मुसलमानों पर ज़ुल्म
क़ुरैश के लोगों ने जब देखा कि “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमारी बात नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन ग़रीबों पर ग़ुस्सा उतारा जो उनके गुलाम वगैरह थे। जब दोपहर की गर्मी से अरब की ज़मीन तपने लगती तो वो उन ग़रीबों को उस पर लेटा देते थे। उनके सीने पर भरी पत्थर रख देते ताकि वो करवट न ले सकें। गरम रेत से बदन को ढँक देते। लोहे को आग पर गरम करते और उससे ग़रीबों के शरीर को दाग़ा करते। पानी में डुबकियाँ देते और हर तरह का संभावित अत्याचार करने में कोई कोर-कसर बाकी न छोड़ते।
ये मुसिबतें यूँ तो सभी लाचारों पर बराबर थीं पर “कुरैश” जिन्हें ख़ास तौर से दुःख पहुँचाते उनका ज़िक्र करें तो सबसे पहला नाम हज़रत “ख़ब्बाब बिन अलअरत रज़िअल्लाह अन्हु” का है। ये “तमीम” के क़बीले से थे। अज्ञानता में गुलाम बना कर बाजार में बेच दिए गए थे। “उम्मे अम्मरा” ने इन्हें ख़रीदा था। उस ज़माने में इस्लाम लाये जब हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के घर में इस्लाम का काम किया करते। केवल छह सात लोग ही उस समय तक मुस्लमान हुए थे। “क़ुरैश” ने हज़रत “ख़ब्बाब” रज़िअल्लाह अन्हु को तरह-तरह की तकलीफें पहुँचाई। अक्सर कोयले दहका कर उन पर हज़रत “खब्बाब” रज़िअल्लाह अन्हु को लेटा देते और एक आदमी उनके सीने पर पाँव रख कर खड़ा हो जाता। उसी तकलीफ़ में तड़पते रहते यहाँ तक कि कोयले ठन्डे हो लम्बे अन्तराल के बाद जब हज़रत “खब्बाब’ रज़िअल्लाह अन्हु ये क़िस्सा हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु को सुना रहे थे तब उन्होंने अपनी पीठ दिखाई तब भी उस वक़्त के ज़ख्म से बने गड्ढे उनकी कमर पर साफ़ दिखाई पड़ रहे थे।
हज़रत “बिलाल” रज़िअल्लाह अन्हु का इस्लाम में ऊँचा स्थान है। आप अपनी अज़ान की वजह से जाने जाते हैं। नस्ल से अफ़्रीकी थे और “उमय्या बिन खिलाफ़” के ग़ुलाम थे। जब कड़ी धुप हो जाती “उमय्या” इनको ज़मीन पर लेटा देता और सीने पर बड़ी चट्टान रखवा देता फिर हज़रत “बिलाल” रज़िअल्लाह अन्हु से कहता कि इस्लाम छोड़ दो वरना यूँ ही घुट-घुट के मरते रहोगे लेकिन उस वक़्त भी हज़रत “बिलाल” रज़िअल्लाह अन्हु के होंठों पर एक ही लफ्ज़ रहता ‘अहद ! अहद !” जब किसी तरह बात न बनती तो इनके गले में रस्सी डाल कर लड़कों के हवाले कर देते लड़के उन्हें शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक घसीटते तब भी “बिलाल” रज़िअल्लाह अन्हु की ज़ुबान पर अहद !” ही रहता।
हज़रत अम्मार रज़िअल्लाह अन्हु-
यमन के रहने वाले थे। इनके वालिद “यासिर” मक्का आये।”अबू “हुज़ैफ़ा” मख़जूमी” ने अपनी कनीज़ “सुमय्या” से उनकी शादी कर दी। इन दोनों के बेटे थे हज़रत “अम्मार” रज़िअल्लाह अन्हु। ये जब इस्लाम लाये तो इनसे पहले केवल तीन व्यक्ति इस्लाम ला चुके थे। “क़ुरैश” इन्हें तपती हुई ज़मीन पर लेटा कर इतना मारते कि वो बेहोश हो जाते। इनके माता-पिता के साथ भी इस तरह का दुर्वयवहार किया जाता।
हज़रत “सुमय्या रज़िअल्लाह अन्हा-
