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Toggleयमामा और दमिशक़ के बादशाह
यामामा के बादशाह ‘होजन बिन अली’ ईसाइ मजबह के मानने वाले थे। जब उनके पास ‘सलीत बिन अम्र’ रज़िंअल्लाह अन्हु दावत ऐ इस्लाम लेकर पहुँचे तो होज़ा बिन अली ने कहा “अगर इस्लाम पर मेरी आधी हुकूमत तस्लीम कर ली जाये तो मैं ज़रुर मुसलमान होना चाहूँगा।” होजन अपने इस जवाब के चन्द रोज़ बाद ही मौत का निवाला बन गया।
जबकि दमिश्क के बादशाह ‘मंज़र बिन हारिस बिन समर’, जो शाम मुल्क का गवर्नर भी था, ने साफ इंकार कर दिया और ‘शुजआ बिन वहब अलअसदी’ रज़िअल्लाह अन्हु को खाली हाथ वापस आना पड़ा।
शाहे असकन्दरया के नाम ख़त
‘मक़ूक़स’ इसकंदरिया का बादशाह था। उनके पास ‘हातिब बिन अबी बल्ताआ’ रज़िअल्लाह अन्हु को भेजा गया। नबी अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ख़त के आख़िर में बड़ी अर्थपूर्वक बात लिखी थी। “अगर तुमने इस्लाम से इंकार किया तो तमाम मिसरियों के मुसलमान न होने का गुनाह तुम्हारी गर्दन पर होगा।” अबी बल्ताआ ने ख़त देने के अलावा भी अपनी मीठी ज़बान से बड़ी अच्छी वज़ाहत की। जनाब आपसे पहले भी इस मुल्क में एक शख़्स हुआ करता था जिसका कहना था “मैं तुम लोगो का बड़ा खुदा हूँ और अल्लाह ने उसे दुनिया व आख़िरत की रुसवाई दी। जब अल्लाह का अज़ाब आया तो फिर न ये मुल्क रहा और न उसका साथ देने वाला कोई ज़िंदा ही बचा। तुम अपने से पहले लोगों को देखो और उनसे सबक़ हासिल करो। ऐसा न हो कि आने वाली नस्लें तुमसे सबक़ लें।”
बादशाह ने कहा- हमारा अपना एक मज़हब है और हम इसे तब तक नहीं छोड़ सकते जब तक इससे बेहतर कोई दूसरा मज़हब नहीं आ जाता।
हज़रत ‘हातिब’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “मैं आपको उस मज़हब की तरफ़ बुलाता हूँ जो मौजूदा और अब से पहले तमाम मज़हब से बेहतर और आला है। नबी अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने आप समेत सभी को इस्लाम की दावत दी। मगर क़ुरैश और यहूद ने हुज़ूर की सख़्त मुखाल्फ़त की जबकि नसारा ने आपकी दावत को बाखुशी तस्लीम कर लिया। अल्लाह की क़सम जिस तरह ‘मूसा’ अलैहिस्सलाम ने हजऱत ‘ईसा’ अलैहिस्सलाम की आमद की ख़बर दी उसी तरह ‘ईसा’ अलैहिस्सलाम ने मुहम्मद मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के आमद की खुशखबरी सुनाई थी। कुरआन मजीद की दावत हम आपको ठीक उसी तरह देते हैं जैसे आप अहल ए तौरेत को इंजील की दावत देते हैं। जिस नबी को जिस क़ौम का ज़माना मिला वही क़ौम उस नबी की उम्मत कहलाई जाती है। इसलिये कोई उज़्र नहीं कि आप भी उस नबी की इताअत करें जिसका हुकुम आपको पहले से ही मिल चुका है। इसे आप ऐसे समझ लें कि हम आपको हज़रत ‘मसीह’ की ही दावत देते हैं।”
