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Toggleबनी सआद हज़ीम का प्रतिनिधिमण्डल
यह प्रतिनिधिमंडल जिस समय मस्जिद नबवी में पहुंचा तो नबी करीम एक जनाज़े की नमाज़ पढ़ा रहे थे। उन्होंने आपस में तय किया कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की खिदमत में हाजिर होने से पहले हमको कोई भी काम नहीं करना चाहिए इसलिए एक तरफ अलग होकर बैठे रहे। जब हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इधर से नमाज पढ़ाकर हटे तो उनको बुलाया और पूछा- “क्या तुम लोग मुसलमान हो’?” उन्होंने कहा- ‘हां’। हुजूर ने कहा तुम अपने भाई के लिए दुआ में शामिल क्यों ना हुए’? उन्होंने कहा- “हम समझते हैं कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से बैअत करने से पहले कोई भी काम करना उचित नहीं है।” रसूल अल्लाह ने कहा- “जिस समय तुम ने इस्लाम कुबूल किया उसी समय से तुम मुसलमान हो गए।” इतने में वह मुसलमान भी आ पहुंचा जिसे यह लोग सवारी के पास बैठा कर आए थे। प्रतिनिधिमंडल ने कहा- ‘या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) यह हमसे छोटा है और इसीलिए हमारा नौकर है। रसूल अल्लाह ने फरमाया- “छोटा अपने बुजुर्गों का ख़ीदिम होता है। खुदा उसे बरकत दे।” इस दुआ कि यह बरकत हुई कि वही क़ौम का इमाम और कुरान मजीद का क़ौम में सबसे ज्यादा जानने वाला हो गया। जब यह प्रतिनिधिमंडल लौटकर वतन गया तो तमाम कबीले में इस्लाम फैल गया।
बनी असद का प्रतिनिधिमंडल
यह दस व्यक्तियों का एक प्रतिनिधिमंडल था। जिनमें वाबस बिन माबाद और खुलीद थे। रसूल अल्लाह अपने साथियों के साथ अंदर मस्जिद में बैठे थे उनमें से एक ने कहा- ‘या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हम गवाही देते हैं कि अल्लाह एक है। उसका कोई भागीदार नहीं है और आप अल्लाह के बंदे और रसूल हैं। देखिए या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हम स्यंव हाज़िर हो गए हैं और आपने तो हमारे पास कोई आदमी भी ना भेजा।
इस पर यह आयत नाज़िल हुई।
– ‘ये लोग आप पर एहसान करते हैं कि वे आप इस्लाम ले लाए हैं। कह दीजिये कि आप अपने इस्लाम के लिए मुझ पर एहसान न जतायें। बल्कि अल्लाह आपको इस्लाम के लिए निर्देशित करने के लिए आप पर एहसान करता है।’
फिर इन लोगों ने सवाल किया- जानवरों की बलि से ईश्वर के भेद जानना कैसा है? रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन सब मित्थक बातों से दूर रहने के लिए कहा। उन्होंने कहा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक सवाल और रह गया है उसके बारे में आप क्या कहते हैं।”
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा- “वो क्या सवाल है?” तब उन्होंने कहा- ‘तस्वीरें बनाना’। तब आपने फ़रमाया एक नबी ने लोगों को यह हुनर सिखाया था जिस किसी ने भी यह हुनर सीखा बेशक वह हुनर ही है।
बहरआ का प्रतिनिधि मण्डल
यह लोग मदीने में आए और हज़रत ‘मक़दाद’ रज़िअल्लाह अन्हु के घर के सामने अपने ऊँट बिठा दिए। हज़रत ‘मक़दाद’ रज़िअल्लाह अन्हु ने घरवालों से कहा कि इनके लिए कुछ खाना तैयार करो और खुद उनके पास गए और खुशामदीद कह कर अपने घर ले आए। उनके सामने हीस रखा गया। हीस एक प्रकार का खाना होता है जो खजूर और सत्तू मिलाकर घी में तैयार किया जाता है। खाने में से कुछ नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के लिए भी भेज दिया। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कुछ खाकर वह बर्तन वापस कर दिया। अब हज़रत ‘मक़दाद’ रज़िअल्लाह अन्हु दोनों वक्त वही प्याला मेहमानों के सामने रख देते। वह मज़े ले ले कर खाया करते। खूब खाया करते मगर खाना कम न हुआ करता था। उन लोगों को ये देखकर आश्चर्य हुआ। आखिर एक रोज़ अपने मेज़बान से पूछा- “हज़रत हमने तो सुना था कि मदीने वालों का भोजन सत्तू जौ इत्यादि है। तुम तो हमें हर समय वह खाना खिलाते हो जो हमारे यहाँ अति उत्तम समझा जाता है। और जो प्रतिदिन हमें भी उपलब्ध नहीं होता और इतना स्वादिष्ट कि हमने कभी ऐसा खाना खाया ही नहीं है।” हज़रत ‘मक़दाद’ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा- “साहिबो! यह सब कुछ आंहज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बरकत से है क्योंकि इस बर्तन पर आंहज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की उंगली मुबारक लग चुकी है।”
यह सुनते ही सब लोगों ने एकमत होकर कहा- बेशक वह अल्लाह के रसूल हैं और अपने ईमान को ताज़ा किया। इन लोगों ने मदीने में कुछ समय और रहकर कुरआन और रसूल के आदेश सीखे और वापस चले गए।