हज़रत “अम्मार” रज़िअल्लाह अन्हु की माताश्री थीं। हज़रत “सुमय्या” रज़िअल्लाह अन्हा के इस्लाम क़ुबूल करने के जुर्म में “अबू जहल” ने उन्हें बरछी से क़त्ल कर दिया।
हज़रत यासिर रज़िअल्लाह अन्हु –
हज़रत “अम्मार” रज़िअल्लाह अन्हु के पिताश्री थे। इन पर भी ज़ुल्म इतना हुआ कि यह शहीद हो गए।
हज़रत सुहैब रूमी रज़िअल्लाह अन्हु – हुज़ूर पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब इस्लाम की तालीम देना शुरू की तो ये और हज़रत के साथ “अम्मार” रज़िअल्लाह अन्हु भी हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)के पास आये। आपने इस्लाम की तरग़ीब दी और यह मुस्लमान हो गए। “क़ुरैश” इन पर इतना ज़ुल्म करते कि आखिरकार यह अपने होश खो बैठते। जब इन्होंने “मक्का” छोड़कर ‘मदीना’ जाना चाहा तो “क़ुरैश” ने धमकी दी कि अपना सारा माल यहीं छोड़ कर जाओ। हज़रत “सुहैब” रज़िअल्लाह अन्हु ने यह मंज़ूर कर लिया।
अबू फ़कीहा रज़िअल्लाह अन्हु –
“सफ़वान बिन उमय्या” के ग़ुलाम थे। हज़रत “बिलाल” रज़िअल्लाह अन्हु के साथ इस्लाम लाये। उमय्या को जब मालूम हुआ तो उनके पाँव में रस्सी बांध कर आदमियों से कहा कि घसीटते हुए ले जाएँ और तपती हुई ज़मीन पर लेटा दें। कई बार इस हद तक मारा कि लगा “अबू फ़कीहा” रज़िअल्लाह अन्हु शहीद हो गए।
हज़रत लुबैना रज़िअल्लाह अन्हा –
इनको मारते मारते थक जाते तो कहते “मैं तुझ पर रहम आने की वजह से नहीं रुका। बल्कि इस वजह से रुका हूँ कि मैं थक गया। वो बेहद सुकून से जवाब देतीं अगर तुम इस्लाम न लाओगे तो अल्लाह तुमसे इसका इन्तिक़ाम ज़रुर लेगा।”
हज़रत ज़िन्नेरा रज़िअल्लाह अन्हा –
हज़रत “उमर” के घराने की कनीज़ थीं। इसी वजह से इस्लाम लाने से पहले हज़रत “उमर” उनको बहुत ही परेशान करते। इतनी सख्ती की कि हज़रत “ज़िन्नेरा” रज़िअल्लाह अन्हा की आँखें चली गयीं।
“हज़रत नाहदिया” और ‘उम्मे उबैस रज़िअल्लाह अन्हा” –
ये दोनों भी कनीज़ थीं। इस्लाम लाने के जुर्म में इन्हें भी बहुत मार बर्दाश्त करनी पड़ती। यहाँ हज़रत “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु की बडाई का वर्णन करना ज़रूरी है। हज़रत “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु ने सभी ग़रीब मज़लूमो को उनके मालिक से भारी कीमतों पर खरीद कर आज़ाद करवा दिया।
हज़रत उस्मान रज़िअल्लाह अन्हु –
यह खानदान के बड़े थे और इज़्ज़तदार शख्स थे। जब ये इस्लाम लाये तो किसी ग़ैर ने नहीं बल्कि खुद इनके चाचा ने इन्हें रस्सी से बांध कर मारा।
हज़रत अबू ज़र रज़िअल्लाह अन्हु –
यह सातवें मुसलमान हैं। जब मुस्लमान हुए तो “काबा” में सबके सामने ऐलान किया। क़ुरैश ने इन्हें इतना मारा कि बेहोश कर दिया।
हज़रत ज़ुबैर इब्ने व रज़िअल्लाह अन्हु-
यह पांचवे शख्स थे जो मुस्लमान हुए। जब इनके इस्लाम लाने का पता चला तो इनके चाचा इन्हें चटाई में लपेट कर धूनी दिया करते थे।
ईरान के विजेता हज़रत “साद इब्ने वक़्क़ास” रज़िअल्लाह अन्हु:-
अपने क़बीले में बहुत इज़्ज़तदार और भरोसेमंद व्यक्ति थे। लेकिन फिर भी ज़ुल्म से न बच सके “बनु असद” क़बीले के लोग इन्हें सख्त से सख्त सज़ा देते।
