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Toggleक्षमा का उच्च उदहारण
अब कु़रैश ने तमाम आलोचना ख़त्म कर दी और हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पूरी एहतियात के साथ मक्का मे दाखि़ल हुये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपनी फ़ौज को चार टुकड़ियों में तक़्सीम किया और हर टुकड़ी को हुक्म दिया के वो न क़त्ल करें और न ख़ून बहायें जब तक कि उनको शदीद मजबूर न किया जाये। इस तरह चारों टुकड़ियां मक्के में दाखि़ल हुईं और सिवाये हज़रत ख़ालिद इब्ने वलीद रज़िअल्लाह अन्हु की टुकड़ी के किसी को मुज़ाहिमत का सामना न करना पड़ा। जिसे उन्होंने जल्द ही दबा लिया। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का मुकर्रमा के एक ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचे। कुछ देर वहां रुके फिर काबा शरीफ़ आये और तवाफ़ फ़रमाया। फिर हज़रत उ़स्मान इब्ने तलहा रज़िअल्लाह अन्हु को बुलाकर काबा का दरवाज़ा खोला और लोगों की जो भीड़ जमा हो गई थी उससे खि़ताब फ़रमाया-नहीं कोई माबूद सिवाये अल्लाह के जो अकेला है जिसका कोई शरीक नहीं है उसने अपना वादा पूरा किया। अपने बन्दे की सहायता की और तमाम अकेले शिकस्त दी। काबा की कलीद बरदारी और हाजियों को पानी पिलाने के अलावा सारे आदर या कमाल या ख़ू़न मेरे इन दोनो क़दमो के तले हैं …… एै कु़रैश। अब अल्लाह ने तुम्हारी नसब ओ जाहिलीयत के ग़ुरूर को मिटा दिया है। तमाम इन्सान आदम की औलाद हैं और आदम को मिट्टी से पैदा किया गया था।
इसके बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह आयत तिलावत फ़रमाई।
एै लोगो। हमने तुम सब को एक (ही) मर्द और औरत से पैदा किया है और इसलिये के आपस में एक दूसरे को पहचानो तुम्हारे कुन्बे और क़बीले बना दिये हैं अल्लाह के नज़दीक तुम सब में बाइज़्ज़त वो है जो सब से ज़्यादा डरने वाला है यक़ीन मानो के अल्लाह दाना और बाख़बर है। (सूरहः हुजरातः आयतः13)
फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कु़रैश से मुख़ातिब हुये और पूछा के अहले कु़रैश तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाला हूँ? लोगों ने कहा ख़ैर का मामला। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमायाः
तुम पर कोई ज़िम्मा नहीं। जाओ तुम सब आज़ाद हो।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जुबान मुबारक से निकले हुए इस एक कलमा से तमाम कु़रैश और अहले मक्का को माफ़ी ओ दरगुज़र मिल गई थी।
काबे की सफाई
अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) काबा के अन्दर दाखि़ल हुये और देखा के उसकी दीवारों पर नबी और फ़रिश्तों की तस्वीरें बनी हुई हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हुक्म से उन तस्वीरों को वहां से मिटा दिया गया। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने वहाँ एक मिट्टी से बना कबूतर देखा जिसे ख़ुद उठाया और अपने हाथ से तोड़कर ज़मीन पर फैंक दिया फिर अपने हाथ की छड़ी से बुतों की तरफ़ ये कहते हुये इशारा फ़रमायाः
और ऐलान कर दें कि हक़ आ चुका और नाहक़ ख़त्म हो गया। यक़ीनन अधर्म था ही मिट जाने वाला। (सूरहः हुजरातः आयतः13)
