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Toggleजीत हार में बदलते हुए
क़ुरैश के क़दम उखड़ रहे थे। तभी ‘ख़ालिद बिन वलीद’ ने देखा कि पिछली तरफ़ से तीर अंदाज़ हट गए हैं और रास्ता साफ़ हो गया है। ‘ख़ालिद बिन वलीद’ ने फ़ौज की एक टुकड़ी से हमला किया। ये लोग लूटने में लगे हुए थे। पीछे मुड़ के देखा तो ‘खालिद बिन वलीद’ तलवारों से हमलावर थे। एक दम भगदड़ मच गयी। भगदड़ इतनी मची कि ख़ुद मुस्लमान मुस्लमानों के हाथों मारे गए। ‘मुसअब बिन उमैर’ रज़िअल्लाह अन्हु काफ़ी ज़्यादा हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मिलते जुलते थे। इस भगदड़ में वो शहीद हो गए।
क़ुरैश का हमला इतना ज़ोरदार था कि सहाबा के क़दम उखड़ गए और दुश्मन हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तक पहुँच गए। मुश्रिकीन से झपट में हुज़ूर का मुबारक चेहरा ज़ख़्मी हो गया। जो जंगी टोपी हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पहन रखी हुई थी उसकी दो कड़ियाँ हुज़ूर के चेहरे मुबारक में गढ़ गयीं और दाहिनी तरफ़ का नीचे का दांत शहीद हो गया। चारों तरफ़ से तीर और तलवारों की बारिश हो रही थी। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)का कदम लड़खड़ाया और अपने पीछे एक गड्ढे में गिर गए। हज़रत अली ने हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथ पकड़े और हज़रत ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने गोद में उठा लिया।
हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बेहोश देख कर क़ुरैश ने ख़बर उड़ा दी कि हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) शहीद हो गए। इस ख़बर के उड़ते ही मुस्लमानो की फ़ौज पर मायूसी की घटा छा गयी। अक्सर लोगों ने हिम्मत हार दीं। जो जहाँ था वही रह गया। हज़रत ‘अनस बिन नज़र’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कुछ मुस्लमानों को देखा कि उन्होंने हथियार रख दिए और ग़मगीन बैठे थे। ‘हज़रत अनस’ रज़िअस्लाह अन्हु ने पूछा ‘बैठे क्या कर रहे हो?’ उन्होंने कहा कि हुज़ूर शहीद हो गए। हज़रत ‘अनस’ रज़िअल्लाह अन्हु बोले ‘फिर तुम ज़िंदा रह कर क्या करोगे? उठो जिस पर रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जान दी उस पर तुम भी जान दे दो। ‘हज़रत अनस’ रज़िअल्लाह अन्हु ने मुस्लमानों की तरफ़ इशारा कर के कहा ‘ऐ अल्लाह! इनके कामों की तरफ़ से मैं माफ़ी माँगता हूँ,और मुश्रिकीन के अमल से मैं बरी हूँ।’
आगे बढे़ तो साद बिन माज़ रज़िअल्लाह मिले। ‘अनस’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा- ‘साद! मुझे ओहद पहाड़ से जन्नत की खुश्बू आ रही है।’ ये कहकर आगे बढे और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। जब जंग के बाद देखा गया तो हज़रत ‘अनस’ रज़िअल्लाह अन्हु के शरीर पर अस्सी (80) से ज़्यादा घाव थे और लाश पहचान में नहीं आ रही थी। फिर उनकी बहन ने उनकी ऊँगली पर पड़े एक निशान से उनकी पहचान की। एक मुहाजिर एक अंसार के पास से गुज़रे तो देखा वो खून में लथ-पथ पड़े हैं। मुहाजिर सहाबी बोले ‘तुम्हें पता है मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) शहीद हो गए ?’ उन्होंने जवाब दिया ‘मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) शहीद हो गए तो अपनी मंज़िल को पहुँच गए। तुम भी अपने दीन पर प्राण निछावर कर दो।’
बिखरती हुई फ़ौज का दोबारा हिम्मत जुटाना
हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के विश्वासपात्र निर्भीक और साहसी बहादुरी से लड़ रहे थे। अपितु हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शहादत की झूठी ख़बर उड़ चुकी थी फिर भी मोहब्बत करने वालों की निगाहें हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को तलाशतीं थीं। लड़ते-लड़ते हज़रत ‘काब बिन मालिक’ रज़िअल्लाह अन्हु की नज़र हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर पड़ी। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का चेहरा जंगी टोपी से ढ़का हुआ था लेकिन सूरज जैसी चमकदार आँखें दिख रही थीं। हज़रत ‘काब’ रज़िअल्लाह अन्हु ने हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को पहचान लिया और ज़ोरदार नारा लगाया- ‘मुस्लमानो! रसूलल्लाह यहाँ हैं!’ ये सुन कर उम्मीद की लहर दौड़ पड़ी।
हर तरफ़ से सहाबा इकठ्ठा हो कर हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ़ आने लगे। मुश्रिकीन ने भी हर तरफ़ से ध्यान हटा कर अब अपना रुख़ हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ़ ही कर लिया। हमले और तेज़ हो गए। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के क़रीब हज़रत ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अपने ज़ोरदार हमलों से दुश्मन को पीछे धकेल दिया। चारों तरफ़ से तीर बरसने लगे। हज़रत ‘अबू दुजाना’ रज़िअल्लाह अन्हु हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर इस तरह झुक कर खड़े हो गए कि अपनी पीठ को उनके लिए ढालढाल बना दिया। तीर ‘अबू दुजाना’ रज़िअल्लाह अन्हु की पीठ में गढ़ते जाते थे लेकिन ‘अबू दुजाना’ रज़िअल्लाह अन्हु हल्का सा भी न हिलते।
हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ज़ख़्मी हालत में खड़े हुए और फ़ौज की कमान संभाली। एक तरफ़ से ज़ोरदार हमला हुआ तो हुज़ूर ने कहा कि कौन है जो इन्हें पीछे धकेले और जन्नत हासिल करे। सात अंसारी खड़े थे एक-एक करके हमला करते गए। दुश्मन को पीछे धकेलते गए और अपने रब से मिलते रहे। हज़रत ‘तल्हा’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अपने हाथ से ढ़ाल का काम लिया और हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ़ आने वाले तीरों को अपने हाथ पर रोका। वो हाथ जिस पर तीर लग रहे थे हमेशा के लिए ख़राब हो गया था। रहमत ए आलम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ज़ालिम तीर बरसाते जबकि हुजूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जुबां से ये लफ्ज़ निकलते- ऐ मेरे अल्लाह! मेरी क़ौम को माफ़ कर दे। ये बे-खबर हैं।