हजरत “अबू बकर सिद्दीक” रज़िअल्लाह अन्हु:-
मक्का के यशस्वी और इज़्ज़तदार लोगों में से थे लेकिन “कुरैश” की नफ़रत और उनके ज़ुल्म से नहीं बच सके। एक दिन का जिक्र है कि लोगों ने “अबू बक्र सिद्दीक” रज़िअल्लाह अन्हु को गिराकर जूतों से बहुत मारा। इन लोगों में उतबा बिन रबीअ ऐसा शख्स था जिसने “अबू बक्र सिद्दीक़” रज़िअल्लाह अन्हु को फटे जूतों से चेहरे पर मारा। आपके चेहरे पर इतनी दफ़ा जूता मारा गया कि चेहरा सूज गया। काफ़ी समय बाद “अबू बक्र सिद्दीक” को घर छोड़ दिया। हर किसी को यक़ीन था कि अब “अबू बक्र रज़िअल्लाह अन्हु नहीं बच पाएंगे। लेकिन अल्लाह के करम से “अबू बक्र सिद्दीक़” रज़िअल्लाह अन्हु की हालत थोड़ी बेहतर हो गई। शाम तक बोलने की हिम्मत कर पाए और कहा क्या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ैरियत से हैं? उनके घर वालों ने जैसे ही यह सुना तो “अबू बक्र रज़िअल्लाह अन्हु को काफ़ी भला-बुरा कहा और कहा कि इस वक्त भी तुम्हें अपने दोस्त की पड़ी है।
जब भीड़ थोड़ी कम हो गई तो “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु ने अपनी मां से पूछा कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के क्या हाल हैं? उन्होंने कहा मुझे बिल्कुल ख़बर नहीं है। हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक रज़िअल्लाह अन्हु ने जवाब में कहा कि आप उम्मे “जमील” रज़िअल्लाह अन्हा से मालूम करें उन्हें पता होगा। उम्मे “जमील’ हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की बहन “फ़ातिमा” की उपाधि विभूषित थी। यह मुस्लमान हो चुकी थीं। रात के वक्त “जमील” रज़िअल्लाह अन्हा भी हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु का हाल-चाल मालूम करने उनके घर आईं। हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु की हालत देखकर कहा कि जिन लोगों ने आपके साथ यह दुर्व्यवहार किया वह बड़े निर्दयी और क्रूर हैं। मुझे उम्मीद है अल्लाह उनसे इंतकाम लेगा।
हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु ने पूछा कि मुझे रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में बताओ क्या वो ठीक हैं? “जमील” रज़िअल्लाह अन्हा ने बताया कि रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ैरियत से हैं। “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु ने पूछा कहाँ हैं? जवाब देते हुए “जमील” रज़िअल्लाह अन्हा ने कहा कि इस वक्त “अरक़म” के घर पर हैं। हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा। “उस समय तक मुझे पर खाना-पीना हराम है जब- तक मैं अपने से देख न लूँ। रात को जब चहल-पहल कम हुई और सन्नाटा छा गया तो हज़रत “अबू बक्र” सिद्दीक़ रज़िअल्लाह अन्हु अपनी माता और उम्मे “जमील” रज़िअल्लाह अन्हा के सहारे हुजूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास पहुँचे। अपने प्यारे दोस्त से मुलाक़ात करके उनका हाल पूछा और उनका हाल मालूम करने के बदले में खुद “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु का हाल बेहतर हो गया।