तमाम बुत गिर गये और काबा बुतों से पाक हो गया। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फिर मक्का में पन्द्रह दिन क़याम फ़रमाया और इस दौरान मक्के के मामलों का इन्तज़ाम किया। लोगों को दीन समझाया। इस तरह मक्के की फ़तह मुकम्मल हुई और इस्लाम की दावत के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट जो हाइल थी वो अब ख़त्म हो चुकी थी। विरोधियों के अब कुछ ही इलाक़े बाक़ी रह गये थे जैसे हुनैन और ताइफ़ जिन पर क़ाबू पाना कोई बड़ी बात नहीं थी।
हरम शरीफ़ की चाबियाँ दीं गयीं
जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तवाफ़ पूरा कर लिया तो उस्मान बिन तल्हा को बुलाया जिनके पास काबे की चाबियाँ हुआ करती थीं। काबे की चाबियाँ उनसे लीं और दरवाज़ा खोला। आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) काबे में दाखिल हुए। काफी पहले जब आप मदीने को हिजरत कर रहे थे तो उस्मान बिन तल्हा से चाबियाँ मांगी थी जिसपर उसने सख़्त ऐतराज़ किया था और बडी तल्ख गुफ़्तगू की तब आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बड़े सब्र से काम लेते हुए कहा “उसमान एक दिन तुम ये चाबी मेरे हाथ में देखोगे। उस वक़्त मैं जिसे चाहूँगा उसे चाबी दे दूँगा।” इसके जवाब में उस्मान ने कहा “अगर कभी ऐसा हुआ तो वो दिन कुरैश की ज़िल्लत और तबाही का दिन होगा।” तब आपने फरमाया “नहीं उस दिन वो आबाद और बाइज़्ज़त होंगे।”
आज उस्मान को वो दिन याद आया और उन्होंने खुद से कहा “आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ।”
जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) काबे से बाहर आये तो कुंजी उनके हाथों में थी। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को देखते ही हज़रत अली रजिअल्लाह अन्हु खड़े हुए और अर्ज किया “अल्लाह आप पर दरुद सलाम भेजे। जिस तरह आपने पानी पिलाने का इंतज़ाम मुझे सौंपा है उसी तरह काबे की दरबानी भी अता कीजिये।’ आपने इरशाद फरमाया आज का दिन तो अच्छा सलूक करने का है। फिर उस्मान को बुलाकर चाबी उन्हीं को सौपते हुए कहा- “जो कोई तुमसे ये चाबी छीनेगा वो ज़ालिम होगा।”
उन दिनों अरब में एक दस्तूर हुआ करता था। कोई शख़्स किसी को क़त्ल कर देता तो उसके खून का बदला लेना खानदानी फ़र्ज़ समझा जाता था। अगर क़ातिल फरार हो जाता तो खानदान के दफ़तर में कातिल का नाम लिख लिया जाता था और सालों गुज़रने के बाद भी खून का बदला लिया जाता। अगर क़ातिल मर जाता तो उसके खानदान के किसी आदमी को या क़बीले के किसी शख़्स को क़त्ल किया जाता था। इसी तरह खून बहा का मुतालबा भी चला आ रहा था। इसी तरह की कुछ बुरी बातें समाज में दाखिल हो गई थीं। इस्लाम ऐसी ही बुराईयों के खातमे के लिये आया था और आपने ऐसी बुराईयों के बारे में फरमाया “मैंने इन सारी बुराईयों को पैरों से कुचल दिया है।”
अरब और तमाम दुनिया में नस्ल, क़ौम और खानदान की बडी एहमियत रखी गई है। किसी क़ौम को बहुत आला तो किसी कौम को इतना हकीर बना दिया कि दोनों कभी आपस में न मिल सकें। मगर अल्लाह ने अपने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से इन बुराईयों का खातमा करवा दिया और सबको बराबर का दर्जा दिया। किसी गोरे को काले पर, किसी काले को गोरे पर, किसी अरब वाले को गैर अरब पर, किसी ग़ैर अरब को अरब वाले पर कोई बड़ाई नहीं दी। सब बराबर थे। हां जो अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म की फरमाबरदारी सबसे ज्यादा करेगा वो अल्लाह और उसके रसूल के लिये उतना ही महबूब होगा। इस बराबरी ने दुनिया का नक्शा ही बदल दिया।