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Toggleमुसलमानों की परीक्षा
चौदह सौ जां निसारों के मौजूद रहते हुए ये एक तरफ़ा समझौता हुआ और सिर्फ़ समझौता ही नहीं हुआ बल्कि अल्लाह ने उन सब का सब्र भी आज़माया। हुआ यूँ कि जब समझौता लिखा जा चुका तो ‘सुहैल’ का बेटा ‘अबू जिंदल’ जो ईमान ला चुका था और मक्का वालों ने उसे क़ैद कर रखा था। उस पर ज़ुल्म सितम के पहाड़ तोड़े जा रहे थे। जख़्मी हालत में गिरता पड़ता हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में आ गया। ‘सुहैल’ ने कहा “इसे हमारे हवाले कर दें।”
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा “अभी समझौता कलमबन्द नहीं हुआ है।” तो ‘सुहैल’ ने कहा “तो ठीक है! हमें सुलह मंज़ूर नहीं।” हुज़ूर ने कहा “अच्छा तो इसको यही रहने दो।” सुहैल हरगिज नहीं माना। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बार-बार इस बात पर ज़ोर देते रहे और ‘सुहैल’ हर बार इंकार करता रहा। फिर आपने ‘जिंदल’ रज़िअल्लाह अन्हु से ये कलमात कहे “अबू जिंदल सब्र और ज़ब्त से काम लो। अल्लाह तुम्हारे और मजलूमों के लिये ज़रुर कोई रास्ता निकाल देगा। अब सुलह हो चुकी है। हम इन लोगों से कोई बद अहदी नहीं करेंगे।”
‘अबू जिंदल’ रज़िअल्लाह अन्हु ने अपने ज़ख़्म दिखाते हुए कहा। भाईयो क्या मुझे दोबारा फिर इसी हालत में देखना चाहते हो। मैं भी ईमान ला चुका हूँ फिर भी मुझे इन काफ़िरों के हवाले कर रहे हो। मुस्लमानों का दिल उनकी इस गुज़ाइश पर मचल मचल जाता था। उन्हें रंज भी था और ग़ुस्सा भी था मगर वो बेबस थे। इधर ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु से सब्र न हो सका वो तड़प के हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में आये और तड़प कर पूछा “ या रसूल अल्लाह क्या आप अल्लाह के पैग़म्बर नहीं हैं?” आपने जवाब दिया “हाँ हूँ!”
उमर रज़िअल्लाह अन्हु:- क्या हम हक़ पर नहीं हैं?’
रसूल अल्लाह:- बेशक हम हक़ पर हैं।’
उमर रज़िअल्लाह अन्हु:- तो फिर हम दीन में ये ज़िल्लत क्यों गवारा कर रहे हैं?
रसूल अल्लाह :- मैं अल्लाह का पैग़म्बर हूँ और किसी भी हालत में अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं कर सकता। अल्लाह मेरी मदद करेगा।
हज़रत उमर रज़िअल्लाह अन्हु:- क्या आपने ये नहीं कहा था कि हम क़ाबे का तवाफ़ करेंगे?
रसूल अल्लाह:- मगर ये तो नहीं कहा था कि इसी साल करेंगे?
हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु वहाँ से उठ कर हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु के पास आये और वही बातें जो आपने रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से की थी दोहरा दीं। हज़रत ‘अबू बक्र’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “वो अल्लाह के पैग़म्बर हैं और जो कुछ भी करते हैं अल्लाह के हुकुम से करते हैं।” कहते हैं कि हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु बाद में अपनी इस गुस्ताख गुफ़्तगू पर इतनी शर्मिंदा हुए कि सारी ज़िन्दगी इसका कफ़्फारा नमाज़, रोज़े, खैरात और गुलाम रिहा करते हुए अदा करते रहे।
नाकामी बनाम कामयाबी
सुलह हुदैबिया के बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तीन दिन तक यहाँ निवास किया और जब रवाना हुए तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ये आयत उतरी-
हमने तुझको खुली फ़त्ह इनायत की।
तमाम मुसलमान जिस समझौते को अपनी हार तसव्वुर कर रहे थे। उस रब ने फतह कहा। हज़रत(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु को बुलाकर कहा- “मुझपर ये आयत उतरी है।” उमर रज़िअल्लाह अन्हु ने हैरतज़दा होकर कहा- “तो क्या ये हमारी जीत है।” आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “हां।” और फिर ‘उमर’ रज़िअल्लाह अन्हु के दिल को सुकून हो गया और वो मुतमईन नज़र आने लगे। तारीख़ लिखती है कि जितने मुसलमान सुलह हुदैबिया के बाद मुसलमान हुए उतने कभी नहीं हुए थे। इसका वजह ये बताई जाती है कि सुलेह हुदैबिया के बाद कुफ़्फ़ार और मुसलमान आपस में खुलकर मिलते रहे। कुफ्फ़ार जब मदीना आते तो महीनों यहाँ ठहरते। इस्लाम पर विचारों का आदान प्रदान होता। उसके तेज को समझा जाता। उसके जां निसारों के अख़्लाक़ देखे जाते। मदीने की पाकीज़गी देखी जाती। वहाँ का ज़िन्दगी का तौर तरीका देखा जाता और ये सारी चीजें अपने अख़्लाक़ की बिना पर सारी दुनिया से अद्वित्य पाई जातीं।
