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Toggleसुल्तानों को दावत ए इस्लाम
7 हिजरी के मौहर्रम के महीने में मुख़तलिफ़ ज़बानें जानने वाले सहाबा किराम को जमा किया गया और जो जिस ज़बान को बाखूबी जानते थे उन्हें उसी ज़बान में ख़त लिख कर दिये गये ताकि बात चीत में आसानी हो। ये सभी खत रसूलअल्लाह को अल्लाह का पैग़म्बर और दीन ए इस्लाम को क़ुबूल करने की दावत से सम्बंधित थे। अभी तक आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मौहर तैयार नहीं करवाई थी जो बाद में चाँदी की तैयार की गयी।
जो ख़त ईसाई बादशाहों को लिखे गये उन खतों में ये आयत भी लिखी गयी-
‘ऐ अहले किताब! आओ हम एक ऐसी बात पर इतिफ़ाक़ करें जो हमारे तुम्हारे दीन में एक जैसी हैं यानी अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत न करें। और किसी को भी उसका शरीक न बनायें। और अल्लाह का दर्जा अपने जैसे किसी इंसान को न दें।’
दूसरा खत –
बिस्मिल्लाह अर्रहमान निर्रहीम
(शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयावान और रहम करने वाला है)
ये ख़त अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ओर से नजाशी असहम बादशाह ‘जैश’ के नाम है। तुम पर सलामती हो। मैं सबसे पहले अल्लाह की तारीफ़ करता हूँ और ज़ाहिर करता हूँ कि ‘ईसा बिन मरियम’ अल्लाह की मखलूक़ हैं। और उसका हुकुम है जो मरियम बतूल तैबा अफ़ीफ़ा की जानिब भेजा गया। और उन्हें ‘ईसा’ अलैहिस्सलाम का इससे हमल ठहरा गया। आल्लाह ने ‘ईसा’ अलैहिस्सलाम को वैसे ही पैदा किया जैसा कि आदम अलैहिस्सलाम को अपने हाथों से पैदा किया था। अब मेरी दावत ये है कि तुम अल्लाह पर ईमान ले आओ जो वाहिद और अद्वित्य है।और हमेशा उसकी फ़र्माबर्दारी में रहा करो। और मेरी ईताअत करो और मेरी तालीम को सच्चे दिल से तस्लीम करो क्योंकि मैं अल्लाह का रसूल हूँ। मैं इससे पहले भी आपके मुल्क में अपने चचेरे भाई ‘जाफ़र’ रज़िअल्लाह अन्हु को भेज चुका हूँ। नजाशी तुम इसे भी आराम के साथ ठहरा लेना। तुम तकब्बुर को तर्क कर दो। मैं तुमको और पूरे दरबार को अल्लाह की जानिब बुलाता हूँ। देखो मैंने अल्लाह का हुकुम पहुँचा दिया है और समझा भी दिया है। अब मुनासिब है कि उस इस्लाम को क़ुबूल कर लो जो सीधा रास्ता दिखाता है। नजाशी ने जब ये ख़त की तहरीर सुनी तो अल्लाह ने उसे हिदायत दी और उसने इस्लाम क़ुबूल कर लिया।
खत का जवाब नजाशी की जानिब से
बिस्मिल्लाह अर्रहमान निर्रहीम
(शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयावान और रहम करने वाला है)
मुहम्मद रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में नजाशी असहम बिन अबज़र की जानिब से। ऐ नबी अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आप पर अल्लाह की सलामती और बरकत हो। उसी अल्लाह की जिसके अलावा और कोई पूज्य नहीं और जिसने मुझे इस्लाम की हिदायत फ़रमाई। अब अर्जे ये हैं कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का पैग़ाम मुझ तक पहुँच गया और आपने ‘ईसा’ अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध में जो ईरशाद फ़रमाया अल्लाह के फज़्ल से वो इससे ज़र्रा बराबर भी बढ़कर नहीं हैं। उनकी हैसियत इतनी ही है जितनी कि आपने अपनी तहरीर में बताई है। हमने आपकी तालीम क़ुबूल कर ली है और आपका चचेरा भाई और बाक़ी मुसलमान यहाँ ख़ैर खैरियत से हैं। मैं ये भी इक़रार करता हूँ कि आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं और सच्चाई जा़हिर करने वाले हैं। पहले मैं आपके हाथ पर शपथ लेता हूँ और मैंने आपके चचेरे भाई के हाथ पर शपथ ली और अल्लाह की फ़रमाबरदारी का हलफ़ लिया। मैं आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में अपने बेटे ‘अरहा’ को रवाना कर रहा हूँ। अगर हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ईशारा हो तो मैं हाज़िर ए ख़िदमत हो जाऊँ तो ज़रुर हाज़िर हो जाऊँगा। क्योंकि मैं यक़ीन करता हूँ कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जो फ़रमाते हैं वो ही हक़ होता है। ऐ अल्लाह के रसूल सलाम आप पर।
शाह ए बहरीन को ख़त
इसी तरह का एक खत ‘मंज़र बिन सावी’ को, जो बहरीन का बादशाह था, लिखा गया। ‘अला बिन अलहज़री’ रज़िअल्लाह अन्हु उनके पास मुबारक खत लेकर गये थे। वो खुद तो मुसलमान हुआ ही साथ ही उस इलाक़े के एक बड़े हिस्से ने इस्लाम कुबूल कर लिया उसने जवाब में लिखा “बहुत सारे लोगों ने इस्लाम और इस्लाम की दावत को बेहद पसंद किया और बहुत सारे लोगों ने इससे इंकार कर दिया। बहुत सारों ने इस मज़हब की आलोचना भी की। मेरे इलाक़े में यहूदी और मजूसी बहुत हैं उनके लिये जो हुकुम हो किया जाये।”
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाब लिखवाया।
जो इस्लाम क़बूल कर ले उसे कुछ न कहें और जो यहूदियत या मजूसियत पर क़ायम हैं उनसे जज़ीआ (टैक्स) लिया जाये।