़ अदा करना है। वो जो ख़लीफ़ा हो उसको चाहिए कि इनमें से जो नेकोकार हो उनको स्वीकार करें और जिन से ख़ताऐं हुई उनको माफ कर दे।
ख़ुत्बे से फ़ारिग़ होकर आप हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के कमरे में तशरीफ लाऐ। आपको हज़रत ‘फ़ातिमा ज़हरा’ रजी अल्लाह अन्हा से बेहद मोहब्बत थी। बीमारी की हालत में उनको बुला भेजा। वो आयीं तो उनसे कान में कुछ बातें कि वो रोने लगीं। फिर पास बुला कर कान में कुछ कहा तो हंस पड़ीं। हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा ने पूछा क्या पहले कहा और क्या बाद में?
‘फ़ातिमा ज़हरा’ रज़िअल्लाह अन्हा ने बताया कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि मैं इसी मर्ज़ में इंतकाल करूँगा, तो मैं रोने लगी। दूसरी बार मेरे कान में कहा कि मेरे ख़ानदान में सबसे पहले तुम ही मुझसे आकर मिलोगी, तो मैं हंसने लगी।
यहूद और नसारा ने अंबिया के मज़ारों और यादगारों के सम्मान में जो बढ़ोतरी की थी वो बुत परस्ती की हद तक पहुँच गई थी। इस्लाम का पहला और सबसे बड़ा दायित्व ही बुत परस्ती का ख़ात्मा करना था।
इत्तेफ़ाक़ से आपकी कुछ बीवियों ने जो हब्शा हो आई थी़। इसी हालत में वहाँ के ईसाई देवताओं का और उनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों का ज़िक्र किया। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया इन लोगों में जब कोई नेक आदमी मर जाता है तो उसके मक़बरे को इबादत गाह बना लेते हैं और उसका बुत बनाकर उसमें खड़ा कर देते हैं। क़यामत के रोज़ अल्लाह की निगाह में यह लोग बदतरीन मखलूक में से होंगे। ठीक उसी हालत में जब बीमारी का बहुत ज़ोर था चादर कभी मुँह पर डाल लेते थे और कभी गर्मी से घबराकर पलट देते थे। हज़रत ‘आयशा रज़िअल्लाह अन्हा ने आपकी ज़बाने मुबारक से यह अल्फ़ाज़ सुने- यहूदी और नसारा पर अल्लाह की लानत हो उन्होंने अपने पैगंबरों की कब्रों को इबादत गाह बना लिया।
इसी बेचैनी की हालत में याद आया के हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के पास कुछ अशरफियाँ रखवाई थीं पूछा कि वो अशरफियाँ कहाँ है? जाओ उन्हें अल्लाह की राह में ख़ैरात कर दो। वरना मैं अल्लाह से बदगुमान होकर मिलूँगा। दर्द में कभी कमी और कभी बढ़ोतरी होती रहती थी। जिस दिन आप दुनिया से रुख़सत हुए देखने में तबीयत को कुछ सुकून था। हुजरा मुबारक मस्जिद से मिला हुआ था। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पर्दा उठा कर देखा तो लोग फ़जर की नमाज़ में ध्यान मग्न थे। देख कर खुशी से हंस पड़े लोगों ने आहट पाकर सोचा कि शायद आप बाहर आना चाहते हैं। खुशी के मारे वहाँ तमाम लोग बेकाबू हो गए और निकट था कि नमाज़ें टूट जाऐं। हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हा जो इमाम थे, चाहा कि पीछे हट जाऐं । आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इशारे से रोका और हुजरा शरीफ़ में दाखिल होकर पर्दे डाल दिए।
ये सबसे आख़री मौक़ा था कि सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दिदार किये। हज़रत ‘अनस’ बिन मालिक कहते हैं कि आपका चेहरा बिल्कुल सफेद हो चुका था। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता था आप पर बेहोशी तारी होती और फिर फायदा होता नज़र आता। हज़रत ‘फ़ातिमा ज़हरा’ रज़िअल्लाह अन्हा यह देख कर बोली हाय! मेरे बाप की बेचैनी। आपने फ़रमाया तुम्हारा बाप आज के बाद बेचैन नहीं होगा। हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा फ़रमाती हैं कि आप जब तंदुरुस्त थे तो फ़रमाया करते थे कि पैगंबरों को ये अधिकार दिया जाता है कि वो चाहें तो मौत को कुबूल करें या दुनिया की ज़िन्दगी को।
बिमारी की हालत में अक्सर इस आपकी जबान मुबारक से यह अल्फ़ाज़ अदा होते थे। – उन लोगों के साथ जिस पर आल्लाह ने कृपा की।
और कभी ये अल्फ़ाज़ अदा करते-अल्लाह सबसे बड़ा दोस्त है।
अंतिम समय से ज़रा पहले ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु के बेटे हज़रत ‘अब्दुल रहमान’ रज़िअल्लाह अनहु आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में आए । आप हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा के सीने पर टेक लेकर लेटे थे। हज़रत ‘अब्दुल रहमान’ रज़िअल्लाह अन्हा के हाथ में दातून थी । हुजूर ने दातून की तरफ़ नज़र जमा कर देखा। हज़रत ‘आयशा’ रज़िअल्लाह अन्हा समझी कि आप दातून करना चाहते हैं। हज़रत ‘अब्दुल रहमान’ रज़िअल्लाह अन्हु से मिस्वाक लेकर अपने दांतो से नरम की और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथों में पेश की। आपने बिल्कुल सेहतमंदों की तरह दातून की। रूह जिस्म से अलग होने वाली थी। दोपहर का समय था सीने में सांस की घरघराहट महसूस होती थी। इतने में होंठ हिले तो लोगों ने यह अल्फाज सुने- नमाज़ और ग़ुलाम के साथ अच्छा सलूक।
पानी का बर्तन पास रखा था उसमें बार-बार हाथ डालते और चेहरे पर मलते। चादर कभी मुंह पर डाल लेते और कभी हटा देते इतने में हाथ उठाकर फरमाया- और अब उस बड़े दोस्त की ज़रुरत है।
यही कहते कहते पाक रुह जिस्म से निकलकर अपने हक़ीक़ी मालिक जा मिली।