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Toggleहमदान का प्रतिनिधिमण्डल
ये क़बीला यमन में आबाद था। यहाँ इस्लाम को फैलाने के लिये खालिद बिन वलीद रज़िअल्लाह को भेजा गया। वो वहाँ देर तक रहे मगर अल्लाह की कृपा न हुई। किसी भी व्यक्ति ने आप के हाथों इस्लाम की दावत को कुबूल नहीं किया। इनके बाद नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली रज़िअल्लाह को वहाँ भेजा और फिर अल्लाह की ओर से चमत्कार हुआ और एक ही दिन में सारा समुदाय मुसलमान हो गया।
हज़रत अली रज़िअल्लाह ने आपको खत लिख कर ये शुभ समाचार भेजा। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खत पढ़ा तो अल्लाह के हुज़ूर शुक्राने का सज्दा अदा किया और जबान से कहा “हमदान वालों को सलामती मुबारक।”
ये प्रतिनिधि मणडल उन्हीं लोगों का था जो हज़रत अली रज़िअल्लाह के हाथ पर ईमान लाये थे और अब नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दर्शन के अभिलाषी थे।
‘तारीक़ बिन अब्दुल्लाह’ का बयान है कि मैं ‘मक्का’ में ‘सोक़ अल मजाज़’ में खड़ा था इतने में एक शख़्स आया जो पुकार-पुकार कर कहता था। लोगो ला ईलाहा इल लल्लाह कहो कामयाबी पाओगे। एक और शख़्स उस शख़्स के पीछे-पीछे पत्थर मारता हुआ आया जो कह रहा था “लोगो इसे सच्चा न समझो ये तो झूठा आदमी है।”(नाऊजुबिल्लाह) मैंने लोगों से पूछा कि “ ये कौन है?”
लोगों ने बताया कि जो पुकार-पुकार कर कह रहा था वो बनी हाशिम का एक आदमी है और जो पत्थर मार रहा था उसका चचा अब्दुल उज़्ज़ा था। तारिक़ रज़िअल्लाह अन्हु कहते हैं कि इस बात को बर्सों गुज़र गये। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मदीने जा रहे थे। उस वक़्त हमारी क़ौम के कुछ लोग जिनमें मैं भी शामिल था, मदीने गये ताकि वहाँ से खजूरें खरीद कर लायें। जब मदीने की आबादी के नज़दीक पहुँचे गये। तो हम इसलिये ठहर गये कि सफर की धूल से गंदे कपड़ों को बदल कर साफ़ और धुले हुए कपडे पहन कर शहर में दाखिल हों। इतने में एक शख़्स आया जिस पर दो पुरानी चादरें थी। उसने सलाम के बाद पूछा- “किधर से आ रहे हैं? किधर जाओगे?” हमने उन्हें बताया कि हमारा ईरादा यहीं तक का है और हम ‘रबज़ा’ से आ रहे हैं। हमने कहा कि खजूरें खरीदनी है। हमारे पास एक सुर्ख ऊँट था जिस पर महार भी थी।
उसने पूछा।’ ये ऊँट बेचते हो?’ हमने कहा ‘हाँ’ इस क़दर ख़जूरों के बदले में दे देंगे। उसने कीमत कम करने के लिये नहीं कहा। जैसा अक्सर लोग करते हैं। और महार समेत ऊँट लेकर मदीने को चला गया। जब वो शहर में दाखिल हो गया। तो लोगों ने आपस में बातें करनी शुरु कर दीं। ये हमने क्या किया? ऊँट ऐसे आदमी को दे दिया जिसे हम जानते तक नहीं और क़ीमत भी वसूल करने का कोई प्रबंध भी नहीं किया। हमारे साथ सरदार क़ौम की एक महिला भी थीं। वो बोलीं “मैंने उस आदमी का चेहरा देखा है। पूनम के चाँद की तरह चमक रहा था। अगर ऐसा व्यक्ति पैसे नहीं देता तो मैं आप लोगों का नुकसान पूरा कर दूँगी।”
हम यही बातें कर रहे थे कि इतने में एक दूसरा व्यक्ति आया और बोला मुझे रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भेजा है और ऊँट की क़िमत की ख़जूरें भेजी हैं। तुम्हारे खाने के लिये अलग से खजूरें है। खाओ पियो और क़ीमत की ख़जूरों को तोल कर पूरा कर लो। जब हम खा पीकर सेर हुए तो शहर में दाखिल हुए। देखा कि वहीं शख़्स मस्जिद के मिम्बर पर खड़े होकर प्रवचन दे रहा है। उसका प्रवचन इस प्रकार था- “लोगो ख़ैरात दिया करो। खै़रात का दिया तुम्हारे लिए बेहतर है। ऊपर का हाथ नीचे के हाथ से बेहतर है। मां को, बाप को, बहन को, भाई को फिर क़रीबी को और दूसरे करीबी को दो।”