मकूकस ने कहा “मैंने इस नबी के बारे में ग़ौर किया और मुझे इससे कोई लगाव पैदा नहीं हुआ। अगर वो किसी ऐसी चीज़ से लोगों को नहीं रोकते हैं जो उनकी ज़रूरतों में से हैं। और मैं ये भी जानता हूँ कि वो न तो जादूगर हैं और न ही काहिन हैं। और बेशक उनमें सारी खूबी नबियों वाली ही पाई जाती है। बहरहाल मैं इस मामले में और ग़ौर फिक्र करुँगा।” इसके बाद उसने नबी अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ख़त को हाथी दांत के बने बाक्स में रखवा दिया और बहुत सारे तौहफे़ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में भेजे जिसमें आपका खच्चर दुलदुल भी शामिल था।
कुस्तुनतुनिया के बादशाह हरकल को ख़त
‘वजीह बिन खलीफ़ा’ रज़िअल्लाह अन्हु को ये शर्फ हासिल हुआ कि आप कुस्तुनतुनिया के बादशाह ईसाइ मज़हब के मानने वाले बादशाह ‘हरकल’ के खत ले जाने वाले बने। हरक़ल की उपाधि क़ैसर (caeser) थी। आपकी बादशाह से ‘बेतुल मुक़ददस’ के मुकाम पर मुलाकात हुई। बादशाह ने ‘वजीह बिन खलीफ़ा’ रज़िअल्लाह अन्हु की आमद पर बड़ा शानदार दरबार सजाया और आप से प्यारे नबी(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में बहुत सी मालूमात हासिल कीं। वो प्यारे नबी(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में और भी बहुत कुछ जानना चाहता था। उसने दरबारियों को हुकुम दिया कि ‘वजीह’ रज़िअल्लाह अन्हु के अलावा भी कोई शख़्स मक्का से आया हो तो उसे हाज़िर किया जाये। ये महज़ इतिफ़ाक़ था कि ‘अबू सूफीयान’ अपने ताजिर भाईयों के साथ मुल्क मक्का से आये हुए थे। उन्हें दरबार में पेश किया गया। बादशाह ने ‘अबू सूफीयान’ के साथ आये हुए ताजिरों को मुख़ातिब करते हुए कहा- “मैं अबू सूफ़ीयान से कुछ सवाल करुँगा, अगर वो ग़लत जवाब दें तो मुझे बताना। अबू सूफीयान खुद बताते हैं कि मुझे खौफ़ था कि मेरे साथी मेरा झूठ बता देंगे। अगर ये खौफ़ न होता कि मेरा झूठ पकड़ा जायेगा तो मैं बहुत सी बातें बना-बना कर बताता।”
क़ैसर:- मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का नसब और ख़ानदान कैसा है?
अबू सूफीयन:- ख़ानदान शरीफ़ है और नसब आला है।
बेशक नबी शरीफ़ घराने के होते हैं और नस्ब आला होता है ताकि उनकी ईताअत से किसी को आपत्ति ना हो।
क़ैसर:- क्या आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पहले भी किसी ने नबी होने का दावा किया है?
अबू सूफ़ीयान:- हरगिज़ नहीं।
ये सुनकर हरकल ने कहा “अगर किया होता तो मैं समझ लेता कि वो अपने से पहले के नक़्शे क़दम पर चल रहे हैं ।”
क़ैसर:- ‘क्या इस शख़्स ने कभी झूठ बोला है या झूठ बोलने की कोई तौहमत लगी है इनपर?’
अबू सूफ़ीयान- ‘नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ।’
इस पर हरकल ने कहा “बेशक ये नहीं हो सकता कि जिसने लोगों से झूठ बोला हो वो खुदा के मामले में झूठ न बोले।”
क़ैसर:- क्या उसके बाप दादा में से कोई शख़्स बादशाह भी रह चुका है?
अबू सूफ़यान:- नहीं कोई नहीं।
इस पर हरकल ने कहा “अगर ऐसा होता तो मैं जान लेता है कि ये बादशाहत हासिल करने के लिये नबूवत का दावा कर रहा है।”
क़ैसर:- जो लोग ईमान में दाख़िल हुए वो कैसे हैं ? मेरा मतलब उनमें ग़रीब और मसकीन ज़्यादा हैं या सरदार और ताक़तवर?
