जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 51

यह भी दस लोग थे जो 10 हिजरी में शाबान के महीने में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने आकर कहा कि हम अपनी कौम के अति पिछड़े लोगों की ओर से उनके वकील बनकर आए हैं। अल्लाह और रसूल पर हमारा ईमान है। हम हुजूर की सेवा में लंबा सफ़र तय करके आए हैं और स्वीकार करते हैं कि अल्लाह और रसूल का हम पर एहसान है। हम यहाँ केवल आपके दर्शन के लिए उपस्थित हुए हैं।

इस पर रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया जिसने मदीने में आकर मेरे दर्शन किए वह क़यामत के दिन मेरा पड़ोसी होगा। फिर रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन लोगों से एक जानकारी चाही। ‘अम उन्स’ का क्या हुआ (यह एक बुत का नाम है जो उस समुदाय का ईश्वर था)। प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर में कहा- कोटि-कोटि धन्यवाद है कि अल्लाह ने हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शिक्षा को हमारे लिए उसका विकल्प बना दिया। कोई कोई बूढ़े और बूढ़ी औरतें रह गई हैं जो उसकी आज भी पूजा करती हैं। इंशाल्लाह! अब हम उसे जाकर गिरा देंगे हम लंबे समय तक धोखे में रहे। रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया किसी दिन की घटना तो सुनाओ। प्रतिनिधिमंडल ने एक घटना का विवरण देते हुए कहा या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक बार हमने सौ नर गाय जमा किए और सब के सब एक ही दिन उसके लिए कुर्बान कर दिये गए और जंगली जानवरों के लिए छोड़ दिए गए। हालांकि हमको गोश्त और जानवरों की बहुत ज़रूरत थी। उन्होंने यह भी बताया कि इन चौपायों और खेती में से ‘अम उन्स’ का हिस्सा बराबर निकाला जाता था। कोई खेती करता तो उसका आधा हिस्सा ‘अम उन्स’ उसके लिए निर्धारित करता और खेत के एक किनारे का हिस्सा उस देवता के नाम कर देते। अगर खेती को हवा मार जाती तो अल्लाह का हिस्सा तो ‘अम उन्स’ के नाम कर देते मगर ‘अम उन्स’ का हिस्सा अल्लाह के नाम पर न करते।

रसूल अल्लाह ने दीन के तरीके सिखाए और विशेषकर इन सब बातों के निर्देश दिए। वादा पूरा करना। सुरक्षा में रखी गई वस्तु को अदा करना। पड़ोसियों से अच्छा बर्ताव करना। किसी भी व्यक्ति पर जुल्म न करना। जुल्म क़यामत के दिन अंधकार होगा।

मुखारिब का प्रतिनिधि मण्डल

यह भी दस व्यक्ति थे। जो अपने समुदाय के वकील बनकर 10 हिजरी में आए थे। हज़रत ‘बिलाल’ रजिअल्लाह अन्हु का चुनाव उनके आतिथ्य के लिए किया गया था। सुबह और शाम का खाना वो ही लाया करते थे। एक दिन नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन्हें दोपहर से लेकर शाम तक का समय दिया। एक व्यक्ति को नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बहुत देर तक देखने के बाद पूछा। मैंने तुमको पहले भी कहीं देखा है। वह व्यक्ति बोला हाँ अल्लाह की क़सम हुजूर ने मुझे पहले भी देखा था और मुझसे बात भी की थी और मैंने अति अपमान जनक वार्तालाप हुजूर से कीं और आपके साथ दुर्व्यवहार भी किया। मैंने हुजूर के उपदेशों को मानने से इंकार भी किया था। यह बाज़ार ‘अक़ाज़’ की घटना है। जहाँ हुजूर लोगों को समझा रहे थे। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- “हां ठीक है।” उस व्यक्ति ने कहा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस रोज़ मेरे दोस्तों में मुझसे बढ़़कर कोई भी हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपमानित करने वाला और इस्लाम से दूर रहने वाला नहीं था। वह सब तो अपने पुराने मज़हब पर ही मर गए। लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि मैं आज तक बाक़ी रहा और हुजूर पर ईमान लाना नसीब हुआ।”

हुजूर ने कहा ‘सबके दिल अल्लाह तआला के हाथ में है।” उस आदमी ने कहा- “या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मेरी पहली हालत के लिए माफ़ी की दुआ अल्लाह से कर दीजिये।” रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया।’ इस्लाम इन सब बातों को मिटा देता है जो कुफ्र में हुई हों।

बनी अब्स का प्रतिनिधि मण्डल

यह प्रतिनिधिमंडल आपके जीवन के अंतिम चार महीने पहले आया था। यह नजरान क्षेत्र के नागरिक थे। यह लोग मुसलमान होकर आए थे। इन्होंने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमने इस्लाम का ऐलान करने वालों से सुना है कि हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये इरशाद फ़रमाते हैं कि हमारे पास माल दौलत भी है और जानवर भी हैं। जिनसे हमारा जीवनयापन होता है। अगर हिजरत के बगैर हमारा इस्लाम ही ठीक नहीं है तो माल दौलत क्या हमारे काम आएंगे और जानवर हमें क्या फ़ायदा देंगे। उचित है कि हम सब कुछ बेच करके सब ख़िदमत आली में हाज़िर हो जाएं?

हुज़ूर अकरम ने फ़रमाया-तुम जहाँ हो वहीं रहो अल्लाह की कृपा को अपना आचरण बनाए रखो तुम्हारे आमाल में ज़रा भी कमी नहीं आएगी।

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