नजीब का प्रतिनिधिमंडल
क़बीला नजीब के 13 आदमी दरबारे नबी में हाज़िर हुए। यह अपने समुदाय के माल व मवेशी की ज़कात लेकर आए थे।
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- ‘इसे वापस ले जाओ और अपने समुदाय के गरीब लोगों में बांट दो।
उन्होंने अर्ज की ‘या रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)गरीबों को देकर जो बच रहा है हम वही लेकर आए हैं।
हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ि अल्लाह ने अर्ज़ किया- ‘या रसूल अलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इनसे बेहतर अब तक कोई प्रतिन्धि मण्डल नहीं आया।
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- ‘हिदायत अल्लाह के हाथ में है जिसका कल्याण चाहता है उसको दिल खोल देता है?
इन लोगों ने हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कुछ अति महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जिसके उन्होंने उत्तर लिखवा दिए।
यह लोग कुरान और अच्छी बातों के सीखने के लिए बहुत ही उत्सुक रहते थे। इसलिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत बिलाल रजि अल्लाह अन्हा को इनकी आवभगत करने के लिए विशेषतः नियुक्त किया था। यह लोग वापस जाने के लिए बहुत ही ज्यादा उत्सुकता व्यक्त कर रहे थे।
सहाबा ने पूछा- तुम यहां से वापस जाने के लिए इतने व्याकुल क्यों हो? उन्होंने जवाब दिया हम यहां से इसलिए जल्दी वापस जाना चाहते हैं कि हमने जो रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से ज्ञान की रौशनी प्राप्त की है और उनसे संवाद करके जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, उस सब की सूचना अपने समुदाय के लोगों को जल्दी से जल्दी पहुंचा दें। रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उनको उपहार और भेंट देकर सह सम्मान विदा किया। फिर पूछा- ‘तुम में से कोई व्यक्ति रह तो नहीं गया है?’ उन्होंने कहा- ‘एक लड़का है जिसे हम सामान की निगरानी के लिए छोड़ आए हैं।’ आपने(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाया- “उसे भी भेज देना।” जब वह लड़का आया तो उसने रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कहा- ‘हुजूर ने मेरी कौम को उपहार और भेंट दी हैं मुझे भी कुछ उपहार देकर यहां से विदा करें।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- तुम क्या चाहते हो? उसने कहा- या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मेरी इच्छा मेरी क़ौम की इच्छा से अलग है। अपितु मैं जानता हूं कि वह इस्लाम की मुहब्बत में यहां आए हैं और सदक़ात का माल भी लाए थे। हज़रत ने फरमाया- “तुम क्या चाहते हो’?” उसने कहा- “मैं अपने घर से सिर्फ इसलिए आया था कि हुजूर मेरे लिए दुआ फरमाए कि खुदा मुझे बख्श दे मुझ पर रहम करे और मेरे दिल को ग़नी बना दे?
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने अल्लाह से उसके लिए यही दुआ मांगी। 10 हिजरी को जब नबी करीम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज किया तो इस कबीले के लोग फिर हुजूर से मिलने आये। नबी करीम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- “उस नौजवान लड़के की क्या खबर है?” लोगों ने कहा- “या रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस जैसा आदमी हमने कभी देखा ही नहीं। उस जैसा सुना ही नहीं गया। अगर दुनिया की दौलत उसके सामने बट रही हो तो भी वह नज़र उठाकर नहीं देखता!