अबू सूफ़ीयान:- मसकीन और हक़ीर लोगों की तादाद ज़्यादा है।
जवाब सुनकर हरकल ने कहा “इससे पहले भी नबी का दावा करने वालों की ईताअत करने वाले ग़रीब और मसकीन ज़्यादा रहे हैं।”
क़ैसर:- नबी की ईताअत करने वालों की तादाद में रोज़ बा रोज़ ईज़ाफ़ा हो रहा है या कम हो रहे हैं?
अबू सूफ़ीयान:- संख्या में ईज़ाफ़ा हो रहा है।’
हरकल ने कहा “यही होता है। ईमान के मानने वालों की तादाद बढ़ते-बढ़ते इन्तहा को पहुँच जाती है।”
क़ैसर:- क्या ऐसे भी शख़्स मौजूद हैं जो नबी(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ईमान लाये और बाद में उनसे उक्ता गये?’
अबू सूफ़ीयान:- ऐसा नहीं हुआ जो एक बार ईमान ले आया वो कभी उकताया हुआ नज़र नहीं आया ।
हरकल ने कहा- “ईमान की यही खूबी होती है कि जब दिल में एक बार बैठ जाता है तो रोज़ बा रोज़ पक्का होता जाता है। उससे बेज़ारी कभी नहीं होती।”
क़ैसर:- क्या नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने वादे के खिलाफ़ भी चले जाते हैं?
अबू सूफीयान:- आज तक तो ऐसा नहीं हुआ। अभी हाल ही में एक समझौता हमारे साथ हुआ है देखते हैं इसका क्या अंजाम होता है?
‘अबू सूफीयान’ कहता है कि मुझे इस जवाब में बस यही लगा कि ‘देखते हैं इसका क्या अंजाम हो’ तंज़ करने के लिये बोला गया है जबकि क़ैसर ने इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया और बोला “बेशक नबी वादे की पासदारी करते हैं। वो वादा तोड़ने वाले दुनियादार नहीं होते हैं और नबी को दुनिया से कोई ग़रज़ नहीं होती।”
क़ैसर:- कभी ये शख्स आपके साथ लड़ा भी है?
अबू सूफीयान:- जी हाँ मेरी इससे लड़ाई हुई है।
क़ैसर:- जंग का नतीजा क्या निकला?’
अबू सूफ़ीयान:- कभी हम उनपर भारी पड़े और कभी वो हम पर विजयी हुऐ।
हरकल ने कहा “हां नबियों की जंगों का यही नतीजा निकलता है। मगर आखिर में फ़त्ह उन्हीं को मुबारक होती है। उनको अल्लाह की मदद आकर ही रहती है।”
क़ैसर:- उनकी तालीम क्या है? वो क्या करने को कहते हैं?
अबू सूफ़ीयान:- एक अल्लाह की इबादत करो। बुत परस्ती को छोड़ दो। नमाज़, रोज़ा, सच्चाई, पाकदामनी इख़्तियार करो।
हरकल- अल्लाह ने नबी के बारे में ऐसे ही वादे किये हैं। मैं अब तक यही समझ रहा था कि नबी प्रकट होने वाले है। लेकिन ये न जानता था कि वो नबी अरब से होगा। ‘अबू सूफ़ीयान’ अगर तुमने सब कुछ सच-सच बताया है तो वो एक रोज़ इस जगह का बादशाह होगा जहाँ मैं बैठा हुआ हूँ। मतलब शाम और ‘बेतुल मुक़्क़दस’ का ज़रुर हाकिम हो जायेगा। काश मैं नबी अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में पहुँचता और उनके पाँव धोता।
इसके बाद हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ख़त पढ़ा गया। ‘अबू सूफ़ीयान’ ने बताया कि उसी दिन से मेरे दिल में अपनी ज़िल्लत और हुजूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की अज़मत का यक़ीन हो गया।