समझौते के मुताबिक़ जो लोग मक्का से आयेंगे उन्हें वापस भेज दिया जायेगा मगर वापस भेजने वालों में मर्द थे औरतों का जिक्र नहीं किया गया था। इस लिये अल्लाह तआला ने ये आयत उतारी।
तर्जुमा:- मुस्लमानों! जब औरतें तुम्हारे पास हिजरत करके आयें तो उनको परख लो। अल्लाह उनके ईमान को अच्छी तरह जानता है। और जब तुमको यक़ीन हो जाये कि वो मुसलमान हैं तो उनको काफ़िरों के पास वापस न भेजो। न वो औरतें काफ़िरों के क़ाबिल हैं। और उन औरतों पर जो उनके मर्दों ने खर्च किया है कि उन को दे दो। और तुम उन औरतों से शादी कर सकते हो। बशर्त कि तुमने उनकी महर अदा की हो। और ग़ैर ईमान वाली औरतों को अपने निकाह में न रखो।
लेकिन जो मर्द मक्का के काफिरों के सताये, भाग कर आते उन्हें वापस भेज दिया जाता। सबसे पहले भाग कर आने वालों में ‘उतबा’ रज़िअल्लाह अन्हु बिन असद थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उनसे कहा “उतबा वापस चले जाओ।”
उतबा रज़िअल्लाह अन्हु:- क्या आप मुझे उन काफ़िरों के पास भेजते हैं जो मुझे कुफ़्र करने पर मजबूर करते हैं।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा- “अल्लाह इसका बेहतर हल निकालेगा।”
‘उतबा’ रज़िअल्लाह अन्हु दो काफ़िरों की हिरासत में वापस जा रहे थे कि अचानक उन्होंने एक काफ़िर पर हमला करके उसे क़त्ल कर दिया और भाग कर ‘ऐज़’ नाम की जगह पर छुप गये जो समन्दर के किनारे थी। दूसरा आदमी जो ‘उतबा’ रज़िअल्लाह अन्हु के हमले से बच गया था आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आकर इसकी शिकायत की।
अब मक्का के मजबूर और सताये हुए लोगों को जब ‘उतबा’ रज़िअल्लाह अन्हु के इस अमल की जानकारी हुई तो उन्हें अँधेरे में ‘ऐज़’ रौशनी बनकर नज़र आया। अब जिसे भी भागने का मौक़ा मिलता वो ‘ऐज़’ आ जाता। रफ्ता-रफ़्ता ‘ऐज’ में रहने वालों की तादाद में इज़ाफ़ा होने लगा और वो ताक़तवर होते गये। क़ुरैश इसी रास्ते से शाम मुल्क तिजारत करने जाते जिसे यहाँ के लोग अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये व्यापारिक काफ़िले को लूट लेते और उससे जो हासिल होता उससे अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाते। इससे क़ुरैश के नुक़सान में दिनों दिन इजाफ़ा होता रहा और ये नुकसान इतना ज्यादा होने लगा कि मजबूर होकर क़ुरैश ने हज़रत(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को लिखवा भेजा कि हम समझौते की इस शर्त को रद्द करते हैं। अब जिसका दिल चाहे वो मदीना में रह सकता है। हम इस शर्त को खत्म करते हैं। अब हमारा कोई ऐतराज़ नहीं माना जायेगा। हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ‘ऐज़’ के लोगों से कहलवा दिया कि वो मदीने आकर आबाद हो जायें। लिहाज़ा सब लोग मदीने आ गये और मक्का वालों का रास्ता खुल गया।
मर्दो में से ‘अबू जिंदल’ रज़िअल्लाह अन्हु और उनके साथ औरतों में से ‘उम्मे कुलसूम’ रज़िअल्लाह अन्हा और उनके भाई ‘अम्मारा’ रज़िअल्लाह अन्हु और ‘वलीद’ रज़िअल्लाह अन्हु के नाम ख़ास तौर से तारीख़ में दर्ज हैं।
अल्लाह ने सुलह हुदैबिया को जीत कहा था और ये वही जीत थी इससे इस्लाम की तरसील और तबलीग़ का काम आसान हो गया। क़ुरैश और मुस्लमानों में अब तक जो जंगें हुई थी वो सब ‘खालिद बिन वलीद’ की सिपहसालारी और देख रेख में हुई थीं। ओहद में कुरैश के उखडे़ हुऐ पैरों को ‘ख़ालिद बिन वलीद’ की ही कोशिशों से जमाये गये थे। सुलह हुदैबिया के मौक़े पर भी आपकी ही दानिशमंदी का सुबूत देती है। लेकिन इस्लाम की ठंडी हवा ने उन्हें भी प्रभावित कर दिया और वो इस्लाम में दाख़िल हो गये। इसके बाद जो जौहर आप इस्लाम के खिलाफ़ दिखाया करते थे अब इस्लाम की मुहब्बत में दिखाने लगे।
मक्का विजय के मौक़े पर जब एक बार ‘खालिद बिन वलीद’ रज़िअल्लाहल अन्हु मुसलमान दस्ते के सिपहसालार बन कर हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सामने से गुज़रे तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- “कौन?”
लोगों ने जवाब दिया- ‘खालिद’ रज़िअल्लाहअन्हु।’
आपने फरमाया- “अल्लाह की तलवार है।”